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मालूशाही मेरा छलिया बुराँश-प्रज्ञा

'मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश'
प्रज्ञा का नया व सशक्त कथा सँग्रह
राजनारायण बोहरे

मालूशाही...मेरा छलिया बुरांश नाम का यह कहानी संग्रह लोकभारती प्रकाशन इलाहाबाद से आया है, इसकी लेखिका हैं हिंदी की प्रतिष्ठित लेखिका प्रज्ञा ! इस संग्रह में कुल नौ कहानियां शामिल हैं ,जिनके अपने रूप हैं और अपनी बुनाबट।
प्रज्ञा नाटक लिखती रही है और उन्होंने एकांकी नाटकों पर शोध कार्य किया है, इसलिए उनके उपन्यासों व कहानियों में दृश्य योजना और संवाद बड़े महत्वपूर्ण होते हैं । उन्होंने अपने पिता से बचपन में किस्से-कहानी वाली कहानियां भी सुनी और के लिखित रूप से भी वे कहानियों से परिचित हैं , इसलिए उनकी कहानियों में किस्सागोई की महत्ता रहती है । उनमें किस्सों जैसी रोचकता रहती है तो जरूरी मुद्दे भी मौजूद रहते हैं ।
शीर्षक कहानी 'मालूशाही
...' में कथानक कुछ इस प्रकार है - आकाशवाणी में कार्यरत धरा जब अनेक दंपत्तियों के जीवन, प्रेम अनुभवों पर धारावाहिक स्टोरी प्रस्तुत करते हुए बोर होने लगती है तो उसे सीधे सीधे रेडियो की डायरेक्टर जनरल गीता एक पता नोट कराकर अल्मोड़ा और कौशांबी जाकर मनिल और मुक्ता के प्रेम पर स्टोरी करने का निर्देश देती हैं । वहां पहुंचकर धरा जब मुक्ता से मिलती है तो मुक्ता थोड़े से विलंब के बाद अपनी प्रेम कहानी के प्रसङ्ग व मनिल के स्वभाव और जीवन यानी लाइफ़स्टाइल आदि के बारे में बताती है। बाद में परंपरागत हथकरघा वाले केंद्र पर धरा को बुलाकर कहती है 'धरा यहां तुम्हें अनिल मिल जाएंगे ।'
'कहां है ?'
'बरसों से यही है इस जगह की हर आवाज में !' (पृष्ठ 103)
कहानी की पृष्ठभूमि में क्लासिक प्रेमी युगल मालूशाही और राजुला की प्रेम कहानी सर्वत्र बिखरी हुई मिलती है । मालूशाही मस्त युवा राज पुरुष था , और मंजुला थी एक साधारण परिवार की लड़की। जिनकी प्रेम कथा पहाड़ों में ठीक वैसी ही कहीं जाती है जैसी राजस्थान में ढोला मारू या सारे देश में लैला मजनू और शीरीं फरहाद। मनिल से भेंट को आतुर धरा को अंत में एक झटका सा लगता है ! ...क्या मनीष वैसा ही था यशोधरा ने सोचा था! क्या मुक्ता उस प्रकार की थी जैसी दिखती थी? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो इस झटके के साथ कहानी के अंत में खुलते हैं । इस कहानी को पढ़ते समय एक क्लासिक कथा को पढ़ने का सुख मिलता है, वहीं पहाड़ी प्रेमी युगल की युगों पुरानी दास्तान मालूशाही व राजुला से भी आम पाठक परिचित होता है। इस कहानी को पढ़ते समय लेखक को यह भी पता लगता है लगता है कि पहाड़ों पर बुराँश नाम का एक ऐसा वृक्ष है , जिसके फूलों का शरबत बहुत अच्छा स्वास्थ्यप्रद है। कहानी में पहाड़ी गीत, पहाड़ी कथाएं व पहाड़ी भाषा इतनी आसानी से आती है कि पाठक उसको सहज रूप से समझ लेता है। इस नाते भाषागत रूप से भी यह कहानी विशिष्ट बन जाती है। 'फूल देई...छम्मा देई...देणि द्वार-भर भकार.. (प्रश्न 106) यह जिंगल नुमा शब्दांश बच्चों द्वारा गाए जाते शुभकामना गीत का अंश हैं ( यह दरवाजा हमेशा फला-फूला रहे।यहाँ से कभी कोई भूखा न जाये, यहाँ के भण्डार भरे रहें। हम इस देहरी को प्रणाम करते हैं...) यह गीत सहज रूप से कहानी में आया है । पति व जीवनसाथी के बारे में धरा को समझाती मुक्ता कहती है," धरा!जीवनसाथी में मर्द नहीं उसके भीतर एक नन्ही दूब, उमंग भरा बचपन, एक बहता झरना, उड़ते परिंदे, चट्टान, मुक्त हवा और पक्की धरती खोजना (पृष्ठ 110) बुराँश का वृक्ष देखने का प्रसङ्ग एक दृश्य ही खड़ा कर देता है-
मुक्ता बताने लगी -चीड़,मोरु,अयार और वह देखो हरे दुशाले पर लाल गुलाब जैसा मेरा बुराँश । धरा चहक उठी। बुराँश चीड़ के मुकाबले लंबा नहीं था पर उसके चटख लाल रंग के फूल इस पहाड़ी में आग की तरह दहक रहे थे (पृष्ठ 112)
इस कहानी के मुख्य पात्रों में यूं तो दो ही हैं -धरा और मुक्ता! धरा उत्साही युवती है जो मुक्ता की प्रेम कहानी पर स्टोरी करने को उत्सुक है,वह आकाशवाणी की कार्यकारी अधिकारी है, वह जुनूनी ढंग से कार्य करती है, जिस काम में लगती है , उसमें प्राण प्रण से जुड़ जाती है। लेकिन भीतर से बड़ी संवेदनशील भी है । दूसरी पात्र है मुक्ता, जो एक समर्पित और जिंदादिल प्रेमिका है व प्रेमी मनिल से एकाकार हो चुकी है । तीसरा पात्र मनिल है जो यूँ तो कथा में सर्वत्र है, हर पृष्ठ पर उसकी चर्चा है, लेकिन धरा से भेंट होने में बड़ी कठिनाई होती है।
संग्रह की एक कहानी " बुरा आदमी " है। इसके कथानक का संक्षिप्त रूप यूँ है- एक बीमा अधिकारी के यहां कलेक्शन का काम करने वाला युवक एक दिन दिल्ली के एक कोने से दूसरे कोने तक भाग दौड़ करने की वजह से सांझ को घर वापसी में लेट हो जाता है,वह घर तक की लंबी दूरी व टैक्सी से पार कर रहा है कि घर से 10 किलोमीटर दूर टैक्सी खराब हो जाती है। उसका मोबाइल डिस्चार्ज है, अन्य कोई साधन नहीं है अतएव दूसरा कोई साधन बुलाया नहीं जा सकता।तब वह लड़का पैदल ही चल पड़ता है। तमाम बाधाएं और खतरे पार करते हुए आगे बढ़ रहे उस लड़के को एक जगह अंधेरे में एक आकृति दौड़ती हुई दिखती है, फिर किसी लड़की की चीख सुनाई देती है ।चीख का पीछा करता युवक देखता है कि सड़क के नीचे अंडरपास झाड़ियों के अंधेरे में एक किशोरी खड़ी हुई है । वह किशोरी उस युवक को पास आता देख कर गुस्सा हो जाती है और पास न जाने को कहती है लेकिन वह युवक उसे अपनी बातों से समझाकर भरोसे में लेता है और उसे आप बीती बताने को राजी कर देता है ।लड़की की बातों से पता चलता है कि वह युवक के मोहल्ले के एक परिवार की सदस्य है। पिता की पिटाई से गुस्सा होकर वह घर से भाग आई है। मजे की बात यह है कि वह किशोरी इस युवक को पहचानती है और अनजाने में अल्हड़पन में कहती है कि वह युवक उसे खूब अच्छा लगता है। बात करते हुए दोनों पास बैठ चुके हैं , किशोरी थक के चूर है,वह युवक के कंधे पर सिर रखकर नींद में खो जाती है। युवक के भीतर बैठा आदमी को जाजीने लगता है उसका हाथ कुर्ते के कोने को पकड़ता है फिर अगली हरकत को उतारू ही होता है कि कुछ अलग ही घटता है । ...रात कट जाती है तो अंधेरे को चीरकर सुबह के उजाले से अंधेरा दूर होने के साथ कहानी का अंत होता है । रात को युवक ने कुछ गलत किया ? उस किशोरी ने उसे सहन किया ? इन सवालों को लेखिका ने ठीक से निभाया है । कहानी मैं उभर के आता है कि हर आदमी के भीतर एक बुरा और एक अच्छा आदमी बैठा रहता है इस कहानी का नायक ऐसे युवकों का नुमाइंदा है, जो दिल्ली जैसे महानगरों में छोटी-छोटी नौकरियां करके भाग दौड़ करते हैं, अथक परिश्रम करते हैं और घर लौटकर अकेले खाना खाकर चुपचाप सो जाते हैं ,अगली सुबह फिर काम पर जाने के लिए। यह युवक भी एक सामान्य इंसान हैं, उसकी देह भी इंसानी हैं जो मादा देह के पास आकर उत्तेजित हो जाती है दूसरा पात्र वह किशोरी है जो ऐसी नख़रीली है, जैसी लड़कियां घर-घर में होती हैं । पिता की जरा सी डांट को वह दिल पर ले जाती है और पिता के गुस्से में आपा खो देती है । लेकिन भीतर से भोली है वह लड़की । इस कहानी में बीमा कर्मियों और उनके एजेंट के काम धाम के बारे में डिटेल बताई गई है तो ऑटो करते समय की सामान्य सौदेबाजी बीच में टैक्सियों का खराब होना जैसी चीजें भी इस कहानी में विस्तार से आई है । बीमा व्यवसाय के व्यक्ति की कहानी होने के कारण इस कथा की शुरू की भाषा कारपोरेट जगत की दिन प्रति दिन की भाषा है। कहानी में घर लौटते युवक को चौराहे पर खड़े चार लड़के अजीब सी नजरों से देखते हैं , उस पर कमेंट करते हैं, यह अकारण छेड़छाड़ न केवल दिल्ली की कथा है, बल्कि देश के तमाम कस्बों की व महानगर के बाहरी इलाकों की आज यही कथा है।यह आज का भारत है, आज के भारत का बेरोजगार युवा है यानी जो समाज का बदनुमा दाग है कि स्त्री तो स्त्री पुरुष का निरापद निकलना भी मुहाल है। कथा के संवाद उम्दा हैं। लड़की से युवक के संवाद प्रभावशाली हैं-
'देखो तुम डरो नहीं भागो मत, अच्छा मैं ही आता हूं तुम्हारे पास' 'यहाँ मत आना मेरे पास' उसने दो टूक कहा।
' मेरा यकीन करो, मैं बुरा आदमी नहीं हूं। मैं यही खड़ा हूं , नहीं आ रहा हूं तुम्हारे पास! ठीक है! अब तो लौट कर आओ। ऐसा मत करो ।'इस बार कदमों की आहट मुझ तक पहुंची (पृष्ठ 16)
लेखिका ने कथा जो दृश्य निर्मित किए हैं ,वे अद्भुत हैं । कुछ वाक्यों व कुछ शब्दों में ही सारा दृश्य साकार हो जाता है-' यही नहीं उसकी सांसों की आवाज को मैं बहुत अच्छी तरह सुन पा रहा था। मेरे पूरे बदन में झनझनाहट दौड़ गई। मेरा हाथ उसके कुरते के किनारे को छू रहा था । थोड़ी देर में वह किनारा मेरे नाखून के नीचे था। मैंने महसूस किया कि नाखून बढ़ रहा है। नुकीला, खूंखार और निर्मम। मैंने गहरी सांस ली। अपने दिल की धड़कन को महसूस किया।मैंने देखा उस वीराने में बहुत सारे नाखून उग रहे हैं। खून से सने।*** उस वीराने में कई जोड़ी हाथ उगने लगे हैं । सब तरफ अंधेरा था । मैंने झटके से आंख खोली। अपनी साँस को महसूस किया। मैंने अपने हाथ को देखा और चुपचाप लड़की के कुर्ते के किनारे से उसे अलग किया। *** कहीं दूर चिड़ियों के चहकने की हल्की-सी आवाज सुनाई दी। ( पृष्ठ 21)
फिडेलिटी डॉट कॉम नाम की एक कहानी में विनीता एक ऐसी युवती है , जो बचपन में मामा के यहां रहकर पली-बढ़ी है अब शादी होने के बाद में पति के साथ कोच्चि में रहती है । उसका पति किसी कंपनी में सेल्स विभाग में है ,अतः टूअर में व्यस्त रहता है। समय काटने के लिए पत्नी को एक टैबलेट गिफ्ट करता है । विनीता एक नई दुनिया में दाखिल हो जाती है। फेसबुक पर पर वह बिछड़े दोस्तों, परिचितों से मिलती है तो मार्केट की तरह माल से भरे पड़े ऑनलाइन विक्रेता मंच उसे अपनी तरफ बुलाते हैं । ऐसी वेबसाइट में अगले कदम पर पति की वफादारी व अन्यत्र रिश्ते आदि मुद्दों जुड़े तमाम सर्वे विनीता को उत्सुक व शंकालु बना देते हैं। ऐसे सर्वे प्रायः हर न्यूज़ वेब साईट अपनी पहुँच बढ़ाने के लिए व पाठकों को आकर्षित करने के लिए साइट पर डालती रहती है। यह सब पढ़कर विनीता का मन खराब हो जाता है ,उसे लगता है उसका पति कहीं एक्स्ट्रामैरिटल रिश्ते में तो नहीं। वह पति के फोन की जासूसी करती है ,तो पति उसके फेसबुक अकाउंट को चेक कर तमाम सवाल करता है अंत में विनीता की दीदी उसे डांटती हैं कि जीवन को सामान्य ढंग से चलाओ, ऐसे झूठे सर्वे वर्वे के चक्कर में ना पड़ो ।तब वह शांत होती है, उसका पति भी नॉर्मल हो जाता है। ऐसी वेबसाइट की लोकप्रियता का आलम यह है कि सीज फायर होने पर पति जो अंगूठी विनीता को गिफ्ट करता है वह भी फेडिलिटी डॉट कॉम से खरीदी गई है। इस तरह ऑनलाइन बिक्री वाली प्लेटफार्म हमारे समाज को , पति-पत्नी के संबंधों को कितना प्रभावित करते हैं, यह इस कहानी में कहा गया है। पति की जासूसी के उपकरण तलाशती लड़की विनीता कभी कैमरे लगे कफलिंक देखती है, कभी वॉलेट देखती है, कभी टाइ पिन देखती है तो कभी बटन ,कभी बेल्ट कभी घड़ियां, कभी जूते देखती है जिनके कैमरे से शूटिंग करके पति के वीडियो बनाए जा सकते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग के डिटेल इस कहानी में खूब आए हैं। इस कहानी में भाषा वही कारपोरेट वाली है, टारगेट,टूअर , रिपोर्टिंग शब्द आए हैं । इस कहानी के पात्रों में विनीता महत्वपूर्ण है जो अपने मामा के कठोर अनुशासन में पली बढ़ी है (जबकि उसकी दीदी आक्रामक, गुस्सैल, विद्रोही हैं ।हालांकि शुरू से आक्रामक रही दीदी के बारे में पूरी कहानी में कोई क्रांति धर्मी एक्टिविटी, बहस निष्कर्ष या घटना नहीं आती।) विनीता भी आम महिलाओं की तरह मोबाइल पर आते सर्वे, खबरें और प्रचारतंत्र में विश्वास करती है स्त्री सहकर्मी से पति का बात करना भी उसे अखरता है-
'यह चारू कौन है सुहास?' 'ऑफिस में '
'इसको एक दिन में इतने फोन कर डाले तुमने?'
'विनीता ! मुझे इसे ही रिपोर्ट करना होता है कि कितने टारगेट मैंने पूरे किए। बॉस का यही आर्डर है। फील्ड के बाकी लोग भी रिपोर्ट करते हैं '
'यह तुम्हारे साथ टूर पर भी जाती है क्या तुम्हारे साथ ...।'(पृष्ठ 52) इसका दूसरा पात्र सुहास एक आम कर्मचारी की तरह कारपोरेट कल्चर का व्यक्ति है ,जो समय पर अपनी नौकरी भी करता है ,ट्रैवल भी करता है ,अपना टारगेट पूरा भी करता है और समय पर प्यार भी करता है । विनीता के मामा प्रमुख पात्र है जो जिनिस्तान और कब्रिस्तान में भरोसा रखते थे वे पुलिस के दारोगा थेबजो मोबाइल को जिन कहते थे और लैपटॉप को पूरा जिनिस्तान । जिनिस्तान में फंसते ही लड़कियां कब्रिस्तान पहुंचती ही हैं ऐसा मानते थे।
इस कहानी में प्राकृतिक वर्णन की दृष्टि से कोच्चि पोर्ट का वर्णन व मछुआरों और तट का प्रामाणिक विवरण हैं। देश और काल के नजरिए से देखते हुए हम इस कहानी को वर्तमान काल की कहानी कह सकते हैं जिसमें ऑनलाइन सेल के बिजनेस भी हैं, फेसबुक भी है, टेबलेट भी है और विभिन्न सेल्स व न्यूज़ वेबसाइट पर आते हुए सर्वे हैं जो पति पत्नी की आपसी वफादारी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक करते हैं..!
संग्रह की एक कहानी "माटी का राग" है, इसके कथानक में रामअवतार एक ठाकुर परिवार का ग्रामीण पात्र है, जिसका दोस्त हसन एक सांप्रदायिक दंगे में घायल हो गया है । गांव में हिंदू मुस्लिम दंगा हो चुका है, जिसमें जान माल का नुकसान हुआ है। राम अवतार का छोटा बेटा उमाकांत पिता को फोन कर दिल्ली जाने का अनुरोध करता है जहां बड़ा बेटा मणिकांत रहता है। दिल्ली जाने पर बेटा मणिकांत और पतोहू मिलकर रामअवतार की सेवा करते हैं फिर एक दिन सहज भाव से कहते हैं कि गांव का घर खेत बेचकर यहीं आकर रहो। रामअवतार कोई जवाब नहीं देता चुपचाप गांव लौटता है , पर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाता है। हसन से भी उसका मिलना मिलाना जारी रहता है। एक दिन किसान मेला में वह गांव के कुम्हार लल्लन के बेटा बिल्लन को आधुनिक मशीन और भट्टियों से मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाते हुए देखता है और बचपन से अपनी दबी इच्छा उसके मुंह पर आ जाती है कि वह भी बर्तन बनाना सीखेगा। लल्लन भी पूर्व में ठाकुर राम अवतार को मना कर चुका है पर विलेन को रामअवतार मना लेता है और उसका बर्तन वगैरह मिट्टी की चीजें बनाना शुरू हो जाता है ।उसे जीवन में फिर से आनंद आने लगता है, जोकि भाई द्वारा हिस्से के लिए गए किए गए मुकदमें पत्नी के बीच और तीन बेटों के शहर से बाहर चले घर से बाहर चले जाने की वजह से उदासियों के कोहरे में कैद हो गया था। लेखिका ने शहरी वातावरण की गरीब बस्ती का जीवंत चित्रण किया है, जहां रहना तो देहात की तरह है, पर लोगों के आचरण शहरों की तरह स्वार्थी और एकाकी हैं। वहां पड़ोस में एक व्यक्ति अपनी पत्नी को पीटता है तो दूसरा पड़ोसी मदद नहीं करता, रामअवतार पड़ोसी को रोकने जाना चाहता है तो उनका बेटा रोक लेता है। इस उपन्यास में प्रमुख पात्र राम अवतार है , जो ग्रामीण प्रतिष्ठित किसान खानदान का व्यक्ति है ,सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति उसकी पूरी निष्ठा है, उसमें मिट्टी के बर्तनों के प्रति बचपन से एक अजीब सा आकर्षण है जो अंत में पूरा होता है। वह सख्त मिजाज पिता है, उसकी जमीन और गांव व घर से पूरी आसक्ति है , वह मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए ज्योँही मिट्टी से जुड़ता है , तो सारी उदासी काफूर हो जाती है । इस कहानी का दूसरा पात्र हसन है, हसन रामअवतार का मुस्लिम दोस्त है जो रामअवतार से भाई की तरह दोस्ती निभाता है। रामअवतार अकेला रहता है, उसको खाना नाश्ता चाय घर से ला कर हसन देता है। उसके मन में भी हिंदू मुस्लिम की बिगाड़ी जा रही छवि को लेकर स्थिति साफ है कि राजनीतिज्ञ ही ऐसे संबंध बिगाड़ते हैं, व ऐसे मजहबी दंगे करवाते हैं। राम अवतार का बेटा उमाकांत गायक है ,कलाकार है ,वह जब तब गाना गाता बजाता रहता था तो राम अवतार ने उसे बाहर भगा दिया है और कहा है कि कुछ काम करो। मणिकांत व पतोहू मजबूरी में शहर गए हैं , वहां गुजारे के लिए मणिकांत ऑटो चलाता है तो बहू फैक्ट्री में काम करती है । मझला बेटा शशिकांत है जो घर से दूर जाकर रहता है, लेकिन उसकी पत्नी बहुत तेज है, दरअसल मंझले का जो कमरा गांव में ताला बंद रखा हुआ है, उसमें टेलीविजन , एलईडी टीवी , फ्रिज कूलर सब रखा है , जिसे वे छोड़कर शहर गए हैं।( हालांकि उनके खुद के परेशान रहते हुए यह सवाल जरूर उठता है कि वे गांव में अपना सारी मौज मस्ती का सामान सुख सुविधा का सामान छोड़कर क्यों गए हैं ) इस कथा की एक चरित्र सरस्वती है जो रामअवतार की मृतक पत्नी है, जो अब भी जब तब राम अवतार की यादों में आ जाती है । जिस ने जीते जी घर को जोड़ रखा था लेकिन जब देवर ने बंटवारे की बात रखी तो वह टूट गई थी और बिखर गई थी । शशिकांत की बहू भी चैतन्य बहुरिया है वह अपने पति के हक हकूक के लिए अपने ससुर को खत लिखती है -
'खबर मिली आपके बेटे बढ़कर बेटे के पास जाने की। चुपके से घर बेच बात करना चले न जाना। दूसरा बेटा भले ही बाहर सही उसका भी घर में हिस्सा है। आपके बेटे यहां अमनौर में घर बनवा रहे हैं । पैसे की सख्त जरूरत है ।दिल्ली जाने से पहले खबर जरूर करना।'(पृष्ठ 72) यह 21वीं सदी की बहू है ।
इस कहानी में पात्रों के संवाद बड़े क्षिप्र हैं ।सरस्वती जो राम अवतार की पत्नी है और उसके बेटे बाहर रहते हैं वह कहती थी -
तीन बेटों में से यदि एक कुछ काम काम नहीं करेगा तो क्या ? घर मे किस बात की कमी है। फिर ऐसी क्या जल्दी है, जब समझ में आयेगी तो कर लेगा कोई काम-धाम।नहीं भी करेगा तो खिलाए तो हम खिलाएंगे ना सारी उम्र।मौज में गाता- बजाता रहेगा पर कम-से-कम हमारी आँखों के सामने तो रहेगा।'
'कोई जरूरत नहीं प्यार मनुहार की। तुमने उसे बिगाड़ दिया। (पृष्ठ63)
एक अन्य सम्वाद में चाक और मिट्टी के प्रति लगाव रखता रामअवतार बोलता है-
'एक बार हमें भी चलाना है चाक।'
***
दयाशंकर ने चौंक कर देखा ।
'तुमसे ना हो पाएगा ठाकुर जी महाराज। कहां धरती का सोना तैयार करने का करते हो तुम और कहां हम?'
***
'रिश्ता तो हम दोनों का ही माटी का ठहरा।'
दुखी मन से अपनी इच्छा के पर समेटते राम अवतार ने जवाब दिया (पृष्ठ 71)
इस कहानी में तमाम नई कहावतें पाठक को पढ़ने को मिलती हैं, एक देखिए-
नया नया दुल्हन के नया नया चाल
( पृष्ठ 68)
इस कहानी संग्रह की एक कहानी है 'चालें और मात के बीच'! इसके कथानक में अरविंद नई टेक्नोलॉजी का बड़ा जानकार आदमी माना जाता है, वह एक ऑफिस में नौकरी करता है, उसके सभी निकट सुधार और दोस्त उसी से पूछ कर मोबाइल और लैपटॉप वगैरह गैजेट खरीदते हैं । अपना डेस्कटॉप कंप्यूटर खराब होने पर वह लैपटॉप की तलाश करता है। ऐसे ही एक दिन अरविंद को चौराहे की एक लाइट रेड हो जाने पर कार खड़े रहते समय दो युवक मिलते हैं, जो अचानक एक मोबाइल और एक मैकबुक लैपटॉप खरीद लेने का इजहार करते हैं । ऐसे महंगे आइटम के बदले में वे युवक कुछ भी धन लेने को तैयार हैं तो अरविंद मना करता रहता है । लेकिन इस मना करते करते में भी वह पीछा छुड़ाने के लिए अचानक दस हजार रुपया कीमत बता देता है ,तो दोनों युवक दस हजार में भी लैपटॉप और मोबाइल बेचने तैयार हो जाते हैं । लेकिन समस्या यह है कि अरविंद के पास पैसे नहीं है । जब यह बात उनसे कहता है कि दोनों युवक कहते हैं कि आगे चलकर एटीएम से निकाल कर हमें दे दो। निकटतम एटीएम तक जाकर पैसे निकालते अरविंद का मन बदल जाता है और वह सामान खरीदने से मना कर देता है तो दोनों युवक अभद्र भाषा बोलने लगते हैं। तब अरविंद उन्हें पैसे देकर दोनों चीज में कार में डालकर निकल पड़ता है। इस कहानी का अरविंद तकनीकी जानकारी से भरा सबका मददगार युवक है, जो नेट पर आधुनिक चीजों की पूरी जानकारी रखता है तो ऑनलाइन परचेज पर ज्यादा ध्यान देता है। कहानी की दूसरी चरित्र रुचि है जो अरविंद की घरेलू पत्नी है, पति को टोकती रहती है कि इन फालतू की चीजों में ना उलझे रहा करो । अन्य चरित्रों में अनाम दो रास्ते चलते लड़के हैं जो कहीं से उड़ाया हुआ सामान सस्ते में बेच जाते हैं । हालांकि उन लड़कों का चरित्र ज्यादा नहीं खुला सामान चोरी से लाए थे या लूट कर लाए थे और इतनी सस्ती क्यों बेच रहे थे फिर भी जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएं होती हैं जो कभी भी हो जाती हैं। इस कहानी की टर्मिनोलॉजी एकदम वैज्ञानिक और आधुनिक गैजेटस से भरी हुई है- डॉल्बी सिस्टम ,साउंड बार, एसएसडी, हार्ड डिस्क, बारह घंटे बैटरी बैकअप, यूट्यूब जैसे आधुनिक उपकरण और साधनों के नाम का जगह जगह पर बेखौफ और बेशक उपयोग लेकर ने किया है ।
इस कहानी सँग्रह में एक कहानी फंतासी कथा भी है । यह फंतासी कथा 'चमत्कारी कुंड ' इस संग्रह में पुराने किस्से की परंपराओं की कहानी है। जो राजा विनय प्रताप यशोवर्धन महाराज जयनगर की कथा है, जिसके नगर के चमत्कारी कुंड में मुंह धोते ही व्यक्ति राज भक्त हो जाता है । राजा यशोवर्धन वेश बदलकर रात को शहर में घूमता रहता है। एक बार उसे एक विचारक मिलता है, दूसरी बार उसे एक कवि मिलता है, तीसरी बार ज्ञान को समेटने वाला एक व्यक्ति मिलता है। हर बार अगली सुबह ऐसे लोगों को पकड़वा कर उनके उपचार का बंदोबस्त कर उन्हें ठीक करवाता है यानी विचार हीन,कविताहीन व ज्ञान हीन बना दिया जाता है , क्योंकि राजा ने विचार राजा विचार समझने काबिल नहीं है और ना ही कविता समझता है , न ही ज्ञान कथा आती है । एक बार चमत्कार कुंड के वार्षिक उत्सव में जब प्रजा जन अपनी श्रेष्ठ वस्तुओं की भेंट ला रहे हैं तो कवि, विचारक व ज्ञानी अपनी अपनी भेंट लेकर आते हैं और राजा के आसपास कुंड में डाल देते हैं । उनकी भेंट के रूप में ज्ञान, कविता और विचार आते हैं,यशोवर्धन इन तीनों के जोश को सहन नहीं कर पाता, मूर्छित होकर गिर जाता है। पात्रों को देखें तो इस कहानी का नायक मूर्ख है , अशिक्षित है और जेल को भी सुंदर बना देने की शेख चिल्ली जैसी कल्पना करता हैं। वह ऐसे तानाशाह और बुद्धि हीन जननायक का प्रतीक है, जो अपने कहे को ही कानून मानता है और कानून की तरह पालन करवाता है। उसे न किन्ही विचारों से लेना देना है, न कविता से, न ज्ञान से, बल्कि इन तीनों से ताल्लुक रखने वालों को वह सख़्ती करके पकड़वाता है औऱ उनको इतना प्रताड़ित करता है कि वे लोग सब गुण भूल जाते हैं। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं चलता, बाहर से ज्ञानी,कवि और विचारशील व्यक्ति भले ही अपने गुण भूलने का प्रदर्शन करें, भीतर ही भीतर उसे जिंदा रखते हैं और ऐसे मूर्ख यशोवर्धन पर जब इन तीनों बुद्धि वाली चीजों की बौछार होती है या हमला होता है तो मूर्ख राजा अपना सब कुछ भूलकर मूर्छित हो जाता है। इस कहानी के लंबे गहरे प्रतीकार्थ हैं जिन पर कभी विस्तार से चर्चा की जाना उचित होगा।
इस कहानी संग्रह की एक कहानी "स्याह घेरे" हैं जिसका कथानक कुछ इस तरह है कि ज्योति अपार्टमेंट्स हाउसिंग सोसायटी में रहने आई अनुभा चौधरी से मिलने सोसायटी सचिव विनय जाता है जोकि जानता है अनुभा बोल्ड व विदेशी पत्रकार है। वह सौजन्यतावश अपने लायक सहयोग और समर्थन का आश्वासन देके लौटता है । अनुभा के घर में रात देर तक पत्रकार मित्रों की उपस्थिति से बौखलाए संस्था के अध्यक्ष पाहवा कार्यकारिणी मीटिंग में गुस्सा व्यक्त करते हैं । एक दिन मुस्लिमों के खिलाफ लिखे अनुभा के विशिष्ट लेख से सोसाइटी के सारे व्यक्ति उससे खुश हो जाते हैं और पाहवा समेत सब लोग अपने पुराने विरोध को छोड़कर सोसाइटी के समारोह में अनुभा का सम्मान करते हैं । अनुभा की बातें सुनकर सब लोग धन्य धन्य करते हैं । लेकिन यह क्षणिक है, अगले ही किसी दिन मुस्लिमों की तरह हिंदुओं की मानसिक जकड़न की आलोचना करता हुआ अनुभा का लेख ज्योंही सामने आता है कि सोसाइटी का माहौल खराब हो जाता है । सोसाइटी के लोग अनुभा से गुस्सा हो जाते हैं । पड़ोस की सोसाइटी का एक प्रतिनिधिमंडल अनुभा से मिलने के बहाने विनय के साथ अनुभा के घर तक जाता है, जिनमें गुप्ता नामक प्रतिनिधि नेता सहसा अनुभा को चांटा मार देता है। इस घटना की रिपोर्ट लिखाने गई अनुभा की रिपोर्ट थाने में नहीं लिखी जाती । हद तो यह है कि अपने साथी पत्रकारों से इस घटना को साझा करने के बाद भी अनुभा का यह समाचार खबर के रूप में किसी अखबार में नहीं छपता। डरी हुई अनुभा के पास दिलासा देने एक रात को रहने को रूकी पल्लवी के सामने दो पुलिस वाले रात को अनुभा के घर में अचानक घुस आते हैं । वे आरोप लगाते हैं कि वे दोनों धंधा करती हैं । वे पुलिसिये बड़ी बदतमीजी से पूछताछ शुरू करते हैं, तभी विनय वहां आ जाता है वह जब अपना परिचय देता है तो दोनों पुलिस वाले भाग जाते हैं इस घटना की भी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। फिर एक रात कोई अज्ञात व्यक्ति अनुभा की कार के कांच तोड़कर उसके घर में भी घुसने का प्रयास करता है तो अनुभा डर के मारे भीतर छुपी रहती है। अगले दिन विनय से सोसायटी के अध्यक्ष पाहवा की बहस होती है। उधर घर लौट कर कपड़े बदल रहे विनय को उसकी पत्नी भी समझाती है कि ऐसी लड़की का क्या पक्ष लेना तुम्हें उससे क्या इंटरेस्ट है? विनय कहता है कि हमारे देश में सदा सदा से विरोधी स्वर भी सुने जाते रहे हैं, यह उदारता रही है, ऐसे तो कोई भी किसी के पक्ष में न बोलेगा। अनुभा के बाद हमारा भी नंबर आ सकता है , उसे अकेला नहीं छोड़ सकते हम। तब विनय के साथ उसकी पत्नी भी अनुभा को दिलासा देने उसके घर जाती हैं ।
इस कहानी के प्रमुख पात्रों में अनुभा है जो स्वतंत्र पत्रकार और कॉलमिस्ट है। वह संप्रदाय व मजहब के पक्षपात से मुक्त होकर सबकी जड़ता के खिलाफ लेख लिखती है। वह हमलावर लोगों से डरती नहीं पुलिस कार्रवाई हेतु आवेदन देती है, विरोध करती है, फिर भी लिखती है। विनय कथानायक है और कथा कथन भी वही करता है । वह ज्योति सोसायटी का सचिव है औऱ हर कदम पर अनुभा का समर्थन करता है । आदतन वह सोसायटी के लोगों के मकानों के व्यक्तिगत कारणों से लेकर सार्वजनिक समारोह में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है। वह एक सजग नागरिक है , अनुशासित व्यक्ति है ,लेकिन हक के लिएसदा लड़ता है। रोजगार से वह एक बैंक का कर्मचारी है । कहानी के अन्य पात्रों में विनय की पत्नी एक नॉर्मल घरेलू महिला है । रोहित नाम का व्यक्ति सोसाइटी का खजांची है और विनय का समर्थक है। अन्य गैर महत्वपूर्ण पात्रों में गार्ड हैं, थानेदार हैं और वह पहुंचवान तथाकथित समाज हित चिंतक खलनायक गुप्ता व अध्यक्ष पाहवा एक जैसे संकीर्ण मानसिकता के व्यक्ति है भी है । इस कहानी में दो महत्वपूर्ण लेख की चर्चा आई है पहला लेख "मुस्लिम महिलाओं की दूभर दुनिया " है जो अनुभा ने लिखा है और जिसके कारण उसकी अपनी सोसाइटी में सम्मान भी होता है और तारीफ भी की जाती है । लेकिन उसका दूसरा लेख है" हिंदू धर्म की जकड़न" ! यह लेख पढ़कर उसकी सोसाइटी में ही उस पर हमला होता है। वह तीसरा लेख लिख रही है" धर्मसत्ता और स्त्री" यह लेख भी महत्वपूर्ण है । अनुभव की मानसिकता को इस इन पंक्तियों से साफ-साफ समझा जा सकता है- अनुभा देर तक शांत रही । तीखे सच का सामना करने वाले इन दिनों में उसे एक हैरानी और होती थी कि पहले बुरे-से-बुरे वक्त में भी लोग असहमतियों का सम्मान किया करते थे ।चाहे मंत्री हों, संस्थाएं या कोई और । उसकी कलम कभी काँपी न थी और उसके तल्ख विचारों पर विरोधियों ने भी अभिमान किया था पर आज हर असहमत दुश्मन बना कर अकेला किया जा रहा है ( पृष्ठ 132)
यह केवल अनुभा के विचार नहीं है बल्कि आज की घोर सच्चाई है। यथार्थ यह है कि आज हर असहमत व्यक्ति को दुश्मन समझा जाता है और उसे देश का दुश्मन व देशद्रोही साबित करने में देर नहीं की जाती। असहमतियों, विरोधियों और दुश्मनों को भी अपने आप में समेट लेने वाला भारत का वह सर्व समावेशी समाज आज किस मुहाने पर आ पहुंचा है ,यह पीड़ा पूरी गहराई के साथ इस कहानी में प्रकट होती है। इसे पढ़कर पाठक को एक बेचैनी अनुभव होती है।
इस संग्रह की तमाम कहानियों को पढ़कर पाठक का मन तर्क के तौर पर भी और भावना के तौर पर भी बेचैन हो जाता है । कहीं उसका आक्रोश जागता है तो कहीं उसकी बेबसी उठ खड़ी होती है । वह बड़े दुखी भाव से और दुखी मन से वर्तमान परिस्थितियों पर अपना शोक व्यक्त करता है । संग्रह की कहानियों में लगातार वृतांतात्मकता है ।
मालूशाही कहानी में मनिल और मुक्ता के प्रेम की कथा को जानने की जिज्ञासा लगातार बनी रहती है, वही पहाड़ों के प्रेमी युगल मालूशाही और राजुला की कथा भी पाठक को आकर्षित करती है तो चमत्कारी कुंड के पुराने जमाने के किस्से के तरह के रोचक वृतांत से एक तरफ पाठक अपनी किस्सा के प्रति जिज्ञासा को शांत करता है तो दूसरी तरफ उसके भीतर से निकलते प्रतीकात्मक अर्थ उसे प्रसन्नता से भर देते हैं और कहानी के अंत तक वह प्रज्ञा की इस कला के कायल हो जाते हैं जो पुराने किस्सों की पुनर्रचना कर नए तर्क और सुंदर ढंग से विचार , ज्ञान और कविता के प्रति उसके दृढ़ विश्वास को प्रकट करते हैं । स्याह घेरे आज यहां वहां दिखाई देने वाली आम कहानी है, जिसे कोई भी अपने आसपास महसूस कर सकता है, तर्क पूर्ण विरोध या असहमति प्रकट करने वाले लोग कैसे धीरे-धीरे अकेले हो रहे हैं यह तथ्य इस कहानी में पूरी ताकत से उभर के आया है ।
संग्रह की अन्य कहानियों में शोध कथा में पीएचडी के छात्र का वायवा लेने आए एक्सटर्नल के नखरे की कहानी है , तो ताबूत की पहली कील भी एक संवेदनशील कथा है ।
इस संग्रह की कहानियों के तमाम पात्र एक कहानी से दूसरे कहानी में आते जाते दिखाई देते हैं या यूं कहें कि प्रज्ञा के रचे पात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो हमें एक जागरूक नागरिक के तौर पर अलग-अलग कथानक में मौजूद मिलते हैं।
इस संग्रह की कहानियों को भाषा के तौर पर कथानक के अनुकूल माना जाता है, तो कहावतों व मुहावरों से भरी हुई ऐसी भाषा पाठक को देखने को मिलती है जो कार्यालय के औपचारिक पत्रों की मानक भाषा से अलग बोलचाल की समाज की जीवंत भाषा है । इस भाषा में तमाम बोलियों के शब्द,कहावतें और मुहावरे इन कहानियों को समृद्ध बनाते हैं ।
एक तरल और अपने उद्देश्य में सफल होती हुई भाषा इन कहानियों में आई है। हर कहानी की शैली प्रज्ञा ने अलग-अलग रखी है, जो कथानक के अनुरूप आई
है । अपने पुराने संग्रहों की तुलना में इस नए संग्रह में प्रज्ञा ज्यादा परिपक्व होकर, ज्यादा विचार वान होकर और विविध वर्णी कथानक पर कहानी रच कर अपनी रक्त कलम का एहसास कराती हैं।
संग्रह और इसकी कहानियां निश्चित ही चर्चित होंगी और आम पाठक इनको पढ़कर भीतर ही भीतर संतुष्ट भी होगा ।
पुस्तक-मालूशाही...मेरा छलिया बुराँश (कहानी संग्रह)
लेखिका-प्रज्ञा
प्रकाशक-लोकभारती प्रकाशन प्रयागराज
मूल्य-199₹
पृष्ठ-159