Maanbhanjan - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मानभंजन--भाग(१)


मानभंजन का अर्थ है,सम्मान के टुकड़े टुकडे़ हो जाना जो कि इस कहानी की नायिका के साथ हुआ,उसने जिससे सबसे अधिक प्रेम किया,जिस पर विश्वास किया उसी ने समाज में उसका मान गिरा दिया, नायिका ने किस प्रकार अपने अपमान का बदला लिया,वो इस कहानी में दर्शाया गया है.....

समृद्धिपुर गाँव के एक मन्दिर में एक पागल के पीछे पीछे कुछ बच्चे भाग रहे हैं,उसे चिढ़ा रहे हैं सता रहे हैं,फिर उस पागल ने परेशान होकर एक पत्थर उठाकर एक बच्चे के सिर पर मार दिया जिससे उस बच्चे के सिर पर चोंट लग गई और खून बहने लगा,उस बच्चे के सिर से खून बहता देखकर वहाँ मौजूद बच्चों ने उस बच्चे की माँ को बुलाया और उस पगले की शिकायत लगा दी,उस बच्चे की माँ उस पगले के पास गई और उसे जोर का झापड़ धरते हुए बोली....
क्यों रे! पागल बुड्ढे!अब तू बच्चों पर पत्थर भी बरसाने लगा,आज मैं तुझे नहीं छोड़ूगीं।।
इतना कहकर जैसे ही उस बच्चे की माँ ने उस पर दोबारा हाथ उठाना चाहा तो पीछे से एक युवती की आवाज़ आई.....
खबरदार!जो तुमने इन पर हाथ उठाया,अपने बच्चे को सम्भालकर रख,इन सभी बच्चों की गलती है,ये सारे बच्चे मिलकर इन्हें चिढ़ा रहे थे,
उस युवती की बात सुनकर उस बच्चे की माँ बोली....
ये तू कौन होती है,मुझे रोकने वाली,दो कौड़ी की औरत,वेश्या कहीं की,अब उम्र ढ़ल चुकी है कोई पूछता नहीं है तो बड़ी सती-सावित्री बनती है,हो सकता है कि तू इस पागल की भी तू रखैल रह चुकी हो तभी तो इसका पक्ष लेने चली आईं,सारे समाज को गंदा कर रखा है,सभी जानते हैं कि तू सालों से इस पागल के साथ रहती है,तभी तो इसकी हिमायती बनकर चली आई,शायद जवानी में खूब दौलत लूटी होगी इसकी,कहीं ऐसा तो नहीं कि तेरे ही कारण इसकी बीवी ने आत्महत्या कर ली थी.....
और फिर इतना कहकर वो औरत अपने बेटे को लेकर वहाँ से चली गई, बच्चे की माँ की बात सुनकर उस औरत की आँखों में आँसू आ गए,आँखों में आँसू लिए वो युवती उस पागल के पास जाकर बोली.....
देखो ना छोटे ठाकुर!आज तुमने क्या किया?उस बच्चे का सिर फोड़ दिया....
मैं क्या करूँ मोती?वो बच्चे मुझे तंग कर रहे थे,उस पागल ने उत्तर दिया,
मैनें कहा था ना कि छोटे ठाकुर अकेले कहीं ना जाया करो,मैं वहाँ तुम्हें पूरी हवेली में ढूढ़ रही थी,तब किसी ने बताया कि तुम तो यहांँ मन्दिर में हो,ये अच्छी बात नहीं है,मोती बोली।।
लेकिन मोतीबाई मैं हवेली में अकेले रहते तंग आ चुका हूँ,मुझे बाहर आना था,उस पागल ने उत्तर दिया...
ठीक है लेकिन अभी तुम मेरे साथ घर चलो,मोतीबाई बोली।।
ठीक है तो चलो,लेकिन घर चलकर तुम मुझे लड्डू दोगी ना!,उस पागल ने पूछा।।
हाँ...हाँ...दूँगी लड्डू,अब तो घर चलो,मोतीबाई बोली।।
और फिर वो पागल मोतीबाई के साथ वहाँ से चला गया,वहाँ खड़े ये तमाशा देख रहे स्कूल के नये मास्टर साहब ने मंदिर के पुजारी जी से पूछा.....
पुजारी जी!ये पागल कौन है? और ये औरत इसकी क्या लगती है?
मास्टर साहब की बात सुनकर पुजारी जी बोलें.....
आप यहाँ नए है इसलिए शायद आप इन दोनों को नहीं जानते...
जी!सही कहा आपने,लेकिन मेरे मन में इन दोनों के बारें में जानने की इच्छा हो रही है,मास्टर साहब बोलें....
बहुत लम्बी कहानी है मास्टर साहब!आप शाम को मेरे घर आइए,तो फुरसत से सुनाता हूँ,पुजारी जी बोलें...
ठीक है तो मैं शाम को आपके घर आता हूँ,तभी कहानी सुनुँगा इन दोनों की,वैसे भी मुझे अभी विद्यालय जाने को देर हो रही है,फिर इतना कहकर मास्टर साहब अपनी साइकिल पर सवार होकर विद्यालय को रवाना हो गए....
शाम हुई तो विद्यालय की छुट्टी और अन्य कार्यों से फुरसत होने के बाद मास्टर साहब लोगों से पुजारी जी का पता पूछते हुए उनके घर जा पहुँचे,पुजारी जी के मकान के द्वार पर जाकर मास्टर साहब ने किवाड़़ो पर लगी साँकल खड़खड़ाई,भीतर से किसी युवती की आवाज़ आई....
कौन है?
जी! मैं मास्टर साहब ,पुजारी जी ने बुलाया था,मास्टर साहब ने किवाड़ो के पीछे से आवाज़ दी....
मकान के किवाड़ खुले और पुजारिन जी बोली....
जी!आप भीतर आ जाइएं,पुजारी जी नदी पर स्नान के लिए गए हैं,जाते हुए कहकर गए थे कि आप आने वाले हैं,बैठक में बिठाकर जलपान करवा देना,
जी!कोई बात नहीं,जब वें लौट आएंगे मैं तभी आ जाऊँगा,मास्टर साहब बोले।।
जी!नहीं!आप भीतर आ जाइएं,वें बस आते ही होगें,पुजारिन जी बोलीं।।
फिर पुजारिन जी के आग्रह पर मास्टर साहब पुजारी जी के मकान के भीतर आ पधारें,पुजारिन जी ने उन्हें बैठक में पड़े गद्दे वाले तख्त पर बैठने को कहा और बोली....
आप यहाँ बैठें,हम जब तक आपके लिए जलपान का प्रबंध करते हैं.....
मास्टर जी ने देखा कि पुजारिन जी एक साधारण सी अधेड़ उम्र की महिला हैं,सीधे पल्लू में साड़ी पहन रखी है और मजाल है कि पल्लू सिर से सरक जाएं,माँग भरकर सिन्दूर,माथे पर बड़ी सी कुमकुम की बिन्दी,कानों में साधारण सी सोने की बालियाँ,गलें में काले मोती के साथ एक छोटा सा सोने का लाँकेट,जिसे मंगलसूत्र भी कह सकते हैं,कलाइयों में भर भरकर चूड़ियाँ पहन रखी़ हैं,सुहाग की कोई भी वस्तु उनके शरीर से नदारद नहीं थी,वें जब रसोई में जलपान का प्रबंध करने गई तो उनकी घुँघरू वाली पायल जो कि उन्होंने पैरों में पहन रखी थी वो छुन छुनकर के बज उठतीं थीं जिससे पता चल रहा था कि वें किस दिशा में हैं......
कुछ ही देर में वें एक पीतल की तश्तरी में बेसन के लड्डू, नमकपारे,लोटे में जल और साथ में गिलास के साथ वें बैठक में उपस्थित होकर मास्टर जी से बोलीं.....
लीजिए!जलपान कीजिए.....
जी!पहले पुजारी जी आ जाते तो अच्छा रहता,मास्टर साहब बोले।।
आप उनकी चिन्ता ना करें,वें तो अपने जजमानो के यहाँ दिनभर जीमते रहते हैं,भूखे थोड़े ही होगें,आप खाइएं ,काहे से आप तो बच्चों को पढ़ाकर आ रहे हैं,भूख तो लगी ही होगी,पुजारिन जी बोलीं।।
पुजारिन जी की बेबाक बातें सुनकर मास्टर साहब हँस पड़े और बोलें....
जी!भूख तो लगी है,
वही तो हम कह रहे थे,वैसे भी यहाँ अभी अकेले ही रह रहें होगें परिवार तो साथ होगा नहीं,मतलब आपकी घरवाली वगैरह,पुजारिन जी ने पूछा....
जी!अभी घरवाली को ला नहीं सकता,क्योंकि वो उम्मीद से है,मास्टर साहब बोले....
अरे!बधाई हो! और तब तक मत लाइएगा जब तक कि बच्चा कम से कम छः महीने का ना हो जाएं,अकेली औरत के लिए गृहस्थी और बच्चा साथ में सम्भालना बड़ा मुश्किल होता है,पुजारिन जी बोली।।
जी!मैने भी वही सोचा है,मास्टर साहब बोलें।।
जी!हमारी बातों के चक्कर में तो आप जलपान करना ही भूल गए,आप जलपान कीजिए हम तब तक घर के पीछे लगी फुलवारी से शाम के लिए कुछ सब्जियाँ तोड़ लाते हैं और फिर इतना कहकर पुजारिन जी एक डलिया उठाकर मकान के पिछवाड़े की ओर चल दीँ.....
कुछ ही देर में पुजारी जी भी आ पहुँचे फिर मास्टर साहब और पुजारी जी के बीच बातों का सिलसिला चल पड़ा......
तब मास्टर जी बोलें.....
जी तो अब बताएँ कि वो पागल कौन था और उसके साथ वो औरत कौन थी?
जी आप तो बिलकुल बेसबर हुए जातें हैं,थोड़ी तसल्ली रखिए,सब पता चल जाएगा आपको,पुजारी जी बोलें.....
जी,दिनभर से सबर ही तो रख रहा हूँ,मास्टर जी बोलें।।
तो थोड़ा देर और रख लीजिए,मैं तब तक पुजारिन जी से कहकर आता हूँ कि आज रात का खाना आप यहीं खाऐगें,पुजारी जी बोल़े....
ना....ना...भोजन की तकलीफ उठाने की आवश्यकता नहीं है,मैं अपना कुछ इन्तजाम कर लूँगा,कमरेँ में पहुँचकर,मास्टर साहब बोले।।
अरे..ऐसे थोड़े चलता है,आप पहली बार हमारे घर आएं हैं,खाना खिलाएं बिना तो नहीं जाने दूँगा आपको,पुरोहित जी बोले।।
ठीक है अगर आप इतनी जिद़ ही कर रहे हैं तो भला मुझे क्या एतराज़ हो सकता है?मास्टर साहब बोलें।।
फिर पुजारी जी भीतर गए और पुजारिन से बोलें....
आज रात ये यहीं खाएंगे,
जलपान तो करा दिए थे अब रात का खाना भी,पुजारिन जी बोलीं।
अरें!अकेला प्राणी है बेचारा,कब कमरें पहुँचेगा,कब बनाएगा और कब खाएगा?पुजारी जी बोलें....
तो हम भी बताएं दे रहें हैं,छप्पन भोग नहीं पकाऐगें ,एक ही सब्जी बनेगी वो भी रसेवाली और आम का अचार,पुजारिन जी बोलीं....
ठीक है....ठीक है....साथ में पूरियाँ और खीर बना लेना ,बस इतने से ही कम चल जाएगा,पुजारी जी बोले....
ये आपके लिए इतना सा ही होगा,पहले दोनों बेटियाँ खाना पका लिया करतीं थीं,लेकिन जब से दोनों ससुराल चली गई हैं तो सब हमें ही करना पड़ता है,इतना काम है अभी हमें, सब्जी के लिए आलू उबालने होगें,सिलबट्टे पर मसाला पीसना होगा,तब जाकर खाना पकेगा,पुजारिन बोली।।
कर लो ना जी! रोज तो बनाती हो दो लोगों का खाना,आज एक सदस्य ही तो बढ़ा है,पुजारी जी बोलें।।
आपको क्या है? आपने तो कह दिया खाना बनाने को,बाद में बरतन भी तो हमें ही धोने है,लेकिन आपने ये तो बताया नहीं कि कौन जात हैं मास्टर जी,हम किसी भी गैर जात के जूठे बरतन नहीं धोने वाले,पुजारिन तुनकते हुए बोली।।
अरे! श्रीवास्तव हैं,तुम्हें जात को लेकर बखेड़ा खड़ा करने की जरूरत नहीं है,पुजारी जी बोलें....
ठीक है तो आप जाइए,हम खाने की तैयारी करते हैं तब तक,आप जाकर उन्हें मोतीबाई और रूद्रप्रयाग की कहानी सुनाइएं,पुजारिन जी बोलीं....
और फिर पुजारी जी बैठक में आएं और मास्टर जी को कहानी सुनानी शुरु की,मास्टर जी भी बड़े ध्यान से कहानी सुनने में मग्न हो गए,कहानी कुछ इस प्रकार थी......
बहुत सालों पहले की बात है,हमारे गाँव समृद्धिपुर और बगल के गाँव सोनभद्र में जमींदारों का बोलबाला था,दोनों गाँवों के जमींदारों में कट्टर दुश्मनी भी थी,क्योंकि ना जाने कितनी पीढ़ियों पहले सोनभद्र के जमींदारों की बारात समृद्धिपुर गई थी,तभी सोनभद्र गाँव की बारात के दूल्हे ने ब्याह करने से इनकार कर दिया और बारात लौटकर चली गई,इस बात से समृद्धिपुर के जमींदारों की जिस लड़की से उस लड़के का ब्याह होने वाला था तो उस लड़की ने बदनामी के डर से फाँसी लगाकर अपनी जान दे दी,तब से लगातार दोनों गावों के बीच दुश्मनी का सिलसिला जारी हो गया था,दोनों गाँवों के बीच किसी ना किसी बात को लेकर आएं दिन कोई ना कोई लड़ाई दंगा या मारपीट चलती रहती थी.......
समृद्धिपुर में जमींदार विक्रम सिंह का इकलौता बेटा जिसका नाम रूद्रप्रयाग सिंह था,वो अब जवानी की दहलीज़ पर आ पहुँचा था,इस तरह वो एक बार अपने दोस्तों के साथ सावन का मेला देखने गया और वहाँ उसने एक लड़की को देखा,लड़की की खूबसूरती पर वो मर मिटा और उसे उससे प्यार हो गया,लेकिन किस्मत के आगें किसी की नहीं चलती.....
उसकी लड़की के बारें में पता करने पर पता चला कि वो लड़की एक साधारण से किसान की बेटी है और उसका नाम प्रयागी है,उसका पिता बहुत गरीब है,लेकिन फिर भी रूद्रप्रयाग को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा और वो भी स्वयं को एक साधारण सा किसान बताकर प्रयागी से मिला,प्रयागी भी धीरे धीरे रूद्रप्रयाग को पसंद करने लगी,लेकिन जब ये बात रूद्रप्रयाग के पिता विक्रमसिंह तक पहुँची तो उन्होंने प्रयागी को अपने घर की बहु बनाने से इनकार कर दिया......

प्रयागी को अभी तक ये पता नहीं चला था कि रुद्रप्रयाग एक अमीर खानदान का इकलौता बेटा है,वो तो उसे साधारण घर का ही समझती थी,अब रूद्रप्रयाग इस असमंजस में था कि वो प्रयागी को कैसे बताएं कि उसके पिता ने उन दोनों के रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया है,अगर प्रयागी से वो ये बताता है कि वो एक गरीब किसान की बेटी है इसलिए उसके पिता ने उससे ब्याह के लिए इनकार कर दिया है तो ये भी बताना पड़ेगा कि वो एक अमीर पिता का बेटा है,इस बात को छुपाकर वो फिर भी प्रयागी से मिलता रहा,ये बात रुद्रप्रयाग के पिता विक्रमसिंह तक पहुँची और फिर उन्होंने रूद्र को अपने पास बुलाकर उससे पूछा....
रूद्र!हम ये क्या सुन रहें हैं?तुमने अब भी उस गरीब किसान की बेटी से मिलना जुलना नहीं छोड़ा...
लेकिन बाबूजी!मैं उससे प्रेम करता हूँ,मैं उसे नहीं भूल सकता,रुद्र ने जवाब दिया.....
ये क्या कह रहे तुम?पिता के सामने ऐसी बातें करते तुम्हें लज्जा नहीं आती,,काश,आज तुम्हारी माँ जिन्दा होती तो वो ही तुम्हें समझा पाती कि वो लड़की तुम्हारे काबिल नहीं है,तुम्हें उससे भी सुन्दर और अच्छे घराने की लड़की मिल सकती है,तुम क्यों उस किसान की लड़की के पीछे पागल हो?विक्रम सिंह बोले।।
बाबूजी!मैं उसे धोखा नहीं दे सकता,रूद्रप्रयाग बोला।।
तुम नहीं वो तुम्हें धोखा दे रही है,उसे तुमसे नहीं तुम्हारी दौलत से प्यार है,तुम्हारी दौलत के लिए ही उसने तुम्हें फँसाया है,विक्रम सिंह बोलें।।
लेकिन बाबूजी उसे तो ये पता ही नहीं है कि मैं एक अमीर घराने का लड़का हूँ,मैं ने तो उसे ये बताया है कि मैं भी उसकी ही तरह गरीब हूँ,रूद्रप्रयाग बोला।।
क्या कहते हो रूद्र?वो तुम्हें गरीब समझती है,विक्रमसिंह बोलें,
जी!बाबूजी!रूद्रप्रयाग बोला।।
तो उसे कब अपनी सच्चाई बताओगेँ?विक्रम सिंह ने पूछा।।
जी!जब आप हमारे ब्याह के लिए राजी हो जाऐगें,रूद्रप्रयाग बोला।।
तो फिर हम कल ही उस लड़की से मिलना चाहेगें,बोलो मिलवाओगें ना हमें उससे,विक्रम सिंह बोले।।
सच!बाबूजी!आप उससे मिलेगें,रूद्रप्रयाग ने पूछा।।
हाँ...हाँ...जरूर मिलेगें,विक्रम सिंह बोलें।।
और फिर रूद्रप्रयाग दूसरे दिन अपने पिता विक्रम सिंह को प्रयागी से मिलवाने ले गया,विक्रम सिंह जी को प्रयागी एक ही नज़र में अपनी बहु के रूप में भा गई और उन्होंने शगुन देकर रिश्ता पक्का करना चाहा,जब प्रयागी को ये पता चला कि रूद्र एक अमीर घर का लड़का है तो वो उससे खफ़ा हो गई और विक्रम सिंह जी बोली....
जी!माँफ कीजिएगा जमींदार साहब!छोटा मुँह और बड़ी बात कह रही हूँ लेकिन अब मैं आपके बेटे से ब्याह नहीं कर सकती,उन्होंने मुझसे झूठ बोला,फ़रेब किया और मैं एक फ़रेबी इन्सान को अपना जीवनसाथी कभी नहीं बना सकती,
ये क्या कहती हो बेटी?वो तुमसे प्रेम करता है,क्या तुम उससे प्रेम नहीं करती?विक्रम सिंह जी ने प्रयागी से पूछा।।
जी!मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो वें मुझसे प्रेम करते हैं किन्तु उन्होंने झूठ बोलकर मेरा प्रेम पाना चाहा,जो कि मेरे उसूलों के खिलाफ़ है,क्या पता इन्होंने मुझसे और ना जाने क्या क्या झूठ बोलें हो? हो सकता है इनकी तरह इनका प्रेम भी झूठा हो,प्रयागी बोली।।
ये क्या कहती हो प्रयागी?मैं सच में तुमसे प्रेम करता हूँ और तुम्हारा प्रेम पाने के लिए,तुमसे ब्याह करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ,रूद्रप्रयाग बोला।।
जो इन्सान एक सच नहीं बोल सका वो भला और क्या कर सकता है मेरे लिए,प्रयागी बोली।।
सबकुछ करूँगा तुम्हारे लिए,बस तुम मेरा साथ मत ठुकराओं,मान भी जाओ,गलती हो गई मुझसे जो तुमसे मैनें झूठ बोला,रूद्रप्रयाग बोला।।
ठीक है तुमने अभी कहा ना कि तुम सबकुछ करोगे मेरे लिए, क्या तुम इन खेतों में कड़ी धूप में काम कर सकते हो,रह सकते हो घासफूस की झोपड़ी में,खा सकते हो सूखी रोटी प्याज के साथ,यहाँ तुम्हें नरम बिछौना भी नहीं मिलेगा सोने के लिए,अगर ये सब काम तुम कर सकते हो तभी तुम पर मैं भरोसा कर सकती हूँ कि तुम मुझे सच्चा प्रेम करते हो,झूठ बोलकर तो हर कोई किसी का दिल जीत सकता है लेकिन अगर तुम्हें मेरा दिल जीतना है तो इतना तो करना ही पड़ेगा,प्रयागी ने दो टूक जवाब दिया।।
लेकिन बेटी तुम ये क्या कह रही हो?छोटे ठाकुर ने कभी ऐसे काम नहीं होगें,वें तो सदैव एश-ओ-आराम में पले होगें,तुम उनसे ऐसा सख्त काम करने को ना कहो बेटी!प्रयागी के पिता हरगोविन्द बोले।।
मुझे भी तो इनके सच्चे प्रेम का सुबूत चाहिए,मैं ये कैसें मान लूँ कि भविष्य में ये फिर कभी मुझे धोखा नहीं देगें मुझसे झूठ नहीं बोलेगें,प्रयागी बोली।।
बेटी! ये भविष्य में ऐसा कुछ नहीं करेगा,इसका भरोसा मैं तुम्हें देता हूँ,विक्रम सिंह जी बोलें।।
लेकिन बड़े जमींदार साहब!मुझे इनसे भरोसा चाहिए,प्रयागी बोली।।
प्रयागी अपनी बात पर अडिग थी इसलिए रूद्रप्रयाग ने भी अपनी प्रेमिका का दिल जीतने के लिए उसकी शर्त मान ली और हवेली छोड़कर उसके खेतों में ही डेरा डाल लिया,खेतों में उसने एक घासफूस की झोपड़ी भी बाँध लीं और अपने पिता विक्रम सिंह को हिदायत दी कि चाहें कुछ भी हो जाए,वें उन्हें ना अच्छा खाना भेजेंगे और ना ही उसकी मदद के लिए कोई नौकर भेजेगें,बेटे के प्यार के आगें विक्रमसिंह भी विवश हो गए और बेटे की सभी बातें मान लीं......
रूद्रप्रयाग अब खेतों में पड़ा रहता और रूखी सूखी खाकर खेतों में जी तोड़ मेहनत करता,एक महीने के भीतर ही उसकी फूल सी त्वचा कुमलाहकर काली हो गई,सूखी रोटी पानी के साथ निगलने पर उसके शरीर की चमक भी चली गई,लेकिन रूद्रप्रयाग को इन सभी बातों का ध्यान कहाँ था उसे तो बस प्रयागी का दिल जीतने का भूत सवार था,ऐसे ही तीन महीने होने को आएं लेकिन प्रयागी का जी ना पिघला,वो उसे मेहनत करता देख परेशान तो हो जाती लेकिन उससे बोलती कुछ भी ना थी,ऐसा नहीं था कि प्रयागी उससे प्रेम नहीं करती थी,वो रूद्र से प्रेम करती थी लेकिन उसने जो झूठ बोला था वो उस झूठ से नफरत करती थी,पर अभी भी उसके दिल के एक कोने में रूद्र के लिए बेशुमार प्यार था जिसे वो प्रकट नहीं कर रही थी,
ऐसे ही तीन महीने गुजर गए और रूद्र खेतों में यूँ ही काम करता रहा,लेकिन प्रयागी का दिल उसके लिए नहीं पिघला,ऐसे ही पूस का महीना आ पहुँचा,कड़ाके की ठंड पड़ रही थी,ऐसे में तब भी रातों को रूद्र खेतों में ही पड़ा रहता और फसल की रखवाली किया करता,ना उसके पास पहले की तरह पहनने के लिए गरम कपड़े थे और ना ही गरम रजाई,बस आग जलाकर एक कम्बल के सहारे वो पूस की रातें काट रहा था और फिर एक रात जोर की बारिश हुई,बारिश देखकर प्रयागी के पिता हरगोविन्द का दिल बैठा जा रहा था,उसने प्रयागी से कहा भी कि बस आज की रात छोटे ठाकुर को हमारी कोठरी के भीतर आने दो,उन्हें इतनी सर्दी सहने की आदत नहीं होगी,लेकिन प्रयागी ना मानी,
सारी रात बारिश होती रही,खेतों में बनी घासफूस की झोपड़ी से टप टप करके पानी चूता रहा और रुद्र खुद को भीगने से ना बचा सका,जमीन गीली और छप्पर से टपकते हुए पानी के कारण आग भी ना जल पा रही थी,अब रुद्र के पास बारिश से बचने का और कोई रास्ता ना था,उसे तो बस प्रयागी का दिल जीतना था,इसलिए वो अपने घर भी नहीं गया,बस यूँ ही ठण्ड खाता रहा और वहीं पड़ा रहा,रातभर बारिश होती रही लगभग सुबह के चार बजे बारिश रूकी,बारिश रूकते ही हरगोविन्द का जी ना माना और वो रूद्र को देखने खेतों की ओर चल पड़ा,वो जब वहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि झोपड़ी की हालत अस्त-ब्यस्त है और झोपड़ी के भीतर पड़ी छोटी सी चारपाई पर रूद्र बेसुध सा पड़ा है,हरगोविन्द ने उसकी हालत देखी तो परेशान हो उठा,उसने दो चार लोगों को बुलाकर उसे बैलगाड़ी में बैठाया और अपनी कोठरी की ओर चल पड़ा,
घर पहुँचकर उसने उन लोगों से रुद्र को बिस्तर पर लिटाने को कहा फिर प्रयागी को पुकारा और बोला....
जा जल्दी से दो तीन कम्बल ला,फिर दूध गरम कर,अँगीठी लाकर मुझे दे,जल्दी से एक कटोरी में सरसों का तेल ला,मैं इनके पैरों के तलुवों की मालिश करता हूँ,
लेकिन क्यों बापू?प्रयागी ने पूछा।।
मुझसे पूछती है क्यों?देख तेरे कारण इनकी कैसी दशा हो गई है,इन्हें कुछ हो गया तो मैं जमींदार साहब को क्या जवाब दूँगा,वें मेरे भरोसे इन्हें यहाँ छोड़कर गए थे,रात भर बारिश में भीगते रहें बेचारे,छप्पर से पानी टपक रहा था,अब तुझे अच्छा लग रहा होगा इनकी ऐसी दशा देखकर,हरगोविन्द गुस्से से बोला....
लेकिन बापू!मैं ऐसा तो नहीं चाहती थी,प्रयागी बोली।।
मुझसे बहस मत कर ,अभी वो कर जो मैनें कहा है,हरगोविन्द बोला....
फिर प्रयागी कुछ ना बोल सकी और झट से हरगोविन्द के बताएं हुए कामों में लग गई,पहले उसने दो तीन कम्बल लाकर रुद्र पर डाल दिए,चूल्हे पर दूध चढ़ाकर वो स्वयं ही रूद्र के तलुवों में मालिश करके पैर सेंकने लगी,तब हरगोविन्द बोला.....
तू ऐसे ही इनके पैरों के तलुवों की सिकाई करते रहना,मैं तब तक वैद्य जी को बुलाकर लाता हूँ,इतना कहकर हरगोविन्द वहाँ से चला गया...
अब प्रयगी लगातार रूद्र की हथेलियों और पैरों के तलुवों की सिकाई करती जा रही थी,हाथों पैरों की सिकाई के बाद रूद्र को थोड़ा होश आया तो प्रयागी ने उसे गुड़ डालकर गरमागरम हल्दी वाला दूध पीने को कहा,रूद्र भी उस समय नखरे दिखाने लगा और बोला.....
अब बड़ी चिन्ता कर रही हो,इतनी ही चिन्ता थी तो रात को ही क्यों ना बुलवा लिया मुझे,अब झूठा दिखावा कर रही हो,नहीं पीना मुझे तुम्हारे हाथों से दूध,रात को तो मुझे मरने के लिए छोड़ दिया,बड़ी आई फिक्र करने वाली,छोड़ो मुझे अपना काम करने दो,मैं खेतों में देखकर आता हूँ कि रात फसल को कितना नुकसान हुआ है फिर इतना कहकर रूद्रप्रयाग अपने बिस्तर से उठा और कमजोरी के कारण चक्कर खाकर धरती पर गिर पड़ा,ये देखकर प्रयागी चिन्तित हो उठी और रूद्र से बोली.....
मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ,तुम चुपचाप बिस्तर पर लेट जाओ,तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है,मैं अपनी गलती मानती हूँ इतना कहते कहते प्रयागी की आँखें भर आईं.....
नहीं!मुझे आराम नहीं करना,मुझे खेत जाना है,नहीं तो तुम फिर मुझे चार बातें सुनाओगी,रूद्र धरती पर से उठते हुए बोला....
मैनें कहा ना !मैं अब कुछ ना कहूँगी,बस तुम आराम करो,तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है,प्रयागी बोली।।
नहीं !मैं तो जाऊँगा,तुम मुझे नहीं रोक सकती खेतों में जाने से,रूद्र बोला।।
अगर अब तुमने एक भी कदम घर से बाहर जाने को बढ़ाया तो मैं तुम्हारी टाँगें तोड़ दूँगी,तुम चुपचाप आराम करो,प्रयागी गुस्से से बोली।।
ये अच्छी जबरदस्ती है तुम्हारी,पहले कहती हो कि खेतों में काम करों,अब मैं खेतों में काम करने जा रहा हूँ तो मेरी टाँगें तोड़ने की धमकी देती हो,भला किस अधिकार से तुम ऐसा कह रही हो मैं भी तो जानूँ,रूद्रप्रयाग बोला....
इस अधिकार से कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हें कहीं कुछ हो गया तो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगीं,प्रयागी ने ये सब आवेश में आकर बोल तो दिया लेकिन फिर दूसरे ही क्षण मौन हो गई,उसकी बात सुनकर रूद्रप्रयाग बोला.....
अच्छा!जी !तो हमसे बिना पूछे ही हमसे ही मन ही मन में मौहब्बत की जा रही है....
मैनें ऐसा कब कहा? प्रयागी शरमाते हुई बोली।।
अब आप कहें ना कहें लेकिन भाई हमने तो सब सुन लिया,चलो भगवान भला करें रात की बारिश का जो उस बारिश के कारण आप हम पर मेहरबान तो हुईं,रूद्रप्रयाग बोला....
मैनें कोई मेहरबानी नहीं की तुम पर,बस तुम्हारी तबियत खराब है इसलिए बाहर जाने से रोक रही थी,प्रयागी बोली।।
अच्छा जी!अगर आपकी यही मनसा है तो हम फिर से खेतों में चले जाते हैं,रूद्रप्रयाग बोला।।
अभी मना किया ना कि मत जाओ,प्रयागी बोली....
अगर तुम मेरी बात मान लो तो मैं भी तुम्हारी बात मान लूँगा,रूद्रप्रयाग बोला...
कौन सी बात ,प्रयागी ने पूछा...
यही कि मेरे गले लगकर कहो कि तुम मुझसे प्यार करती हो,रूद्रप्रयाग बोला।।
ये सब मुझसे नहीं होगा,तुम्हें जो करना है करो,मैं अब कुछ ना बोलूँगी,प्रयागी बोली...
प्रयागी ने इतना कहा ही था कि रूद्र ने फौरन ही प्रयागी को गले से लगाते हुए कहा....
तुमने कहा ना!तुम्हें जो करना है करो ,मैं कुछ ना बोलूँगी,मेरा मन तो यही कर रहा था इसलिए मैनें यही किया,अब बोलों करोगी ना ब्याह मुझसे.....
प्रयागी ने फिर शरमाते हुए हाँ में सिर हिलाया और रूद्रप्रयाग ने प्रयागी के माथे को चूमते हुए कहा....
अब कभी भी मुझसे मत रूठना,नहीं तो कसम खा के कहता हूँ कि जान दूँगा अपनी....
प्रयागी ने फौरन रूद्र के मुँह पर हाथ रखा और उसके माथे को चूमते हुए बोली....
मरे तुम्हारे दुश्मन॥
और फिर खुशी खुशी दोनों का ब्याह हो गया,प्रयागी विक्रम सिंह की हवेली में उनकी बहु बनकर आई,हँसी खुशी रुद्र और प्रयागी दोनों के दिन गुजरने लगें,दोनों की शादी को अभी दो ही साल बीते थे कि जमींदार विक्रम सिंह को दिल का दौरा पड़ा और वो अपनी सारी जमीन जायदाद रूद्रप्रयाग के भरोसे छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....