Maanbhanjan - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

मानभंजन--भाग(४)

सुबह होने को अभी बाकीं थी,सूरज धीरे धीरें अपनी लालिमा बिखेरता हुआ पहाड़ो के गर्भ से प्रासरित हो रहा था,खग भी अपने कोटरों से निकलकर झुण्डों में सम्मिलित होकर भोजन की तलाश में निकल चुके थे,लेकिन प्रयागी अभी तक ना जागी थी,रूद्रप्रयाग जागकर अब तक स्नान भी कर चुका था,वो स्नान करके लौटा तो देखा प्रयागी अभी भी निंद्रा में मग्न है,उसने सोचा प्रयागी ऐसा तो कभी नहीं करती,इतनी देर तक वो तो कभी नहीं सोई,मुँहअँधेरे ही नदी पर स्नान करने चली जाती है,लेकिन आज क्या हो गया है इसे?चलो नहीं जागती तो मैं ही जगा देता हूँ और यही सोचकर रूद्र ने जगाने हेतु प्रयागी को हाथ लगाया तो उसने देखा की प्रयागी का बदन आग की तरह तप रहा है,उसे तो अत्यधिक ज्वर था,रूद्र ने प्रयागी को जगाते हुए कहा....
प्रयागी!तुम्हें तो ज्वर आ गया है,लगता है तुम्हारी तबियत ठीक नहीं,
नहीं!मैं ठीक हूँ,तुम चिन्ता मत करो,थोड़ा आराम कर लूँगी तो ठीक हो जाऊँगी,
लेकिन प्रयागी रूद्र को कैसे बताती कि उसे ये ज्वर किस कारण आया है,उसकी आत्मा पर कठोर आघात लगा था,अपने अधरों पर किसी परपुरुष का स्पर्श उसे किसी ज्वलनशील पदार्थ के समान लगा था और उसी पश्चाताप की अग्नि ने ज्वर का रूप ले लिया था जो उसे क्षण क्षण जला रहा था,
प्रयागी की बात सुनते ही रूद्र बोला....
नहीं!आराम के आलावा तुम्हें दवा की भी आवश्यकता है,मैं अभी वैद्य जी को बुलाकर लाता हूँ और फिर ये कहकर रूद्र वैद्य जी को बुलाने चला गया,कुछ देर बाद रूद्र वैद्य जी को साथ लेकर आ पहुँचा,वैद्य जी ने प्रयागी की नाड़ी जाँची और बोलें....
कमजोरी है,पित्त बढ़ गया है,इनके खाने पीने ख्याल रखें,मैं कुछ दवा की पुड़ियाँ दे देता हूँ,तीन दिन तक दो वक्त दीजिए और मुझे तीन दिन के बाद बताइएं कि इनकी हालत कैसी है? फिर वैद्य जी ने दवा दी और अपने घर चले गए....
तब रुद्रप्रयाग ,प्रयागी से बोला....
आज मैं बाहर नहीं जाता,जो काम बचें हैं उन्हें मुनीम जी देख लेगें, आज मैं घर में तुम्हारे पास ही रहता हूँ,तुम्हें अच्छा लगेगा,
सच!मैं कब से यही चाहती थी,तुम अब मेरे साथ वक्त बिताते ही नहीं,बस...काम...काम...,तुम पुरानी सारी बातें भूल गए हो,तुम पहले मुझे कितना प्यार करते थे लेकिन अब नहीं करते,दो घड़ी ना मेरे साथ बात करते हो और ना पहले जैसा प्यार जताते हो,मैं तो तरस गई हूँ तुम्हारे साथ के लिए.....प्रयागी बोली।।
तुम शायद सच कहती हो प्रयागी!मैं अब कुछ दिनों के लिए अपने काम से छुट्टी ले लेता हूँ और जब तक तुम ठीक नहीं हो जाती,तुम्हारी सेवा करूँगा,अपने हाथों से तुम्हारी पसंद का खाना बनाऊँगा,रूद्र बोला।।
तुम सच कहते हो ना!,प्रयागी बोली।।
हाँ!बिल्कुल सच!रूद्र बोला,
तो आज तुम क्या पकाकर खिलाने वाले हो मुझे?प्रयागी ने पूछा।।
बोलो क्या खाओगी?रूद्र ने पूछा।।
मैं आज खाऊँगी,मूँग दाल बड़ी की तरी वाली सब्जी,राई-हींग के तड़के वाली छाछ,अमरूद की तीखी चटनी,चावल और रोटी,बोलो इतना बना पाओगे,प्रयागी बोली।।
कोशिश करूँगा बनाने की,बस तुम मुझे बताती जाना कि कैसे बनाना है?रूद्रप्रयाग बोला।।
ठीक है,मैं बताती जाऊँगी और इतना कहते कहते प्रयागी की आँखें भर आईं,
वो आज बहुत खुश थी कि इतने दिनों बाद रूद्र उसके साथ है,नहीं तो वो भोर होते ही चला जाता था,दोपहर का खाना भी वो किसी नौकर के हाथ मँगवा लिया करता और रात को भी देर से लौटता था,थका होने के कारण खाकर सो जाता था,उसके पास प्रयागी के लिए वक्त ही कहाँ था?
कभी कभी जब मेघ बरसते,मोर नाचते तो प्रयागी के मन में भी हूक सी उठती,वो भी अपने प्रियतम के प्रेम की बारिश में भीगना चाहती,उसके प्रेम में सराबोर होना चाहती,उसके स्पर्श को महसूस करना चाहती लेकिन ऐसे क्षणों में रूद्र उसके साथ ना होता था.....
प्रयागी की आँखों में आँसू देख रूद्र ने पूछा....
रोती क्यों है पगली?अब तो मैं तुम्हारे पास ही हूँ,
वो ऐसे ही,प्रयागी बोली।।
ऐसे ही कैसे?रूद्र ने पूछा।।
तुम आज इतना प्रेम जो जता रहे हो तो आँखें भर आईं,प्रयागी बोली।।
ठीक है अब इन आँसूओं को अलविदा कहों और मेहरी आती ही होगी तो उससे आँगन के कुएंँ से पानी भरवाकर अपने हाथ मुँह धोकर आओं,मैं तब तक खाने का कुछ करता हूँ,रूद्र बोला।।
मैं तो स्नान करूँगी,हाथ मुँह ना धोऊँगी,प्रयागी बोली।।
लेकिन तुम्हारी तबियत खराब है,रूद्र बोला।।
कोई बात नहीं तो मैं गरम पानी से नहा लूँगी लेकिन सालों के अपने इस नियम को ना तोड़ूगीं,प्रयागी बोली।।
देखो हठ मत करो,रूद्र बोला।।
हठ नहीं कर रही हूँ,मैं अपना नियम नहीं तोड़ सकती,प्रयागी बोली।।
ठीक है देवी!स्नान ही कर लो,मैं तब तक चूल्हे पर गरम पानी चढ़ा देता हूँ,रूद्र बोला।
तुम कितने अच्छे हो,प्रयागी हँसते हुए बोली।।
और तुम बहुत बुरी,हठी कहीं की,रूद्र बोला।।
देखो रूठो मत,प्रयागी बोली।।
मैं नहीं रूठा,रूद्र बोला।।
तो फिर मुस्कुरा दो,प्रयागी ने इतना कहा और रूद्र ने हँसते हुए अपने दाँत निकाल दिए.....
प्रयागी खुश होकर स्नान करने पहुँची,तब तक मेहरी भी आ चुकी थी और पानी भी गरम हो चुका था,प्रयागी स्नान करके रसोई में पहुँची और खाना बनाने में रूद्र की मदद करने लगी ,रूद्र ने मना किया,फिर भी प्रयागी ना मानी और इस तरह कुछ ही देर में प्रयागी का मनपसंद खाना तैयार हो गया,दोनों ने साथ मिलकर इतने दिनों के बाद खाना खाया,खाना खाने के बाद रूद्र ने प्रयागी को दवा दी ,मेहरी भी तब तक घर का काम करके जा चुकी थी और रुद्र प्रयागी से बोला...
जाओ अब आराम करो,
तुम भी आओ ना!बातें करेगें,प्रयागी बोली।।
हाँ!चलो!रूद्र बोला।।
और फिर दोनों बिस्तर पर बैठकर बातें करने लगें,प्रयागी के खुले बाल और उसके बदन की महक रूद्र को बहकाने लगी,वो प्रयागी के करीब ...बहुत करीब आया और उसे अपने सीने से लगा लिया,प्रयागी भी उसकी बाँहों में पिघलने लगी लेकिन फिर एकाएक जब रूद्र ने प्रयागी के अधरों का रसपान किया तो वो झुँझला उठी ,उसे उस वक्त प्रेमप्रताप के चुम्बन का ध्यान हो आया और वो रूद्र को पीछे ढ़केलते हुए बोली......
ये क्या करते हो तुम?
क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा प्रयागी?रूद्र ने आवेश में पूछा।।
नहीं!....बिल्कुल नहीं,प्रयागी बोली।।
लेकिन तुम मेरी पत्नी हो और ये मेरा अधिकार है,रूद्र बोला।।
लेकिन मुझे अब पुरूष का स्पर्श अच्छा नहीं लगता,प्रयागी बोली।।
ऐसा कहो ना कि मेरा स्पर्श अच्छा नहीं लगता,रूद्र बोला।।
तुम कहना क्या चाहते हो?प्रयागी बोली।।
वही जो तुम सुन नहीं सकती,रूद्र ने क्रोधपूर्वक कहा।।
जो कहना चाहते हो ना तो खुलकर कहो,पहेलियाँ मत बुझाओं,प्रयागी बोली।।
यही कि अब तुम्हें वो रौबदार प्रेम भा गया है,उसके आगें मेरा स्पर्श फीका पड़ गया है तुम्हारे लिए,रूद्र बोला।।
ये क्या कहते हो तुम?ये कहने से पहले तुम्हारी रूह नहीं काँपी,मैं और परपुरुष का स्पर्श.....छीः....छीः...ये सुनने से पहले भगवान ने मुझे उठा क्यों ना लिया,प्रयागी बोली।।
यही तो सच है,तभी तो मेरा छूना तुम्हें ना भाया,रूद्र बोला।।
अब....बस करो और चले जाओ यहाँ से,प्रयागी बोली।।
और फिर रूद्र ,प्रयागी के पास से चला गया,उसने किवाड़ खोलें और बाहर निकल गया,प्रयागी रोती रही बिलखती रही और तड़पती रही,जिसने उसे उस नर्क में धकेला था वही उस पर लाँछन लगा रहा था,यही दुर्दिन देखना रह गया था उसके भाग्य में....
घर से निकलकर रुद्रप्रयाग सीधा मोतीबाई के पास पहुँचा,उसके नयनों में अश्रु देखकर मोती ने पूछा.....
क्या हुआ?इतने दुखी क्यों नज़र आते हो?
मत पूछो मोती....मत पूछो.....,रूद्र बोला।।
अरे!बताओ भी,क्या हुआ?मोती ने दोबारा पूछा।।
उसे मुझसे प्रेम नहीं मोती!उसे मेरा स्पर्श अच्छा नहीं लगा,रूद्र बोला।।
लेकिन किसे?कुछ खुलकर बताओगें,मोती ने हैरानगी से पूछा।।
प्रयागी....और कौन?आज मैनें उसे स्पर्श किया तो उसने मुझे धकेल दिया,वो अब मुझसे प्रेम नहीं करती,उसके दिल में तो अब कोई और बसता है,रूद्र बोला।।
कौन बसता है तुम्हारे सिवाय उसके दिल में?तुम तो उसके पति हो,मोती बोली।।
वो हरामखोर प्रेमप्रताप है शायद वो उसे चाहने लगी है,रूद्र बोला।।
जुबान पर लगाम लगाओ,ये तुम क्या कहते हो,एक सती पर घटिया इल्जाम लगाते तुम्हें शरम नहीं आती,मोती बाई से गुस्से से बोली।।
तो फिर उसने मुझे धकेला क्यो?रूद्र ने पूछा।।
हम स्त्रियाँ तुम पुरूषों सी नहीं होतीं,हो सकता इसकी कोई और वजह हो जो उसने तुमको धकेला,उस पर संदेह करके तुम बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं,मोतीबाई बोली।।
तो तुम ही उसकी वज़ह क्यों नहीं पूछती?रूद्र बोला।।
वो तो तुम्हारी पत्नी है,वज़ह तो तुम्हें ही ज्ञात करनी चाहिए,मोती बोली।।
सुना है स्त्रियांँ एकदूसरे से हर विषय पर खुलकर बात कर लेतीं हैं ,हम पुरुषों की अपेक्षा ,इसलिए तुम ही उससे बातों बातों में पूछ लो तो अच्छा होगा,रूद्र बोला।।
तो फिर तुम वादा करों कि अभी घर लौटकर उसके साथ ठीक से पेश आओगें,वो तुम्हारा स्पर्श नहीं चाहती तो उसे स्पर्श मत करों,उसका दिल जीतने की कोशिश करो,मोतीबाई ने इतना कहकर रूद्रप्रयाग को रवानगी दे दी....
रूद्र जब घर पहुँचा तो प्रयागी ने अपने व्यवहार के लिए उससे माँफी माँगी,रूद्र ने भी उसे माँफ करके अपने सीने से लगा लिया,उस रात फिर प्रयागी ने रूद्र को स्वयं को स्पर्श करने से नहीं रोका,वो चाहे उसने मन मारकर किया हो या अपनी खुशी से,दोनों उस रात प्रेम की नदी में गोते लगाते रहे,
लेकिन जब एक हफ्ते के बाद प्रयागी स्वस्थ हो गई तो फिर से रूद्रप्रयाग का वही पुराना रवैय्या चालू हो गया,वो फिर से भोर हुए चला जाता और आधी रात को वापस लौटता और इधर एक हफ्ते तक जब प्रयागी नदी के घाट पर ना गई तो प्रेमप्रताप को पक्का यकीन हो गया कि प्रयागी उससे नाराज हैं,उसने ये बात मोती को बताई तो मोतीबाई बोली....
वो बीमार थी....
मुझे लगा कि वो उस शाम की बात के लिए मुझसे नाराज है,ना चाहते हुए भी प्रेमप्रताप के मुँह से ये बात निकल गई....
किस बात के लिए,ऐसा तुमने क्या किया?मोती ने सख्ती से पूछा।।
तब प्रेमप्रताप ने अपना अपराध मोतीबाई के सामने कुबूल किया और ये सुनकर मोतीबाई की आँखें खुली की खुली रह गई और उसे पता चल गया कि उस दिन प्रयागी को रूद्र का स्पर्श क्यों ना अच्छा लगा था?लेकिन मोतीबाई चुप ना रह सकी और प्रेमप्रताप से बोली.....
ये तुमने गलत किया प्रेमप्रताप!उसे तुम्हारे इस व्यवहार से आघात पहुँचा है तभी उसकी तबियत खराब हुई,
तो अब क्या करूँ?प्रेमप्रताप ने पूछा।
उससे क्षमा माँगो,मोती बोली।।
यदि उसने क्षमा ना किया तो,प्रेमप्रताप बोला।।
तो मैं कुछ नहीं कर सकती इसके आगें,मोती का दोटूक जवाब सुनकर प्रेमप्रताप कुछ परेशानी मे पड़ गया...


जब प्रेमप्रताप को लगा कि उस दिन की बात के लिए मोतीबाई भी उससे नाराज है तो उसने मोतीबाई से फिर से कहा....
कैसे भी करके तुम मुझे प्रयागी से माँफी दिलवा दो,आइन्दा फिर कभी ऐसी गलती ना होगी,
तुमने जो व्यवहार उसके साथ किया तो क्या तुम्हें लगता है कि प्रयागी तुम्हें माँफ कर देगीं...,मोती बोली।।
तो अब मैं क्या करूँ?मैनें उसे इतने दिनों से नहीं देखा,मैं उसकी एक झलक पाने को कुछ भी कर सकता हूँ,बस तुम उससे कहो कि मुझसे एक बार मिल ले तो मैं उसके पैरों में अपना सिर रखकर माँफी माँग लूँगा,रोऊँगा गिड़गिड़ाऊँगा तो उसे मुझे माँफ करना ही होगा,प्रेमप्रताप बोला।।
मैं उससे कुछ नहीं कहूँगी और ना ही तुमसे मिलने को कहूँगी,मोतीबाई बोली।।
ऐसा ना कहो मोती,मैं बेमौत मर जाऊँगा,उसकी जुदाई मुझे जीने नहीं देगी,प्रेमप्रताप बोला।।
ठीक है,मैं केवल एक कोशिश करूँगी और अगर वो ना मानी तो फिर मैं कुछ नहीं कर सकती,मोतीबाई बोली।।
मुझे मंजूर है,प्रेमप्रताप बोला।।
और फिर मोती ने प्रयागी से मिलने का सोचा और वो उससे घर पर जाकर मिली,इस बात से प्रयागी को बहुत डर लगा कि कहीं किसी ने कुछ देख लिया और राई का पहाड़ बना दिया तो फिजूल में बदनामी हो जाएगी,इसलिए उसने मोती से कहा कि आइन्दा घर आने की जरूरत नहीं है,जल्दी से अपनी बात कहकर यहाँ से जाओ....
मोतीबाई बोली....
तुम नदी के घाट पर भी नहीं आती इसलिए मजबूरी में मुझे यहाँ आना पड़ा,
लेकिन तुम मुझसे मिलना क्यों चाहती हो?प्रयागी ने पूछा।।
प्रेमप्रताप ने मुझसे विनती की है कि मैं तुम्हें उससे मिलने के लिए मना लूँ,मोतीबाई बोली।।
लेकिन मैं उस नीच से कतई नहीं मिलना चाहती,उसने मुझे स्पर्श करने का प्रयास किया,जिससे मुझे अपने पति से भी घृणा हो गई और भूलवश मैं एक ऐसा अपराध कर बैठी जो एक सुहागिन को शोभा नहीं देता,प्रयागी बोली।।
हाँ मुझे पता है,मुझे प्रेमप्रताप ने बताया था,मोतीबाई बोली।।
और फिर भी तुम उसकी सिफारिश लेकर मेरे पास आई हो,प्रयागी बोली।।
मैं मजबूर हूँ,प्रेमप्रताप ने कहा है कि अगर तुम उससे ना मिली तो मैं बेमौत मर जाऊँगा,मोती बोली।।
तो मैं क्या करूँ?कल का मरता अभी मर जाएं,मेरी बला से,प्रयागी बोली।।
तो तुम्हारा जवाब ना है,मोती बोली।।
हाँ!मैं उससे कभी नहीं मिलना चाहूँगी,प्रयागी बोली।।
तुम उससे नहीं मिलना चाहती तो मैं तुम्हें मजबूर भी ना करूँगी,अब मैं जाती हूँ और इतना कहकर मोतीबाई चली गई,उसने प्रयागी का फैसला प्रेमप्रताप को सुना दिया,प्रयागी का फैसला सुनकर प्रेमप्रताप गुस्से से भड़क उठा और मोती से बोला.....
बड़ी सती सावित्री बनती है,मैनें भी उसकी आबरु मिट्टी में ना मिला दी तो मेरा नाम भी प्रेमप्रताप नहीं,उसकी सारी अकड़ निकाल दूँगा,जमाने में मुँह दिखाने के काबिल ना छोड़ूगा,मुझे ठुकराती है....मेरा प्यार ठुकराती है,देखता हूँ अब खुद को बदनाम करने से कैसें रोकती है?
तुम ऐसा कुछ नहीं करोगें,मोती बोली।।
मैं ऐसा ही कुछ करूँगा,अब तुम तमाशा देखना उसकी और मेरी बर्बादी का,प्रेमप्रताप बोला।।
उसका कुसूर क्या है?जो तुम उसे ऐसी सजा दोगें,मोती ने पूछा।।
मुझे और मेरा प्यार ठुकराना ही उसका कुसूर है,प्रेमप्रताप बोला।।
ऐसा मत करो परलय आ जाएगी,मोती बोली।।
और जो मेरी जिन्दगी में उसके बिना परलय आई है उसकी तुम्हें तनिक भी परवाह नहीं,प्रेमप्रताप बोला।।
तुम बदले की आग में अन्धे हो चुके हो,प्रेमप्रताप बोला।।
तो यही सही,अब प्रतिशोध तो पूरा होकर रहेगा,प्रेमप्रताप बोला।।।
तुम करने क्या वाले हो,मोती ने पूछा।।
तुम ही तो एक चतुर हो दुनिया में, मैं तुम्हें अपनी योजना बता दूँ ताकि तुम प्रयागी को जाकर बता दो जिससे मेरी योजना विफल हो जाएं,प्रेमप्रताप बोला।।
कुछ भी ऐसा मत करना प्रेमप्रताप जो सबके लिए बरबादी का कारण बन जाएं,मोती बोली।।
अब तो यही होगा जानेमन और इतना कहकर प्रेमप्रताप वहाँ से चला गया.....
अब प्रेमप्रताप अपनी योजना अनुसार रोज प्रयागी के घर के चक्कर लगाने लगा वो भी वेष बदलकर, उसे पता चल गया था कि उसका पति रूद्रप्रयाग जो कि उसका दुश्मन भी है वो देर रात घर लौटता है,मेहरी के चले जाने के बाद वो घर अकेली बचती है घर में,तभी उससे मिलना ठीक रहेगा,जब प्रेमप्रताप ने सबकुछ अच्छी तरह जाँच परख लिया तो वो एक रात पिस्तौल अपनी कमर में छुपाकर प्रयागी के मकान पर पहुँचा, पहले मकान के किवाड़ पर लगी साँकल खड़काई और खुद को कम्बल में छुपा लिया,जब प्रयागी ने किवाड़ खोले तो वो धड़धड़ाता हुआ भीतर घुस गया,उसने कुछ भी कहने सुनने की भी आवश्यकता नहीं समझी,
प्रयागी ने देखा तो चिल्ला उठी, जैसे घर में कोई चोर घुस आया हो,तब प्रेमप्रताप ने अपने चेहरे से कम्बल हटाया,लालटेन की रौशनी में प्रयागी ने उसे देखा और वह पीछे हट गई, प्रेमप्रताप उस समय बाघ की तरह उसे घूर रहा था,उसने प्रयागी की ओर पिस्तौल तानकर कहा,
‘‘शोर मत मचाना वरना गोली मार दूंँगा,
प्रयागी ये देखकर मुस्कराई और बोली.....
अब तुम इस हद तक गिर चुके हो,
हाँ!गिर चुका हूँ इस हद तक,मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम मेरी अवहेलना करती हो,प्रेमप्रताप बोला।।
सच!मुझे प्यार करते हो तो यूँ चोरी छुपे क्यों आएं हो? मुझे बदनाम करने,प्रयागी ने पूछा।।
नहीं!मैं तुम्हें कभी बदनाम नहीं कर सकता प्रयागी!मैं तो तुमसे क्षमा माँगने आया था,तुम मुझे प्यार करो या ना करो मगर मुझे क्षमा कर दो,मैं तुम्हारे बिना जीने की कोशिश करूँगा,अगर तुम्हारे बिना जी नहीं पाया तो मर जाऊँगा लेकिन तुम्हारी नफरत लेकर ना तो मैं जी पाऊँगा और ना ही मर पाऊँगा,बस मुझे एक बार क्षमा कर दो,मेरा प्रेम तुम्हारे लिए पवित्र है,जैसा मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूँ,वैसा आज तक मैनें किसी भी औरत के लिए महसूस नहीं किया और फिर प्रेमप्रताप घुटनों के बल बैठकर फूट फूटकर रोने लगा और पिस्तौल जमीन पर गिर गई,
अब प्रयागी भी कठोर ना बन पाई वो भी प्रेमप्रताप का व्यवहार देखकर पिघल गई और उसने अपने दोनों हाथ फैला दिए,प्रेमप्रताप फौरन ही उसके अंकपाश में समा गया,सरयू ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा.....
जाओ मैनें तुम्हें माँफ किया,तुम्हारी आँखों में मुझे पाश्चाताप नजर आया,तुम्हारे ये आँसू झूठे नहीं हैं,इसलिए मुझे तुम पर दया आ गई,
सच कहती हो तुम!प्रेमप्रताप ने पूछा।।
हाँ!बिल्कुल सच!प्रयागी बोली।।
फिर प्रयागी ने प्रेमप्रताप को अपने आलिंगन से छोड़ते हुए कहा.....
अब तुम जाओ,रात बहुत हो चुकी है मेरे पति के आने का वक्त हो गया,
प्रयागी की बात सुनकर प्रेमप्रताप चला गया,लेकिन अपनी पिस्तौल वहीं भूल गया,जब रूद्र घर लौटा तो उसने पिस्तौल को अपने घर में पाकर प्रयागी से पूछा....
ये कहाँ से आया?
मैं सब बताती हूँ लेकिन वादा करो तुम नाराज नहीं होगे,प्रयागी बोली।।
नहीं बोलो,कहाँ से आया पिस्तौल क्योंकि ये तो मेरा नहीं है,रूद्र बोला।।
ये प्रेमप्रताप का है,प्रयागी बोली।।
प्रेमप्रताप का पिस्तौल यहाँ क्या कर रहा है?रूद्र ने पूछा...
वो यहाँ आया था,प्रयागी बोली।।
लेकिन क्यों?रूद्र ने पूछा।।
माँफी माँगने,प्रयागी बोली।।
किस बात की माँफी?रूद्र ने पूछा।।
उसने एक दिन शराब के नशे में मुझे उल्टा सीधा बोल दिया था और मैनें उससे बात करना बंद कर दिया था ,उस बात की माँफी,प्रयागी ने सच को छुपाते हुए कहा,
लेकिन इतनी रात गए,रूद्र ने पूछा।।
वो तो शाम को ही आया था,तनिक ही अँधेरा हुआ था तब,प्रयागी ने दोबारा झूठ बोला।।
अब ये सब रूद्र को हज़म नहीं हो रहा था,उसके दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा,उसने गैर मन से खाना खाया और बिस्तर पर जाकर लेट गया,लेकिन नींद तो उसकी आँखों से कोसों दूर थी,उसे संदेह था कि प्रयागी झूठ बोल रही है बात तो कुछ और ही है,यही सब सोचकर रूद्र सो नहीं पा रहा था......
इधर प्रयागी भी अपने पति से झूठ बोलकर पछता रही थी,लेकिन सच बोलती भी क्या कि उसे प्रेमप्रताप ने चुम्बन लिया था और वो उसी की माँफी माँगने आया था,दोनों पति पत्नी ही उलझनों में उलझे सोने का प्रयास कर रहे थे,
और जब प्रयागी के घर से प्रेमप्रताप निकला तो वो मोतीबाई के पास जाकर हँसते हुए बोला.....
मोती !उसने मुझे माँफ कर दिया,वो बहुत दयालु है,अब मैं उससे मिलने का कभी प्रयास नहीं करूँगा क्योंकि मुझे लगने लगा है कि मैं उससे सच्चा प्रेम करने लगा हूँ और सच्चे प्रेम को पाने की आवश्यकता नहीं होती वो तो बस महसूस किया जा सकता है,आज से शराब भी बंद,मैं आज से एक अच्छा इन्सान बनने की कोशिश करूँगा,
ये सुनकर मोती हतप्रभ सी रह गई....



क्रमशः....
सरोज वर्मा.....