Last lullaby... books and stories free download online pdf in Hindi

आखिरी लोरी...

साँझ का समय था,गंगाजली मिट्टी से लीपे आँगन को बुहार रही थी,खुला आँगन और घर के पिछवाड़े पीपल और बबूल के पेड़ हैं तो दिनभर में ना जाने कितने सूखे पत्ते आँगन में इकट्ठा हो जाते हैं वो उन्हीं को झाड़ रही है और साथ में कुछ बड़बड़ा भी रही है जो इस प्रकार है.....
आँगन बुहार लूँ तो फिर रात का भोजन भी तो पकाना है,अभी कुछ देर में सूरज डूब जाएगा तो सारे गाँव में अँधियारा फैल जाएगा,सूरज डूबने से पहले भोजन पका लो तो अच्छा नहीं तो ढ़िबरी की रौशनी में ना हाण्डी में मसाला भुनने का पता चलता है और ना चूल्हे में पकी रोटी का,कच्चा पक्का जैसा भी बना तो निगलना पड़ता है,वैसे भी हम गरीबों की किस्मत में छप्पन भोग कहाँ लिखें हैं जो रूखा सूखा मिल जाता है तो वही पानी के साथ निगल लेते हैं....
गंगाजली बड़बड़ा ही रही थी कि तभी बहुत दुखी और अत्यन्त चिन्तित-सी केशर आँगन में आई,उसकी आँखों में अपराध और पश्चात्ताप की सलज्ज रेखा थी, अपनी भौजी गंगाजली से बिना कुछ बोले ही वो कोठरी में घुस गई,तभी आँगन से भौजी गंगाजली ने पूछा......
“केशर आ गई क्या?”
बिना कोई उत्तर दिए केशर आईना-कन्घी लेकर कोठरी से बाहर आई और आँगन में बिछी चटाई पर अत्यन्त उदास-सी बैठ गई,फिर बाल खोलकर उनमे कंघी फिराने लगी...
पसीने से भीगे मुँह को आँचल से पोछती हुई गंगाजली ने आँगन बुहारना बंद किया और ननद के उदास नेत्र, शिथिल चेष्टा और झुके मस्तक को देखकर सन्न हो गई और उससे बोली...
का हुआ है?मुँह काहे उतरा है मेरी बिन्नो का...
जब सुबह मिट्टी के खिलौने बाजार ले जा रही थी तो एक साइकिल वाले ने टक्कर मार दी,डलिया गिरी और आधे से ज्यादा खिलौनें टूट गए,आटा बस खरीद पाई आज,कुछ भी तरकारी ना ले पाई,अब क्या खाऐगें साँझ को,केशर बोली....
बस इत्ती सी बात से उदास हो गई मेरी बिन्नो,आज तरकारी ना सही चटनी से काम चला लेगें,अभी प्याज और लाल मिर्च की चटनी पीसती हूँ सिलबट्टे पें,आँगन में नींबू का पेड़ लगा ही है,बढ़िया चटनी में नींबू निचोड़ेगे और खाऐगें.....
लेकिन भौजी आज तुम्हारा आलू की तरकारी खाने का मन था,केशर बोली....
तब गंगाजली केशर के नजदीक आकर, बड़े स्नेह से उस के मस्तक पर हाथ फेरती हुई बोली,
“क्यों बिन्नो? इस तरह से मन क्यों दुखी करती है?
“नहीं, भौजी, ऐसी बात नहीं है! उस साइकिल वाले ने नुकसान भरपाई के रुपये भी दिए हैं, अपनी धोती के आँचल में बँधे रुपये निकालकर केशर ने अपनी भौजी गंगाजली के हाथ में रख दिए,भौजी की चिन्ता अब समाप्त हुई और बोली....अब कुछ भी हो, हाथ में रुपये तो हैं, तब कौन सी चिन्ता, किस बात की चिन्ता?

और फिर दोनों ननद भौजाई मुस्कुरा दी,केशर और उस की भौजी गंगाजली दोनों ही विधवा हैं,केशर की उम्र सोलह-सत्रह साल और गंगाजली की बीस-इक्कीस साल और दोनों ही निःसन्तान, दोनों स्वाधीन प्रकृति की,जिस गाँव में वें दोनों रहतीं हैं तो वो बहुत ही विशाल गाँव है,गाँव में हाईस्कूल, थाना, पोस्ट ऑफिस, अस्पताल और हाट-बाज़ार सब कुछ है बस उनके ही घर में कुछ नहीं है, इसीलिए इन दो विधवाओं का जीवन-निर्वाह करना बड़ी बात है,जब केशर की उम्र दस साल की थी तब केशर का भाई रंगीला गंगाजली को ब्याहकर लाया था और गंगाजली तब सोलह साल की थी,गंगाजली में केशर अपनी माँ का रूप देखती थी क्योंकि केशर के माँ बाप बचपन में स्वर्ग सिधार चुके थे,रंगीला ने ही केशर को पाल पोसकर बड़ा किया था,जब केशर की सहेलियाँ उससे कहा करतीं कि उनकी माँ तो उन सबको लोरी गाकर सुलाती है तो केशर का भी मन करता कि काश उसकी माँ होती तो वो भी उसे लोरी गाकर सुनाती लेकिन जब केशर की जिन्दगी में गंगाजली आई तो उसने केशर की माँ की कमी पूरी कर दी,हर रात गंगाजली केशर को सुन्दर सी लोरी सुनाती और वो उसके पास ही लोरी सुनते सुनते सो जाती.....लोरी के बोल होते....
धीरे धीरेरे बादल ..धीरे धीरेरे,
मेरा बुलबुल सो रहा है ,मेरा बुलबुल सो रहा है
शोर गुल ना मचा....
दिन बीत रहे थे पूरा परिवार खुशहाल था,ऐसे ही दो तीन साल गुजरे तो केशर के लिए एक अच्छा सा रिश्ता आया वो तब बारह साल की थी ,रंगीला को वर और घर दोनों ही भा गए और उसने केशर की शादी बजरंगी से कर दी लेकिन गौना नहीं किया बोला जब केशर समझदार हो जाएगी,गृहस्थी सम्भालने के काबिल होगी तब उसका गौना करूँगा,केशर के ससुराल वाले मान गए,रंगीला की बात भी सही थी ,जो सबको जँच गई,केशर के ब्याह को एक साल ही गुजरा था कि बजरंगी को हैजा हुआ और वो इस बिमारी को झेल ना सका और भगवान को प्यारा हो गया,केशर के विधवा हो जाने पर उसके ससुराल वालो ने उससे नाता तोड़ लिया क्योंकि उनका बेटा किसी भी कारण मरा हो लेकिन इसकी जिम्मेदार तो केशर थी,क्योंकि वो उसकी पत्नी जो थी इसलिए,उसको मनहूस ,कुलच्छनी और दुनियाभर के नामों से नवाजा गया....
रंगीला भी बोला कि मेरी बहन किसी के टुकड़ो की मोहताज़ नहीं है,उसका भाई अभी जिन्दा है और उसे पाल सकता है,दिन फिर गुजरने केशर अपने विधवा होने से अन्जान थी क्योंकि उसे ना तो अपने दूल्हे की फिकर थी और ना ही ससुरालवालों की ,वो तो दिन भर भरपेट भोजन करती और हर रात गंगाजली से लोरी सुनती फिर सो जाती क्योंकि रंगीला तो इतना कमा ही लेता था कि तीनों का पेट पाल सकें,अब कुछ दिनों बाद गंगाजली उम्मीद से हुई,घर में खुशियों की लहर दौड़ गई लेकिन एक दिन गंगाजली कुएँ से पानी लाते वक्त गिर पड़ी और उसका बच्चा नहीं रहा,रंगीला बहुत दुखी हुआ तब रंगीला से गंगाजली बोली.....
भगवान ने हमें इतनी प्यारी बेटी दी है तब भी तुम दुखी होते हो,अब हमारी औलाद हो या ना हो केशर ही हमारी बेटी है,जब मैं नहीं रोती तो तुम क्यों दुखी होते हो.......
फिर ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि रंगीला खेतों में काम कर रहा था,आषाढ़ का मौसम था, बरसात होने लगी तो रंगीला बारिश से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया और इतने में आसमान से बिजली गिरी और पेड़ सहित रंगीला को भी अपनी चपेट में लेकर चली गई,रंगीला के जाने के बाद ननद भौजाई दोनों के जीवन में अंधकार छा गया...
गंगाजली के मायके में भी उसकी बूढ़ी माँ थी तो वो भी कुछ दिनों बाद भगवान को प्यारी हो गई,गंगाजली के मायके में वो मिट्टी के खिलौने बनाकर अपनी माँ के साथ बाजार में बेचा करती थी,उसको यही काम ठीक से आता था इसलिए वो केशर के साथ यही काम करके अपना जीवनयापन करने लगी,बस यही कहानी है दोनों की....
दिन बीते वो साइकिल वाला जिसके धक्के से केशर की खिलौनों से भरी डलिया गिर गई थी,वो केशर को बाजार में एक दिन फिर से मिला और उसका हाल चाल पूछा,केशर ने घर आकर गंगाजली से बताया तो गंगाजली बोली...
अबकी बार मिले तो घर बुला लेना,नेकदिल मालूम पड़ता है,मैं उसे धन्यवाद तो कह दूँ,कोई और होता तो कभी रूपए ना देता....
फिर क्या था केशर को वो मिला तो उसने उसे घर आने का न्यौता दे डाला,उसका नाम राममोहन था,वो उनके घर आया तो गंगाजली ने उसे बिना खाना खाए ना जाने दिया,गंगाजली को राममोहन भला इन्सान लगा,राममोहन को भी वो दोनों अच्छे लगे इसलिए अब वो यदा कदा उनके घर आ जाता,एक दिन राममोहन ने गंगाजली से कहा....
सोचता हूँ शादी कर लूँ...
हाँ !तो कर लो,तुम्हें कौन मना करेगी,गंगाजली बोली...
उसी की राय तो जानने आया हूँ,राममोहन बोला....
गंगाजली ये सुनकर बहुत खुश हुई और बोली....
उससे क्या पूछना है वो तो राजी है...
सच!कह रही हो,राममोहन बोला...
हाँ!सच,गंगाजली बोली...
तो फिर शादी की तैयारियांँ कर लूँ,राममोहन बोला...
हाँ!बिल्कुल!गंगाजली बोली.....
गंगाजली भी केशर के लिए खरीदारी करवाने में जुट पड़ी और जब वो शादी का जोड़ा खरीदकर लाई तो उसने दिखाने के लिए राममोहन को भी घर बुला लिया,उस समय केशर घर पर नहीं थी ,सारा सामान गंगाजली बाहर लेकर आई और बोली....
ये रंग अच्छा है,सुन्दर है ना शादी का जोड़ा...
तब राममोहन बोला...
तुम पर तो कुछ भी अच्छा लगेगा,तुम हो ही इतनी सुन्दर....
ये सुनकर गंगाजली सन्न रह गई और बोली...
क्या मतलब है तुम्हारा?ये तो केशर के लिए है...
लेकिन मैं तो तुमसे प्यार करता हूँ,राममोहन बोला...
तुम पागल हो गए हो क्या?वो मेरी बेटी जैसी है,उसकी खुशियों में मैं आग नहीं लगा सकती,तुम्हें उसी से शादी करनी पड़ेगी,गंगाजली बोली...
लेकिन मैं तो तुम्हें पसंद करता हूँ,राममोहन बोला....
लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करती,तुम्हें केशर को ही अपना जीवनसाथी बनाना पड़ेगा ,नहीं तो मैं जहर खा लूँगी,गंगाजली बोली....
और फिर गंगाजली के आगे राममोहन की एक ना चली और केशर के संग उसका ब्याह हो गया,लेकिन अब भी केशर का गंगाजली से लोरी सुनने का सिलसिला जारी था,अब सब साथ में शहर में रहने लगे थे और किसी त्यौहार वाले दिन राममोहन गंगाजली के लिए एक साड़ी लेकर आया,गंगाजली ने वो साड़ी पहन ली,राममोहन उसे निहारने लगा और जब गंगाजली उसे एकांत में मिली तो वो उससे बोला....
काश!तुम शादी के लिए मान जाती,मैं तुम्हें अब भी चाहता हूँ और हमेशा चाहता रहूँगा....
ये बात केशर ने सुन ली और उसी वक्त उसने गंगाजली को अपने घर से बेइज्जत कर धक्के मारके घर से निकाल दिया,अपने पति से कुछ भी नहीं कहा,गंगाजली रोते बिलखते अपने घर आ गई और वहीं रहने लगी,पाँच साल बीते केशर दो बच्चों की माँ भी बन गई लेकिन उसने गंगाजली की शकल ना देखी,जब केशर का दूसरा बच्चा चार महीने का हुआ तो डाक्टर बोलें,ये देख नहीं सकता,तब राममोहन ने डाक्टर से पूछा कि अब क्या इसका हाल सारी उम्र ये ऐसे ही रहेगा,तब डाक्टर बोले यदि इसके पाँच साल तक होने पर कोई अपनी आँखें इसे दान में दे देता है तो ये देख सकता है लेकिन बहुत पैसा खर्च होगा इसके लिए....
केशर तो ना जाती थी गंगाजली से मिलने लेकिन राममोहन कभी कभार उसका हाल चाल पूछ आता था,जब उसने बच्चे की आँखों वाली बात बताई तो गंगाजली अपनी आँखें देने को राजी हो गई ऐसे ही पाँच और बीते और बच्चे की आँखें देखने लगी लेकिन गंगाजली अंधी होकर शहर में ही भीख माँगने लगी,रोटी रोटी को मोहताज हो गई,जैसे तैसे उसके दिन बीतने लगे और अब वो बीमार रहने लगी क्योंकि अब उसमें जीने की इच्छा ना बची और उसने अब एक मंदिर की सीढ़ियों पर अपना डेरा डाल लिया,आते जाते लोग उसे खाने को दे जाते,तो वो खा लेती,दिन गुजरे और अब गंगाजली बहुत ज्यादा बीमार रहने लगी और एक रात ऐसी बीमार पड़ी कि फिर वो मंदिर की सीढ़ियों में पड़ी रही औ वहाँ से उठ ना सकी,पूरी रात यूँ ही गुजर गई जब सुबह हुई तो लोगों का मंदिर में आना शुरू हुआ तब लोगों ने देखा और पंडित जी को बताया,पंडित जी बोले नगरपालिका वालों को बुलाओ वें ही इसे ले जाएं,कहीं मंदिर में मर गई तो अच्छा नहीं होगा,पंडित जी की बात का लोगों ने विरोध किया और उसे मंदिर के बाहर लिटा दिया गया,इत्तेफाक से राममोहन और केशर उस दिन मंदिर आएं और इतनी भीड़ इकट्ठी देखकर लोगों से पूछा तो लोगों ने बताया कि कोई अन्धी है ,बीमार है ,बस प्रण अटके हैं ना जाने किसे देखने के लिए प्राण अटके हैं,राममोहन उसके पास पहुंँचा और उसे देखते ही चीख पड़ा और उसके पास जाकर बोला.....
ये तुमने क्या हाल बना लिया है गंगाजली?
तब केशर बोली....
दूसरों के पतियों पर नजर गड़ाएगी तो ऐसा ही हाल होगा ना!इसलिए तो अन्धी कर दिया भगवान ने...
ये सुनकर राममोहन को गुस्सा आ गया और उसने सारी सच्चाई केशर से कह दी और ये भी कहा कि ये सब मुझे गंगाजली ने तुम्हें बताने से मना किया था,मैं तुमसे नहीं गंगाजली से शादी करना चाहता था,तुम्हारे बेटे को आँखें भी इसी अभागी ने दी हैं,जीते जी इसने माँ का फर्ज निभाया....
राममोहन की बात सुनकर केशर रो पड़ी फिर गंगाजली के पास रोते हुए बैठ गई और उससे बोली....
मुझे माँफ कर दो भौजी!तुम हमेशा मेरी माँ बनकर रही लेकिन मैं तुम्हें कभी समझ नहीं पाई, तुम्हें याद है भौजी बचपन में तुम मुझे लोरी गाकर सुलाया करती थी,तुमने मुझे कभी भी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी और मैंने तुम्हारे साथ ऐसा बुरा बर्ताव किया....मुझे माँफ कर दो....भौजी.......मुझे माँफ कर.....दो,मैं तुम्हारी गुनाहगार हूँ..
केशर की बात सुनकर गंगाजली लरझती आवाज में बोली....
बिन्नो! .........तुम मेरी बेटी थी और मैं तुम्हारी माँ,मै....मैं....कभी भी तुम्हारा बुरा कैसें चाह सकती थी,बस तुम्हें देखने के लिए ही शायद मेरे प्राण अटके थे,......मरते समय एक ही इच्छा है कि मैं भी वही लोरी सुनकर हमेशा के लिए सोऊँ जो मैं तुम्हें सुनाती थी ,...सुनाओगी ना बिन्नो.....मुझे वो लोरी .....
हाँ....हाँ....भौजी!जरूर मैं तुम्हें वो लोरी सुनाऊँगी,केशर रोते हुए बोली..
और फिर केशर ने रोते रोते लोरी सुनाना शुरू किया.....

धीरे धीरेरे बादल ..धीरे धीरेरे,
मेरा बुलबुल सो रहा है ,मेरा बुलबुल सो रहा है
शोर गुल ना मचा....

गंगाजली ने लोरी सुनी और वो गहरी नींद में सो गई और केशर दहाड़े मारकर रो पड़ी,केशर ने आज अपनी भौजी को जो लोरी सुनाई थी वो उसकी आखिरी लोरी थी.....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....