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ज़िन्दगी जंक्शन

"लोग कहते हैं कि शख्स चला भी जाए तो एहसास ज़िंदा रहते हैं........ यह एहसास कब तलक ज़िंदा रहते हैं !!" जाते जाते यही एक सवाल उसने किया।

यह बात है आज से एक साल पहले की जब हम और हमारे साथी लखनऊ जाने के लिए बनारस के कैण्ट स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थें।
नही !! घुमने नही जा रहे थें बल्कि हमारे ही दोस्त आलोक की शादी थी लखनऊ में तो वहीं जा रहे थें। अब आलोक के शादी की बात उठी है तो बता दें कि यह कोई आम शादी नहीं थी, असल में कोरोना के बाद से आलोक के दादा जी इतना डर गए कि उसकी शादी देखने की ज़िद करने लगें और वो चाहते थें की शादी उनके पसंद से उनके जीतेजी हो जाए।
बेचारा आलोक.... गया तो था परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने.. उसे क्या ही पता था कि उसका ही परिवार बस जाएगा।

आलोक से जुड़ा यही किस्सा जब हम साथी लोग स्टेशन पर बतियाने लगे तो हँस-हँस के लोटपोट होगएँ। स्टेशन पर सभी हम लोगो को ही देखने लगें और उन्हीं नज़रों में एक नज़र थी उसकी.....

इशिता.... यह मैडम अपने आप में ही अलग मामला थीं। कभी नाराज़ तो कभी मोहब्बत का मौसम, कभी हमारे संग तो कभी अलग ही आलम।

हम भी वही सोच रहे थें जो आप सोच रहे हैं कि यह स्टेशन पर क्या कर रही है।

रूठा-रूठा सा मुँह बना कर जब उसने हमें हँसी-ठिठोली करते देखा तो महादेव की कसम हमारी फट के फ्लावर हो गयी। वो अलज ही अंदाज़ में गुस्से से हमें देखे जा रही थी और हम उसे देख डरे-सहमे से हल्की-हल्की मुस्कान देकर अपने आप को शांत कर रहे थें।

उसके पास जाकर हमने पूछा कि
- "तुम तो नाराज़ होकर दो दिन से ढंग से बात तक नही कर रही थी। तो यहाँ क्यों...."

अपनी आदत से मजबूर उसने हमारे सवाल से पहले ही टोक दिया कि
- "तुम्हारे लिए नही आए हैं निशांत, आलोक हमारा भी दोस्त है तो उसकी खुशी में हम भी चलेंगे"

"खुशी" सुनते ही हमारे सारे दोस्त फिर हँसने लगे और हम अपना सर नीचे कर लिए, अब महादेव ही बताए कि हम हँसी रोके या इशिता को मनाए।

[यात्रीगण कृपया ध्यान दें गाड़ी नंबर 04059 वाराणसी नई दिल्ली हमसफ़र कुछ ही समय मे प्लेटफार्म क्रमांक 8 पर आरही है।]

यह अनाउंसमेंट सुनते ही हमने इशिता का समान उठाया उसके हाथों को पकड़ा और उससे जल्दी जल्दी बोला -
"चलो इशिता चलो"

उसने अपने हाथ को छुड़ाते हुए बोला - "हमारा समान इधर दो निशांत और हमसे बात मत करो।"

हम कुछ बोलते तब तक वो सबके साथ आगे बढ़ गयी।

ट्रेन के स्टेशन छोड़ते ही सबके किस्से फिर शुरू हुए, बात हो रही थी उस वक़्त जब आलोक ने अपनी शादी की खुशखबरी देने के लिए कॉल किया था।

असल मे उस दिन हम सब अस्सी पर बैठे हुए थें तभी आलोक ने रोहन को कॉल किया और जैसे ही उसने रोहन को शादी की बात बताई, रोहन चौक कर बोला - "क्या..!!, रुक रुक फ़ोन सपीकर पर करने दे"

रोहन हँसते हुए फ़ोन स्पीकर पर करके बोला - "हाँ भाई! अब बोल"
आलोक शांत होगया कुछ नही बोल रहा था
तब तक अरुण बोला - "बोल न, क्या हुआ"
इतने में रोहन हँसते व गाते हुए - "भाई अपना दूल्हा बनेगा, हीटर अब चूल्हा बनेगा।"

"हीटर-चूल्हा कुछ समझ नही आया !" - चाय वाले भईया ने पूछा
अब रोहन चाय वाले भईया को अपने तुकबंदी का मतलब समझा ही रहा था कि अरुण खिसियाते हुए बोला - "हम नही करते हैं बात। तुम लोग ही अपना होम-साइंस समझ लो।"

अरुण रोहन से फ़ोन लेकर आलोक से बोलता है - "काहें किये तुम ऐसा, धोखेबाज हो तुम। हम तुमसे 6 महीना बड़े हैं, जब कॉलेज में अस्मिता को पटाना था तो हमें अपना बड़ा भाई बता दिए और अब बड़े भाई से पहले ही दूल्हा बनने निकल लिए। ठीक नही किये हो तुम। यु हर्ट्स में अलॉट।"

"अच्छा!!! तभी हम सोचे कि ये अस्मिता हम सभी में से सिर्फ अरुण को भईया क्यों बोलती है। गज़ब लुल प्राणी हो यार अरुण तुम, सबसे कहते थे कि अस्मिता दूर की बहन है इसीलिये भईया बोलती है।" - रोहन हँसते हुए अरुण से बोलता है।

अरुण गुस्सा से रोहन को देखता है और कहता है - "चिरांद आदमी चिरांद ही रहता है, 'रोहन' नाम 'कोई मिल गया' देखकर रखें थे क्या बाबू जी। लो बे बतियाओ।"

"हम क्यों बात करें, अगला दूल्हा निशांत है.. ये लो बतियाओ।" - रोहन ने अरुण से कहते हुए हमें फ़ोन थमा दिया

तभी आलोक हमसे पूरी बात बताता है कि कैसे उसके दादा जी ने उसकी शादी तय कर दी और साथ ही हम सबको बुलावा देता है।

ट्रेन में यही किस्सा खुलता है तो सभी हँसने लगते हैं और हम ट्रेन के दरवाजे के पास खड़े हो कर सिर्फ एक मुस्कान एक हँसी देख रहे थें।

यह प्यार भी न एक अलग एहसास है, मौसम बदल जाते हैं.. दिल मचल जाते हैं.. सफर का नही होता पता फिर भी हम निकल जाते हैं। यह एहसास और यह मौसम की बात दिल मे चल ही रही थी कि अचानक से बारिश होने लगी।

हम जान रहे थें की दरवाज़े से आती बौछारें हमें भीगा रहीं थी, पर यह दिल भी इंतज़ार में था कि कोई आके डाट दे और अपने पास बैठा ले। यही सोचते सोचते भींग भी गए।

अचानक से इशिता की नज़र हम पर पड़ी..

ट्रेन के दरवाज़े से आती बारिश की बौछारों ने हमे लगभग भीगा ही दिया था।
एक बात तो है कि यह बारिश भी इश्क़ ही है, होती है तो दिल को भाती है और नही होती है तो आस जगाती है।
लेकिन इस इश्क़ से इश्क़ निभाते तो सामने बैठा हमारा रूठा इश्क़ और नाराज़ हो जाता।

इशिता की आंखों से ही पता चल रहा था कि वो उठकर हमें डांटना चाहती थी पर उसकी नाराज़गी ने उसे रोके रखा था, पर हम भी उसके ही इश्क़ थें ऐसे कैसे ज़िद्द छोड़ देतें।
आखिरकार वो खुद को रोक न सकी और हमारे पास आकर बोली कि - "दरवाज़े पर क्यों खड़े हो! टिकट नही है?"

हमने उसे देखा और पूछा कि - "यूँ हर दो दिन पर नाराज़ हो जाना और तब तक नाराज़ रहना जब तक हम मना ना लें। यार कभी कभी फील होता है कि कहीं हमारा एहसास और हमारा प्यार कम तो नही पड़ जाता है।"

उसने झट से जवाब दिया - "एहसास !! इसकी डेडलाइन होती है क्या? हम तुमसे नाराज़ थें क्योंकि तुम प्यार करते करते बेहद कर देते हो यार और नही समझ आता है कि क्यों मेरे अनजान से गुस्से पर भी तुम शांत से सुनते हो। नही समझ आता है कुछ।"

हमने जवाब दिया - "इतनी सी बात थी बस, तो बोल देती न यार। हम खामख्वाह परेशान थें की नाजाने क्या बात। क्या ही कर दिए हम।"

वो पास आकर हमारे चेहरे पर हाथ को फेरते हुए बोली - "इतनी सी बात नही है निशांत। क्योंकि तुम्हारा प्यार इतना सा नही है। कभी कभी डर लगता है यार।"

उसकी आँखों मे वो एहसास मानो सब कुछ बयां कर रहे थें और हम कुछ कहते कि उसी समय किसी ने उदित नारायण जी का वो गाना बजा दिया :

"कितना प्यारा है यह चेहरा... जिसपे हम मरते हैं,
यह न जाने के..इसे कितना प्यार करते हैं"

उदित जी मानो हर बात कह दे रहें हो।

वो अपनी सीट पर जाने लगी और एक सवाल किया - "लोग कहते हैं कि शख्स चला भी जाए तो एहसास ज़िंदा रहते हैं........ यह एहसास कब तलक ज़िंदा रहते हैं !"

हमने उसकी आँखों मे देखा और जवाब दिया - "एहसास कभी मरते नही हैं। वो ज़िंदा रहते हैं ताउम्र दिल में।"

उसने हमसे बोला कि - "चलो आकर सीट पर बैठो।"

हमने पूछा कि - "आखिर नाराज़ क्यों थी ?"

उसने हँसते हुए जवाब दिया - "ताकि तुम फिर मनाओ"

यह जो इश्क़ है एक ऐसी गली जिसके हर मोड़ पर कुछ न कुछ बसा हुआ है, हमें बस अच्छी यादों को समेटे रखना है और जिस दिन यह गली खत्म हो गयी...

तो क्या? इश्क़ के एहसास तो ताउम्र ज़िंदा हैं।

(अरे रुकिए, यह कहानी तो खत्म हुई पर आलोक की शादी का क्या? बने रहिए क्या पता अगली कहानी आलोक की हो।)

खूब सारा प्यार दीजिये और खूब सारा प्यार कीजिये अपने हमसफ़र से ❤️