Prem Gali ati Sankari - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम गली अति साँकरी - 14

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उस दिन रतनी का चेहरा देखकर मैं बहुत असहज हो गई थी | शायद यह सच है कि खराब बातों का असर बहुत जल्दी मनोमस्तिष्क पर पड़ता है और गहरा भी | मेरे सामने अच्छे दृष्टांत भी तो थे जिनका असर बड़ा प्यारा और सकारात्मक था लेकिन इस परिवार का असर तो इतना नकारात्मक था कि कभी-कभी मुझसे सहन ही नहीं होता था | देखा जाए तो मुझे क्यों उस सबसे इतना प्रभावित होने की ज़रूरत थी?क्या मालूम दुनिया में और कितने लोग इनके जैसे थे जिनका हमें पता भी नहीं चलता था लेकिन यही तो है न, सामने देखकर चुप रहना कठिन होता है | 

रतनी का चेहरा देखकर मैं समझ गई थी कि उसके साथ ज़रूर कुछ और भी खराब हुआ है | आज बड़े टेलर मास्टर जी और रतनी को अम्मा के साथ नृत्य की पोषाकों का कपड़ा और सामान खरीदने जाना था | संस्थान की तीन मंज़िलों के अलावा संस्थान के पास वाली खाली जगह पर टेलर्स के लिए एक ‘वर्कशॉप’ भी बनवा दी गई थी जिसमें कई टेलर्स व कढ़ाई और सलमे-सितारे का काम करने वाले कारीगर बैठते थे और रतनी के दिशा-निर्देशन में पोशाकें तैयार होती रहती थी| डिज़ाइनिंग में रतनी का दिमाग इतना तेज़ था कि उसका काम देखकर उसे कई बड़े डिज़ाइनर्स से बुलाया गया था लेकिन वह कहीं नहीं जाने वाली थी| यह उसका अपना संस्थान था और हमारा परिवार उसका अपना परिवार !वह हमारे परिवार को अपने सिर पर एक मजबूत छत्रछाया के समान महसूस करती थी | 

अब इतना फैला हुआ काम देखकर सच कहूँ तो घबराहट होती थी | कितने अच्छे दिन थे जब पापा की बातें सुनकर हम सब दाँत फाड़कर हँसते हुए लोटपोट हो जाया करते थे | अब तो वे सब बातें सपना हो गईं थीं | 

अम्मा ने सुबह से ही ड्राइवर से कह दिया था कि आज वह उनकी गाड़ी तैयार रखे | कभी-कभी गाड़ी में रास्ते में कुछ परेशानी हो जाती जिसको अम्मा बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं| कई बार ऐसा हुआ था और अम्मा घबरा गईं थीं | इसलिए वे पहले से ही ड्राइवर को चेता देती थीं| वैसे ड्राइवर्स से लेकर संस्थान व घर का सारा स्टाफ़ बहुत ही अच्छा था | उन्हें हमेशा यहाँ पर प्यार और इज़्ज़त मिली थी और सभी यहाँ सब काम अपना समझकर ही करते थे जो आज के जमाने में बहुत बड़ी बात थी| 

संस्थान में हरेक विधा में छात्र/छात्राओं  की तादाद काफ़ी बढ़ती जा रही थी | सितार के लिए छात्र काफ़ी बढ़ गए थे जिनको सिखाने वाले शिक्षक कम थे | अम्मा कब से अच्छे सितारिस्ट की तलाश कर रही थीं| उसी दिन अम्मा के पास फ़ोन आया कि कोई अच्छे सितारवादक जयपुर से आए हुए हैं | अम्मा उनके साथ मीटिंग करना चाहती थीं लेकिन उनका रतनी के साथ जाना भी जरूरी था | मेरा इन सब चीज़ों में कोई दखल नहीं था| अम्मा को हर बार नए तरीके की पोशाकें बनवानी होतीं| कत्थक के साथ मैं सितार भी बजाती थी| लेकिन जैसा मैंने बताया, मुझे अम्मा के कारण संस्थान से इतनी गहराई से जुड़ना पड़ा था| आप कितने भी बाहर की सेवाएं ले लें, इतने बड़े संस्थान को चलाने के लिए कुछ ऐसे लोगों की ज़रूरत तो होती है जो बिलकुल घर के हों और बातों व कार्यों को ठीक तरह से समझ सकें| 

दादी के रहने तक अम्मा में काफी उत्साह और ऊर्जा थी और संस्थान में काम भी इतना फैला हुआ नहीं लगता था | अब तो ऐसा महसूस होता मानो कोई काम ठीक तरह से कभी पूरा ही नहीं होता| एक कमी पूरी हुई नहीं कि दूसरी कोई और आकर खड़ी हो गई | पिछले दिनों संगीत के दो शिक्षकों की नियुक्ति करनी पड़ी थी|  यहाँ तक कि एक मीटिंग बुलाकर यह सोचना पड़ा था कि अब जिस बैच में भी बीस से अधिक विद्यार्थी होंगे उसमें अब प्रवेश देना बंद करना होगा | सीखने वालों की रुचि जैसे बढ़ती जा रही थी और हमारे पास सुविधाओं की कमी दिखाई दे रही थी| 

“अमी ! बेटा तुम उनसे मिल तो लेना, मुझे इनके साथ जाना जरूरी है | शीला दीदी और तुम देख लेना ज़रा | तुम दोनों ही समझते हो हमें अपने संस्थान में किस प्रकार के शिक्षक रखने होते हैं | ”

“अम्मा !लेकिन डिसीजन  तो आप ही लेंगी –“ मैंने कहा तो उनका सूखा हुआ चेहरा मेरे सामने आ गया | 

“हाँ, वो बात की बात है ---” फिर आह सी भरकर बोलीं थीं –“मैं अकेली क्या-क्या संभालूँ, उधर नागालैंड का वार्षिकोत्सव सिर पर है, उनका बहुत प्रेशर है, समझ ही नहीं रहे हैं | ”अम्मा वास्तव में बहुत थकी हुई लग रही थीं | शरीर पर उम्र का प्रभाव स्वाभाविक रूप से पड़ता है, उन पर भी पड़ रहा था| मेरे मन में सवाल उठ रहे थे कि उन्होंने ही तो यह सब बखेड़ा इकट्ठा किया था, ज़रूरत थी क्या?लेकिन मैं कुछ अधिक कह न सकी, अम्मा का दिल था वह कला-संस्थान ---

“अम्मा !काम को कहीं तो ब्रेक लगाना ही पड़ेगा न !आपने पूरी ज़िंदगी भट्टी में झौंक दी, अब कट-शॉर्ट करना पड़ेगा| अब कहीं से भी अगर निमंत्रण आए तो प्लीज़ मना कर देना| ”मैं तुरंत ही बोल तो उठी ही थी| 

कई बार उनको पापा से मेरी चिंता करते हुए भी मैंने सुना था| मेरी उम्र बढ़ती जा रही थी और अम्मा को गिल्ट महसूस होता था कि वे मेरे लिए कोई साथी नहीं ढूंढ पाई हैं | इससे भी अधिक अफ़सोस उनको इस बात का था कि मैं इतनी शिक्षित और समर्थ होकर भी अपने मन के अनुसार कोई साथी क्यों नहीं चुन पाई थी?

“ये रिश्ते, संबंध यह सब सुव्यवस्थित होते हैं –”जब दादी कभी यह कहा करती थीं हम उनकी बात को हल्के में लेते थे | आज मुझे दादी की बात सच लगती है| 

मेरे मन में साथी की कुछ ऐसी तस्वीर थी जैसे अम्मा-पापा लेकिन सब तो उनके जैसे हो नहीं सकते न ! अगर कहीं जगन के जैसी एक भी आदत का कोई मिल गया तो ? बड़ी बेवकूफी भरी बात थी लेकिन मेरे दिलोदिमाग पर छपी हुई थी | आज अम्मा और रतनी के शॉपिंग पर के जाने के बाद मेरे और शीला दीदी के बीच में बात हुई थी और उन्होंने मुझे सारी बातें विस्तार से बताईं थीं| मैं फिर से परेशान हो उठी थी | 

मैं इतनी संवेदनशील और प्रेम अनुराग को मन में समेटने वाली थी और संवेदना की गली से गुज़रकर प्रेम की डोर पकड़कर चलना चाहती थी | इतनी शिद्दत के साथ जितनी अम्मा-पापा का जीवन था| आज भी वे दोनों एक-दूसरे के पूरक थे लेकिन व्यस्तता और परिवार में हम तीनों के रह जाने से जैसे सबके मन-आँगन   में एक सूनापन भर जाता था| 

शीला दीदी अपने लिए भी परेशान रहती थीं, उनका प्रेमी उनकी प्रतीक्षा कर रहा था और वे थीं कि उसकी प्रतीक्षा का उत्तर नहीं दे पा रहीं थीं | दिव्य युवा हो गया था और डॉली किशोरावस्था की अंतिम दहलीज पर थी| विवशता थी उनकी, कैसे छोड़े उस परिवार को जिसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया था| 

‘आज भी ऐसे निस्वार्थी लोग हैं जो अपने बारे में न सोचकर अपने परिवार व अपने से जुड़े हुए लोगों की अपने से अधिक परवाह करते हैं | जबकि आज आधुनिकता के नाम पर जगह जगह स्वार्थ दिखाई देता है| ’मैं सोचती| 

सितार वाले शिक्षक अम्मा से मिलने आए जो हमसे ही मिल सके लेकिन उनके व्यक्तित्व से मैं और शीला दीदी भी प्रभावित न हो सके | हो सकता है वो अच्छे सितारवादक हों लेकिन उनके चेहरे पर पसरी हुई गुमान की परत ने हम दोनों को निराश ही किया | सितार के शिक्षक की बात अभी बीच में ही लटकी रह गई|