Nasbandi - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

नसबंदी - 6

सुबह दोनों समय से उठे और अपनी नई नौकरी के लिए निकल गए । उनका कॉलसेंटर घर से आधे घंटे की दूरी पर है। दोनों ने देखा कि ऑफिस के नाम पर एक बड़ा हॉल है और उस हॉल को लकड़ी के डिब्बे लगाकर विभाजित किया गया है। उन्होंने अपना नाम बताया और वहाँ के मालिक ने उन्हें उनकी बैठने की जगह दिखाई और काम समझाने के लिए किसी को भेज दिया। यह कॉल सेंटर इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद ज़ेरोक्स के बारे में लोगों को बताने के लिए है। पंद्रह दिन की ट्रेनिंग और फ़िर पक्की नौकरी । जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, दोनों दोस्तों में बदलाव आने लगा। बिरजू ने अपना नाम बिरजू से बृज रख लिया । कॉल सेंटर में छह लड़कियाँ और सात लड़के हैं, वह सबसे हँस-हँसकर बोलता है । उनके साथ अब वह सिगरेट और थोड़ी देसी शराब भी पीने लगा है। मगर मोहन अपने में सिमटा रहता, वह लड़कियों से नाम-मात्र की बात करता और लड़कों से भी उसकी मतलब की बातचीत होती। दोनों दोस्तों के पैसे मिलाकर चौदह हज़ार रुपए बनते थें । मोहन घर का सारा हिसाब किताब रखता, 3500/- किराया देने के बाद घर का राशन और फ़िर दो-ढाई हज़ार घर भी भेजता।

दोनों सुबह दस बजे निकलते और रात आठ बजे आते। रात के बाद सुबह और वहीं दिनचर्या, ऐसे करते-करते पाँच महीने गुज़र गए। और श्याम भी ठीक होकर वापिस शहर आ गया । श्याम के आने के बाद, मोहन अब कुछ पैसे अपने लिए भी बचाने लगा। वह बड़ी ही मेहनत से काम करता और अब उसको इंसेंटिव के नाम पर दो-तीन हज़ार ज्यादा मिलने लगे थें । मगर बिरजू का वेतन अब भी उतना ही है। इस कॉल सेंटर की थकी-हारी ज़िन्दगी ने उसे'इतना व्यस्त कर दिया कि वह अब पिछली बातें भूलने लगा है । उसे प्रेमा की तब आती, जब वह चौथी मंजिल पर रहती रेशमा को देखने लगता । उसकी हँसी बिलकुल प्रेमा जैसी है, उसके साथ रहती जूही को श्याम पसंद करता है। दोनों अक्सर साथ निकल जाते ।

आज मोहन के मालिक ने उससे कहा कि अगर वह इस नौकरी के साथ रिपेयरिंग का काम सीख लेगा तो वह उसे लोगों के घर प्रोडक्ट की सर्विस के लिए भी भेजना शुरू कर देंगा। और इसमें उसे ज़्यादा पैसे मिलने लगेंगे। उसने काम सीखना शुरू कर दिया और अब वह सर्विस देने के काबिल भी बन गया। उसने अपने मालिक के कहने पर फर्स्ट ईयर के फॉर्म भरकर पत्राचार से पढ़ाई करनी शुरू कर दीं । अब दिवाली भी आ गई तो तीनों गॉंव चल दिए।

आज पूरे ग्यारह महीने बाद मोहन गॉंव आया है। उसकी बहन का बेटा भी हो चुका है। वह बहुत ख़ुश है। छोटा भाई ज़िले की
क्रिकेट टीम का हिस्सा बन चुका है। अम्मा अपने नाती के लिए स्वेटर बना रही है। वह उनके पास रखी चारपाई पर आकर लेट गया । उसने उसके सिर पर हाथ फेरा और प्यार से बोली, कितना दुबला-पतला हो गया है। उसने भी माँ के स्पर्श को महसूस करते हुए कहा कि अब हफ्ता, यहाँ रहूँगा तो मुझे खिला-पिलाकर मोटा कर देना । यह कोई कहने की बात है, बिल्कुल करूँगी। कल बेला के घर जाकर दिवाली दे आना, पहली दिवाली है, भाई को देखेंगी तो खुश हो जायेगी । माँ ने फ़िर उसे प्यार किया। अच्छा एक बात बता कि वो बेला की शादी के पैसे कहाँ से आये थें, माँ तुझे बताया तो था कि एक दोस्त से उधार लिए थें और उसे अब काफ़ी लौटा भी चुका हूँ। कहते हुए उसने मुँह फेर लिया। उसकी आवाज़ में गुस्सा और झुंझलाहट है।

सुबह बहन के घर गया तो वहाँ उसके ससुराल वालों ने उसका अच्छे से स्वागत किया। वह शहर से सबके लिए चीजों के साथ फलो और मिठाई का टोकरा भी लाया है, जिसे देखकर सभी उसे हाथो-हाथ ले रहे हैं । बहन के बेटे को उसने गोद में उठाया और उसे बड़े प्यार से देखने लगा । भैया, यह आपकी वजह से इस दुनिया में है, बेला की आँख भर आई । नहीं पगली, जो होना होता है, वो होकर रहता है। उसने आह! भरकर कहा तो बेला उसकी आखों में उभर आए दर्द को महसूस करने लगी, मगर समझ नहीं पाई । शाम को लौटते वक़्त उसे कुसुम दिखी। अरे ! मोहन तुम यहाँ ?

हाँ, दिवाली पर घर आया था।

तुम्हें पता है, मैं अपनी मौसी के घर रहकर पत्राचार से कॉलेज कर रहीं हूँ।

अच्छी बात है, मैंने भी शहर में फ़िर से पढ़ाई शुरू की है

बहुत अच्छे ! अब हम दोनों कुछ न कुछ ज़रूर बन जायेगे।

बिलकुल और तुम्हें कोई अपने जैसा अच्छा लड़का मिलेगा, जो तम्हें बहुत प्यार करेंगा। यह कहकर वह कुसुम का जवाब सुने बिना, वहाँ से चला गया। कुसुम उसे रोकना चाहती थीं, मगर चाहकर भी रोक न सकी।

नहर की तरफ जाते हुए, उसे वहीं नसबंदी का कैंप दिखा और उसने गुस्से और ग्लानि से मुँह फेर लिया। पता नहीं, अब कौन मज़बूरी का मारा, यहाँ आएगा। वह नहर के पास बैठा सोच रहा है कि प्रेमा से भी मिलना चाहिए । क्या पता, अब भी कोई उम्मीद बची हों । तभी उसे पायल की आवाज सुनाई दी और उसने मुड़कर देखा तो प्रेमा खड़ी है ।

दी और उसने मुड़कर देखा तो प्रेमा खड़ी है ।