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Inspiration Idea

भारतीय बिजनेस मैन रतन टाटा जी के बारे में बात करने वाले हैं, और इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नही है, जो रतन टाटा जी को पसंद ना करता हो। दोस्तो बचपन में ही इनके माता पिता का डिबोस हो गया। उसके बाद रतन टाटा जी अपनी दादी जी के साथ रहने लगे।

बचपन से ही उनकी दादी जी ने उन्हे एथिक्स और मोरल का पाठ पढ़ाया। याने कि चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हे ऐसा कोई भी कदम नही उठाना है, जिससे खानदान पे कोई आंच आए। और इसको रतन टाटा जी आज तक फॉलो करते आए हुए है।

अपनी हाई स्कूल की पढाई खत्म करते ही रतन टाटा जी ने अपने हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका के कोर्नल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। ग्राजुवेशन कंप्लीट करने के बाद उनको आईबीएम से job ऑफर हुआ। तब आईबीएम उस वक्त दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक थी।

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कुछ महीनो के लिए रतन टाटा जी ने आईबीएम कंपनी में नौकरी भी की, लेकिन उनकी दादी की तबियत खराब हो गई थी, उसके चलते उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। भारत वापस आते ही रतन टाटा जी ने Tata Steel में काम करने लगे। पर यहा काम करने में इनका दिल नही लगा।


जब यह बात उन्होंने जेआरडी टाटा जी से कही तो उन्होंने नेल्को कंपनी को संभालने के लिए रतन टाटा जी को दे दिया। नेल्को कंपनी electronic सेक्टर में काम करती थी और वह उस वक्त बहुत लॉस में चल रही थी। दोस्तो अब यहां आता है ट्विस्ट,👇

रतन टाटा जी ने नेलको कंपनी को टेकओवर करने के बाद कम्पनी में हो रही गलती को ढूंढने के लिए रतन टाटा जी ने कंपनी को एनालायीस करना शुरू कर दिया। एनालायीस करने के बाद ग्राउंड लेवल से लेकर टॉप लेवल तक उन्होंने बदलाव लाया। रतन टाटा की ओनरशिप के अंदर नेल्को कंपनी के सारे डेफ्थ क्लियर हो गए और यह कंपनी फिर से प्रॉफिट मेकिंग कंपनी बन गई।

दोस्तो 1991 के बाद से रतन टाटा की असली जर्नी शुरू हो गई। जब वो tata company के चेयर मैन बन गए। जब रतन टाटा जी चेयरमैन बने तो उस वक्त कई सिनियर्स का मानना था की रतन टाटा जी इस पोस्ट के लिए लायक नही है। लेकिन जे.आर.डी टाटा ने किसी की भी बात न सुनते हुए रतन टाटा जी को टाटा कंपनी का चेयरमैन बना दिया।

और इसके बाद रतन टाटा जी की लीडरशिप की यात्रा शुरू हुई। रतन टाटा जी पहले से ही विजनरी इंसान थे और अब तो उनको ऐसा मौका मिल गया था, अपने विजन को इंप्लीमेंट करने का। अपने विजन और अपनी मेहनत के दम पर रतन टाटा जी ने टाटा की सारी कंपनीज को प्रॉफिट मेकिंग कंपनीज बनाया।

दोस्तो रतन टाटा जी विजनरी इंसान होने के साथ साथ एक मास्टर कम्युनीकेटर भी थे। जिससे वे अपने आइडियाज और विजन को सही तरीके से दूसरो के सामने रख पाते थे। रतन टाटा जी की सबसे बड़ी खूबियों में से एक खूबी यह थी की उनके साथ जो भी काम कर रहा हो, वो उनको देखकर इंस्पायर हो जाता था।

जिससे दूसरो के अंदर सेंस ऑफ कैपेबिलिट पैदा हो जाती थी, की में यह काम आसानी से कर सकता हूं और यह एक ग्रेट लीडर की निशानी होती हैं। 1998 में रतन टाटा जी ने कोड ऑफ कंडक्ट को इंट्रोड्यूस किया, जिसके मुताबिक हर टाटा कामगार को सेम रिस्पेक्ट मिलेगी।

बहुत सारे कामगारों ने कोड ऑफ कंडक्ट को साइन करने से मना कर दिया, लेकिन रतन टाटा जी ने हार ना मानकर सभी से इस कोड ऑफ कंडक्ट को साइन करवा ही दिया। अब जो में किस्सा आपको बताने वाला हु वो शायद आपने कही पर सुना या पढ़ा होंगा! पर इस पोस्ट में यह किस्सा एड करने से में खुद को रोक नही सका।

दोस्तो मुझे यह लगता है की इस किस्से के बिना रतन टाटा की जीवनी कंप्लीट हो ही नही सकती। इसीलिए दोस्तो इस आर्टिकल के अंत तक बने रहिए। किस्सा कुछ ऐसा है की साल 2000 में रतन टाटा जी का ऑटो मोबाइल सेक्टर बहुत ही लॉस में चल रहा था। इस पर रतन टाटा जी ने यह डिसीजन लिया की वो टाटा मोटर्स को फोर्ड कंपनी को बेच देंगे।

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इसीलिए वो अपनी टीम के साथ बिल फोर्ड जी से मिलने के लिए चले गए। बिल फोर्ड से मिलने के बाद उनका बर्ताव रतन टाटा जी को पसंद नही आया। क्योंकि बिल फोर्ड जी ने रतन टाटा जी से कहा की हम आपसे ये कंपनी खरीद कर हम आप पर एहसान कर रहे हैं। रतन टाटा जी को यह बात बहुत चुब गई।


उसी रात रतन टाटा जी ने अपनी टीम के साथ भारत वापस लौट आए और यह डिसाइड किया की वो अब अपनी ये कंपनी नही बेचेंगे, बल्कि इसे ग्रो करेंगे। और उसके बाद उन्होंने अपनी सारी ताकत को टाटा मोटर्स कंपनी में लगाया और इसके चलते कुछ ही सालो में टाटा मोटर्स एक प्रॉफिटेबल कंपनी बन गई।

उसके ठीक 8 साल बाद फोर्ड कंपनी बहुत लॉस में जा रही थी, क्योंकि उनकी कार कंपनी जगुआर और लैंड रोवर कंपनी लॉस में जा रही थी। उसी वक्त रतन टाटा जी ने उन दोनो कंपनीज को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया और इन लॉस में गई कंपनीज को फिर से profitable बनाया।

उस वक्त बिल फोर्ड जी ने रतन टाटा जी से एक लाइन कही की “आप हमारी इन companies को खरीद कर आप हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं” दोस्तो इससे एक बात साफ हो जाती हैं की सफलता से बड़ा कोई भी रिवेंज नही है, और यह हमे रतन टाटा जी से सीखने को मिलता है।....

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