Why does this happen to me only... in Hindi Spiritual Stories by Rajsa Is Back books and stories PDF | ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है…

ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है…

ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है? ये  ख़याल हम सबके के दिमाग में कभी न कभी ज़रूर आ ही जाता है. आपके मन में भी शायद कभी ये विचार ज़रूर आया होगा की “ऐसा मेरे ही साथ क्यों हुआ? बाकी सब तो कितने खुश हैं, कितने आराम से अपनी ज़िन्दगी जीते है? तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों?” है न ? मेरे भी मन में आता है और मेरे कई दोस्तों के मन में भी यही ख़याल आता है. आश्चर्य ! 
 
कितने आश्चर्य की बात है. हम सब एक दूसरे को जानते भी नहीं, हमारी ज़िन्दगी भी अलग अलग हैं, पर फिर भी एक ही जैसा सोचते हैं ! क्यों? 
 
क्योंकि हम सब इंसान हैं. कुछ भी हो जाये अपने इंसानी स्वभाव से बाहर नहीं आ पाते. खुशियाँ-गम, सफलता-असफलता, खोना-पाना, हार-जीत, हम सबके जीवन में है. हम सभी ये जानते भी हैं कि ऐसा सिर्फ हमारे साथ ही नहीं हो रहा है और भी कई लोगों के साथ हो चुका है और आगे भी होगा………….पर फिर भी …”मेरे ही साथ क्यूँ?” ये सवाल पीछा ही नहीं छोड़ता…………..
 
सब कुछ ठीक चलता है जब तक ज़िन्दगी में कुछ बुरा नहीं होता है. जब तक सब कुछ हमारे हिसाब से होता रहता है हम खुश रहते हैं. सब लोग हमारा कहना मानते रहे, सब वैसा ही करें जैसा हम चाहते हैं, हम जो पाना चाहें वो हमें मिल जाये, हमने जिसके संग अच्छा किया वो भी हमारे संग वैसा ही करे! इच्छाएं इतनी की कभी ख़त्म ही नहीं होती…………जब तक ये सब सही चलता रहता है हमारे जीवन में हम कभी नहीं कहते की ऐसा हमारे साथ क्यों हो रहा है? सब के साथ होना चाहिए… क्या आपने सोचा है कभी ये जब आप खुश होते हैं? हो सकता है आपने सोचा होगा. पर फिर भी मुझे यकीन है की सबने नहीं सोचा होगा. अरे ख़ुशी में इतनी फुर्सत ही कहाँ होती है की हम दूसरों के बारे में सोच सकें….हम खुद ही इतने व्यस्त रहते हैं की इन बातों का वक़्त कहाँ?
 
लेकिन जैसे ही हमारे सामने कोई मुश्किल आती है, कुछ हमारे मन का नहीं होता, कोई हमें दुःख पहुचता है, या कुछ बुरा घटित हो जाता है ….तो हम कभी खुद को और कभी ईश्वर को कोसते हैं. और अक्सर सिर्फ एक बात दिमाग में आती है, “मैं ही क्यूँ? ऐसा मेरे ही साथ क्यूँ?” अरे अगर बोलना ही है, तो कहिये, “ऐसा मेरे भी साथ क्यूँ?” क्यूंकि विश्वास मानिए इतना ही दुःख, या इससे भी ज्यादा दुःख और भी लोग झेल चुके हैं और फिर भी अपनी ज़िन्दगी में खुश हैं या शायद उन्होंने अपने ग़मों में हसना सीख लिया है!
 
जब मैं ऐसी बातें सोचती हूँ तो मुझे बचपन में सुनी हुई एक कहानी याद आती है की, “एक इंसान था जो इसलिए रोता रहता था और भगवान् को भला बुरा कहता था, क्यूकि उसके पास जूते नहीं थे. और जब वो चलता था तो उसके पैरों में कांटें और पत्थर चुभते थे और वो दर्द से कराह कर रह जाता था. वो अक्सर ईश्वर से यही प्रार्थना करता था की प्रभु इस बार कम से कम इतनी कृपा करना की मुझे जूते मिल जायें. पर एक दिन वो अपना दर्द भूल गया, जब उसने एक ऐसे इंसान को देखा, जिसके पैर ही नहीं थे…. उस दिन उसकी समझ में आया की वो तो अपने को ही बहुत दुखी समझता था, पर इस इंसान के तो पैर ही नहीं हैं………वो कैसे चलता होगा?”
 
कहानी में कुछ नया नहीं है. पर फिर भी एक बहुत बड़ी शिक्षा देती है और अगर हम  इस बात को अपने जीवन में उतार लें तो शायद अपने हर दुःख पे इतना ज्यादा निराश नहीं होंगे. जब भी आपको लगे की आप बहुत ज्यादा दुखी हैं हमेशा उस इंसान को देखिये जिसके पास आपसे भी ज्यादा दुखी है. और ���ुद को खुशकिस्मत समझिये क़ि ईश्वर ने आप पर इतनी कृपा बना राखी है क़ि  उसकी जगह पर आप नहीं हैं…….
 
मैंने भी अपनी ज़िन्दगी में कई लोग ऐसे देखे जिन्हें बहुत से दुःख थे पर फिर भी उनका ज़िन्दगी के प्रति जज्बा काबिल-ए-तारीफ था. मुझे एक इंसान ऐसा मिला ज़िन्दगी में जिसके पिता नहीं थे और ज़िन्दगी में और भी बहुत से गम थे. सच में उसका दुःख बहुत बड़ा था, इस दुनिया में किसी भी बच्चे को माता-पिता दोनों के प्यार क़ि ज़रूरत होती है और इनमें से अगर किसी एक का भी साथ न हो तो हमेशा ही ज़िन्दगी में एक अधूरापन सा लगता है…….पर फिर मेरी दोस्ती एक ऐसे इंसान से भी हुई जिसके माँ-पिता दोनों ही नहीं थे ……..:( क्या करें इस जीवन में कई घटनाएं ऐसी घटित हो जाती हैं क़ि हम चाहकर भी उन्हें रोक नहीं सकते. और इतना ही नहीं, मेरी ये दोस्त इससे भी कहीं ज्यादा परेशान थी क़ि उसके पास माता-पिता का बहुत सा धन भी था तो उसे रिश्तेदारों से कैसे अलग रखा जाये……यही नहीं हमेशा मेहनत ज्यादा करती पर किस्मत साथ न देती. नौकरी मिलकर छूट गयी………..दुःख ही दुःख……पर फिर भी चेहरे पे एक अनवरत मुस्कान उसकी ऐसी खूबी थी जिससे हमेशा ही जीने क़ि प्रेरणा मिलती थी…………..पर ये सिलसिला यहीं नहीं ख़त्म हुआ, मैंने एक ऐसी बहनों को भी देखा जिन्होंने अपने माँ-पिता को तो खोया ही, पर क्योंकि वो बहनें गरीब थी और उनकी माँ उनके लिए बहुत सारा धन नहीं छोड़ कर गयी थी , तो रिश्तेदारों ने उन्हें ‘अनाथालय’ में डाल दिया………..
 
बस ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहता है. ये ज़िन्दगी है और सब अपने अपने दुखों में घिरे हैं. हर दिन जूझ रहे हैं अपने दुखों को दूर करने के लिए. जिनके पास खुशहाल परिवार है, उनके पास परिवार क़ि ज़रूरतें पूरा करने के लिए पैसा नहीं है. जिसके पास पैसा है, उसे किसी और चीज़ क़ि कमी है, कुछ नहीं तो हमेशा सेहत ही खराब है. जिसके पास किसी भी चीज़ क़ि कमी नहीं, मतलब पैसा भी है और सेहत भी, तो अकेलापन है, वो भी नहीं तो कुछ और……………….हमेशा कुछ पाने में लगा हुआ, हमेशा असंतुष्ट, हमेशा एक अनबुझी प्यास लेकर जीना, यही मनुष्य है और यही उसका जीवन………..
 
सबके अपने अपने गम हैं. किसी के भी गम नहीं कम हैं. तो सबसे अच्छा तरीका है क़ि अपनी ज़िन्दगी जियो आराम से. और एक आसान तरीका है खुश रहने का, “अगर आप कुछ पाना चाहते हैं और वो चीज़ आपको मिल जाये तो अच्छी बात है, लेकिन अगर न मिले तो और भी अच्छी बात है. क्यूकि इसका मतलब है क़ि ईश्वर ने आपके लिए कुछ और सोच रखा है और वो इससे भी ज्यादा अच्छा होगा..^_^”………..
 
और अब कभी ऐसा मत कहिये, “हमेशा मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है?” क्यूकि ऐसा आपसे पहले भी कई लोगों के साथ हो चूका है और आगे भी होगा.

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