Vishwash - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

विश्वास - कहानी दो दोस्तों की - 29

विश्वास (भाग --29)

टीना का मन अशांत था , उसे बार बार भुवन के पापा की रोना याद आ रहा था। भुवन और मोहन उसको हँसाने के लिए किस्से सुना रहे थे। रास्ते मे एक जगह रूक कर सब फ्रेश हुए फिर नाश्ता किया। दोपहर लंच तक वो लोग टीना के घर पहुँच गए।

उमा जी ने पहले ही बता दिया था तो खाना भी तैयार था। भुवन और मोहन ने खूब मना किया पर इस बार दादी ने उन्हें खाना खिला कर भेजा। फिर जल्दी मिलेंगे का वादा कर दोनो चले गए। टीना दोनो को नीचे छोडने गयी तो उसने भुवन को "थैंक्यू" बोला। "फ्री हो कर मैसेज या कॉल करना शेरनी अभी आराम करो"।

उपर आ कर उसने जो सामान खरीदा था वो दिखाया। मिठाइयाँ बहुत अच्छी बनी हुई थी। टीना ने चूडियाँ दिखायी जो भुवन के पापा ने अकेले में दी थी। "टीना ये तो बहुत मँहगा गिफ्ट हैं तुझे नहीं लेना चाहिए था।तुने मुझे वहीं क्यो नही बताया"? टीना की दादी गुस्सा होने लगी।

टीना ने जो कुछ भुवन के पिता ने चूडियाँ देते हुए कहा था वो उसने सब बता दिया। "मैं ऐसे उन्हें मना नहीं कर सकती थी। फिर वो इतने प्यार से दे रहे थे, आप लोग ही कहते हो न कि भावनाओं का आदर करना चाहिए। अब वही किया तो गुस्सा हो रहे हो"।टीना की बात सुन कर सब चुप हो गए। "हाँ टीना तूने सही किया, मैं बिना पूरी बात जाने तुझे गुस्सा होने लगी, अपनी दादी को माफ कर दे"। "मेरी प्यारी दादी मैं गुस्सा नहीं हूँ", कह कर उनके गाल पर किस कर लिया।

रात को पापा चाचा को सारे किस्से टीना ने सुनाए, दादी ने स्कूल के बारे में बताया। उमेश और मीनल खुश थे माँ और टीना को खुश देख कर। उन्होने दोनो को भेज कर कोई गलती नहीं की थी। उमा जी ने बताया कि," उन्होंने कुछ पैसा टीना के ठीक बोने के बाद दान देने के लिए सोचा हुआ था वो स्कूल में दे आयी हैं"।

"आगे भी टीना के दादा जी की बरसी पर जो हम पाठ करवा कर लंगर करते हैं उसकी जगह भुवन के गाँव के स्कुयूल में दे दिया करेंगे। नेक काम मे सबको सहयोग करना चाहिए"। उमा जी ने तीनो बेटे और बहुओं के सामने अपनी बात रख दी। "ठीक है न बच्चो"??

"माँ आप जैसा ठीक समझो, आप तो बस हमें बताते रहना हम वैसा करते जाँएगे"। उमेश के साथ दोनो भाइयोॆ ने भी अपनी सहमति जताई। "शाबाश बच्चों, बस ऐसे ही अच्छे कर्म करते रहना। हमें लोगो को दिखाने के लिए कुछ नहीं करना है, हमें जिसमें खुशी मिले वही काम करना है"।

"भुवन के परिवार में जा कर लगा कि हमने तो आज तक समाज की भलाई में कोई योगदान नहीं दिया"। "ठीक है माँ, हम हर साल देते रहेंगे और भी कोई मदद उनको चाहिए होगी तो जरूर करेंगे"।उमेश ने उमा जी को यकीन दिलाया।

"मीनल बेटा हमारी टीना तो भुवन की सगाई भी करवा आयी है,और अपनी चेन उतार कर उसकी होने वाली बीवी को गिफ्ट दे आयी है"। "माँ , अच्छा किया कुछ दे आए आप लोग। उन्होंने बहुत कुछ दिया है, सगाई उसने करवायी तो गिफ्ट देना तो बनता था", मीनल ने हँसते हुए कहा।

उमा जी ने पूरा किस्सा कह सुनाया। सब बातें सुन कर भुवन और उसके पापा के लिए सब के दिल में इज्जत बढ़ गयी। भुवन का बचपन में किए वादे को निभाना और अपनी बुआ के सपने को पूरा करने के लिए इतना मेहनत करना सराहनीय है।

उमा जी कमरे में आयीं तो टीना सो गयी थी, सुबह कॉलेज जो जाना था।

सुबह टीना कॉलेज जाने को तैयार हो रही थी तो फोन बजा देखा तो भुवन के पापा का था। उन्होने बताया कि," बिटिया तेरी याद आ गयी तो सोचा तुझसे बात कर लूँ"। "बिल्कुल ठीक किया अँकल जी, बस ऐसे ही हम फोन पर बातें करते रहेंगे तो हम कम मिस करेंगे। कॉलेज से आकर विडियो कॉल करके बात करेंगे"।

"ठीक है बिटिया आ कर आराम से बात करना"। फोन कट हो गया। टीना कॉलेज चली तो गयी पर ध्यान तो गाँव में ही भटक रहा था। आज उसको अपने मौसी मामा के बच्चों से अच्छे राजेश,श्याम रवि और नरेन लग रहे थे। बिना किसी का मजाक उड़ाए, बेकार के जोक्स या ब्राडेंड कपडो की बातें किए बिना भी बातें की जा सकती हैं।

बिना कोई दिखावा किए कितनी शांति से स्कूल का पूजन हुआ। हमारे यहाँ तो बच्चों के जन्मदिन की पार्टी में बेवजह का दिखावा होता है, सबके साथ करना पड़ता है एँजाय कर रहे हैं का नाटक। खैर क्लॉस अटैंड करके घर आ गयी। खाना खा कर उसने दादी और मम्मी को अपने पास बुला लिया।

दोनो कुछ पूछते उससे पहले ही विडियो कॉल कर दिया। दूसरी तरफ भुवन के पापा और माँ थे। टीना ने अपनी माँ से बात करवायी। दोनो तरफ से अपने अपने बच्चों की तारीफ सुन रहे थे।

टीना ने सोच लिया था कि जो भुवन ने उसके लिए सोचा है वो वही करेगी। उस दिन से टीना ने अपना ध्यान पढाई पर अच्छे से लगा दिया। भुवन से बातें होती, गाँव से भी अँकल फोन करते रहते और राजेश वगैरह भी कभी कभार बात कर लेते थे।

भुवन की शादी के दिन नजदीक थे। बीच में संध्या अपने लिए कपडे़ लेने दिल्ली आयी तो भुवन ने टीना और उसकी मम्मी को शापिंग के लिए बुला लिया था। भुवन की माँ ने संध्या को उनकी तरफ से भी खुद ही खरीदने को कह कर भेजा था। इस तरह दो दिनों में संध्या की खरीदारी हो गयी।