Mahaan khagol shastri - Aarya bhatt books and stories free download online pdf in Hindi

महानखगोल शास्त्री - आर्य भट्ट

महानखगोल शास्त्री - आर्य भट्ट

 

 

                                           Yashwant kothari

हमारे देश ने विज्ञान के क्षेत्र में भी प्राचीन काल में काफी प्रगति की थी । गौतम ऋषि का वैज्ञानिक दर्शन, कण्व का दर्शन, दशमलव, शून्य की खोज, लीलावती की गणित की जानकारी आदि एसी खोजें थी, जिनको सुनकर आज भी आश्चर्य होता है । प्राचीन भारतीय विज्ञान खगोल विज्ञान में भी बड़ा उन्नत और शीर्ष पर था । नालन्दा विश्वविधाालय के कुलपति के रूप में प्रख्यात खगोल शास्त्री आर्य भट्ट ने अपनी नवीन और महत्वपूर्ण खोजों के द्वारा पूरी दूनियाँ में तहलका मचा दिया था ।

    आचार्य आर्य भट्ट को उस समय के खगोल शास्त्रियों और गणितज्ञों का सम्राट कहा जाता था । मगर अत्यंत दुख की बात है कि इस महान खगोल विज्ञानी के जीवन, कार्यों और उनकी लिखी पुस्तकों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है । उनकी पुस्तक आर्य भट्ट में एक श्लोक के अनुसार उनका जन्म सम्भवतः 21 मार्च सन् 476 ई. में हुआ था । उस समय पटना पर सम्राट बुद्ध गुप्त का शासन था । कुछ लोगों के अनुसार आर्य भट्ट का जन्म पटना के पास कुसुमपुर में हुआ था । मगर केरल के कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म केरल में हुआ था । अपने इस कथन की पुष्टि हेतु केरल के विद्वानों के पास अपने तर्क हैं । लेकिन आर्य भट्ट सम्पूर्ण भारत के विद्वान थे ।

    आर्य भट्ट की प्रसिद्ध पुस्तक आर्यभट्टीय थी । इस पुस्तक में कुल चार अध्याय

हैं । पहले अध्याय में कुल 13 श्लोक हैं, दूसरे अध्याय में 33 श्लोक, तीसरे अध्याय में 25 श्लोक हैं तथा चौथे अध्याय में 50 श्लोक हैं । सूर्य देव के अनुसार आर्यभट्टीय दो पुस्तको का संकलन है - दशागीतिका सूत्र तथा आर्याष्टाश्त ।

    आर्य भट्ट पहले खगोल शास्त्री थे जिन्होंने यह सिद्ध किया कि सृष्टि का निर्माण एक अनादि और अनन्त तक चलने वाली क्रिया है । उन्होंने सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, तारों, ग्रहों, ब्रह्मांड आदि के बारे में विस्तृत गणनाएं की और इन गणनाओं के आधार पर खगोल विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी तथा युग परिवर्तनकारी खोजें की । उन्होंने सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धूरी पर घूमती है और सितारे अन्तरिक्ष में स्थिर हैं । पृथ्वी की दैनिक परिक्रमा के कारण सितारे और ग्रह घूमते हुए दिखाई देते हैं । उन्होंने बताया कि पृथ्वी एक प्राण (4 सैकिंड) में घूमती है और 43,20,000 वर्षों में 1,58,22,37,500 बार घूम जाती है ।

    भास्कर (629 ईस्वी) ने आर्यभट्टीय की पहली टीका लिखी । बराहमिहिर, श्रीपति, लाटदेव आदि आर्य भट्ट के शिष्य थे । वर्षों तक आर्यभट्टीय खगोल विज्ञान की प्रामाणिक पुस्तक रही । भास्कर की टीका के बाद पुस्तक का महत्व और बढ़ गया । आगे जाकर भास्कर ने स्वयं ‘महा भास्करीय’ तथा ‘लघु भास्करीय’ पुस्तकं लिखीं । 869 में शंकर नारायण ने आर्यभट्टीय को समझने के लिए भास्करीय टीका पढ़ने के आवश्यकता जतलाई ।

     आर्यभट्टीय नामक पुस्तक के अन्य टीकाकारों मे सोमेश्वर, सूर्यदेव, कोदण्ड राम, कृष्ण और कृष्णदास प्रमुख थे । परमेश्वर (1360-1455) ने भट्टदीपिका लिखी जो 1874 में प्रकाशित हुई ।

    वास्तव में आर्य भट्ट की पुस्तक आर्यभट्टीय एक दुरूह विषय पर लिखी गयी दुरूह पुस्तक थी । इस कारण खगोल शास्त्रियों ने बार-बार इसकी टीका की और इसे सरल रूप में समझने की कोशिश की । इस पुस्तक के आधार पर खगोल शास्त्र के कई ग्रन्थों का प्रणयन हुआ । भास्कर, हरिदत्त, देव, दामोदर, पुतुमन सोमयाजी, शंकर बर्मन आदी लेखको ने अपनी पुस्तक का आधार ही आर्यभट्टीय को बनाया । देश-विदेश में आर्य भट्ट की इस पुस्तक की धूम मच गयी ।

    आर्य भट्ट की दूसरी पुस्तक ‘‘आर्य भट्ट सिद्धान्त’’ भी थी । इस पुस्तक में दिन और रात्रि की गणना के क्रम को बताया गया था । आर्यभट्टीय और आर्यभट्ट सिद्धान्त दोनों ही पुस्तकें खगोल विज्ञान की महत्वपुर्ण पुस्तकें थीं । इन पुस्तकों में खगोल शास्त्रीय विधियां, उपकरणों, गणनाओं तथा गवेशणााओं का विशद वर्णन है । आर्य भट्ट की पुस्तकों पर जैन साहित्य और दर्शन की स्पष्ट छाप है ।

    ब्रह्म गुप्त नामक लेखक ने आर्य भट्ट को आधार मानकर खण्ड साधक नामक एक सरल पोथी लिखी ताकि आर्य भट्ट का कार्य सामान्य जन के काम आ सके तथा दैनिक जीवन में काम आने वाली गणनाएं भी की जा सकें ।  

    आर्य भट्ट की शिष्य परम्परा में पाण्डुरंग स्वामी, लाटदेव, निश्शंकु आदि हैं । इनमें लाटदेव सबसे योग्य और विद्वान थे । इन्होंने भी 2 पुस्तकें लिखी । आर्यभट्टीय आज भी खगोल विज्ञान का आधार ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ के आधार पर सूर्य, चन्द्र व ग्रहों की गणनाएं की जाती हैं और इनकी सारणियां बनायी गयी हैं ।

आर्यभट्ट ने सूर्य-ग्रहण, चन्द्र-ग्रहण की सर्वप्रथम वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की थी । वास्तव मेें आर्य भट्ट हमारे प्राचीन ऋषि परम्परा के विद्वान थे, जिन्होंने नयी विधियां, नयी गणनाएं, नये उपकरण काम में लिये और खगोल विज्ञान को पुनः प्रतिष्ठित किया । काश, उनके जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में और ज्यादा जानकारी मिल सके ।

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     यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर