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आदिशक्ति

आदि शक्ति -

भगवान शिव कैलाश पर्वत पर माता पार्वती नंदी गणेश एव गणों के साथ बैठे हुए थे माता पार्वती ने प्रश्न पूछा स्वामी आपने ब्रह्मांड का निर्माण किया और सूर्य मण्डल ग्रह गोचर नक्षत्र तारे आदि का निर्माण किया और लोको का निर्माण किया तो विष्णु जी और। ब्रह्मा जी ने क्या किया?

भगवान शिव ने भार्या पत्नी के जबाब में बताया कि देव शक्ति का अपना महत्वपूर्ण योगदान है ब्रह्मांड में है भगवान विष्णु छिर सागर में शेष शय्या पर विराजते हैं अर्थात ब्रह्मांड के नियमित संचालन में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है उनके अंश स्वरूप पृथ्वी लोक में कितने ही अवतार पृथ्वी पर गए और प्राणि मात्र के कल्यार्थ युग को दिशा दृष्टि प्रदान किया और ब्रह्मा जी आकाश की तरह है उन्हें प्रजापति भी कहा जाता है ब्रह्मा प्राणियो के देव पितृ है ।

पार्वती जी ने पुनः सवाल किया आपके स्वरुप का पृथ्वी पर अवतार नही हुआ शिव जी बोले हुआ है मेरे ग्यारवे रुद्र हनुमान है जो पृथ्वी पर सदा के लिए विराज मान है जो सात अमर देवांश है उनमें हनुमान जी भी है और विष्णु जी के अंश परशुराम जी है बलि दैत्य वंश के सात्विक राजा पाताल लोक में है अश्वस्थामा श्राप ग्रस्त ब्रह्मांड में अमरत्व की पीड़ा को भोग रहा है ।

पार्वती जी ने पुनः प्रश्न किया क्या आपका एक ही स्वरूप हनुमान है?जिन्होंने आपके रुद्रांश के रूप में अवतार ग्रहण किया शिव जी ने कहा नही पृथ्वी पर गुरु गोरक्ष नाथ जी भी है जो मेरे ही अवतार है हनुमान एव गुरु गोरक्ष नाथ दोनों ही प्राणियो के कल्यार्थ पृथ्वी पर मेरे स्वरूप है ।

भगवान शिव बोले देवी आपसे वार्तालाप में मुझे एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य विस्मृत हो गया आज मैंने धर्म देवता यमराज को बुलाया है और उनको पृथ्वी पर प्राणियो के विषय मे जानने समझने के लिए भेजना है।

भगवान शिव शंकर का माता पार्वती से वार्ता चल ही रही थी कि धर्म देवता यमराज कैलाश पर उपस्थित हुए और महाकाल भगवान शिव शंकर की स्तुति करने के उपरांत पूछा आदि देव मेरे लिये क्या आदेश है? भगवान शिव शंकर बोले यमराज तुम्हारे यहां पृथ्वी लोक से आशीष नाम का प्राणि आया था और उसने तुम्हारे तंत्र को निकट से देखा यमराज बोले महादेव पृथ्वी पर पुनः जाने के बाद उसे कुछ भी स्मरण नही होगा भगवान शिव बोले यह मैं भी जनता हूँ मेरी इच्छा है कि आप पृथ्वी पर जाए और प्राणियो की दशा का अध्ययन करे विशेषकर मानव जाति का और हाँ जो सात चिरंजीवी है उनसे मिलना मत भूलियेगा ।

पृथ्वीवासी उन्हें नही देख सकते है किंतु आप देख भी सकते है और पहचान भी सकते है यमराज ने कहा जैसी महादेव की इच्छा भगवान शिव ने उन्हें एवमस्तु कहते हुए आशीर्वाद दिया।

यमराज लौटकर अपने रियासतदारों मंत्रियों एव सिपासलरो की बैठक बुलाई और भगवान शिव शंकर की इच्छा से अवगत कराया प्रश्न यह था कि यमराज की उपास्थि में यमपुरी का कार्यकारी कौन होगा किसे बनाया जाय बहुत से नमो पर विचार विमर्श हुआ अंत मे सर्व सम्मति से न्याय देवत शनि के नाम पर सहमति बनी।

यमराज ने अस्थायी कार्यकारी शनि महाराज को नियुक्त किया और पृथ्वी लोक जाने की तैयारी में जुट गए।

यमराज को यह समझ नही आ रहा था कि पृथ्वी लोक में कहा जाए क्योकि जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ था तब वह भी प्रत्यक्षदर्शी थे नदिया सागर झील झरने बनस्पतिया पेड़ पौधे विशुद्ध एव सात्विक निर्विकार निश्छल थे चहूँ और हरियाली एव उत्साहित वातावरण था।

अब पृथ्वी वीरान सी लग रही थी मौसम ऋतुएं ने अपनी गति चाल बदल दी थी कही वर्षा तो कही सूखा कही अकाल तो कही बैभव विलासिता ब्रह्मांडीय असंतुलन तो था ही प्राणियो के मध्य भी असंतुलन अमीर गरीब ऊंच नीच का अंतर द्वंद में बांटा समाज यमराज को एक बात समझ मे पृथ्वी पर पहुंचते ही आ गयी कि पृथ्वी वासी किसी भी अतिक्रमण में सिद्धहस्त है ।

चाहे बच्चे पैदा करने में हो जिसके कारण पृथ्वी जो माता कही जाती है बोझ से दबी जा रही है तो पृथ्वी वासियों के अंतर्द्वंद्व से यमलोग में भी नित्य भीड़ बढ़ती जा रही है जिसके कारण जिसके कारण यमपुरी की नर्क व्यवस्था पर बोझ बढ़ता जा रहा है स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि यम पूरी में जितने यम दूत नही है उतने अधिक प्राणि वहां पहुंच रहे है और वहां भी नर्क की सजा भोगने के लिये कतारों में खड़े है यमराज इसी उधेड़बुन में थे कि वह पृथ्वी पर अपने अध्ययन की यात्रा कहा से शुरू करे ।

तभी उन्हें सड़क पर किनारे एक झोपड़ी में एक बच्चा चाय बेचता दृष्टिगत हुआ वह बच्चा सड़क से गुजरने वाले वाहन बस आदि के यात्रियों को चाय बेचता यमराज ने अपनी दिव्यदृष्टि से बड़े ध्यान से देखा और आश्चर्य में पड़ गए कि नारायण का एक रूप यह बालक है जो निर्विकार निश्चल है क्यो न यही से अपने आप का शुभारंभ करे ।

यमराज उस बालक के निकट पहुंचे और पूछा वत्स तुम्हारा नाम क्या है बालक ने बड़े आत्म विश्वासः से बताया साहब मेरा नाम हितेंद्र है फिर वह बालक बड़े प्रेम से चाय के लिए यमराज को आमंत्रित किया यमराज बोले नही वत्स हम यह पेय नही पी सकते कभी पिया नही है तुम मुझे बहुत उत्तम कुल बालक प्रतीत होते हो और निर्विकार निश्छल अतः तुम हमारी एक सहायता करो बालक बोला महाराज मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ ?मैं तो अपने बापू की मदद में चाय की दुकान पर उनकी मदद करता हूँ यमराज बोले वत्स हमे तुम वर्णिक कुल के लगते हो बालक बोला हॉ महाराज यमराज बोले यह बताओ कि तुम्हारी भोली भाली अबोध जानकारी के अनुसार सबसे उत्तम लोग कहा रहते है बालक कुछ देर चुप रहने के बाद बोला महाराज आप जंगलो में जाये लेकिन आपके पास सुरक्षा के लिए कोई अस्त्र शत्र तो है नही जंगल मे खूंखार जीवो से कैसे अपनी रक्षा करेंगे यमराज बोले बालक तुम निश्चिन्त रहो सिर्फ यह बताओ मुझे जाना कहा चाहिए बालक बोला महाराज जंगलो में सीधे साधे भोले भाले आदिवासी लोग रहते है उन्हें अभी भी छल छद्म प्रपंच से बहुत लेना देना नही रहता है यमराज बोले हितेंद्र मैं पुनः तुम्हे आशीर्वाद देने अवश्य आऊंगा और यमराज जंगलो की तरफ चल दिये।

वर्णिक बालक की यमराज से मुलाकात भारत के आंध्र प्रदेश के कुन्नूर जिले के जंगलों में हुई थी जो दुर्गम पहाड़ियों के बीच है नल्लमला पहाड़ियों एव कृष्णा नदी कुन्नूर की विशेषताओं में सम्मिलित है यम अपने वाहन भैंसे पर सवार घनघोर जंगलो में प्रवेश ही करने वाले थे कि कुछ दूरी पर उन्हें रीछ सेना ने घेर लिया मगर कुछ देर जब यम रीछ सेना के बीच खड़े हुए तो सारे रीछ उन्हें जाने का रास्ता देकर अदृश्य हो गए।

यमराज जब जंगलो के बहुत अंदर गए तो उन्हें आदिवासी मनुषय दिखे जिनका पहनावा और बनावट विल्कुल यमराज से मिलती जुलती थी यमराज को लगा कि भगवान शिव शंकर के आदेश का कार्य यही से करना उचित होगा यमराज एक आदिवासी कबीले के पास पहुंचे ही थे कि कबीले के बच्चों ने उन्हें यह कहते हुए घेर लिया कि ताऊ आ गए जाने कहा हम लोंगो से नाराज होकर चले गए थे।

यमराज ने कहा कि बालको मैं तुम्हारा ताऊ नही हूँ मैं यमराज हूँ बच्चे भी जिद्द पर आ गए और कबीले के सरदार मैकू को बुला कर ले आये मैकू भी यमराज को देखते ही बोले कहा चला गया था तू हमसे रूठ कर देखो बच्चे तुम्हे पहचान गए ऐसी भी क्या नाराजगी है ?यमराज बोले कि वत्स मैकू मैं यमराज हूँ मैकू बोले तेरी मत फिर गयी है तू मेरा तरंगा और कबीले के बच्चों का ताऊ है और अब अधिक परेशान मत कर नही तो मुझे अपने उस दिन पर रोना आ जायेगा जब मैंने ही कुछ बुरा भला कह दिया और तू रूठ कर चला गया था ।

अरे मैं तेरा बड़ा भाई हूँ इतना भी मेरा हक नही की मैं अपने ही भाई को कुछ कह संकु और मैकू की आंखे भर आयी यमराज को सत्य का एहसास हो गया कि हितेंद्र सत्य ही कह रहा था ये लोग निर्विकार निश्चल है ये महाकाल शिवशंकर के सही भक्त है यमराज ने मैकू से कहा ठीक है भ्राता मैं आपका तरंगा ही हूँ।

मैकू बोले तरंगा तू गया कहा था कि तुम्हारी भाषा हमारे कबीले से अलग हो गयी है यमराज ने कहा कही नही भैया ऐसे ही देशाटन कर रहा था जो कुछ अच्छा लगा उंसे सीखने की कोशिश की ।

मैकू के कबीले में तरंगा के आने से खुशी की लहर दौड़ पड़ी कबीले के सभी परिवार एवं लोंगो ने तरंगा के आने की खुशी में जश्न का आयोजन किया तरंगा को भी आदिवासी भोजन एव मदिरा दिया गया तरंगा ने खाने एव मदिरा पिने से इनकार कर दिया और बोला हमने देश के भ्रमण के दौरान यह पाया कि मांशाहार एव मदिरा बुद्धि का नाश करते है इसीलिये आप लोग सिर्फ खाने पीने तक ही सीमित होकर जीवन को संकुचित कर चुके है ।

आप जंगल मे रहते है जहाँ भोजन के लिए अकूट पौष्टिक फल कंद आदि है आप लोग उनका सेवन क्यो नही करते जब तक हमारा कबीला इस बात के लिए दृढ़तापूर्वक पूर्वक संकल्पित नही होता है हम कुछ नही खाएंगे मदिरा सेवन तो कबीले में विल्कुल वर्जित होगा।

यमराज तरंगा नाम से कबीले में जाने जाने लगे तरंगा की जिद से एक फायदा हुआ कि आदिवासी कबीला जो मांसाहार के लिए वन जीवो का शिकार करता था वह बन्द हो गया कबीले में नई प्रथा ने जन्म ले लिया कबीले की महिलाएं लकड़ी आदि के लिए प्रति दिन जंगलो में जाती और पुरुष वन प्रदेश में उपलब्ध खाद्य वस्तुओं को जैसे कंद मूल फल आदि एकत्र करते तरंगा के सलाह को एक कबीले ने स्वीकार किया तो धीरे धीरे आदिवासी प्रान्तों में एक नई प्रथा चल निकली अब कोई आदिवासी कबीला वनजीवो का शिकार नही करता हा अगर कोई वन जीव हिंसक हो जाता और उससे आदिवासियों को भय होता ऐसी स्थीति में अवश्य रक्षार्थ जीवो की कभी कभार जान जाती ।

इस बेहतर शुरुआत का प्रभाव यह हुआ कि वन जीवो एव आदिवासियों के मध्य जो सम्बंध द्वेष एव शत्रुता का था वह एक दूसरे के मुक मधुर सम्बन्धो में परिवर्तित होने लगे और वन प्रदेश में खुशनुमा वातावरण का निर्माण होने लगा लेकिन तरंगा को अब भी आदिवासी समाज के निर्वाध मदिरा सेवन पर बहुत कष्ट था वह मदिरा जिसे वे स्वंय बनाते थे जो स्वास्थ की दृष्टि से विल्कुल सही नही था वैसे भी तरंगा को यह विल्कुल स्प्ष्ट तौर पर मालूम था कि आदिवासी समाज विशेषकर जो वन प्रदेशो में निवास करते है उनकी औसत आयु चालीस से पचास वर्ष ही थी यह जानकारी तरंगा को इसलिए भी थी क्योंकि यमपुरी में आदिवासी लोंगो आवागमन बहुत था ।

तरंगा ने जब उनके बीच रह कर सच्चाई जानने की कोशिश किया तो स्प्ष्ट हुआ कि वन प्रदेशो का आदिवासी समाज का खान पान अनियमित समय पर उपलब्धता के आधार पर है एव दूसरा कारण की इनके पास स्वास्थ के लिए वैद्य एव चिकित्सालय की अनुपलब्धता है उसमें मदिरा सेवन एक प्रमुख कारण है।

तरंगा ने आदिवासी कबीलों को बहुत समझाने की कोशिश किया किंतु कोई प्रभाव पड़ता नही दिख रहा था तरंगा ने तरंगा ने भी इस समस्या का निदान समय पर छोड़ दिया और कबीले के लोंगो को पशुपालन हेतु प्रोत्साहित करने लगे वन प्रदेशो में रहने वाला आदिवासी समाज कि पशुपालन में कोई रुचि नही रहती कारण की वो स्वंय वन प्रदेशो में कठिन चुनौतिपूर्ण परिस्थितियों में रहते दूसरा कारण खूंखार वन प्राणियो से पाले गए पशुओं को बचाना खुद को सुरक्षित रँखे कि अपने पशुओं को तरंगा ने कबीलों को पशुपालन के लिए प्रेरित करना शुरू किया कबीलाई आदिवासी की खास बात यह हैं कि उन परम्पराओ को भी नही छोड़ने को तैयार होते जो उनके लिये घातक होती सच्चाई यह है कि जब सृष्टि का निर्माण हुआ तब उसमें समयानुसार परिवर्तन के विकल्प सुरक्षित रँखे गए ।

तरंगा को भलीभाँति मालूम था कि महाराज मनु ने अपने देश काल परिस्थितियों में सामाजिक अनुशासन के नियम अपनी स्मृति में लिखा लेकिन उसमें समयानुसार परिवर्तन के सभी विकल्प खुले रँखे चूंकि मनु सृष्टि के आदि पुरुष मानव थे अतः उनके द्वारा रचित स्मृति को मनुस्मृति अवश्य कहा गया किंतु है वह विशुद्ध मानव स्मृति मानव समाज कि संस्कृति सांस्कार का आधार बना मनुस्मृति और उसी आधार पर समयानुसार मानव ने स्वंय परिवर्तन किए और करते गए आज की स्थिति में मनुस्मृति का कोई नियम समाज मे नही लागू है कारण उसी बुनियाद पर मानव समाज ने परिवर्तन सुविधनुसार कर लिए जो अब विशुद्ध रूप से मानव स्मृति ही शेष रह गया है।

लेकिन वन में रहने वाला आदिवासी समाज ना तो आदि मानव मनु की स्मृति को आधार बनाया ना ही स्वंय द्वारा बनाये कबिलियाई संस्कृति में समयानुसार परिवर्तन किया परिणाम यह हुआ कि वर्तमान परिवेश में आदिवासी जो मूल मानवीय अस्तित्व है उसका लोप होता जा रहा है।

जम्बू द्वीप भारत खण्ड से अमेरिकी महाद्वीप में देखा जाय तो वहां के मूल समाज का अस्तित्व ही आज के दौर में समझ से बाहर है मूल अमेरिकी समाज जो मूलतः आदिवासी ही है वर्तमान में विद्यमान तो है लेकीन महत्त्वपूर्ण है ऐसा नही है यहां डारविन का सत्य सिंद्धान्त समाज पर भी लागू होता है जिस समाज ने सामयिक परिवर्तन को स्वीकार कर अंगीकार नही किया उंसे समाप्त होना पड़ा ।

आदिवासी समाज संस्कृति के परिपेक्ष्य में यह बहुत सत्य है बहुत से आदिवासी समाज अब सिर्फ इतिहास के पन्नो की शोभा बनकर रह गए है उनका भौतिक अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है जल संरक्षण,वन जीव संरक्षण पर्यावरण आदि पर सरकार शासन नियम कानून बना कर जन मानस को बाध्य कर सकती है मगर किसी समाज के विषय मे कुछ नही कर सकती ।

किसी भी समाज को यदि अक़्क्षुण रहना है तो उसे स्वंय को समयानुसार परिवर्तन को स्वीकार करना ही होगा।

मदिरा शौख तक तो ठीक है किंतु बिना किसी भौगोलिक विवसता या पारिवेशिक आवश्यकता के जबरन अपनी सभ्यता का अंग बनाये रखना सामयिक परिवर्तन को अस्वीकार करना है एव स्वंय के अस्तित्व की बलि देने जैसा ही है।

तरंगा ने संकल्प उठाया कि आदिवासी कबीलाई संस्कृति से मदिरापान को परम्परा के रूप में चली आ रही अनिवार्यता को समाप्त अवश्य करेंगे।

तरंगा कबिलियाई कबीले कुनबे से बहुत दूर एक निर्जन जगह पर घूमते फिरते पहुंच गये वहां उन्होंने देखा कि एक बहुत
खूबसूरत सरोवर है और उसी के पास एक खंडहर सा मंदिर तरंगा ज्यो ही सरोवर के किनारे विश्राम करने की नीयत से बैठना चाहा तभी बहुत तेज कड़क आवाज आई रुको यहां मेरे अतिरिक्त किसी के आने की हिम्मत नही है तुम यहाँ तक पहुचे हो तो निश्चय ही कोई कारण होगा आवाज सुनते ही तरंगा को आवाज कुछ जानी पहचानी लगी तरंगा को उस निर्जन वन में साधारण मानव के रहने की संभावना तक नही थी।

तरंगा अपने वास्तविक यमराज स्वरूप में पुकारा महाराज मैं धर्म देविता यमराज हूँ भगवान शिव शंकर के आदेश पर पृथ्वीलोक में हूँ इस निर्जन वन प्रदेश में कोई मानव तो नही रह सकता है आप कौन है ?सामने आए पलो में कनक भूधरा कर शरीर हनुमान जी गदा लिए उपस्थित हुए और बोले यमराज अब आपके ये दुर्दिन आ गए कि जिन पृथ्वी वासियों के सिर्फ आपका नाम सुनकर होश उड़ने लगते है वहां आपको दर दर भटकना पड़ रहा है ।

यमराज ने हनुमान जी से बताया और बोले जय जय हो ग्यारहवें रुद्रांश भगवान शिव ने आदेश भी दिया था कि पृथ्वी पर मौजूद सातों चिरंजीवी से अवश्य मिलकर ही लौटना है और प्रथम चरण में ही आपसे मुलाकात हो गयी यमराज ने पूछा प्रभु आप तो बहुत दिनों से पृथ्वी पर
विराजमॉन है ये बताने की कृपा करें मानव समाज मे कितना परिवर्तन हुआ है ।

हनुमान जी ने बताया कि हमारे शुरुआती दौर त्रेता में भाई भाई माता पिता पुत्र बहन सामाजिक रिश्तो की नैतिकता मर्यदा थी।

भाई राम लखन भरत शत्रुघ्न थे जो एक दूसरे के लिए जीते और मरते थे पिता की आज्ञा सेवा ईश्वरीय सेवा आज्ञा होती थी अब भाई भाई का शत्रु माता पिता को पुत्र नही पूछता आज के समय मे पितृ पक्ष के सम्बन्ध भाई बहन माता पिता आदि प्रायः समाप्त हो चुके है और पत्नी एव पत्नी पक्ष के सम्बंध ससुराल साला साढ़ू ही रह गए है ।

एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है समाज मे अविश्वास ही पूंजी है धोखा धूर्तता आदि ही श्रेष्ठता का परिचायक है।

समाज मे पाखंड झूठ धूर्तता द्वेष दम्भ क्षुद्र स्वार्थ से ग्रसित है निर्विकार निर्मल निश्चल लोग है ही नही ।

यमराज को हनुमान जी से उनके युग परिवर्तन एव समय के साथ साथ आये मानवीय स्वभाव समाज परिवर्तन के विषय मे सुनकर बहुत आश्चर्य इसलिए नही हुआ कि उनके दंड व्यवस्थाओं में निरंतर बोझ बढ़त जा रहा था जिसका स्पष्ट तातपर्य यह था कि पापियों की संख्या में बृद्धि हो रही है ।

हनुमान जी ने एक विशेष बात बताई जिसे हितेंद्र ने भी बताया था हनुमान जी ने बताया कि वन में रहनेवाले आदिवासी लोग अब भी अबोध निश्चल निर्विकार निर्विवाद है वह इसलिए की इनका पाला सामयिक विकास से अब तक नही पड़ा है।

अतः यमराज जी जब तक आप इस वन प्रदेश मे है इनके कल्यार्थ सम्माननार्थ जुगत लगाए हनुमान जी यमराज से गले मिले लौट आये उन्हें खुशी इस बात की थी कि भगवान शिव शंकर के अंशावतार रुद्रांश पृथ्वी के सात चिरंजीवी में से एक से मुलाकात हो गयी ।

तरग जब लौटकर आदिवासी कबीले में आये तो उन्हें भोले भाले आदिवासियों के विषय मे एक बहुत कडुआ सच जघन्य सच पत्यक्ष दृष्टिगत हुई सत्ता शक्ति सम्पन्न लोग बड़ी महंगी गाड़ियों से आते भोले भाले आदिवासियों को अनाप शनाप प्रलोभन देकर वन में आदिवासी कन्याओं के साथ अन्याय अनाचार करते जिसे देख सुनकर यमराज कांप उठें उनके मन मे यह विचार आया क्यों न भोले भाले आदिवासी समाज को शक्तिशाली दिया जाय कि यह समाज अपनी स्वंय रक्षा करने में सक्षम हो जाय एव दूसरे समाज के लिए आदर्श बन सके।

यमराज ने बन प्रदेशो में खाली पड़ी जमीनों में आदिवासी समाज को कृषि करने के लिए तैयार किया पहले तो आदिवासी समाज के मन मे खौफ यह था कि जिस जमीन पर वे खेती करेंगे वह जंगल की है जाने कितने युगों से वन संपदा की रक्षा आदिवासी कर रहा है लेकिन संपदा के उपभोग का अधिकार ही नही है यमराज ने आदिवासी कबीलों को वन खेती के लिए प्रेरित करने पशुपालन आदि करने के साथ साथ वन संपदा पर अपने जन्मसिद्ध अधिकार को प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित एव तैयार किया और आदिवासी युवाओ वयस्को को जो शारीरिक रूप से बहुत बलिष्ठ तो थे किंतु संसय भय से शारीरिक शक्ति बेकार थी को सकाात्मक ऊर्जा प्रदान किया।

यमराज ने कबिलियाई वन क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोंगो में चेतना का जागरण कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप आदिवासियों में जागरूकता का सांचार हुआ और उन्होंने अपनी शक्ति सम्मान के विषय मे सोचना शुरू किया एक दिन सत्ता शक्ति सम्पन्न लोग वन में शुख विलास के लिए पहुंचे और सदा की भांति आदिवासी कन्याओं की मॉग कबिलियाई आदिवासियों से किया लेकिन सदैव की भांति इस बार आदिवासी समाज ने सर झुका कर बात नही मानी और बहुत कड़े शब्दों में इनकार कर दिया समझाया कि जो लोग नारी चेतना शक्ति को अपनी शक्ति सत्ता में मदांध होकर अपमानित करते है उन्हें जीने का अधीकार नही होना चाहिये ।

वन में भोग सुख के नियत से आये संम्पन्न परिवारो के बिगड़ैल छबिलो में करण सरगना था उसने अपने अंगरक्षकों से कहा इन आदिवासियों को उनकी औकात बता दो मारो इनको ताकि इन्हें इनकी औकात का पता चल सके तभी यमराज अपने मूल स्वरूप में भेसे पर सवार कालदंड के साथ मूल आ गए और उन्होंने करण से कहा सुन नादान मुझे देख शायद तेरी बन्द अक्ल खुल जाए मैं इन्ही आदिवासियों की तरह ही हूँ देख मेरा पहनावा वाहन कालदंड मेरा कज्जल गिरी जैसा काला स्वरूप मेरा नाम सुनते ही ब्रह्मांड के प्रत्येक प्राणी की चेतना समाप्त हो जाती है सनातन में मुझे न्याय एव पाप पुण्य का फल दाता मृत्यु देवता मानता है जो सत्य है तो अन्य सभी धर्म समाज की सत्ता मुझे बिभन्न नामो से जानती पहचानती है तुम्हारी साधारण भाषा
में मुझे लोग यमराज धर्मराज कहते है इतना सुनते ही करण को जैसे सांप सूंघ गया हो फिर यमराज ने बताया कि आदिवासी भोले भाले अबोध समाज का शोषण बहुत कर चुके अब बन्द हो जाना चाहिए क्योकि मैने इन आदिवासियो के मध्य रहकर इनके अंदर सुसुप्तता अवस्था मे पड़ी शक्ति को जागृत कर दिया है और ये सर्वश्रेष्ठ शक्तिमान समाज है ।
भाला हो हितेंद्र का जिसमे हमे यमराज को सही दिशा दृष्टि प्रदान किया जिसके कारण आदिमानव की आदि शक्ति सर्वक्षेष्ठ शक्ति बनी।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।