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मिस्टर एम

मिस्टर एम् -

आशीष बहुत परेशान रहता उंसे सदैव ही लगता कोई ऐसी वस्तु है जिसको जाने पाए बिना वह अधूरा है अपनी जिज्ञासा की शांति के लिए देव जोशी तो कभी त्रिलोचन महाराज कभी सतानंद जी के पास अपने जिज्ञासा से सम्बंधित प्रश्नों को रखता मगर उसे कोई उत्तर संतुष्ट नही कर पाता ।

एक सप्ताह बाद जब वह सोने के लिए गया तो तुरंत ही बहुत गहरी निद्रा में सो गया स्वप्न लोक में विचरण करने लगा यम दूत आया और बोला आशीष जी आप जब तक हमे क्षमा नही करेंगे तब तक यम महाराज हमे क्षमा नही करेंगे मैं यम लोक में भटकता रहूंगा।

अत आप हमारे साथ यमपुरी चले और महाराज यम के समक्ष अपनी प्रसन्नता एव मेरी माफी की घोषणा करे आशीष यमदूत के साथ महाराज यम के दरबार मे उपस्थित था और यम से कहा महाराज यम पिछली बार जब पिछली बार आपके दरबार मे आपके दूत के द्वारा उपस्थित कराया गया था तब मैं एक बात कहना भूल गया था यम बोले बोले पृथ्वी वासी आशीष कौन सी बात ऐसी है जिसे तुम पिछली बार कहना भूल गये थे और अब कहना चाहते हो आशीष बोले यम महाराज मुझे आपके दरबार बहुत अच्छा लगता है ।

यम को बहुत आश्चर्य हुआ बोले आशीष मेरा नाम सुनते ही पृथ्वी वासियों के खून सुख जाते है भय से एव मृत्यु से भयाक्रांत शरीर मे प्राण रहते हुए भी मृत प्रायः हो जाते है और तुम कह रहे हो कि तुम्हे बहुत अच्छा लगता है मेरा दरबार और मेरा सानिध्य आशीष बोला महाराज आपकी सवारी भैंसा पहनावा बात चीत एव शासन प्रणाली हमारे पृथ्वी के भोले भाले सीधे साधे निश्चल निर्विकार आदिवासी के किसी कबीले के सरदार की तरह है और आपका यमपुरी जैसे किसी आदिवासी राजा के राज्य इसीलिए हमे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि मुझे अपने पृथ्वी के आदिवासी लोंगो की संस्कृति उनके जीवन का निच्छल प्रवाह बहुत अच्छा लगता है जो विल्कुल आप एव आपके यमपुरी जैसा ही है इसमें डरने की क्या बात है।

यम ने कहा यह यमपुरी एव मेरे लिए भी आश्चर्य का विषय है कि किसी पृथ्वी वासी के लिए यमपुरी आकर्षण का केंद्र एव प्रिय है यह समूचे यम पूरी के लिए गौरव की बात है ।

एम बोले आशीष जी आप मेरे दूत को क्षमा दान देने की कृपा करें यदि आप यम पूरी और यम से मिलने के बाद प्रशन्न है आशीष बोले महाराज एम मैं चाहता हूँ कि मुझे यम पूरी के बिभिन्न रियासतों एव रियासतदारों से मुलाकात करनी है एव कुछ दिन यम पूरी के विलास महल के बैभव के शुख भोग करने के बाद अपेक दूत को क्षमा दान दे दूंगा।

यम बोले एवमस्तु और यमदूत को आदेश दिया कि तुम आशीष को यम पूरी के रियासत एव रियासतदारों काल भैरव ,शनि ,राहु,केतु ,पाताल भैरवी,काली कपाली आदि से मुलाकात कराओ और उनसे मेरा अनुरोध प्रस्तुत करना कि पृथ्वी वासी आशीष की खातिर दारी में कोई कमी ना रह जाय ।

काल भैरव रियासत -

यम दूत बोला महाराज की जैसी आज्ञा और वह आशीष को लेकर सबसे पहले काल भैरव के दरबार मे हाजिर हुआ काल भैरव से यम दूत ने बताया कि मैं पृथ्वी से भुल बस आशीष को यमलोक उठाया लाया जबकि इन्हें अस्सी वर्ष बाद यमलोक आना था इस पर यम महाराज बहुत क्रोधित हुए और बोले तुम्हे तुम्हारी भूल से क्षमादान आशीष ही दे सकते है तुम इनके अपराधी हो।

आशीष ने शर्त रखी है कि यमपुरी के विलास भवन का आतिथ्य एव यम पूरी के रियासतों का भ्रमण करने के उपरांत हमे क्षमा दान देंगे रियासतों का भ्रमण इसलिये की इनका कहना है कि पृथ्वी लोक के आदिवासी समाज की संस्कृति सांस्कार आचार व्यवहार यम पूरी से बहुत मिलती है दोनों में बहुत समानता है अतः जो भी कुछ खास तथ्य इन्हें और मिलेंगे उन्हें उंसे ले जाकर पृथ्वी लोक के आदिवासी समाज क्षेत्रो में साझा करेंगे और प्रेरित करेंगे कि जिससे कि पृथ्वी का आदिवासी समाज यमपुरी से भयाक्रांत न रहे ना हो क्योकि यम पूरी भी आदिवासी संस्कृति का ही उत्कर्ष है ।

ब्रह्म के ब्रह्मांड में सभी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते है उसी श्रृंखला के अंतर्गत यम पूरी भी अपने कर्तव्यों का निर्विकार निष्पक्ष रुप से निर्वहन करता है ।

आशीष के विचारों से काल भैरव बहुत प्रसन्न हुए काल भैरव के यहां पृथ्वी के स्वान की तरह स्वनो की बहुतायात थी आशीष ने पूछा काल भैरव जी इतने स्वान आपके रियासत में है काल भैरव बोले सत्य वत्स ये स्वान मेरे वाहन है जिसे बिभन्न अवसरों एव उद्देश्यों पर मेरे वाहन हेतु प्रशिक्षित किया गया है ये सभी स्वान विशुद्ध शाकाहारी है और अपने कर्तव्यों धर्म के लिए पूर्ण निष्ठावान एव समर्पित है।

जब काल भैरव ने आशीष से बताया कि उनके रियसत के सभी स्वान शाकाहारी है तो आशीष को बहुत आश्चर्य हुआ वह बोला महाराज काल भैरव मुझे बहुत आश्चर्य इस बात का है कि पृथ्वी वासी जब आपकी आराधना करते है तो आपको प्रशन्न करने हेतु मदिरा चढ़ाते है।

यह कैसे सम्भव है कि कॉल भैरव की रियसत शाकाहारी ही है मांशाहार का प्रश्न ही नही उठता और मदिरा के विषय मे तो यहां कोई जानता तक नही है तब पृथ्वी वासी काल भैरव की आराधना में शराब क्यो समर्पितं करते है?

काल भैरव महाराज ने आशीष की जिज्ञासा को शांत करते हुए बोले वत्स आशीष ब्रह्म ने ब्रह्मांड में स्वयं के द्वारा सभी प्राणियों के आहार प्रत्याहार आचार व्यवहार जीवन शैली एव दिनचर्या का निर्धारण कर रखा है।

लेकिन मानव जाती जिसके पास सोचने समझने एव जानने खोजने की शक्ति सिर्फ मानव जाती को ही प्राप्त है जो सुविधा सुख भोगी एव इन्द्रिय सुखों का आकांक्षी रहते हुए उंसे प्राप्त करने के लिये तत्पर रहता है ।

मानव ब्रम्ह एव ब्रह्मांड के द्वारा निर्धारित आचरण अनुशासन की तिलांजलि देकर अपनी इंद्रियों की संतुष्टि तृप्ति के लिए नए मापदंड जीवन के नैतिक मूल्य एव आचरण का निर्धारण करता है
स्वंय के लिए उसी के अंतर्गत मेरी आराधना में मदिरा अर्पित करते है और काल भैरव के प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है ।

वास्तव में पृथ्वी वासियों द्वारा अपनी इच्छाओं जो उनके सुखों की अनुभूति के परिपेक्ष्य में होती है वही करते है और उसी के अंतर्गत ऐसे मानदंड निर्धारित करते है जो ब्रम्हा एव ब्रह्मांड के नियमो के विरुद्ध हो और उसे कोई आवरण दे देते है जैसे शराब के लिए काल भैरव का आवरण।

काल भैरव ने आशीष को बताया कि पृथ्वीवासी मुझे मदिरा आदि अर्पित कर बदनाम करते है फिर भी मैं उनके कल्याणार्थ अपनी पूरी शक्ति से लगा रहता हूँ ।

यहा तक कि हमारे यमपुरी के रियासतों के रियासदा शनि राहू कतू की कुदृष्टि जब पृथ्वीवासियों पर पड़ती है तो अधिकतर मामलो में मै अपनी शक्ति कौशल के प्रयोग करके उनकी रक्षा करता हूँ और अपने यमपुरी में अपने मित्रों के मध्य लज्जित होता रहता हूँ ।

फिर भी पृथ्वीवासी जब भी किसी क्रोध प्रकोप से रक्षा करने के लिये काल भैरव को ही बुलाते है वास्तविकता यह है कि यमपुरी एव पृथ्वीवासी दोनों ही मुझे परेशान एव लज्जित करते रहते है ।

पृथ्वी वासी मदिरा चढ़ा कर एव यमपुरी के मित्र पृथ्वी वासियों की रक्षा के लिए।

यम दूत ने कहा आशीष जी कालभैरव जी का वाहन श्वान क्यो है अब बेहतर समझ गए होंगे ।

केतु रियासत -

अब आगे चलिए केतु की रियसत है केतु महाराज से आपके मिलने का समय निर्धारित है यदि बिलम्ब हुआ तो क्रोधित हो जायेगे यमदूत एव आशीष बिना बिलम्ब किये केतु की रियासत में पहुंचे।

केतु ने यमदूत को देखते ही कहा आओ वत्स मैं आप ही लोंगो की प्रतीक्षा कर रहा था यदि कुछ और विलंब हो जाता तो मुझसे भेंट सम्भव नही थी क्योकि मैने अपने सभासदों की बैठक आहूत कर रखी है ।

आशीष ने कहा महाराज केतु आप एव राहु तो किसी पृथ्वीवासी का भला ही नही कर सकते है ऐसा क्यो है ?

केतु महाराज ने आशीष से बताया कि जब सागर मंथन से अमृत निकला और बटवारे का समय आया तब मुझे देवताओं के घड़यन्त्र की जानकारी हो चुकी थी तभी मै चोरी छिपे देवताओं की पंक्ति में बैठ गया भगवान विष्णु जो देवताओं में राजनीतिक पण्डित है उन्हें जब पता लगा कि हम राक्षसी प्रवृत्ति के दैत्य देवताओं की पंगती में बैठे है तो उन्होमे चक्र सुदर्शन से हमारा सर धड़ से अलग कर दिया चूंकि अमृत पान कर चुके थे अतः मृत्य से अमरत्व को प्राप्त कर ही चुके थे मृत्यु का तो कोई प्रश्न ही नही था अतः जीवित होकर पापग्रह श्रेणी के कष्ट दाई ग्रहों में सम्मिलित हो गए दैत्य प्रबृत्ति के कारण यम पूरी के वेदना प्रमुख के एक भाग का दायित्व संभाल रहे है ।

चूंकि देवताओं के भयंकर घड़यन्त्र के कारण दैत्य समाज अमृत पान नही कर पाया और हमने अमृत पान किया भी तो पुनः देवताओं के छल का शिकार हो गए अतः देवताओं के दोहरे धोखे छल से आहत हम लोग पृथ्वी वासियों को सिर्फ और सिर्फ वेदना ही देते है।

हम कदाचित किसी पृथ्वी वासी के भाग्य के साथ होते हुए भी उसका कल्याण नही करते और हम लोंगो के प्रकोप से पृथ्वीवासियों को कोई देवता भी शरण देने का साहस नही करता और निर्बाध अपना कहर पृथ्वी वासियों पर वर्षाते रहते है।

वत्स आशीष और कोई जिज्ञासा है जिसे शांत करना चाहोगे आशीष केतु के उद्बोधन से कुछ सहम सा गया बोला केतु महाराज आपके साथ वास्तव में देवताओं द्वारा बहुत ज्यादती की गयी है लेकिन इसमें पृथ्वी वासियों का क्या दोष है ?

आप इतने क्रोधित रहते है पृथ्वीवासियों से केतु बोले पृथ्वीवासी देवताओं के गुणगान करते है जो हमारे शत्रु है अतः जब भी अवसर मिलता है तब उन्हें देवताओं के प्रति आस्था को समाप्त करने के लिए भयाक्रांत करते रहते है।

यम दूत ने आशीष से कहा वत्स आशीष अब यहां का समय समाप्त हुआ अब केतु के जेष्ठ राहु से मुलाकात का समय है।

राहु रियासत -


यमदूत आशीष को लेकर राहु के पास गया राहु ने यमदूत को देखते ही कहा आओ वत्स आशीष तुम्हारा यमलोक के राहु रियासत में स्वागत है ।

सम्भवतः तुम पहले पृथ्वीवासी हो जिसे सशरीर यमपुरी के भ्रमण एव बैभव विलास के भोग का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह भी यमदूत की भूल के कारण।

सम्भवतः तुम जब आयु समाप्त करके पुनः आत्मीय स्वरूप में यमपुरी आओगे तब तुम्हे नारकीय वेदनाओं का द्वितीय प्रभारी होने के नाते स्वागत करने कि जगह तुम्हे निर्धारित दंड चक्रों से गुजारना होगा तब भी मैं स्वयं वहां उपस्थिति रहूँगा ।

क्योकि आज जब तुम सशरीर राहु रियासत में अपना स्वागत अभिनानंदन करा रहे हो इसके प्रतिउत्तर एव प्रतिक्रिया में तुम्हारे आत्मीय यमलोग आगमन पर भोगने होंगे ।

आशीष बोला महाराज राहु निश्चय ही आप जो चाहे कहे सोचे समझे वह आपका स्वतंत्रत अधिकार है और आपके कटुवचन से हमे कोई शिकायत भी नही है।

क्योंकि मैं भरत की पवित्र भूमि भारत के भूमि के महाकाल उज्जैन नगर से आया हूँ जहां महाकाल स्वयं विराजते हैं दूसरा भारत में साम्यवादी तानाशाही व्यवस्था भी नही है जिससे कि अनाप सनाप बोलने पर कठोर दंड दिया जाय वहाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत राजा रंक अमीर गरीबी राहु केतु सभी को स्वतंत्रत अभिव्यक्ति की आजादी है ।

अतः मुझे आपके कोई भी वचन अप्रिय नही लगे अपितु अहंकार अभिमान एव प्रतिक्रिया के परिणाम की अभिव्यक्ति ही लगे अभी हम केतु की रियासत से आ रहे है उन्होंने देवताओं के घड़यन्त्र एवम् विष्णु की राजनीति कपट को बताया जिसके परिणाम स्वरूप आप शीश और केतु धड़ में परिवर्तित हो गए ।

आपकी कटुता देवताओं के प्रति है जो कभी कही किसी समय परिलक्षित हो जाती है इसमें आपका दोष नही है महाराज आप सिर्फ एक ही बात बताईये की केतु की तरह आप भी पृथ्वी वासियों को सिर्फ वेदना ही देते है या कभी कभार उनको सुख शांति भी देते है ।

राहु ने कहा वत्स हम केतु की तरह पूर्णतः निष्ठुर नही है हम यदि किसी के भाग्य के साथ है तो उसे सकारात्मक कर्म को प्रेरित करते है एव उसके भाग्य एव प्रारब्ध का निर्माण करते है और उसके जीवन उद्देश्यों तक पहुंचाते है।

केतु के पास सिर्फ धड़ है वह कुछ देख सुन समझ नही सकता जब वह मेरे सिर से अलग हुआ तब वह देवताओं के छल के प्रतिशोध की मांसिलकता में था इसीलिए वह किसी पृथ्वीवासी के प्रारब्ध को प्राप्त कराने में सहायक नही होता सिर्फ वेदना ही देता है।

इधर आशीष यमपूरी का भ्रमण कर रहा था यमदूत के साथ उत्तर त्रिलोचन महाराज बहुत परेशान बेहाल देव जोशी जी के पास पहुंचे बोले महाराज बहुत अनर्थ हो गया देव जोशी जी बोले क्या हो गया? त्रिलोचन जी बोले महाराज आशीष कल का सोया है पूरे बीस बाईस घण्टे हो गए मैंने उठाने का बहुत प्रायास किया किंतु वह उठ नही रहा है त्रिलोचन जी की बात सुन देव जोशी जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा वह तुरंत सतानंद को साथ लेकर त्रिलोचन महराज के यहाँ पहुंचे उन्होमे आशीष को देखा वह विल्कुल सामान्य निद्रा में था एव बीच बीच मे किसी से बाते कर रहा था ऐसा बहुत स्पष्ट था ।

देव जोशी जी ने सतानंद जी को डॉक्टर बुलाने के लिए भेजा कुछ ही देर में डॉक्टरों का एक पैनल आ पहुंचा देव जोशी एव त्रिलोचन महाराज ने आशीष के विषय मे बताया जैसे वह कब सोया कोई मानसिक परेशानी तो नही थी आदि आदि डॉक्टरों के पैनल ने आशीष कि बहुत गमभ्भीरता से जांच किया और पाया कि आशीष पूरी तरह स्वस्थ है उसके सारे आरग्रेन्स सही कार्य कर रहे है और उसे कोई बीमारी नही है बीच बीच मे जो वह बोलता है किसी अदृश्य शक्ति से उसकी वार्ताएं चलती है जो वास्तव में उसके स्थूल शरीर से अलग शुक्ष्म शरीर की आत्मीय अवस्थित है जीवन मे निद्रा का स्वप्न कहते है या विज्ञान कि भाषा में पैरा लाईफ कहते है।

अतः किसी प्रकार से घबड़ाने की कोई आवश्यकता नही है और आशीष जब तक स्वयं ना उठे उंसे उठाने की आवश्यकता नही है यदि जबरन आशीष को उठाने की कोशिश भी की गई तो सम्भव है आशीष की आत्मा अपने स्थूल शरीर को छोड़ निद्रा में सूक्ष्म आत्मीय बोध एव काल्पनिक शारिरिक बोध से अदृश्य शक्तियों से वार्ता कर रही है उसके क्रम में जबरन नीद से जगाने से व्यवधान आयेगा और आत्मा और स्थूल शरीर के पुनः संगम की संभावना समाप्त हो जाएगी ।

डाक्टरों की सलाह के अनुसार देव जोशी एव त्रिलोचन महाराज ने आशीष को निद्रा में छोड़ दिया और उसे नींद से जगाने का प्रायास बन्द कर दिया।


शनि रियासत -

उधर यमदूत ने कहा कि वत्स आशीष अब हमे यमपुरी के न्याय देविता शनि के रियसत में चलना है ध्यान रहे शनि महाराज न्याय प्रिय एव सत्य निष्ठ सिद्धांतवादी है राहु केतु से अलग उनकी प्रतिष्ठा देवताओं के बीच भी बहुत है अतः बहुत संयमित और अनुशासित आचरण से उनके दरबार में अपने जिज्ञासाओं को शांत करने की कोशिश करिएगा।

यम दूत के सुझावों को सुनते सुनते कब यमदूत और आशीष शनि के दरबार पहुंच गए पता ही नही चला।

शनि महाराज ने आशीष का स्वागत यम लोक के अति विशिष्ट अतिथि के रूप में किया आशीष शनि के स्वागत अभिनंदन से गदगद हुआ ।

शनि महाराज ने कहा वत्स आशीष जो भी जिज्ञासा हो जानने की पूछो आशीष बोला जय जय शनि महाराज की आशीष जबसे यमलोक का भ्रमण शुरू किया था पहली बार किसी रियासदा की जय जयकार बोल रहा था ।

आशीष ने पूछा आप तो न्याय प्रिय है फिर आपके कोप से पृथ्वी वासी साढ़े साती अढैया एव काल सर्प योग दण्ड चक्रों के कोप भाजन होते है ऐसा क्यो है?


शनि महाराज बोले वत्स आशीष प्रत्येक प्राणी को अपने कर्माजीत शरीर की प्राप्ति होती है सबसे श्रेष्ठ कर्म जिसके होते है उंसे मनुष्य की काया मिलती है काया एक तरह का वस्त्र है पूर्व जन्मार्जित कर्मो में कभी कभी अव्यवस्थित होते है जिसके कारण जन्म तो मानव शरीर मे मिल जाता है और पूर्व जन्मार्जित कर्म व्यवधानों को समाप्त करने के लिए पैबंद की तरह पापग्रहों के काल मढ़े जाते है जिससे कि मानव पूर्वजन्म के नेक कर्मो से प्राप्त मानव शरीर से पूर्वजन्म के सद्कर्मो पर पड़ी काली छाया को अपने विशुद्ध श्रेष्ठ एव परोपकारी आचरण से समाप्त कर सकें जिसके लिये समय निर्धारित है ढाई वर्ष एव सात वर्ष लेकिन पृथ्वी का मानव इतना विवेकी एव वैज्ञानिक सोच का हो चुका है कि वह ब्रह्माण्ड के ब्रह्म अस्तित्व को ही नकारता है तो उसकी व्यवस्था एव साम्राज्य के एक ग्रह शनि को क्या समझेगा ?

फिर भी हम न्याय प्रिय है और प्राणि के कल्यार्थ ही अपनी गति चाल का निर्धारण करते है और जबतक प्राणि द्वारा सभी मर्यादित आचरणों की तिलांजलि देते हुये उलंघन नही कर दिया जाता तब तक उसके कल्याणार्थ उंसे जागृत करते रहते है।

काल सर्प योग स्थूल शरीर के त्यागने का काल है या यूं कहें कि मृत्यु का काल है जिसे टालना बहुत असम्भव होता है फिर भी असंभव कदापि नही होता है सत्यवान को लेने स्वंय हमारे महाराज यम गए थे और वरदान देकर लौट आये यह सब प्राणि के स्वंय के आचरण पर ही निर्भर करता है उसकी प्रवृत्ति क्या है वह क्या सोचता है ? चाहता क्या है?आशीष ने कहा महाराज अब मुझे समझ मे आ गया कि आपको न्याय का ग्रह क्यो कहा जाता है आप जिसके भाग्य स्वामी होते है वह पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली मानव होता है जय जय हो महाराज की
मां काली रियासत -


यम दूत आशीष को लेकर पुनः रक्त पिपासी काली के पास गया काली अंगारे की तरह आंखे कज्जल गिरी जैसा काला रंग मुख मण्डल पर तेज गले मे नर मुंडो की माला कमर में मृगछाला हाथ एक हाथ मे नर मुंड एक हाथ खप्पर एक हाथ खड्ग एक हाथ त्रिशूल बहुत सुंदर विग्रह आशीष को देखते ही भद्र काली बोली आओ आशीष तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी महाराज यम का संदेश आया था कि यम दूत तुम्हे लेकर यम लोक के बिभन्न रियासतो में भ्रमण करा रहा है आशीष ने काली को बहुत आदर के साथ प्रणाम किया और बोला माते आप तो पृथ्वी लोक के आदिवासी समाज की तेजश्वी ओजश्वी आदर्श नारी गौरव की तरह ही है आपके स्वरूप को तो पृथ्वीवासी आदिवासी नारी शक्ति के रूप में देखते है ।

आप नारी गरिमा गौरव की आदि शक्ति मातेश्वरी स्वरूप पृथ्वी के हर आदि कन्याओ में दृष्टिगोचर है माते यह बताये आप सदैव रक्त पिपासु क्यो रहती है?

माँ काली ने आशीष को बताया कि जब नारी की चेतना की चैतन्य आत्मा दुर्गा रक्तबीज से युद्ध लड़ रही थी और जब भी रक्तबीज मारती तब उसके एक बूंद रक्त से करोड़ो रक्तबीज जन्म ले लेते माता दुर्गा रक्तबीज से युद्ध लड़ते लड़ते आश्चर्य चकित थी तभी उन्होंने अपने एक स्वरूप में मुझे रचा और आदेशित किया कि रक्तबीज का रक्त पृथ्वी पर नही गिरना चाहिए।

मैं खप्पर लेकर रक्तबीज के रक्त को पृथ्वी से गिरने से पहले ही पी जाती जिससे कि रक्त पिपासु की जिज्ञासा मेरी आदत हो गयी और अब यम लोक में पापियों का रक्त पान करती हूँ।

आशीष बोला माते पृथ्वी पर तो आपके उपासक तामसी भोगी मांसाहारी मदिरसेवन करने वाले होते है और आप उनकी आराधना स्वीकार करती है।

मां काली ने आशीष को बताया कि वत्स पृथ्वीवासी मानव शरीर को ही अंतिम सत्य मानते है और ब्रह्मांड एव ब्रह्म सत्ता को बहुत ज्ञानी ही जानता एव स्वीकार करता है सामान्य जन मानव शरीर की अंतिम सत्यता को मांन भौतिक सुखों एव इंद्रियों की संतुष्टि को सर्वोपरि रखता है।

चाहे वह भौतिकता के चकाचौंध के संसार मे कितना प्रतिष्ठित प्रभावी व्यक्ति क्यो ना हो वह अपनी आभा सत्ता के सभी सोपान का रसास्वादन करना चाहता है और करता भी है यही कारण है कि पृथ्वीवासी दोहरी मानसिकता चरित्र के शिकार हो चुके है ऐसे में यदि उन्हें उनके भौतिक भोग विलास के मध्य मोक्ष का मार्ग मिल सके तो प्राणिमात्र के कल्यार्थ उत्तम मार्ग है ।

उदाहरण के लिए शेर को तो कभी मोक्ष नही मिलना चाहिये क्योंकि वह नित्य निरीह प्राणियो को बड़ी निर्ममता से शिकार करता है यह उसके शरीर एव जन्म की आवश्यकता है जो उसे उसके किसी पाप के दंड के रूप में प्राप्त हुआ है हम नव दुर्गा का वाहन ही शेर है आप आशीष समझ गए होंगे कि प्राणि को उसके जन्म जीवन की इच्छाओं को सतत रखते हुए यदि वह किसी को कोई पीड़ा नही देता है तो उसे भी मोक्ष एव सद्कर्मो पर अधिकार है।

आशीष के मुह से बरबस ही निकल पड़ा जय जय माते आदि माते जग कल्यानी।

पाताल भैरवी -


यम दूत ने कहा वत्स चले अब पाताल भैरवी के दरबार मे यमलोक में नारी शक्ति को बहुत श्रेष्ठ दर्जा प्राप्त है अपने देखा नही की यहां नारी समाज को समान अधिकार एव सम्मान प्राप्त है यहॉ लिंग भेद है ही नही इसीलिए यहां जो भी मिलेगा विकार रहित।

महाकाल उज्जैन में हर तरफ एक ही चर्चा थी कि आशीष को निद्रा में सोए सप्ताह से अधिक हो चुके है और अभी भी नही जागे कोई जगाने की कोशिश भी नही करता क्योकि डॉक्टरों ने मना किया था इसमें आत्मा एव शरीर के स्थायी रूप से सम्बन्धो के विच्छेद होने का खतरा था ।

महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह विराज एव सनातन महाराज तक बात पहुंच गई सभी आशीष की इस भयंकर निद्रा को देखने एव निद्रा में उसकी वार्ता को सुनने आये सबके लिए एक कौतूहल का विषय था कि यह क्या अजूबा है ?

सब जगह चर्चा थी कि आशीष की आत्मा अन्तरिक्ष में विचरण कर रही है और बाते कर रही है।

यम दूत आशीष को पाताल भैरवी के पास ले गया पाताल भैरवी ने आशीष एव एम दूत को देखते ही बहुत स्वागत किया और पाताल लोक के सुख भोग बिलास से परिचित करवाते हुए बोली वत्स आशीष यदि कोई प्रश्न पूछना चाहते हो तो पूछो ।

आशीष ने पूछा माते पृथ्वीवासी आपको खुश करने के लिए बलि क्यो देते है ?

कभी कभी तो नर बलि तक दे देते है क्या तुम जगत जननी हो अपनी संतानों की हत्या अपनी ही संतानों द्वारा किये जाने एव अपनी ही संतानों के खून की पिपासु रहती हो ?

माता पाताल भैरवी ने आशीष से कहा वत्स हम नवदुर्गा की स्वरूप है और अविवाहित कुंवारी कन्याएं है प्राणि मात्र हमारी आराधना माँ के स्वरूप में करता है और अपनी आकांक्षाओ अभिलाषा की पूर्ति के लिए प्रयास के अंतर्गत वह ईश्वरीय आराधना में भी अपनी अभिलाषा को ही केंद्र में रखता है ईश्वरीय अवधारण आस्था के अस्तित्व के सात्विक प्रेम को ही स्वीकार करती है जिसके नौ तरीके है जिसे भक्ति मार्ग में नवधा भक्ति ही कहते है से प्रसन्न होते है एव प्राणि को ऊर्जा के उत्कर्ष की शक्ति का आशीर्वाद देते है जो उसे उसकी अभिलाषा को प्राप्त कराने में सक्षम होते है ।

हमे बलि से क्या लेना देना पृथ्वी का मानव अपनी सुविधानुसार ईश्वर एव धर्म को परिभाषित करता है और वैसा ही आचरण आराधना अपने जीवन समाज मे करता है हम ईश्वर सात्विक सतोगुण ग्राही तमोगुण से विरत होतो है अतः बलि की बात भी सोचना सनातन की सत्यता का परिहास ही होगा वत्स यह सब पृथ्वी के मानव द्वारा अपनी सुविधानुसार धर्म की अवधारणा का प्रयोग है जो पीड़ादायक और भयनक भयंकर होता है।
चित्रगुप्त कार्यलय -


यमदूत ने आशीष से कहा वत्स चलिए अब आपके विरादर चित्रगुप्त से भेंट करवाते आशीष ने यमदूत से चित्रगुप्त की चर्चा सुनी मिलने के लिए उत्सुक हो गया और यम दूत के साथ चल पडा।

आशीष अपने कुल आराध्य चित्रगुप्त से मिलने यमदूत के साथ पहुंचा वहां जाने पर पता चला कि चित्रगुप्त का कोई रियसत नही है ।

यम के सबसे विश्वसनीय एव खास सिपहसालार है वह ब्रह्मांड के सभी प्राणियों का लेखा जोखा रखते है ।

यमदूतों को महाराजधिराज यम के हस्ताक्षर से प्राणियो के डेथ वारंट सौंप उन्हें लाने के भेजते है एव उनके यमपुरी में पहुँचने पर उनके जीवन के कर्मो का लेखाजोखा प्रस्तुत करते है जिस पर पुनः महाराजाधिराज यम निर्णय लेते है कि आये प्राणियो को तत्काल दूसरे शरीर मे भेजना है या यमलोक की यातनाओं को क्रमवार भेजना है ।

आशीष ने देखा कि चित्रगुप्त महाराज का आलीशान महल है और साथ मे उनका अपना सचिवालय एव असख्य कार्यकर्ता आशीष ने चित्रगुप्त महाराज से प्रश्न किया महाराज सम्पूर्ण ब्रह्मांड में जलचर नभचर थलचर के अतिरिक्त उभयचर पेड़ पौधे आदि ना जाने कितने करोड़ नही अरबो प्राणि है जिनके कर्मो का लेखा जोखा रखना कठिन कार्य नही है ?

चित्रगुप्त महाराज ने आशीष से बताया कि आशीष तुम कायस्त कुल के होनहार प्राणि हो ब्रह्मांड में शायद तुम अकेले प्राणी हो जिसे सशरीर यमपुरी के दर्शन हो रहे है मैं तुम्हारा कुल देवता भी हूँ अतः बिना किसी संकोच के सारी व्यवस्थाओं से अवगत कराता हूँ।

सुनो ध्यान से हमारे यहां जलचर प्राणियो के हिसाब किताब के लिए जलप्राणि विभाग है जिसमे जल स्रोतों के अनुसार सात श्रेणियों में विभक्त किया गया है सातों के अध्यक्ष है फिर सातों को क्षेत्रवार बांटा गया है फिर जनपद में विभक्त किया गया है जिसे जलजनपद कहते है वहा जंनपदाधिश पदस्थापित है और पुनः जल उपप्रखण्ड है जो हिसाब किताब की मूल एजेंजी है।

थलचर को तो पृथ्वी के मानव ने ही आपस मे बांट रखा है अतः यमपुरी ने भी पृथ्वी के मानव बटवारे के अनुसार क्षेत्रो जनपदों उपखंडों में बटा है ।

नभचर के लिए कोई परेशानी है ही नही जितने भी पापग्रह या शुभग्रह है वह यमपुरी के जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाते है आशीष बोला महाराज चित्रगुप्त आपके पास इतना लंबा चौड़ा कर्मचारियों अधिकारियों का लाव लश्कर है आपके यहाँ प्रमोशन पालिसी भी अच्छी होगी?

चित्रगुप्त ने बताया है प्रोमोशन पालिसी जिसे बड़ी ईमानदारी से निष्पक्षता से लागू किया जाता है आशीष ने पुनः सवाल किया महाराज चित्रगुप्त आपके यहाँ भी कर्मचारी संगठन एव अधिकारी एसोसिएशन होंगे ?

बराबर आपको संगठनों के दबाव में कार्य करना पड़ता होगा चित्रगुप्त महाराज ने आशीष को बताया कि आशीष चलो मेरे साथ आशीष यमदूत एव चित्रगुप्त के साथ चल पड़े एका एक चित्रगुप्त ने आशीष को बताया यह समूह जो चीखते चिल्लाते देख रहे हो जिन्हें भाले तलवारों से घोंप घोंप कर लटकाया गया है इन्होंने कभी यमपुरी में यूनियन की मांग को लेकर सत्याग्रह एव बगावत की थी आशीष ने कहा महाराज क्या यह अधिकारों का हनन नही है चित्रगुप्त महाराज बोले आशीष यमपुरी में अधिकार सिर्फ यम के पास ही रहते है बाकी सभी कार्य करने वाले आशीष बोला महाराज आपके कर्मचारियों अधिकारियों की सेवानिवृत्ति होती है किस आयु में ?

चित्रगुप्त ने बताया कि हमारे स्टाफ जब सेवा निबृत्त होते है तो उन्हें पृथ्वी लोक के प्राणियो में उनकी रुचि इच्छा के अनुसार भेज दिया जाता है आशीष बोला महाराज एक निवेदन है चित्रगुप्त महाराज बोले बोलो आशीष बोला महाराज मैं जब आपके यहाँआऊ तो आप मुझे अपने स्टाफ में कोई महत्वपूर्ण पद दे ऐसा मैं चाहूंगा विरादरी की बात है और मैं सशरीर प्रथम मानव हूँ ज़िसे यमपुरी के भ्रमण का अवसर प्राप्त हुआ है और आप हमारे कुलदेवता भी है।

चित्रगुप्त महाराज बोले तथास्तु आशीष ने कहा महाराज अब आप यम के भी आला हाकिम से मुलाकात करवा ही दे ।

चित्रगुप्त बोले यह तो महाराज यम ने तुम्हारे यमलोक दर्शन के अंतिम चरण में रखा है अब यमदूत तुम्हे लेकर महाराज के पास जाएगा और महाराज तुम्हे लेकर अपने आला हाकिम के पास जाएंगे।।

इधर महाकाल युवा समूह महादेव परिवार देव जोशी जी त्रिलोचन जी सतानंद जी महाराज विराज एव सम्पूर्ण उज्जैन में आशीष की निद्रा के चर्चे चल रहे थे नित्य हज़ारों लोग आशीष का दर्शन निद्रा की अवस्था मे करते एव निद्रा में उसके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों को ध्यान से सुनते कोई कहता आशीष पर महाकाल की परम कृपा है जिसके कारण वह समाधिस्त है।

जितनी मुँह उतनी बाते डॉक्टर पैनल भी प्रति दिन आशीष की स्वास्थ की जांच करता लेकिन उसे आशीष के स्वास्थ में कोई असहज तथ्य प्रतीत नही होते थे विराज तांन्या तरुण सभी बहुत आश्चर्य में थे कि यह क्या अजीब बात है ?

आशीष को निद्रा में गए पूरे पंद्रह दिन हो चुके है और वह नीद से जागा नही कोमा में है नही तो बात क्या है ?

सभी चिंतित एव अजीब सोच जद्दोजहद में पड़े थे विराज तन्या तरुण प्रतीक्षा के बाद वापस लौट गए मगर सनातन दीक्षित रुके रहे।

आशीष यमदूत के साथ यम दरबार पहुंचा महाराज यम ने पूछा आशीष तुमने यमपुरी के बैभव विलास के दर्शन भ्रमण किया यहां के कारागार यातना शिविर एव दण्ड के कुंड नदिया दैत्यों से तुम्हे नही मिलने दिया गया क्योकि वह सब गोपनीय रहता है अब यमदूत यही तुम्हारा साथ छोड़ देगा और तुम मेरे साथ मेरे आला हाकिम से मिलने कैलाश चलोगे ।

यमदूत वही रुक गया महाराज यम और आशीष कैलाश पहुंचे वहां पहुंचते ही यम ने कहा भोले नाथ की जय हो महाराज हम यम आपकी सेवा में पृथ्वी वासी के विशेष अनुरोध एव आपकी इच्छा के अनुसार इसे लेकर आपके पास आये है ।

भोले नाथ बोले यमराज तुम्हे अपना नाम इतना छोटा करने को किसने कहा या सलाह दिया यमराज बोले यही पृथ्वी प्राणि जिसे लेकर आपकी शरण मे आये है इसी ने कहा कि यमराज बहुत लंबा नाम है अतः शार्ट नेम एम रख दिया ।

भोले नाथ बोले पृथ्वी वासी को यहाँ आने की आवश्यकता ही क्यो पड़ी?

यम ने बताया महाराज मेरा यमदूत भूल बस इसे यमपुरी उठा लाया जबकि इसे अस्सी वर्ष बाद आना था और यह यमपुरी में ही उधम काटना शुरू कर दिया तब मेरे इसके बीच एक शर्त के अंतर्गत समझौता हुआ कि इस पृथ्वीवासी की इच्छानुसार सशरीर इसे यमलोक के शुख भोग बैभव के साथ स्वागत करते हुए इसे यम पूरी के आकर्षक रमणीय दर्शनीय रियासतो का भ्रमण कराया जाएगा ।

अंत मे मैं एम् अपने अधिकारी यानी आपसे मिलाने के बाद यह भूल के लिए यमदूत एव यमपुरी को क्षमा कर देगा उसी समझौते की अंतिम कड़ी के अंतर्गत इसे लेकर मैं यहां आया हूँ।

यम ने आशीष से कहा यही है हमारे अधिकारी कालो के काल महाकाल भूत भांवर भोले नाथ देवाधिदेव शिव शंकर और यहाँ जितने भी बेढब प्राणि दिख रहे है भूत पिचास डाकिनी डायन सब इन्ही के गण है जगत इन्ही से शुरू इन्ही में समाहित है।

आशीष ने बड़े ध्यान से देखा मृगछाला धारण किये मृगछाला पर विराजते त्रिशूल माथे पर चंद्रमा गले मे नाग और नीला कंठ लम्बी जटाओं से प्रवाहित गंगा ऐसा मनोरम मनोहर दृश्य पृथ्वी पर असम्भव है यदि संम्भवः भी है तो आदि देव भोले नाथ का आदि मानव समाज की आदि शक्ति में ।

आशीष भोले नाथ के चरणों मे साष्टांग दंडवत मुद्रा में लेट गया और बोला महाराज मैं तो प्रतिदिन महाकाल की भस्म आरती में आपकी छबि देखता रहता हूँ और नित्य आरती के बाद गर्भ गृह की सफाई करता हूँ जबसे घर छोड़कर आया हूँ आप ही के सेवा में काशी विश्वनाथ के रूप में महाकाल के रूप में एव ॐ ओंकारेश्वर के रूप क्ररता आ रहा हूँ और बरबस बोलने लगा जय जय महाकाल हर हर महाकाल इतनी जोर जोर से की आस पास के लोग एकत्र हो गए देव जोशी त्रिलोचन महाराज सतानंद सनातन दीक्षित आदि हज़ारों की संख्या में भीड़ एकत्र हो गयी देखते ही देखते आशीष बहुत जोरो से बोलता ही जा रहा था जय श्री महाकाल हरहर महाकाल और एक एक उठ कर बैठ गया और बोला मैं कहा हूँ देव जोशी त्रिलोचन महाराज सतानंद जी सनातन दीक्षित महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह एव उज्जैन वासियों आशीष की निद्रा एव निद्रा से उठाना दोनों कौतूहल का विषय था ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
[1/24, 12:29 PM] N L M Tripathi: गुरुकुल शिक्षा -

परम्परा एवं सर्वश्रेष्ठ शिष्य -


प्रारंभिक शिक्षा का ऐसा केंद्र जहां विद्यार्थी अपने परिवार से दूर गुरु परिवार का आवश्यक हिस्सा बनकर शिक्षा प्राप्त करता था।।

गुरुकुल में पढ़े विद्यार्थियों का बड़ा सम्मान होता था कुरुकुल कि स्थापना ऋषि एव वैदिक परम्पराओं के अंतर्गत होती थी।।

गुरुकुल में आठ वर्ष से दस वर्ष तक कि आयु के बालको को शिक्षा दी जाती थी।।

गुरुकुल नगर ग्राम से दूर वन प्रदेशो में ही स्थापित किये जाते थे जहां ऋषियों का निवास स्थान होता था ।।

गुरुकुल कि व्यवस्था में शिक्षार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान होता स्वयं भिक्षा से भोजन आदि कि व्यवस्था करते तो लकड़ी आदि स्वय एकत्र करते बड़े बड़े राजाओं जिनके राज्य के अंतर्गत गुरुकुल होता उनके द्वारा भी गुरुकुल को सहायता प्रदान की जाती ।

गुरुदक्षिणा शिक्षा के समापन पर देनी होती थी शिक्षा की यह व्यवस्था इसलिये भी सर्वश्रेष्ठ थी क्योकि परिवार से दूर विद्यार्थी को एक ऐसे वातावरण में रहना होता जहां उसे जीवन के कठोर ब्रत एव नियमो के पालन के लिये शक्तिशाली बनाया जाता ।।

भगवान राम ने गुरु वशिष्ट के आश्रम में रहकर शिक्षा पाई तो सभी पांडवों एव कौरवों ने गुरु द्रोण के गुरुकुल में शिक्षा पाई तो भगवान श्री कृष्ण ने सांदीपनि के गुरुकुल में शिक्षा पाई।
गुरुकुल में त्रिस्तरीय शिक्षा व्यवस्थाएं थी -

1-गुरुकुल -आश्रम में विद्यार्थी गुरु के साथ रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे ।

2- परिषद-विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी।

3- तपस्थली-जहाँ बड़े बड़े सम्मेलनों का आयोजन होता था गुरुकुल के प्रधान आचार्य को कुलपति महोपाध्याय कहा जाता था।

गुरू कुल शिक्षा पद्धति कि विशेषताएं-

क-गुरुकुल पूर्णतयः आवासीय एव एकांत स्थान पर होता था जहाँ आठ दस वर्ष के बच्चे गुरु सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करते।
ख-अनुशासन प्रमुख था।

ग-गुरुकुल में शिक्षा में विद्यार्थी स्वंय सेवक कि तरह ही रहता उंसे अपने कार्य स्वय करने पड़ते जैसे उपयोग कि सामग्री का निर्माण भोजन कि व्यवस्था के लिए खेती या भिक्षाटन करते।

घ-गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में सुनकर ही स्मरण करना होता था लिपि व्यवस्था नही थी।
उपनयन ,यज्ञों पवित,उपवीत संस्कार भी गुरुकुल में ही होते

अनुकरणीय गुरु शिष्य -

वरतन्त के शिष्य कौत्स ने अत्यन्त निर्धन होने के बाद भी गुरु से दक्षिणा लेने का आग्रह किया तब गुरु ने क्रोध में आकर चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांगी कौत्स ने राजा रघु से वह धन पाना अपना अधिकार समझा राजा ने ब्राह्मण बालक कि मांग पूरी करने के लिये कुबेर पर ही आक्रमण कर दिया ।।

प्रसेनजित जैसे राजाओं ने वेदनीषणात ब्राह्मणों को अनेक गांव दान में दिए गुरुकुलों में तक्षशिला, नालंदा ,वलभी के विश्वविद्यालयों की चर्चा है वाराणसी बहुत प्राचीन शिक्षा केन्द्र था जहां सैकड़ो गुरुकुल पाठशालाओं के प्रमाण है।

रामायण काल मे वशिष्ठ का बृहद आश्रम था जहाँ राज दिलीप तपचर्या करने गए जहाँ विश्वामित्र को ब्रह्मत्व प्राप्त हुआ।
भारद्वाज मुनि का आश्रम था
गुरुकुल परम्परा के श्रेष्ठतम शिष्यो की कड़ी में ऋषि धौम्य आरुणि एव उपमन्यू का नाम बड़े गर्व एव आदर से लिया जाता है ।भगवान श्री कृष्ण ,अर्जुन आदि गुरुकुल के शिष्य परम्परा के प्रेरक एव युग सृष्टि के लिए प्रेरणा है।

गुरु शिष्य परमपरा का श्रेष्ठतम आदर्श - चाणक्य चंदगुप्त

विंध्याचल के जंगलों में भ्रमण के दौरान चाणक्य का ध्यान एक बालक कि तरफ आकर्षित हुआ जिसका नाम चंद्रगुप्त मौर्य था वह राजकिलकम खेल में व्यस्त था चाणक्य बहुत प्रभावित होकर एक हजार कार्षारण खरीद कर अपने साथ लाते है ।

चाणक्य विष्णुगुप्त जो तक्षशिला गुरुकुल के आचार्य थे गुरुकुल शिक्षा व्यवस्थाओं की कलयुग में इससे बेहतर उदाहरण नही मिलता आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षित दीक्षित कर बिखरते भारत को एक सूत्र में बांधने कि गुरुदक्षिणा कहे या देश प्रेम या घनानंद के अपमान का प्रतिशोध जो भी कहे लेकिन गुरुकुल परम्परा में गुरु एव शिष्य का ऐसा अद्भुत संयोग उदाहरण राष्ट्र समाज इतिहास में प्रस्तुत किया जो कही उपलब्ध नही है गुरु चाणक्य ने शिष्य चंद्रगुप्त से स्वयं के लिए कभी कोई गुरुदक्षिणा नही मांगी ना ही लिया सिर्फ अखण्ड भारत के लिये ही शिष्य कि खोज किया और परिपूर्ण करके गुरु शिष्य परम्परा में अनुकरणीय आदर्श कि नींव रखी जो आज भी गुरु एव शिष्य दोनों को ही दिशा दृष्टिकोण देते हुये मार्गदर्शन करती है।।

ऋषि धौम्य के दो शिष्यो के विषय मे यहाँ उल्लेख करना चाहूंगा महर्षि धौम्य ने उपमन्यु एवं आरुणि ने गुरुकुल के गुरु परम्परा में गौरवशाली इतिहास है जिनके द्वारा गुरु के प्रति आस्था का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर गुरुकुल परम्परा को शिखरतम तक पहुंचाया।

गुरुकुल शिक्षा कि एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था जो बच्चों को सांस्कारिक शिक्षा का स्रोत एव केंद्र के रूप में राष्ट्र को ऐसी युवा पीढ़ी को सौंपता था जिससे राष्ट्र एव समाज के मजबूत बुनियाद का निर्माण होता था ।

गुरुकुल में शिक्षक माता पिता कि तरह शिक्षार्थियों को शिक्षा प्रदान करते थे भेद भाव का कोई स्थान नही होता था गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था वास्तव मे शिक्षा एव शिक्षार्थी के नैतिक विकास का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था जो महत्वपूर्ण एव भविष्य की दृष्टि दिशा का निर्माण मर्यादित आचरण के विकास के द्वारा युवा पीढ़ी में संवर्द्धित करता था ।

गुरुकुल से अनेको ऐसे व्यक्तियों का सृजन होता था जो राष्ट्र समाज मे सकारात्मक सार्थक परिवर्तन के सजग प्रहरी के साथ साथ जिम्मेदार नागरिक का निर्माण करता था।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।