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यादव वंश

यदुवंशियो की उत्पत्ति पौराणिक राजा यदु से मानी जाती है। वे टॉड की 36 राजवंशो की सूची में भी शामिल हैं। विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों और पुराने लेखों से संकेत मिलता है कि भारत में उनकी मौजूदगी 6000 ई.
सिंघण (1210-1247 ई.) देवगिरि के यादव वंश का राजा था। वह यादव वंश का सबसे शक्तिशाली और प्रतापी राजा सिद्ध हुआ था
यादव जिन्हें यदुवंशी या अहीर के नाम से भी जाना जाता है, भारत और नेपाल में पाए जाने वाला जाति/समुदाय है, जो चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश के प्राचीन राजा यदु के वंशज हैं। यादव एक पाँच इंडो-आर्यन क्षत्रिय कुल है जिनका वेदों में "पांचजन्य" के रूप में उल्लेख किया गया है।

यदुवंश अथवा यदुवंशी क्षत्रिय शब्द भारत के उस जन-समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो स्वयं को प्राचीन राजा यदु का वंशज बताते हैं। यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर थे
यदुवंशी अहीर कृष्ण के प्राचीन यादव जनजाति के वंशज माने जाते हैं। यदुवंशियो की उत्पत्ति पौराणिक राजा यदु से मानी जाती है। वे टॉड की 36 राजवंशो की सूची में भी शामिल हैं। विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों और पुराने लेखों से संकेत मिलता है कि भारत में उनकी मौजूदगी 6000 ई.
उत्पत्ति और इतिहास यादव एक महान राजा यदु के वंशज हैं। जिन्हें भगवान कृष्ण का पूर्वज माना जाता है। यदु के पिता ययाति एक क्षत्रिय थे और उनकी माता देवयानी ब्राह्मण ऋषि शुक्राचार्य की बेटी थीं।
इन ग्रंथों में राजा यदु को राजा ययाति और रानी देवयानी का जेष्ठ पुत्र के रूप में वर्णन किया गया है. ऐसी मान्यता है कि राजा यदु ने आदेश दिया था कि उनकी आने वाली पीढ़ियों को यादवों के रूम में जाना जाएगा और उनके वंश को यदुवंश के रूप में जाना जाएगा. इसीलिए राजा यदु के वंशज यादव या अहीर के रूप में जाने जाते हैं.
यदु के वंशज यादव कहलाए। यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि चार पुत्र हुये व इन्हीं की कई पीढ़ियों बाद राजा आहुक हुये, जिनके वंशज आभीर या अहीर कहलाए। इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि यादव व आभीर मूलतः एक ही वंश के क्षत्रिय थे तथा "हरिवंश पुराण" मे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है।

समस्त यदुवंशियों की कुलदेवी हैं आदि शक्ति माँ भवानी की अंश माँ योगमाया । माँ योगमाया ने बाबा वसुदेव के चचेरे भाई बाबा नंदराय के यहाँ उनकी पुत्री के रूप में अवतार लिया था। इन्हीं माँ योगमाया को जब दुष्ट कंस ने मारने की कोशिश करी थी तब आदिशक्ति ने अपना विकराल रूप दिखाया था।

यादव वंश का नाश कैसे हुआ?
गांधारी का श्राप
उनका मन प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो रहा था इसके बावजूद भी वह शांत थी, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण भी हैं तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया
गांधारी ने कृष्ण को यह सब विनाश होने देने का श्राप दिया। उसने श्राप दिया कि वह, उसका शहर और उसकी सारी प्रजा नष्ट हो जाएगी। कृष्ण ने श्राप स्वीकार कर लिया। मौसला पर्व पुस्तक में महान युद्ध की समाप्ति के 36 साल बाद श्राप की पूर्ति का वर्णन है
भगवान श्री कृष्णचन्द्र ने माता गांधारी के उस श्राप को पूर्ण करने के लिये यदुवंशियों की मति को फेर दिया। एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यदुवंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आए।


इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यदुवंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से यदुवंशी पर्व के दिन प्रभास क्षेत्र में आए। पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले हो कर एक दूसरे को मारने लगे। इस तरह से भगवान श्री कृष्णचन्द्र को छोड़ कर एक भी यदुवंशी जीवित न बचा।
श्री कृष्ण को मारने वाला कौन था?

जीरू नामक शिकारी ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े को नुकीला कर तीर का निर्माण किया। कृष्ण वन में बैठे ध्यान में लीन थे। जीरू को लगा वह कोई हिरण है, उसने कृष्ण पर तीर चला दिया जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई।भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु जरा नामक बहेलिए के तीर से हुई थी. कृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे, तभी बहेलिए ने हिरण समझकर दूर से उनपर तीर चला लिया, जो उनके पैरों में जाकर लगा.. श्रीकृष्ण की कितनी उम्र थी? भगवान कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व में हुआ था.

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