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ढ़लती शाम

भीखू ठेले पर चूड़ियां और अन्य सिंगार के सामान भेजता था।घर पर पत्नी और बूढ़े माँ-बाप थे।शादी को चार साल हो गए थे,मगर घर में बच्चों की किलकारी नहीं गूंजी थी।कई जगह मिन्नतें भीखू और उसकी पत्नी सविता मांग चुके थे, कई जगह दवाई भी करवा चुके थे।मगर,कोई फायदा नहीं हुआ।इसके अलावा घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।दिनभर जो कुछ बिकता था,बस उसी से घर चलता था।एक दिन की बात है.... भीखू की तबियत कुछ ठीक नहीं थी।फिर भी वह कमाने के लिए तैयार हो रहा था।यह देखकर सविता बोली"अरे,यह तुम क्या कर रहे हो?जब तबियत खराब है तो आज जाना जरूरी है क्या?"यह सब सुनकर भीखू बोला"तब मैं क्या करूँ?अगर,कमाने नहीं जाऊँगा तो घर खर्च कैसे चलेगा?"सविता निराश होकर बोली"पता नहीं यह गरीबी डायन कब तक हमें सताएगी?यह गरीबी की ढ़लती शाम...कब हमेशा-हमेशा के लिए खत्म होगी।"भीखू भी यह सुनकर सविता के पास जाकर बोला"सविता,निराश क्यों होती हो?देवी माँ एक दिन इस दुःख भरी ढ़लती शाम को हमेशा के लिए दूर कर देंगी।अच्छा तो अब मैं चलता हूँ।रास्ते में ही दवाई खरीदकर खा लूंगा।"यह कहकर वह चूड़ियां बेचने के लिए निकल पड़ा।अप्रैल का महीना था।ठेले को हाथ की सहायता से वह ठेलते हुए चला रहा था।सुबह से ही धूप गहराने लगी थी।अभी वह घर से थोड़ी दूर गया ही,अचानक उसे कमजोरी महसूस होने लगी।ठेले को सड़क के किनारे एक विशाल आम की छांव में रोककर सुस्ताने लगा।लोग आ जा रहे थें।एक नजर भीखू की तरफ डालते,फिर निकल जाते।हालांकि, भीखू तो वहाँ केवल सुस्ता रहा था।काफी देर हो गई।एक भी ग्राहक नहीं मिला।अब उसका मन भी कहने लगा,भले ही आज नमक रोटी खा लूंगा।मगर,आज चूड़ियां नहीं बेचूंगा।यह सोचकर जैसे ही भीखू घर वापस जाने के लिए मुड़ा।एक चमचमाती,बिल्कुल नई कार आकर रुकी।
कार की शीशा निचे हुआ।


भीखू भी अब हैरान होकर देखने लगा।एक व्यक्ति काला चश्मा लगाए दिखाई दिया।उस व्यक्ति ने भीीखू की तरफ देखते हुए बोला"बाबा जी,चूड़ियां कितने रुपये की है?"भीखू ने सभी के दाम को बता दिया।फिर उस
व्यक्ति ने भीखू के बताए कीमत को अदा किया और कुुुछ
चूड़ियां लेकर चला गया।भीखू को थोड़ी राहत मिली।


कम से कम आज का दिन गुजर तो गया।मगर,यह क्या?जब उसने रुपये गिने,तब हैरान हो गया।क्योंकि,उसने जितने रुपये मांगे थे।
उससे ज्यादा रुपये थे।हड़बड़ी में भीखू भी उन रुपयों की गिनती नहीं कर सका था।अतः,जल्दी-जल्दी में भिखू ठेला को उसी दिशा में बढ़ाने लगा जिस दिशा में अमीर व्यक्ति की गाड़ी गई थी।ना जाने क्यों.. अब भीखू किसरी थकावट दूर बो चुकी थी।थोड़ी दूर बढ़ने के बाद भीखू को वही अमीर व्यक्ति दिखाई दिया,जो अपनी कार से नीचे उतर कर रुका हुआ था।
भीखू अपनी ठेला उस व्यक्ति के पास जाकर रोक दिया।वह वही खड़ा होकर हाफ रहा था।फिर उसने कहा"बाबूजी,आपने मुझे ज्यादा रुपये दे दिए है।अधिक रुपये को मैं लौटने आया हूँ।"यह सुनकर वह अमीर व्यक्ति हैरान होकर भीखू की तरफ देखने लगा।फिर मुस्कुराते हुए बोला"करते क्या हो तुम?"यह सुनकर भीखू बोला"जी,मैं ठेले पर चूड़ियां और बाकी सिंगार के समान बेचता हूँ।"यह सुनकर उस अमीर व्यक्ति ने कहा"तुम्हारी ईमानदारी से मैं बहुत खुश हूँ।मेरे यहाँ नौकरी करोगे?"
यह सुनकर भीखू बड़ा खुश हुआ।उसकी आँखें नम हो गई।वह बोला"जी बाबूजी, मैं जरूर करूँगा।"यह सुनकर उस अमीर व्यक्ति ने कहा"तब तुम कल मुझसे मिलो।और,हाँ यह बाकी रुपये भी तुम रख लो।तुम्हारी ईमानदारी का फल है।"यह कहकर उस अमीर व्यक्ति ने भीखू को अपना पता दिया और कार में बैठकर चल दिया।

भीखू की तबियत अब पता नहीं कहाँ चला गया था।वह बड़े ही प्रसन्न होकर घर जाने लगा।निश्चय ही उसकी जिंदगी की दुःख भरी ढ़लती शाम हमेशा-हमेशा के लिए ढल चुकी थी।