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प्रेम ही जीवन




नबाब साकिर खान का ताल्लुक हैदराबाद नवाब घराने से घराने से खुद भी बड़े जमींदार थे उनकी बेगम राबिया खातून नेक नियत की इस्लामी तहजीब की बेहद खूबसूरत और सलीके वाली महिला थी ।नबाब साकिर आधुनिक खयालात के इंसान थे खुदा के करम से दौलत ऐशो आराम की कोई कमी नही थीं नौकर चाकर कारिंदों से घर भरा था कमी थी तो औलाद की नबाब साकिर अली ने कोई मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च नही छोड़ा मगर तब भी उनको कोई औलाद नही हुई ।मौलवी संत सन्यासी पण्डित मंत्र तंत्र दुआ सारे प्रायास करने के बाद भी कोई औलाद नही हुईं कुछ लोंगो ने नबाब साहब को इस्लाम का वास्ता देकर दूसरी शादी की सलाह देते रहते मगर नबाब साहब बार बार यही कहते कि खुदा के हुज़ूर में कयामत में मैं और बेगम रबिया साथ अपने कायनात का हिसाब देने हाज़िर होंगे दूसरी शादी का तो सवाल ही नही उठता ।दिन बीतते रहे अब औलाद पैदा करने की उम्र बेगम रबिया की लगभग खत्म होने वाली थी लेकिन खुदा को कुछ और मंजूर था एक दिन नबाब साहब मगरिब की नवाज़ अदा करके फारिक हुए और आराम फरमाने के अंदाज़ पर बिस्तर पर करवट बदल रहे थे और बेगम कुरान पढ़ रही थी एकएक हवेली का पहरेदार लौड़ी को कहा जाकर नबाब साहब से अंदर जाकर इतल्ला करो की हवेली के सामने एक हिन्दू फकीर संत आया है जो बेगम साहिबा और नबाब साहब से इसी वक्त मिलना चाहते है और इसी वक्त नही मीले तो खुदा के हुज़ूर में बेऔलाद हाज़िर होना पड़ेगा ।लौंडी ने जाकर नबाब साकिर अली से सारी बाते तबसिल से बयां किया नबाब साहब ने कहा बेगम शायद खुदा ने तुम्हारी दुआ कबूल कर ली बेगम राबिया का नियमित कुरान पाठ खत्म हो चुका था तुरंत नबाब साहब एव बेगम रबिया हवेली के मुख्य द्वार पर पहुंचे दरवाजे का दरवान खड़ा था और केशरिया बना का हिन्दू संत चुपचाप जमीन पर बैठा सर झुकाए एक टक जमीन को निहारता जा रहा था ।ज्यो ही नबाब साकिर बेगम रबिया हवेली से बाहर मुख्य द्वार पर पहुंचे संत बोले आओ नबाब साकिर बेगम रबिया मुझे तेरे खुदा मेरे भगवान का आदेश हुआ है कि तुम्हारे जीवन की एक कमी पूरी करने का रास्ता बताऊँ मेरे पास नबाब जाकिर बेगम रबिया हवेली के दायरे बाहर पास जमीन पर बैठो नबाब और बेगम दोनों उस संत के पास जमीन पर बैठ गए।संत बोले ध्यान से सुनो नबाब और बेगम इस समय यह खयाल भी दिमाग से निकाल देना की तुम नबाब या बहुत बड़े आदमी हो तुम समझो कि तुम दोनों कयामत में खुदा के हुज़ूर में ही बैठे हो मैं खुदा नही हूँ ना तुम दोनों खुदा ज़र्रे जर्रे में है और इंतकाल के बाद इसी जर्रे में मिल जाना है ।हिन्दू श्मशान की राख बन जर्रे से मिलता है और तुम मुस्लिम कब्रिस्तान की मिट्टी से फिर संत बोले तुम दोनों मुझसे यह सवाल मत करना कि मैं कौंन हूँ कहाँ से आया हूँ और क्यो आया हूँ क्योकि बता चुका हूँ कि मुझे तुम्हारे खुदा मेरे भगवान ने भेजा है अगर मैं तुम्हे काफ़िर लँगू तब भी मेरी बातों को गौर फरमाना अब नबाब और बेगम तुम दोनों आकाश में चाँद को शिद्दत और अक़ीक़त कि नज़रों से बड़े गौर से देखो नबाब और बेगम सर उठकर पूर्णमासी के चाँद को बड़े गौर से देखने लगे तभी सन्त ने पूछा और गौर से देखो शायद दो चार दस बीस सौ दो सौ या हज़ार चाँद नज़र आये नबाब और बेगम एक साथ बोले नही एक ही चाँद नज़र आ रहा है फिर संत ने पूछा कि क्या यही चाँद पूरी दुनियां में दिखता है नबाब बेगम एक साथ बोले हा एक ही चाँद दुनियां को दिखता है जो दुनियां भर में अपनी चाँदनी बिखेरता है संत बोले अब तो समझ मे आ गया होगा कि खूदा का नूर कायनात के जर्रे जर्रे में है और वह एक है चाहे खुदा कहो या भगवान अब संजीदगी से सुनो तुम दोनों को चाँद सी खूबसूरत औलाद होगी जो दुनियां में प्यार मोहब्बत का पैगाम देगी तुम दोनों को हिंदुओ में प्रचलित चंद्रायन उपासना एक महीने करनी होगी यह उपासना तुम्हारे रोजे की तरह होगी फर्क इतना ही है कि पूरे माह एक अनाज का खाना खाना होगा फहले दिन एक निवाला दूसरे दिन दो निवाला क्रमश पन्द्रहवें दिन पंद्रह नेवला फिर सोलहवे दिन चौदह तेरहवे दिन बारह क्रमशः इसी प्रकार महीने के आखिरी दिन एक निवाला दिन में सिर्फ एक बार खाना होगा और हा बहुत पवित्र हिन्दू धर्म ग्रंथ का हरिवंश पुराण को पूरे माह नियमित स्वय पढ़ना या किसी इल्म हुनर के नेक इंसान से सुनना तुम दोनों ने पूरी जिंदगी बड़ी ईमानदारी अक़ीक़त के साथ पांचों वक्त की नबाज़ रोजे और कुरान का शिद्दत से सजदा किया है जिसके कारण खुदा का फरमान समझो या भगवान का आदेश की तुम बेऔलाद दुनियां को अलविदा नही करोगे।अच्छा अब मैं चलता हूँ नबाब और बेगम ने बहुत मिन्नतें की संत कुछ खाना खा ले या कुछ बख्सिस या कुछ भी मांग ले लेकिन सन्त उठा और सिर्फ इतना ही बोला खुदा तुम पर रहम करे खुदा भगवान तुम्हे आशिर्वाद दे और उठा चला गया कहाँ गया पता नही ।बेगम और नबाब साहब हवेली में पूरी रात विस्तर पर करवटें बदलते रहे उनकी समझ मे यह नही आ रहा था कि क्या करे सुबह हुई नबाब साकिर ने इस्लाम के बड़े बड़े विद्वानों को बुलवाया और रात की घटना का पूरी तबसिल से बया किया और इस्लामिक विद्वानों से राय मशवरा किया सभी ने एक स्वर मत से कहा आप काफ़िर बुत परस्त की बातों को सुना ही क्यो आप और बेगम को खुदा के हुज़ूर में सज़दा कर माफी मांगनी चाहिये इस्लस्मिक विद्वानों को नबाब साकिर ने बड़े इज़्ज़त के साथ विदा किया ।शाम ढली और नबाब साकिर ने बेगम रबिया से सारे मामलात पर गुफ्तगू करने के लिये छेड़ दिया बेगम ने बोलना शुरू किया नबाब साहब उस संत ने यही कहा था कि हम लोंग पांचों वक्त की नबाज़ रोजा बड़ी नेक नियति ईमानदारी से करते है और खुदा के ही फरमान के कारण वो आये हैं रोजा हम रहते ही है सन्त ने भी बताया है कि चांद्रायण व्रत रोजा की तरह है थोड़ा कठिन जरूर है और किसी भी धर्म ग्रंथ को पढ़ने सुनने से तो किसी का मज़हब नही बदलता मेरा तो यकीन हैं सन्त ने जो कुछ कहा वही जिंदगी दुनियां की सच्चाई है हमे उनके द्वारा बताए रास्ते को सिर्फ एक महीना ही तो चलना है हर्ज ही क्या है उस सन्त की बात मानने में ना तो हम मज़हब छोड़ रहे है ना ही बुत परास्त हो रहे है हम तो सच्चे इस्लाम की सच्चाई की राह के मुसाफिर है नबाब साहब को बेगम रबिया की बात पसंद आई और उन्होंने संत के बताए व्रत नियम को एक माह तक पालन करने का निश्चय कर लिया ।दस दिन बाद चाँद का नया महीना शुरू होने वाला था नबाब साहब और बेगम ने सन्त द्वारा बताए नियमानुसार सजदा शुरू किया एक माह कठिन नियम से चांद्रायण ब्रत किया हरिवंश पुराण विद्वान पण्डित मौलिक राज से सुना और एक माह में हवेली में ना तो कोई लौड़ी नौकर ही नबाब और बेगम के कमरे तक गया ना ही नबाब बेगम किसी से मिले अनुष्ठान समाप्त हुआ और पुनः जीवन सामान्य चलने लगा ।नबाब और बेगम का नियमित पांच वक्त का नबाज़ और कुरान पाठ पहले की तरह नियमित हो गया लगभग दो महीने बाद बेगम की तबियत नासाद हुई हकीम लड्डन शाह को नबाब साहब ने बुलाया हकीम साहब ने बेगम की नब्ज टटोली और खुशी से उछलते हुए कहा करिश्मा हो गया नबाज़ साहब बेगम पेट से है मैंने खुद बेगम का इलाज किया था बेगम में माँ बनने की काबिलियत नही थी उस समय यह बात आपको नही बताई थी मगर आज मुझे बेगम के हालात देखकर यकीन हो गया कि हो न हो खुदा का करिश्मा ही है मुबारक हो नबाब साहब आपको आपका वारिस मुबारक। धीरे धीरे समय बीतने लगा नबाब साकिर की हवेली में खुशियो की रौनक से जगमगाने लगी बेगम की हर छोटी बड़ी चाहत का ख्याल रखा जाता बेगम भी बहुत खुश थी जो मुराद मुद्दत से नही पूरी हुई थी वह पूरी होने जा रही थी धीरे धीरे नौ वह नबाब साकिर अली के वारिस के आने का वक्त आ गया बेगम ने बेहद खूबसूरत विल्कुल चाँद के टुकड़े को जन्म दिया हवेली में खुशियों के जश्न महीनों चलते रहे बड़े प्यार से नबाब साकिर अली एव बेगम वारिस को नाम दिया छोटे नबाब मुबारक खान धीरे धीरे छोटे नबाब मुबारक खान की बचपन की शरारते पूरे हवेली की रौनक बढ़ाती नौकर लौडियां छोटे नबाब के तमाम नखरों का खुशी से इस्तेकबाल करते नबाब साकिर खान को भी औलाद की शरारतों पर नाज़ और खुशी होती धीरी धीरे नबाब की उम्र तीन वर्ष हो गयी बड़े धूम धाम से खतने की रश्म हुई नबाब मुबारख खान की उम्र जब पांच वर्ष की हुई तब नबाब साकिर अली ने इस्लस्मिक शिक्षा के मौलीवियों को एव उर्दू फ़ारसी अरबी के उस्तादों को छोटे नबाब की शिक्षा के लिये नियुक्त किया छोटे नबाब ने बड़ी जल्दी ही उर्दू अरबी फारसी की अच्छी तालीम हासिल कर ली और कुरान को के बार पढा कुरान जबानी याद हो चुकी थी
नबाब साकिर खान छोटे नबाब मुबारक खान आगे की पढ़ाई के लिये हैदराबाद भेज दिया सेंट स्टीफेन कॉलेज में दाखिला हुआ छोटे नबाब पढ़ने में बहुत मेहनती होशियार थे छोटे नबाब उनका मन पढ़ाई पर ही ज्यादा लगता कही बाहर नही जाते कॉलेज में भी सारे टीचर्स छोटे नबाब की काबिलियत के कायल थे छोटे नबाब मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी में मशगूल थे एक दिन उनकी तबियत खराब हुई उनको डॉ मेहताब हसन की क्लिनिक जाना पड़ा डॉ की क्लिनिक से छोटे नबाब लौट रहे थे उस समय रात्रि के लगभग दस बज रहे थे डॉ की क्लिनिक और उनके घर की दूरी लगभग चार किलोमीटर थी डॉ की क्लिनिक से कुछ दूरी पर सुनसान रास्ता के कारण और भी वीरान था तभी छोटे नबाब की नज़र सड़क के किनारे उस जगह गयी जहा चार पांच आदमी किसी लड़की को जबरस्ती पकड़ कर मारने पीटने की कोशिश कर रहे थे छोटे नबाब के साथ उनके नौकर चाकर क्लास रूम छोड़कर हमेशा साथ रहते छोटे नबाब ने अपने खदुको को आदेश दिया कि चलो वहां छोटे नबाब और उनके सेवक जब पहुचे देखा कि एक बेहद खूबसूरत लड़की के साथ कुछ लोग बेहूदा हरकते कर रहे है छोटे नबाब स्वय बघ्घी से उतरे साथ उनके साथ सारे खदुके भी शरारती तत्वों के चंगुल से छुड़ाने के लिये मशक्कत करने लगे काफी जद्दोजेहद से लड़की को आजाद कराने में कामयाब हुये जब शरारती लोग भाग गए तब छोटे नबाब ने उस लड़की से पूछा तुम्हारा नाम क्या है घबराई लड़की बोली सोफिया जब छोटे नबाब ने पूछा कि इतनी रात को सुन सान सड़क पर कैसे पहुँची सोफिया ने बताया वह अपने एक फ्रेंड के घर मिलने गयी थी लौटते समय देर हो गयी ये शरारती लोग पीछे पढ गए आप लोंगो का शुक्रिया छोटे नबाब ने पूछा कि क्या अब तुम्हारे पीछे शरारती लोग पीछे नही पड़ेंगे सोफिया ने कहा मेरे पास कोई विकल्प भी तो नही है मुबारक खान बोले आप हमारे साथ चलिये हम आपको घर छोड़ते हुये चले जायेंगे सोफिया इनकार नही कर सकी और मुबारक खान की बघ्घी पर सवार हो गयी सोफिया ने चुप्पी तोड़ते हुये पूछा आपका नाम क्या है मुबारक मेरा नाम मुबारक खान है और मै गढरा के जमींदार नबाब साकिर खान का इकलौता वारीस हूँ और हैदराबाद के नबाब परिवार से सम्बंधित हूँ यहां स्टीफेन कॉलेज में पढ़ता हूँ ये मेरे साथ मेरे कारिन्दे है जिसे अब्बू ने मेरी सेवा देख रेख के लिये भेजा है जो मेरे साथ ही रहते है छोटे नबाब बोले मैंने तो अपने बारे में सब कुछ बता दिया आप अपने विषय कुछ नही बताया सोफिया ने बताया कि मैं अंग्रेज हाकिम की बेटी हूँऔर सेंट मेरी कालेज में पड़ती दोनों के बात चीत का सिलसिला चलते चलते पता नही कब सोफिया का घर आया पता ही नही चला सोफिया ने छोटे नबाब का शुक्रिया कहा और घर चली गयी छोटे नबाब भी सोफिया को छोड़ कर लौट कर अपने घर लौट आए। खाना खाने के बाद छोटे नबाब जब सोने गए तो उनकी आंख से नींद ग़ायब थी वह बिस्तर पर कभी इधर करवट बदलते कभी उधर मगर उनकी आंखों के सामने से सोफिया की तस्बीर दिलो दिमाग पर छाई हुई थी यही हाल सोफिया का भी था किसी तरह से सुबह का सूरज निकला सोफिया ने अपने मम्मी से पिछले रात की घटना की जानकारी दी और छोटे नबाब को घर बुलाकर उनका आभार व्यक्त करने का आग्रह किया सोफिया की मम्मी जूलिया ने बेटी के साथ घटी घटना एव उसके आग्रह को अपने हसबैंड फ्रेजर से बताया फ्रेजर ने जूलिया से कहा कि आज शाम को मुबारक को बुला कर शुक्रिया थैंक बोलते है फ्रेजर ने तुरंत सपने कार्यालय के कर्मचारियों को मुबारक खान को शाम दावत पर बुलाने के लिये भेजा फ्रेजर के कार्यालय के अधीनस्थ मुबारक खान के पास जाकर सोफिया के डैड का निमंत्रण दिया मुबारक खान ने हामी भर दी और कॉलेज से छूटते ही अपने खदुको के साथ फ्रेजर के घर पहुँच गए वहां फ्रेजर जूलिया और सोफिया पहले से ही इंतज़ार कर रहे थे मुबारक के पहुंचते औपचारिक परिचय के बाद फ्रेजर जूलिया ने सोफिया को सुरक्षित बचाने के लिये थैंक कहा फिर एक दूसरे के परिवार के विषय मे जानकारी का आदान प्रदान हुआ और रात्रि डिनर के बाद सोफिया की माँम ने कहा सोफिया तुमको बहुत लाईक करती है मेरे यहाँ कोई बंदिश नही है तुम सोफिया के साथ कही कभी घूमने फिरने के लिये जा सकते हो मुबारख को तो जैसे मुह मांगी मुराद मिल गयी फिर विदा लेकर अपने खदुको के संग लौट आये अब जब भी फुर्सत मिलती मुबारक और सोफिया साथ घूमते साथ पढ़ाई के विषय मे भी
जानकारियां साझा करते दोनों ने मैट्रिक की परीक्षा पास की फिर इंटरमीडिएट मुबारक को उच्च शिक्षा के लिये कोलकाता जाना पड़ा और फ्रेजर को इंग्लैंड हुकूमत ने इंग्लैंड वापस बुला लिया सोफिया इंग्लैंड चली गयी कलकत्ता जाने से पूर्व छोटे नबाब अपने वालिद से मिलने आये उन्होंने अपनी मुहब्बत सोफिया के विषय मे भी अब्बू साकिर और अम्मी राबिया को बताया उसके मुबारक के अब्बू अम्मी को कोई एतराज नही था मुबारक कलकत्ता जाकर उच्च शिक्षा में जुट गए सोफिया उन्हें हर रोज एक खत लिखती पांच छ वर्षों में सोफिया के खत कितने ही किताबो के बराबर हो गए थे ।एक दिन अचानक छोटे नबाब कलकत्ता शहर घूमने अकेले निकले अकेले इसलिये की जबसे उच्च शिक्षा के लिये कलकत्ता गए हास्टल में रहते उनके साथ कोई अन्य आदमी नही था जब कोलकाता की सड़कों पर घूम ही रहे थे कि शोर शराबा होने लगा भागो भागो हिन्दू मुस्लिम दंगा हो गया है और भीड़ एक दूसरे के खून की प्यासी है मुबारक को कोई ख़ौफ़ नही था बेखौफ वो अपने रौ में थे तभी एक तरफ हज़ारों को संख्या में हिंदू और मुसलमान आमने सामने अल्लाह हो अकबर एव जय भवानी के नारे लगाते आमने सामने खड़े एक दूसरे के जान के प्यासे तभी छोटे नबाब मुबारक खान दोनों समुदायो के बीच पहुंचे और एक सवाल किया कहा हिन्दू मुस्लिम भाईयों सर उठाओ आकाश में सूरज अपने सुरूर पर है ध्यान से देखो पता नही मुबारक की जुबान में किस जादू था कि हिन्दू मुस्लिम सभी आकाश की ओर मुंह करके सूरज को देखना शुरू किया मुबारक ने सवाल किया ध्यान से देखो सूरज एक ही है या बहुत सारे हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग बोले एक ही सूरज है फिर मुबारक ने पूछा कि यही एक सूरज पूरी दुनियां के दिन का उजाला है दोनों समुदायों के लोंगो ने कहा हा फिर मुबारख खान ने पूछा कि क्या सूरज हिन्दू मुस्लिम के भेद के अनुसार उगते डूबते है दोनों समुदायों ने कहा नही मुबारक ने कहा जब खुद ईश्वर एक है कोई फर्क नही फिर मज़हबी फसाद क्यो दोनों समुदायों के समझ मे बात आ गयी और माहौल शांत हो रहा था तभी जाने किस तरफ से पत्थर का बड़ा टुकड़ा बहुत तेज मुबारक के सर से टकराया और वह बेहोश हो गए दोनों सम्प्रदाय के लोग उन्हें उठाकर साथ अस्पताल पहुंचे डॉक्टर ने सघन जांच करने के बाद बताया कि मुबारक का बचना ना मुमकिन है पूरे कोलकाता के प्रशासनिक अमले द्वारा नबाब साकिर अली को शीघ्रता से कोलकाता बुलाया गया और पूरी घटना और छोटे नबाब मुबारक खान के सेहत के बारे में बताया गया कि उनका बचना नामुमकिन है नबाब साकिर खान और रबिया पागलों की तरह दहाड़ मारकर रोने लगे इस हृदय विदारक दृश्य को देखकर पूरा कोलकाता शहर रो पड़ा उधर हिन्दू मंदिरों में तो मुसलमान मस्जिदों में मुबारख की सलामती की दुआ मांगते चारो तरफ अफरा तफरी कोहराम मचा था तभी एक संत नबाब साकिर और रबिया के पास पहुचे रुबिया और नबाब साकिर खान उन्हें तुरंत पहचान गए और बिलखते बोले इसी दिन के लिये आपने औलाद बख्सी थी वह सन्त बोले कि चिंता ना करो मुबारक है ,मुबारक था ,मुबारक़ रहेगा आप फौरन सोफिया को बुलाओ क्योकि सोफिया मुबारक की जिंदगी है इतना कहकर वह संत फिर पता नही कहां चले गए फिर साकिर ने
कोलकाता प्रशासन से सोफिया के बुलाने के लिये कहा प्रशासन को कोई आपत्ति नही हुई और एक सप्ताह में सोफिया फ्रेजर और जूलिया कोलकाता आ गए सोफिया को फौरन छोटे नबाब मुबारक के पास लाया गया सोफिया बिना किसी संकोच के मुबारक से अचेत जिस्म से लिपट कर बोली यू आर कमिटेड यु कांट लीव मी अलोन यू कम बैक तुम्हे हक ही नही जाने का तुम मेरे बिना खुदा के यहां जा ही नही सकते कुछ देर बाद महीने भर से अचेत पड़े मुबारक को चेतना आयी और उन्होंने कहा रियली वी कांट लाइव सर्वाइव विदाउट यू तुरंत डा वहां एकत्र होकर मुबारक की जांच की और घोषित किया कि वह पूर्णतः स्वस्थ है जब उससे डॉक्टर और अन्य लोंगो ने सवाल किया कि इतने दिनों के विषय मे आपको कुछ भी जानकारी है तो छोटे नबाब ने अदा अंदाज़ से जबाब दिया हमारी जान सोफिया में थी उन्ही को खोजने गए थे।चारो तरफ खुशी का माहौल था सबने सोफिया और छोटे नबाब की मोहब्बत को ईश्वरीय प्रेम खुदाई मोहब्बत और लव ऑफ लाइफ कह कर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ दोनों का दिल से स्वागत किया।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।