Nishbd ke Shabd - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

नि:शब्द के शब्द - 14

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक /

चौदहवां भाग




'हाय मर गया अम्मा'

अचानक चलती हुई वायु का एक झोंका आया और चुपचाप बैठी हुई मोहिनी की बड़ी-बड़ी आँखों में धूल के महीन कण भर कर चलता बना. इस प्रकार कि, मोहिनी को अपनी साड़ी के पल्लू से आँखें साफ़ करनी पड़ गईं. उसने आँखें साफ कीं तो वे तुरंत ही लाल भी हो गईं. बड़ी देर से किसी खेत की मुंडेर पर बैठी हुई मोहिनी काफी देर से पैदल चलते हुए थक गई थी और फिर यहां आकर सुस्ताने के लिए बैठ गई थी।

अपने कार्यालय से दो दिन का अवकाश और एक दिन रविवार का मिलाकर, पूरे तीन दिन का समय लेकर वह अंतिम बार मोहित के गाँव और उसके पैत्रिक घर पर, उससे मिलने के लिए यहाँ आई थी. अपने शहर से आने वाली बस ने उसे मोहित के गाँव की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे उतार दिया था और वहां से अब उसे पैदल ही, खेतों के मार्ग से मोहित के गाँव तक जाना था. सो जब वह चलते-चलते थक कर चूर हो चुकी तो यहीं खेत की मेड़ के किनारे बैठ गई थी. आज हवाओं में तीव्रता थी. खेत की मेंड़ों पर घसियारों के द्वारा घास छील लेने के कारण धूल जमा हो चुकी थी. यही धूल ज़रा-सी हवा के तेज झोंके से उड़कर मोहिनी की आँखों में भर चुकी थी.

सामने ही चार-छह खेतों की दूरी पर मोहित का हरे खतों की झूमती हुई हवाओं में हर तरह की सुविधाओं से युक्त विकसित गाँव दिखाई दे रहा था. गन्ने के खेतों में पानी देने के लिए ट्यूब बेल से पानी निकल कर खेतों की ओर जा रहा था. दूर, खेतों में कुछेक मजदूर खेतों में काम कर रहे थे. मोहिनी अपने स्थान से उठी और सीधी ट्यूब बेल की तरफ चली गई ताकि अपनी धूल से भरी हुई लाल आँखों को पानी से साफ़ कर सके.

फिर जैसे ही उसने अपनी आँखों पर पानी छिड़का, उन्हें धोया और अपनी साड़ी के पल्लू से साफ़ करके जैसे ही उसने अपनी आँखें खोलकर सामने देखा तो सामने अपने हाथों में फांवड़े लिए दो गंवार आदमियों को बेशर्मी से दांत निकालकर हंसते देख वह अचानक ही चौंक गई. मोहिनी उन्हें देखते ही पहचान गई. वे दोनों पुरुष मोहित के चाचा के वे लड़के थे, जिनका हाथ उसकी खुद की हत्या में भी शामिल था. साथ ही जिन्होंने कभी मोहित की भी हत्या कर देने का कार्यक्रम तैयार कर लिया था.

'आप . . .?' मोहिनी कुछ कहती, इससे पहले ही उनमें से एक ने मोहिनी से पूछा.

'मैं मोहिनी.'

'कौन मोहिनी . . .?'

'मोहिनी, मोहित की होने वाली . . .'

'अरे, उसे तो . . .'

आप दोनों ने मार डाला है?'

'?'- मोहिनी के मुख से ऐसी अप्रत्याशित बात सुनकर, उन दोनों को जैसे सांप सूंघ गया.

'नहीं. . .नही. आपको शायद भ्रम हुआ है. और आप भी वह मोहिनी नहीं हैं जो मर चुकी है.'

'मैं वही हूँ. अब जीवित हूँ, इसलिए घबराइये नहीं, आप दोनों पर कत्ल का इलज़ाम भी नहीं लगेगा.'

'?'- वह केस तो समाप्त हो चुका है. खैर छोडिये इस विषय को. वैसे आपको जाना कहाँ है?' उसने पूछा.

'मोहित के घर.'

'वह तो शहर गया हुआ है. यूँ, समझ लीजिये कि, अबवह शहर में ही रहता है. यहाँ तो कभी-कभी आया करता है.'

'लेकिन, मुझे उसी के घर जाना है.'

'चलिए हम पहुंचा देते है.'

'नहीं. मैं चली जाऊंगी.'

'रास्ता मालुम है आपको?'

'इतना सारा कुछ मैंने बता दिया है उसके बारे में. क्या रास्ता भी नहीं मालुम होगा मुझको?'

यह कहकर मोहिनी जाने लगी तो वे दोनों हैरान रह गये. मगर, उन्हें मोहिनी पर संदेह हुआ था. वे दोनों एक संशय में थे, इसलिए चुपचाप वे उसका पीछा करने लगे. उन्होंने आपस में सम्मति बनाई और सोचा कि, यह लड़की चाहे जो भी जो, उनके बारे में बहुत कुछ जानती है. इसलिए इसे मारकर ट्यूब बैल की बड़ी पानी की टंकी में डाल देगे. सुबह अपने आप खबर हो जायेगी कि, कोई अनजान लड़की पानी की बड़ी टंकी में गिरके मर गई है. सो, ऐसा सोचते हुए उन दोनों ने मोहिनी को गन्ने के घने खेत में पकड़ा और जैसे ही वे उसका गला घोंटने को हुए कि अचानक ही उन्हें लगा कि जैसे किसी ने अचानक से उनके ही फांवड़े से उनके सिर पर प्रहार कर दिया है. वे दोनों, 'हाय मर गया', 'मर गया अम्मा' चिल्लाते हुए नीचे गिर पड़े. उन दोनों के सिर बुरी तरह-से फट चुके थे और उनके ज़ख्मों से ताजा रक्त निकल कर नीचे गन्ने के खेत में मिलता जा रहा था. थोड़ी ही देर में उन दोनों ने छटपटाते हुए अपने प्राण त्याग दिए. उनकी इस संसार की लीला समाप्त हो चुकी थी. मोहिनी, अभी भी बहुत हैरानी के साथ उन दोनों को मरता हुआ देख रही थी. तभी उसे भटकी हुई इकरा की रूह की आवाज़ सुनाई दी,

'अब खड़ी हुई क्या देख रही हो. जल्दी से यहाँ से निकलो और अपनी जान बचाओ. कहीं भी जाकर छुप जाओ और फिर दूसरे दिन इस गाँव में आना.'

इकरा कहकर एक तीव्र वायु की झन्नाटेदार सांय की भयानक आवाज़ के साथ, खेत में खड़े हुए तमाम गन्नों के पेड़ों को हिलाती-झुकाती हुई खेत के बाहर चली गई. बाद में मोहिनी भी वहाँ से बहुत छिपकर निकली और फिर मोहित के खेतों के सिवानों के बाहर चली गई. यह दूसरा अवसर था की, इकरा की भटकती हुई आत्मा ने मोहिनी की जान की रक्षा की थी।

दूसरे दिन, मोहित के गाँव में उसके चाचा के दोनों लड़कों की अचानक निर्दयी मौत की खबर उस गाँव तथा आस-पास के गाँवों में पके खेतों में लगी हुई आग के समान चारों तरफ फैल गई. उधर शहर में जब मोहित को ये खबर मिली तो वह भी अपने पिता से खबर मिलने पर अपने गाँव में आ गया.

सुबह का सूरज उठ कर ऊपर आ चुका था. सारे गाँव में खलबली मची हुई थी. मोहित जब आया तो दो आदमियों की हत्या की खबर को सुनकर खेतों में भीड़ का हुजूम लगा हुआ था. गाँव में पुलिस की गाड़ियां खड़ी हुई थीं. मोहित, इसी बारे में अपने घर के सामने दालान में एक आराम कुर्सी पर टाँगे फैलाकर बैठा हुआ सोच रहा था. पुलिस ने अब तक अपनी समस्त कार्यवाही पूरी कर ली थी. दोनों लाशों को पंचनामा बनाकर पोस्ट मार्टम के लिये भेजा जा चुका था. मोहित अभी यह सब सोच ही रहा था कि, तभी उसने मोहिनी को शीघ्रता-से उसी की तरफ आते हुए देखा तो वह फौरन ही उठ कर खड़ा हो गया और मोहिनी को अपनी तरफ आते हुए देखने लगा. फिर वह जैसे ही उसके पास आकर खड़ी हुई, वह उसे देखते हुए एक संशय से बोला कि,

'तुम. . .? तुम यहाँ क्या कर रही हो?'

'आपसे ही मिलने आई हूँ.'

'जानती हो कि, यहाँ क्या-कुछ घटित हो चुका है?'

'?- मोहिनी ने सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनकर अपना सिर नहीं में हिलाया तो मोहित उससे बोला कि,

'मेरे दोनों 'कजिन', अर्थात चाचा के लड़कों की कल किसी ने हत्या कर दी है?'

'उन्हें तो मरना ही था.'

'तुम्हारा मतलब?'

'मेरा मतलब है कि, जो जैसा करता है, वैसा ही भरता भी है. एक दिन उन्होंने अपने बाप के साथ मिलकर मुझे मार डाला था. आज उन्हें भी किसी ने मार डाला है.'

'तुम जानती हो, इस बारे में कुछ?'

'मैं वर्षों बाद तो आज आई हूँ और वह भी तुमसे मिलने. भला मुझे क्या मालुम होगा.?'

'मुझसे मिलने? . . .क्यों?'

'पहले बैठकर बातें करते हैं. गंगिया के हाथ की बनी चाय पीते हैं.' मोहिनी बोली तो मोहित अचानक ही अपने स्थान पर जैसे उछल-सा पड़ा. बोला,

'तुम गंगिया को कैसे जानती हो?'

'बताया न कि, मैं तुम्हारे बारे में, तुम्हारे पिता जी के बारे में, तुम्हारी माता जी के बारे में, तुम्हारे गाँव और तुम्हारे सारे परिवार के बारे में सब कुछ जानती हूँ. मगर दुःख है कि, तुम मुझ पर यकीन ही नहीं करना चाहते हो?'

'?'- तुमने अभी कहा है कि, तुम मेरे बारे में और मेरे परिवार के बारे में सब कुछ जानती हो?'

'हां, कितनी बार कहूँ मैं?'

'अच्छा, तो कोई ऐसी बात बताओ, जो केवल मेरे और तुम्हारे ही बीच हो. उसे मेरे और तुम्हारे अतिरिक्त कोई तीसरा नहीं जानता हो?'

'बताऊँ? सुनोगे तो तुम्हारा सारा मस्तिष्क चकरा जाएगा?'

'कुछ नहीं होगा मुझे. बताओ तो?'

'तुम्हारे चाचा को मैंने ही उस समय मारा था, जब मैं आत्मिक रूप से इस संसार में भटकती फिर रही थी. तुम्हारे चाचा का खून उनके मरने के पश्चात उनका एक लोटे में, मैंने ही एकत्रित किया था. कुछ याद आया तुमको?'

'हे, भगवान? तुम स्त्री हो या फिर कोई भयानक सपना?' मोहित दांतों तले अपनी जैसे अंगुली ही दबाकर रह गया.

'घबराओ मत. मैं तुम्हारा नुक्सान तो कर ही नहीं सकती हूँ क्योंकि, मैं तुम्हारी ब्याहता भी तो हूँ। मैं कोई भी भयानक सपना आदि नहीं हूँ. एक स्त्री हूँ और वह भी केवल और केवल तुम्हारी ही.'

'ओह भगवान ! कैसे तुम पर विश्वास करूं मैं?'

'ऐसे.'

'मतलब?'

'तुम्हारे चाचा के जो दोनों लड़कों की लाशें गन्ने के खेत में से अभी-अभी पुलिस उठाकर ले गई है, उनको भी इकरा हामिद की भटकी हुई आत्मा ने कल मेरे ही सामने गन्ने के खेत में फांवड़े से इसलिए मारा था क्योंकि वे दोनों उसके शरीर के साथ बलात्कार करना चाहते थे.'

'हाँ, उसके शरीर के साथ ही. इकरा हामिद के बदन में अब मैं, अर्थात मोहिनी की आत्मा को, ऊपर आसमान के राजा, 'मनुष्य के पुत्र' ने मेरे आंसुओं पर तरस खाकर भेजा है. तुम्हारी दशा देखकर, मैं उनके सामने बहुत रोई और गिड़-गिड़ाई थी. यही कारण है कि तुम लोग इकरा के बदन में मुझे देखकर पहचानने से इनकार करते हो.'

'तो अब क्या चाहती हो तुम मुझसे?'

'देखो, चुपचाप मुझसे शादी कर लो. शादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. हम दोनों, कहीं बहुत दूर चले जायेंगे और अपनी एक नई दुनिया बसा लेंगे.'

'और अगर मैं मना कर दूँ तो?'

'तो मैं ऐसे ही तुम्हें सारी उम्र परेशान करती रहूंगी.'

'तुम्हारा कभी मानसिक मुआयना हुआ है? लगता है कि, तुम पर किसी अन्य दुष्टात्मा का प्रकोप है?'

'हां हुआ था, हॉस्पिटल में. अगर कोई शक है तो तुम भी 'चेक अप' करवा लो मेरा. अपने मन का संदेह निकाल लो. किसी बाबा, प्रीस्ट और साधू आदि से मेरी झाड़-फूंक करवा लो.'

'?'- मोहिनी ने कहा तो मोहित पहले से भी अधिक आश्चर्य से भर गया. एक अजीब ही शक और संशय के घेरे में वह घिर गया. उसकी समझ में नहीं आ सका कि, उसे अब क्या करना चाहिए. काफी देर तक वह इसी सशोपंज में खड़ा रहा. फिर बहुत कुछ सोचने के बाद उसने बात का विषय बदला और मोहिनी से बोला कि,

'तुमने, मेरे दोनों 'कजिन्स' को अपनी आँखों से मरते देखा है. जानती हो कि, इस बात पर तुम्हें जेल भी हो सकती है?"

'क्यों हो सकती है जेल मुझे? तुम पुलिस में जाकर बताओगे क्या? और अगर बताओगे भी तो सबूत क्या है तुम्हारे पास? फिर मत सोचना कि, इकरा तुम्हें भी ज़िंदा रहने देगी?"

'?'- कौन इकरा? कैसी इकरा?' कभी किसी ने देखा भी क्या उसे?' मोहित बोला तो मोहिनी ने कहा कि,

'देखना चाहते हो उसे?'

'जरुर.'

तब मोहिनी ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेरते हुए वायु में जैसे किसी को सम्बोधित किया. वह बोली कि,

'इकरा, ज़रा बताना तो मोहित को?'

'अरे. . .रे. . .रे. .? यह क्या करती हो?' मोहित अचानक ही लड़-खड़ाता हुआ नीचे जा गिरा.

उसे लगा की जैसे किसी अदृश्य वायु जैसी शक्ति ने उसे ज़ोरदार धक्का दे दिया है।

'अब समझ में आ गया होगा कि, मैं अभी भी अकेली नहीं हूँ.' मोहिनी बोली तो मोहित जैसे बहुत घबराता हुआ बोला,

'तुम स्त्री नहीं, मोहिनी नहीं, जरुर कोई बला हो. बहुत ही खतरनाक प्रेतात्मा हो?'

वे दोनों अभी बातें ही कर ही रहे थे कि तभी मोहित के पिता अचानक से वहां पर आ गये. उन्हें देखते ही मोहिनी ने अपनी साड़ी का पल्लू लेकर उससे अपना चेहरा ढंक लिया. तब उसे देखते हुए वे मोहित से अपने हाथ के इशारे से बोले कि, 'यह कौन?'

'मेरे बॉस की कम्पनी में स्टेनोग्राफर हैं. मुझसे मिलने आई हैं.'

मोहित बोला तो मोहिनी ने उसे टोक दिया. वह बोली,

'यूँ, झूठ क्यों बोलते हो? बताते क्यों नहीं कि, मैं मोहिनी हूँ.'

'मोहिनी. . .? वह तो मर चुकी है.' मोहित के पिता ने आश्चर्य से मोहिनी की तरफ देखते हुए कहा.

'मर चुकी नहीं है. मार डाली गई थी, लेकिन अब जीवित होकर फिर-से आ गई है.' मोहिनी ने कहा तो मोहित के पिता बोले,

'बेटी, पहेलियाँ मत बुझाओ. सारी बात विस्तार से बताओ. आखिर माजरा क्या है?'

तब मोहिनी ने सारी कहानी विस्तार से मोहित के पिता को सुना दी. मोहिनी की सारी कहानी सुनने के बाद, मोहित के पिता बड़ी देर तक सोच में पड़े रह गये. विश्वास और अविश्वास के समन्वय में वे कभी मोहिनी को देखते थे तो कभी मोहित को. सचमुच में मोहिनी की समस्त कहानी में एक अजीबो-गरीब दास्ताँ थी. एक ऐसी दास्ताँ कि, जिसका सम्बन्ध न केवल मोहित ही अकेले से था बल्कि उनका समूचा परिवार ही इस रोंगटे खड़े कर देनेवाली, तिलस्मी जैसी कहानी के दायरे में सिमटता नज़र आने लगा था.

-क्रमश: