Dastak Dil Par - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 3

दस्तक दिल पर किश्त-3

हम दोनों उठ खड़े हुए , वो जीने पर आगे आगे चल रही थी और मैं उसके पीछे पीछे था , रात का कोई 1.30 का समय हो चला था , अभी अभी दिवाली गुजरी थी, सारे आस पास के घरों में बिजली की सुंदर लड़ियाँ लटक रही थी। बहुत सुंदर वातावरण था, उसके घर पर भी सुंदर लड़ियाँ जगमग कर रही थी, वो लड़ियाँ झूले के आस पास भी लगाई हुई थी, मैंने कहा "ये लाइट्स…..", वो मेरा मतलब समझ गई और उसने सारी बत्तियां बुझा दी, हम दोनों झूले के पास आ गए थे ।उसने कहा "बैठो", पहले वो बैठी और उसके पहलू में मैं भी बैठ गया, उसने पाँव से हल्के से झूले को शिरकत दी, झूला मद्धम सा झूलने लगा।

आसमान पर अर्ध चन्द्र खिला हुआ था, उसने एक शॉल ओढ़ रखा था, मैं स्वेटर में था, उसने बिना मेरी और देखे कहा “मेरी बहुत इच्छा थी चाँदनी रात में मैं झूले पर बैठी रहूं और इस चाँद को निहारूँ, मगर अकेले में डर लगता है इसलिए चाहकर भी अपनी इच्छा पूरी नहीं कर पा रही थी, आज मेरी ये इच्छा पूरी हुई, आज हम बहुत देर तक यहां बैठेंगे।” मैंने कनखियों से उसे देखा, फिर चाँद को देखा, फिर उसके चेहरे पर निगाह डाली, सामने वाली बिल्डिंग की चमकती लड़ियों की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, उसका चेहरा दमक रहा था, उस दमक में मेरे साथ बैठे होने से और भी इजाफा हो गया था, सच कहूं तो मुझे आसमानी चाँद उसके आगे फीका नजर आया।

वो चाँद को यूँ निहार रही थी, जैसे किसी चकोर को उसका मनचाहा वरदान मिल गया हो। उसने एक निगाह भर कर मुझे देखा, फिर वो बोली "आपको कैसा लग रहा है?" मैं जैसे नींद से जागा था । मैंने कहा "आज ऐसा लग रहा है जैसे जन्मों की मुराद पूरी हो गई हो, सुनिये... आप जैसे अच्छी और सुंदर शख्सियत के साथ होना मेरा सौभाग्य है।"

मेरे ऐसा कहने पर वो मुस्कुरा कर बोली "आप यूँही तारीफ़ करते रहते हैं" , मैंने कहा "नहीं.. सच है ये, मुझ जैसे साधारण से दिखने वाले को आप जैसी सुंदर साथी पसंद कर ये मेरा भाग्य ही है।" तो उसने कहा "सुनिये.. आप बहुत सुंदर हैं, कभी भी खुद को कम कर के नहीं आंके", सर्दी गहरा गई थी।

मैंने देखा उसके बाल बंधे हुए थे उसने एक रबड़ बैंड से अपने बालों को बांध रखा था, मैंने उससे कहा , "सुनिये मुझे आपके खुले बाल देखने हैं, आपके बालों का ये रबड़ बैंड हटा दूँ?" उसने कहा "हाँ हटा दो", मैंने उसके बालों से वो बेंड हटा दिया, और उस बेंड को कलाई में ही पहन लिया कि वापस जब बाल बांधने हो तो ये खो ना जाये।मैंने उसके बालों में हाथ फिराया, वो असहज हुई, मैंने झट से हाथ हटा लिया।

उसने मुझे देखा, फिर हँस दी, चाँद को निहारने लगी, झूला बदस्तूर झूलता रहा था ,सर्दी गहरा गई थी हल्की ठिठुरन शुरू हो गई थी मैं थोड़ा सा उससे सट गया था। उसके बदन की खुश्बू महसूस हो रही थी, हल्की गर्माहट माहौल में घुल गई, उसे अंदाजा हो गया था कि मुझे ठंड लग रही है, उसने अपना शॉल मेरे कंधे पर भी डाल दिया था, हम दोनों एक ही शॉल में हो गए थे, मुझे असहज लग रहा था, शराब की खुमारी अभी भी थी मुझे।

मेरा मन किया कि इतनी ठंड में उसका हाथ थाम लूं, मेरे हाथ में कसमसाहट थी मैं बार बार बैचैनी से हाथ को खोल रहा था बंद कर रहा था, उसे सब समझ आ रहा था, जाने मेरे मन में क्या सूझा, मैंने अपना सर उसके कंधे पर टिका दिया, माहौल शांत था, चाँद को किसी बादल ने आगोश में ले लिया था, सामने जल रही लड़ियों की जल बुझ से उसका चेहरा दमक रहा था, 2.30 बज चुके थे, उसने कहा आपको ठंड लग रही है, चलिए नीचे चलते हैं।

झूले को खाली झूलता छोड़ हम नीचे आ गए, झूला भी उस दिन बड़ा खुश हुआ होगा, उसने उस दिन खामोश मुहब्बत को बहुत नजदीक से देखा महसूस किया, शायद वो खुश था मेरी तरह।

हम ड्राइंग रूम में ही आकर बैठ गये, उसने पूछा "चाय पियोगे" , मैंने मना कर दिया, दोनों बहुत सी बातें करना चाह रहे थे मगर लब थे कि जैसे हड़ताल पर थे, उन्हें कुछ नहीं कहना था, और कान तरसते थे सुनने को, पर आँखें बड़ी खुश थी एक दूजे से मिलकर, चमक उठती और झुक जाती थी।

उसने कहा "आपको कौनसा गाना पसंद है? आओ गाने सुनते हैं", मैंने कहा “बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदिया…..” ये सुनेंगे उसने ये गाना मोबाइल पर चला दिया और हम खामोशी से सुनते रहे, एक कड़ी आई, “हम तुम कितने पास हैं कितने दूर हैं चाँद सितारे……” जैसे ही ये बोल आये मैंने साथ मे गाना शुरू कर दिया, वो मुझे बहुत प्यार से देखने लगी, बड़ा अच्छा लग रहा था उसे भी….मुझे भी, फिर उसका लास्ट अंतरा आया, “तुम इन सब को छोड़ के कैसे कल सुबह जाओगी,” यहां आकर एक दर्दीली खामोशी छा गई थी, बड़ी मुश्किल से गाना पूरा हुआ। उसके बाद उसने कहा "एक गाना मैं सुनाती हूँ", उसने गाना लगाया “सांसों की माला पर समरूँ में पी का नाम” माहौल रूहानी रुमानियत से भर गया, खो गए हम उस गाने में, वो गाना सुनने के बाद मैं उसके पास जाकर बैठ गया।

वो थ्री सीटर सोफे पर बैठी थी, उसने अपने पांव ट्री टेबल पर रखे हुए थे, मैंने कहा "मुझे आपकी गोद में सर रखकर सोना है", उसने कहा "सो जाओ।" मैंने अपना सर उसकी गोद मे रख लिया उसने मेरे माथे पर स्नेह से हाथ फिराना शुरू कर दिया था, उसके खुले बाल बहुत सुंदर लग रहे थे उसके बाल ज्यादा लम्बे नहीं थे उसकी कोहनी तक आ रहे थे, उसके बाल बहुत घने थे, और बहुत सुंदर , शायद मैंने आज तक उसके जैसे सुंदर घने बाल नहीं देखे थे।

मैं कई देर तक उसके बालों को निहारता रहा, उसके हाथ बदस्तूर मेरे माथे पर शिरकत कर रहे थे,मैंने अपना हाथ बढाकर उसके उन घने बालों से खेलना शुरू कर दिया। उसके मोबाइल में गाना बज रहा था, “मेरी हिरिये, फ़कीरिये नी सोणीये….तेरी खुशबू नशीली मन मोणीये” मैं बहक रहा था, मेरी शराब ने अभी तक पीछा नहीं छोड़ा था, उसने कहा "मेरे पैर दुखने लगे उठकर बैठिए" , मैं उठकर उसके पास ही बैठ गया, उसने पूछा "क्या देख रहे हो?" ,मैंने कहा "ये देख रहा हूँ भगवान कितनी सुंदर रचनाएँ रचता है, आप कितनी सुंदर हो, पर आपमें जरा भी गुमान नहीं।" उसने कहा "शरीर मिट्टी का है मिट्टी में मिल जाना है फिर गुरुर किस बात का करना, आप भी बहुत सुंदर हो, आपकी आंखें बहुत सुंदर हैं, और आपको घमंड तो छूकर भी नहीं गुजरा।"

हम बातें कर रहे थे अचानक जाने मुझे क्या हुआ , मैंने उठकर उसके लबों को चूम लिया, वो हड़बड़ा गई उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांप लिया, वो पत्थर की मूरत बन गई उसके इस रवैये से मुझे खुद पर शर्म महसूस हुई, शायद उसे इस हरकत की मूझसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, रात में सन्नाटा पसरा था।

मुझे उस कमरे में गहन खामोशी के अलावा कुछ नहीं सुनाई दे रहा था, मुझे लग रहा था मेरी इस हल्की हरकत पर मुझे पाताल में फेंक दिया गया था। मेरी धड़कने घड़ी की टिकटिक से ज्यादा जोर से सुनाई दे रही थी, मुझे अपराध बोध हो रहा था, और उसका विश्वास तोड़ने का मलाल था, वो तो बस जैसे निष्प्राण हो गई थी।
पौने चार बज रहे थे, उसके हाथ उसके चेहरे से नहीं हटे थे, मैंने खुद को संभाल कर उससे कहा "क्या हुआ", उसने गर्दन हिलाकर कहा 'कुछ नहीं', मैंने कहा "दिन उगने वाला है, मुझे अब जाना चाहिए, आपके मुहल्ले में जाग हो जायेगी। मैं जाऊँ?", उसने फिर अपने सर को हिलाकर कह दिया 'हाँ', मैं वहाँ से उठा , चुपचाप दरवाजे के पास गया, वहीं से कहा, "गेट बंद कर लेना मैं , जा रहा हूँ।" , उसने कुछ नहीं कहा, मैं जल्दी से उसके मुहल्ले से बाहर सड़क पर आ गया।

ऑटो किया और उसमें बैठ गया । मेरा मन दुखी था मैंने अच्छा नहीं किया, मैंने ऑटो से ही उसे व्हाट्सएप मेसेज किया”सॉरी”.....मैसेज अनसीन रहा, मैं एकदम ब्लेंक था, जैसे ही मैं होटल के पास पहुंचा, मोबाइल बज उठा, "पहुंच गए?" उसने पूछा , मैंने कहा "बस पहुंचने वाला हूँ।" उसने कहा "सो जाना आज ऑफिस भी जाना है तुम्हें, आज तो हो ना यहां?", मैंने कहा "हाँ", वो बोली ठीक है दिन में बात करूंगी मुझे भी कुछ देर सोना है । मैंने देखा उसका रबड़ बेंड मेरी कलाई में ही पहना रह गया था।

संजय नायक"शिल्प"
क्रमश: