Dastak Dil Par - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

दस्तक दिल पर - भाग 6

दस्तक दिल पर- किश्त 6

मैं चहलकदमी कर अपना वक्त बिता रहा था। दिल मे कई सैलाब उठ रहे थे। कोई भीतर ही भीतर पूछ रहा था....
"क्या कर रहे हो? कहाँ जा रहे हो?तुम्हारा और उसका क्या रिश्ता है?
वो भी विवाहित और तुम भी…...!
वो भी यही पूछती मुझसे। कहती बताओ तो हम क्यों अच्छे लगे?"

कोई जवाब न सूझता। सर को झटक के सारे प्रश्नों को जैसे सर के बाहर कर दिया। दिल तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं! जैसे बच्चे की तरह ज़िद पर अड़ा हो, मुझे तो यही चाहिए!सच ही तो था....हम बच्चों जैसे ही हो गए थे।बेबात हँसते, कुछ देर हाथ थाम के बैठ जाते और छोटी सी बात का बुरा मान कुट्टा कर लेते!

मैने गेट की तरफ नज़र उठाई तो देखा वो चली आ रही है। नज़रें मिलने पर वो मुस्कुराई और मेरे पास आ गई। “ट्रैफिक की वजह से थोड़ा लेट हो गई”, उसने बताया। “कोई बात नहीं,आप आ ये गई ये मेरे लिए बड़ी बात है।” “क्यों न आती आप से मिलना मेरे लिए भी तो बड़ी बात है।” वो बोली, हम दोनों की नजरें मिलीं और हम मुस्कुरा दिए।

“आइए कॉफी हाउस चलते हैं।” कहकर वो आगे आगे चल पड़ी, मैं उसके पीछे था, मैं उस जगह के लिए अजनबी था, इसलिए वो ही अगुवानी कर रही थी, उसके साथ यूँ होने से मेरे कदम तो जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे।

उस वक़्त कॉफी हाउस में गहमागहमी ज्यादा थी, हम किसी एकांत में बैठना चाहते थे जहां आस पास ज्यादा लोग ना हों, वैसे वो कॉफ़ी हाउस दो भागों में बंटा हुआ था, एक तरफ खुला लॉन था दूसरी और बड़ा हॉल । हॉल में हमें कोई भी ऐसी जगह नजर नहीं आ रही थी जहाँ, हम दोनों को बैठने के लिए उपयुक्त लगे।

हमने लॉन में ही बैठने का मन बनाया, एक छाँव वाली जगह पर जाकर हम बैठ गए, जहाँ आस पास कम लोग थे, उसने सेन्डविच और कॉफी का ऑर्डर दिया, मैं बस उसे देखे जा रहे थे, उसने कहा “ऐसे मत देखिये,हमें शरम आती है, आपकी आँखें बहुत गहरी हैं।” उसकी ये बात सुन मैं परे देखने लगा, तो उसने मुस्कुराकर कहा “हमने ये भी नहीं कहा कि हमें देखो ही मत।” उसके ऐसे कहने से हम दोनों ही खिलखिलाकर हँस पड़े।

तब तक वैटर आर्डर सर्व कर गया था, हमारे 25 मिनट उसके इंतजार में और बैठने के लिए जगह ढूंढने में ही गुजर गए थे, घड़ी हमारे बिछड़ जाने का समय नजदीक आ रहा है…. कह कह कर चिढ़ा रही थी, हमने खामोशी के साथ कॉफी पी, दोनों को समझ नहीं आ रहा था, बात क्या करें , कहाँ से शुरू करें, खैर चुप्पी उसने तोड़ी।
“आपके ऑफिस का काम हो गया।” मैंने 'हाँ' मैं गर्दन हिला दी फिर बोला “अभी जाने के बाद मुझे अटेंडेंस सर्टिफिकेट लेना है, जो कि ईवनिंग आवर्स में ही मिलेगा।” “तो आप आज ही चले जाएंगे?” उसनें पूछा ।

“हाँ आज ही जाना होगा, मुझे यहां से दूसरी जगह जाना है, तो शाम की ट्रेन है।” “ओह...!!!!! ठीक है।” उसने ओह...इस तरह कहा जैसे उसका सब कुछ छिन गया हो।

वैटर बिल ले आया था, बिल उसने पे किया, मुझे नहीं देने दिया, फिर बोली "यहां से उठकर उधर बगीचे में बैठेते हैं।" , मैंने फिर उसका अनुसरण किया और पीछे पीछे चल पड़ा, वो आगे चलती हुई बहुत खूबसूरत लग रही थी, उसका भरा हुआ बदन बहुत आकर्षक लग रहा था, मन कर रहा था वो यूँहीं आगे आगे चलती रहे और मैं उसके पीछे चलता रहूं।
कुछ दूरी पर जाकर उसने मुड़कर देखा, “आप हमारी दुल्हन हो जो पीछे पीछे चल रहे हो, चलो साथ साथ आओ।” उसने कहा। “आप आगे आगे चलती हुई बहुत सुंदर लग रही हो, आपको चलते हुए देख रहा था।” “अच्छा कभी औरत को चलते हुये नहीं देखा।”

“जी, देखा है नजर पड़ ही जाती है, पर आप जैसी सुंदर औरत को कभी नहीं देखा।” मैंने सच्चाई बयाँ कर दी। उसने मुझे देखकर आँखें तरेरी और हम दोनों की हँसी छूट गई। हम बगीचे में आ गए थे पर बगीचा दूब में पानी दिए जाने के कारण गीला था, वहां हमने बैंच की तरफ नजर दौड़ाई जो बैंच छाया में थी सब ऑक्युपाईड थी, और धूप में बैठना नहीं था।

हम वहीं बगीचे की एक छोटी सी घेरे के रूप में बनाई हुई दीवारनुमा मुंडेर पर बैठ गए, अचानक मेरी नजर उसकी गर्दन के पास पड़े खरोंच के निशान पर गई, वैसा ही खरोंच उसकी कलाई पर दिखा, हमने पूछ लिया “आपको ये खरोंच कैसे आई।”
“कहाँ हैं खरोंच?”बदले में उसका सवाल। मैंने बताया, वो बोली “ओह, मुझे पता नहीं चला ये कब आई।” कुछ देर वहाँ खामोशी छा गई ।मैंने ही बात शुरू की “सर आये थे ना, ये सब कहीं……??” उसने बैचैनी से पहलू बदला, फिर घड़ी को देखते हुए बोली “2.40 हो गई, समय कितना जल्दी बीत गया।” उसने टॉपिक बदल दिया। मैं फिर खामोश हो गया।

वहाँ कुछ युवा जोड़े खड़े थे पास ही, जो हमें देखकर बार बार हँस रहे थे, शायद उन्हें हमारा जोड़ा पसंद नहीं आ रहा था, सच ही तो था, ऐसा लग रहा था जैसे , मैं उस चाँद को ग्रहण लगा हुआ हूँ, कहाँ वो बेतहाशा खूबसूरत और कहाँ मैं, बिल्कुल साधारण सा लोअर मिडल क्लास वाला बन्दा।

सच में मुझे उस वक़्त लग रहा था मखमल में टाट का पैबन्द वाली कहावत क्या होती हैं। पर उस बात का उसपर कोई असर नहीं हो रहा था, उसके चेहरे पर तो इतनी खुशी जाहिर हो रही थी जैसे उसे कोई बचपन का खोया हुआ खिलौना मिल गया हो।

खैर समय बीत गया यूँही एक दूसरे के पहलू में बैठे हुए, मैंने उसे कहा मुझे आपका हाथ पकड़ना है, उसने कहा यहाँ पकड़ना है आपको हमारा हाथ, लो पकड़ लो, मैंने इनकार कर दिया "नहीं, यूँ सरेआम हम आपको दुनिया की नजरों में नीचा दिखाना नहीं चाहते, आप हमारी परियों की शहजादी हो।" वो मुस्कुरा दी मैं भी मुस्कुरा दिया।

हम दोनों उठ खड़े हुए , वो फिर आगे मैं उसके पीछे चल पड़ा, वो अचानक से रुक गई, बोली “अब मेनगेट का रास्ता आपको पता है आप आगे चलो।” हम दोनों मुस्कुरा दिये और मैं उसके साथ हो लिया। वहां से हमने एक ऑटो लिया और वापस इसी मोड़ की और चल दिए जहाँ से उसका और मेरा रास्ता मिलकर जुदा होता है।

ऑटो में उसने कहा "आपको मेरा हाथ पकड़ना था ना, पकड़ लीजिये।" मैंने उसका मखमली हाथ पकड़ लिया। मेरा दिल जोर से धक धक हो रहा था, वो ऑटो से बाहर झांकने लगी, मुझसे उसका चेहरा नहीं पढ़ा गया, शायद वो अपनी हया को मुझसे छुपाना चाहती थी।

अपने मोड़ पर मैं उतर गया, वो आगे बढ़ गई मैं एक भरपूर जीवन जीकर, अपनी जिंदगी को दूर जाते हुए देखता रह गया, चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव थे। मैं पैदल ही ऑफिस आ गया वहां से अपने जरूरी कागजात लिए और स्टेशन की और चल पड़ा। 5.15 की ट्रेन थी मेरी मैं उसके मैसेज का इंतजार कर रहा था, कुछ कुछ देर में मोबाइल पर नजर डाल रहा था, मगर उसका मैसेज नहीं चमका मोबाईल पर।

ट्रैन चल पड़ी थी मुझे सीट मिल गई थी पैसेंजर ट्रेन में सफर कर रहा था, रिज़र्वेशन का खर्च उठाना जेब को मंजूर नहीं था। ट्रैन सरपट दौड़ रही थी और उसकी यादें भी।

अचानक मोबाइल में उसका बड़ा सा मैसेज चमका “हमेँ बहुत अच्छा लगा आज का दिन, हम बहुत खुश हैं, आप हमारी हर बात कितने गौर से ऑब्जर्व करते हो, हमारी गर्दन और कलाई का खरोंच भी देख लिया, हमें तो पता हीं नहीं था, आपके साथ बिताए एक एक पल, एक एक जन्म से लगते हैं, आप कितना खयाल रखते हैं, हमारे ऑफिस के पास हमें कहा पलटकर मत देखना, ये आपकी बातें हमारी रूह को छू जाती हैं, एक बात और आपने अच्छा किया वो आम के आचार के कुछ टुकड़े टिफ़िन में छोड़ दिये, हमने उन्हें खा लिया😊😊, आपके जूठे थे ना, हमें बहुत अच्छा लगा, अब शायद मैं मैसेज न कर पाऊँ, न बात कर पाऊँ, अपना ख्याल रखना आराम से जाना, बाय , L…...।”

मेरे होंठों पर प्यारी सी मुस्कान थी मैंने आँखें बंद कर ली थी।ये थी पिछली मुलाकात जिसे मैं एक मुकम्मल मुलाकात कह रहा हूँ, इससे अगली मुलाकात मुलाकात थी या क्या थी कह नहीं सकता, पर वो भी अपने आप में एक एहसास थी।

संजय नायक"शिल्प"