Is janm ke us paar - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

इस जन्म के उस पार - 5

(कहानी को समझने के लिए आगे भाग जरूर पढ़े 🙏
🙏छोटुसा रिमाइंडर.!!सूर्यांश और नंदीनी को मिल ऐसा लगता है जैसे वो पहले से जानते है एकदूसरे को. वही यस्वी भी आती है उनको पिछला जन्म याद कराने के लिए जो वीर से टकरा जाती है.और उनकी नोकझोंक शुरू हो गई.. अब आगे 😄.)


वीर सोच के🤔 :- मे खड़ा था फिर गिरा कैसे.?? वो बाजु मे सोये हुए सूर्यांश को हिला के, सूर्या तूने कोई जादू किया क्या.?? सूर्यांश उसे जोर से तकिया मारता है.. वीर सम्भलते हुए :- अरे मानता हु ऐसे हु पूछ लिया भड़क क्यों रहा है.??

दोनों सो जाते है.. सुबह ब्रेकफास्ट मे यस्वी सबको वहा से कुछ दूर राजगढ़ जाने को बोलती है.!!

दादी :- हा वैसे घूमने जा सकते है पर वहा क्यों.??

यस्वी :- वहा महल है.. बहुत सारी पुरानी चीजें है दादी और महादेव का बहुत ही पुराना मंदिर भी है.!!

वीर बीच मे टपकते हुए :- मतलब इंशार्ट वहा सब भंगर है.!!अरे कोई अच्छी जगह चलते है ना खड़ंरहर मे क्यों जाये.??

यस्वी उसे घूर के 😠मन मे :- ये बाज़ नहीं आएगा क्यों बीच मे टपक रहा है.. वहा जाने का मेरा अपना मतलब है..( इसकी तो वो वीर को देखती है और शैतानी स्माइल देते हुए जादू करती है जिसकी वज़ह से वीर के हाथ का ब्रेड गायब हो जाता है और वो अपनी ऊँगली काट लेटा है..)

वीर उछल जाता है :- आह...!!!

सूर्यांश उसे बैठाते :- क्या पागल हो गया है तू.. ब्रेड खा ना ऊँगली क्यों खा रहा है.??

वीर सर खुजला के :- अरे मेरे हाथ मे ब्रेड थी.!!😣

यस्वी हस k😄:- जिसे अपने खाने का नहीं पता वो और क्या जानेगा.!!हुँह..!!

नंदिनी 😊:- हा बाबा वही चलते है बस अब खुश.!!दरसल यस्वी ना आर्चयोलोजिस्ट है उसे पुरानी चीजों से प्यार है.!!

वीर 😲:-तो तुम भंगार वाली हो ऐसा बोलो ना.!!इस बार वीर ने जूस का ग्लास उठा रखा था.!!

यस्वी गुस्से फिर से जादू करती है जिससे जूस का ग्लास फुट जाता है सारा जूस वीर के ऊपर गिर जाता है.

. सूर्यांश 😠:- तू पागल नहीं हो गया ना क्या हरकतें कर रहा है सुबह से.!!ग्लास क्यों तोड़ा.??

वीर रोनी सूरत बना के :- सच सूर्य मेने जानबूझकर नहीं किया पता नहीं कैसे.?

सूर्यांश उठकर :- तू चेंज कर आ हम वेट कर रहे है तेरा जा.!!

वीर कंफ्यूज हो चला जाता है.!!यस्वी मंद मंद हस रही थी..!!

यस्वी मन मे :- आप वहा चलो वही शायद आपको कुछ याद आ जाये.. मे पूरी कोशिश करुँगी.. महागुरु मदद करना.. हें महादेव आप भी.!!

सब तैयार होकर आते है.वीर और सूर्यांश नंदिनी और यस्वी एक ही कार मे बैठते है।वही दादू - दादी और आनंदजी दूसरी कार मे आ रहे थे।

कार मे नंदिनी आईने से सूर्यांश की तरफ देख रही थी। जिससे सूर्यांश जान के मुस्कुरा रहा था... यस्वी ये जान के ख़ुश थी.. की कुछ देर बाद वीर कांच अपनी तरफ कर देता है जिससे सूर्यांश उसे घूरता है.. तो यस्वी और चीड़ जाती है.।

सब थोड़ी देर मे राजगढ़ पहुंच गए..!!वहा जाके यस्वी सबको महल दिखा रही थी. वहा सूर्यांश को अजीब से साये और आवाजे सुनाई रही थी... एक गालियारे को देख सूर्यांश रुक जाता है वहा उसे परछाईया दिखती है और सुनाई देता है, "वरदान पहले हमें पकड़िये तो सही.!( प्यारी सी हसीं सुनाई देती है )!"

वही मंदिर मे नंदिनी को भी वैसा ही एहसास होता है.. उसे वहा परछाईया और आवाजे सुनाई देती है, "छू.. वरदान.!!भगवान के सामने हाथ जोड़े.. क्या कर रहे है आप.?"नंदिनी बेहोस हो जाती है.. की वही सूर्यांश भी ऐसे ही नज़रो के सामने अंधेरा महसूस होता है.!!

वीर सूर्यांश को संभाल पानी पिलाता है.. वही यस्वी भी नंदिनी को संभाल लेती है।थोड़ी ही देर बाद दोनों नार्मल हो जाती है.. यस्वी जानबूझकर उन्हें एक कमरे मे ले जाती है जहाँ एक आइना था.. जिसके एक तरफ सूर्यांश और दूसरी तरफ नंदिनी को खड़ा करती है.. वो दोनों उस आईने मे अपना अलग ही लुक देखते है..!!सूर्यांश खुदको किसी राजकुमार के रूप मे देखता है.

नंदिनी भी खुद को राजकुमारी के रूप मे देखती है।

दोनों अपने अक्स को छूने जाते है की उनके सामने उसी आईने मे बहुत कुछ फ़िल्म की तरह चल रहा था.. जो उन दोनों को ही समझ नहीं आया.. कुछ देर बाद वो शिशा टूट जाता है और दोनों बेहोश हो जाते है...!!

यस्वी उन्हें अपने जादू से बाहर ले आती है.. फिर उन्हें होश मे भी लती है.. सब थोड़ा घूम के बाहर निकल जाते है.. रास्ते पर थोड़ी दूर चलते हुए..

वीर नंदिनी के साथ चल रहा था.. और सूर्यांश के साथ यस्वी चल रही थी.

वीर :- आपकी ये दोस्त आपको मिली कहा.?

नंदिनी :- कौन यशू.??

वीर :- हा :- वही

नंदिनी 😊 :- अभी 4 साल पहले ही मे एक एन. जी. ओ. मे दिल्ली गई थी वही मेरी मुलाक़ात यसु से हुई थी.. यशू अनाथ है. उसका कोई नहीं but हा उतनी ही इंतेजीलेंट है वो आगे पड़ना चाहती थी बस तब मे और पापा उसे अपने साथ ले आई.. बस.!!

वीर को ये जान के दुख हुआ की यस्वी अनाथ है.!!

वही सूर्यांश और यस्वी बात करते है..यस्वी ये जानने की कोशिश कर रही थी की सूर्यांश को कुछ याद आया या नहीं.!!

यस्वी :- जगह अच्छी थी ना भईया.!!

सूर्यांश :- हम्म.!!

यस्वी :- अपना सा लगा.!!

सूर्यांश :- हा शायद.!!

यशवी आगे बोलती उससे पहले वीर जोर से चिल्लाया, "आइसक्रीम.....!!!!"वो जट से सूर्यांश के पास आके,"चल ना सूर्य खाते है.!!

सूर्यांश के कुछ कहने से पहले ही वीर उसे खिंचता हुआ सामने साइड की रोड पर आइसक्रीम खिलाने ले जाता है.. यस्वी का मुँह फूल जाता है 😤!!!

सूर्यांश बाकि सबको वही खड़ा रहने का बोल खुद वीर के साथ आइसक्रीम लेने लगता है.!!

ज़ब सूर्यांश आ रहा था तब वो रोड के बीच रुक गया था तभी ट्रक आता है उसकी तरफ बढ़ते हुए उस ट्रक को नंदिनी ने देख लिया था.. नंदिनी जट से "सूर्या....!!!!"सूर्यांश को धक्का दे देती है और खुद वही खड़ी रह जाती है.."नंदिनी..!!!"सूर्यांश के मुँह स चीख निकल जाती है।सबकी सांसे अटक गई थी.. पर कोई था जिसने एन वक़्त पर नंदिनी को बचा लिया था..

सूर्यांश उठ के बिना वक़्त गवाए नंदिनी की तरफ चला जाता है और उसे कसके अपने गले लगा देता है। फिर दूर हो उसे देख,"पागल हो.. कुछ हो जाता.. लगी तो नआई दिखाओ मुझे.!!"सूर्यांश बोले ही जा रहा था.. नंदिनी उसे शांत करते हुए,"शशशशष...!!मे ठीक हु बिलकुल सही सालमत.!!!"


वही यस्वी उस इंसान को देखती है जिसने नंदिनी को बचाया था..!!उसके मुँह से निकल जाता है, "क्रूर सिंह..!!"

सब उस आदमी को देखते है.. सूर्यांश भी उसे देखता है..।

आदमी :- हाय मी. ओबेरॉय.!!i होप शी इस फाइन.!!

सूर्यांश टेढ़ी नज़र से उसे देख :- थैंक्स मी. रावत.!!एंड या अब ये ठीक है.!!

वो आदमी नंदिनी की तरफ :- हाय ब्यूटीफुल लेडी माय नेम इस विक्रांत.. रावत.!!आप ठीक हो.!!

नदिनी :- हा आपका सुक्रिया मी. रावत.!!

सूर्यांश रावत से कई बार बिजनेस मीटिंग्स मे मिल चूका था पर आज उसे ज्यादा ही गुस्सा आ रहा था उसपे जिसकी वजह वो खुद नहीं जानता था.. पर उसका u नदिनी को देखना सूर्यांश को बिलकुल नहीं भाया.!!



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