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एक दुआ - 15

15

विशी चैनल बदल कर अपने कमरे में आ गयी । लैपटॉप ऑन करके, कुछ और काम न करके उस पर यू ट्यूब पर सॉन्ग लगा के सुनने लगी ।

“जिंदगी प्यार का गीत है जिसे हर दिल को गाना पड़ेगा .....

प्यार कितना प्यारा शब्द है । यह हर किसी की जिंदगी में आता है लेकिन कोई इसका फायदा उठा लेता है और कोई निशाना बन जाता है । जैसे भैया के साथ हुआ । सच में प्यार पर किसी का ज़ोर नहीं, कब कहाँ किस के साथ हमें प्यार हो जाता है पता ही नहीं चलता । विशी का मन मिलन की तरफ खिचता चला जा रहा था । कितने प्यारे हैं वे, उनके बात करके का ढंग, हंसने का ढंग, चलने और बैठने का ढंग । सभी कुछ तो बहुत प्यारा है । उनको देखते ही ऐसा महसूस होता है कि इनके साथ हमारा कई जन्मों का रिश्ता है । वो मेरे हैं सिर्फ मेरे । काश अभी मिलन यहाँ आ जाये तो मैं उनको जी भर के प्यार कर लूँ । अपना सारा प्यार उन पर लूटा दूँ किसी भी बात की परवाह किए बिना ही ।

प्यार कोई बोल नहीं, कोई आवाज नहीं, नूर की बूंद है सदियों से बहा करती है ....

अरे यह कौन सा गाना बजने लगा ! उसी वक्त व्हात्स्प पर मिलन का मैसेज आ गया । नाम लिया और बंदा हाजिर । बड़ा पक्का ठीठ इंसान लग रहे हो तुम । विशी के मन में कोई हलचल सी हुई । क्या लिखा होगा मैसेज में पता नहीं ?

अभी नहीं देखूँगी, नहीं तो उनको लगेगा कि मैं उनके मेसेज का ही इंतजार कर रही थी या फिर वे सोंचेंगे कि इसके हाथ में ही हमेशा फोन रहता है, या यह हमेशा खाली ही रहती है। लेकिन सब्र भी आखिर कब तक रखेंगे और अगर किसी अपने बेहद खास का कोई मेसेज हो तो सब्र नहीं होता है ।

“सोचने दो, उनको जो भी सोचना है हमें क्या करना, हम किसी की सोच पर कब्जा तो कर नहीं सकते हैं । मैं मेसेज देख ही लेती हूँ ।

“विशी कल सुबह विनोद जी के यहाँ रेस्टोरेन्ट की इनोग्रेशन पार्टी में चलना है ।”

ओहह विनोद जी ने मुझसे भी कहा था अब मैं इनको क्या कहूँ ? पहले घर में मम्मी और भैया से पूछना पड़ेगा । मुझे तो ड्राइविंग भी नहीं आती है किसी का सहारा लो या फिर पैदल या रिक्शा से जाओ ।

अरे मुझे याद ही नहीं रहा हाँ वैसे जाना तो है ।

ठीक है फिर मेरे साथ ही चलना । उधर से फौरन रिपलाय आ गया ।

इनके साथ ? घर में क्या कहूँगी ? क्या बताऊँगी ? कहीं सुबह घर पर ही न सीधे आ जाये यह सोचकर उसने रिप्लाय किया, आप क्यों परेशान होंगे, मैं आ जाऊँगी फिर आपको उधर से इतना लंबा चक्कर काटकर मेरे घर की तरफ आना पड़ेगा।

कोई फर्क नहीं पड़ता ।

हे भगवान ! यह तो पीछे ही लग गए हैं।

मैं सुबह बता दूँगी ओके बाय, गुड नाइट । लिख कर उसने अपने मोबाइल का नेट ऑफ कर दिया ।

ऐसा क्या है मुझमें जो यह मेरे ही पीछे लग गए हैं और भी तो लड़कियां हैं जो मुझसे ज्यादा सुंदर हैं, खैर कोई यूं ही तो इतनी तबज्जो नहीं देता कुछ न कुछ मन में जरूर होता है किसी के लिए तभी वो उससे बात करना चाहता है, साथ पाना चाहता है, खुद को मिटा कर उसका अस्तित्व उभारना चाहता है लेकिन मैं सुबह इनके साथ नहीं जाऊँगी कहीं भैया को मेरी कोई भी बात गलत लग गयी तो उनका प्यार कहीं फिर पहले जैसा न हो जाये । मैं रिक्शा करके चली जाऊँगी । विशी ने मन में सोचा । यह मानव मन भी कमाल होता है पहले उसके लिए दीवाना सा हो रहा था और जब उसका मेसेज आ गया तो नखरे दिखाने लगा । हाय रे मन ।

देखा घड़ी में आठ बज रहा था । चलो पहले बाहर खाने का देख लूँ क्योंकि मम्मी 8;30 तक खाना खा लेती है और 9;30 तक सो भी जाती हैं सुबह 5.00 बजे उठना होता है उनको अपने पूजा पाठ, ध्यान वंदन आदि के लिए । कितना भी समझाओ वे नहीं समझती हैं । उनको बचपन से यही आदत है अब भला कैसे बदल जायेगी । वे हमेशा यही कहती हैं ।

भैया ने सब्जी गरम करके मेज पर लगा दी थी,पानी और बर्तन भी रख दिये थे । वे शायद उसे खाने के लिए बुलाने ही वाले थे । “अरे विशी तू आ गयी? मैं तुझे बुलाने ही जा रहा था । चलो मम्मी को बुला लाओ मैं पराँठे सेकता हूँ ।” भैया अपना हर फर्ज बड़ी ईमानदारी से निभा रहे थे बल्कि बड़े प्यार से इतना कर रहे थे कि शायद कभी कोई बहू या बेटी भी न करे ।

“बेटा तू क्यों करता है अब तो विशी भी काम करने के लायक हो गयी है । मैं नहीं करूँ तू यही तो चाहता है न ?”

“मम्मी विशी भी दीदी की तरह से ससुराल चली जायेगी फिर अपनी आदत क्यों खराब करना । वैसे भी विशी को जितना प्यार दे सकती हो उसे दो और मुझे भी देने दो । कल को क्या पता ससुराल के लोग कैसे हो ? हे ईश्वर मेरी छुटकी को सुख और खुशी देना ।“ उन्होने हौले से कहा लेकिन विशी के कानों में यह बात पड़ गयी । अपना सुख और खुशी नहीं देख रहे हैं लेकिन वो सब सुख पाये । हे ईश्वर मेरे भैया को मुझसे भी ज्यादा खुशियाँ देना ।

मम्मी ने सिर्फ एक ही परांठा खाया इतना बड़ा और मोटा बनाते भी तो हैं कि एक परांठा खाकर ही आत्मा तक तृप्त हो जाये । दम आलू और लच्छा परांठा । कहाँ से भैया के मन में रोज नई सब्जी का ख्याल आ जाता है और बना भी लेते हैं । कभी कोफ्ते, पनीर दो प्याज़ा, सबसे अच्छा बनाते । जी करता सब सब्जी अकेले ही रूखी चट कर जाओ । “विशी तू भी बस एक ही खायेगी न परांठा ?”

“नहीं भैया, आज एक और आधा । सब्जी बहुत स्वाद बनी है ।” विशी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ।

“विशी अगर कोई काम न करना हो तो आज मेरे कमरे में सो जाना ।” मम्मी ने कहा।

“मम्मी भैया को अपने कमरे में अपने साथ सुला लो न आज ।”

“चल ठीक है लेकिन बेटा, देर रात तक मत जागना ।”

हाँ मम्मी मैं टाइम से सो जाऊँगी, आप परेशान मत होइए ।

मम्मी इतनी जल्दी सो जाएँगी और चाहती हैं कि वो भी जल्दी सो जाये । केवल सोना और खाना ही तो ज़िंदगी नहीं होती है । हाँ जिंदगी एक ख्वाब है और ख्वाब को जागते हुए देखते रहना चाहिए ताकि हम ज़िंदगी को जी लें, नहीं तो ज़िंदगी हमें जी लेगी और हम मूक दर्शक से देखते रह जाएँगे । क्या हम अपनी जिंदगी को जी पाते हैं ? क्या हम उस तरह से जीते हैं जैसे हमें जीना चाहिए ? नहीं हम अपनी जिंदगी को दूसरों के हिसाब से जीते हैं जैसे वे चाहते हैं वैसे, क्योंकि हम समाज के हिसाब से रहते हैं और समाज क्या कहेगा इस बात का ज्यादा ध्यान रखते हैं । अब सुबह मिलन से क्या कहूँगी, अभी ही मेसेज करके मना कर दे रही हूँ कहीं सुबह बिना बताये ही न चले आए ? उनको घर का पता सही से मालूम भी तो नहीं है तो कैसे आ जाएँगे ? कितने ही सवाल मन में उथल पुथल मचाए हुए थे । पहले मेसेज करके मना कर दे रही हूँ नहीं तो इस उलझन में रात भर नींद भी नहीं आयेगी ।

“मैं सुबह भैया के साथ आ रही हूँ,”

बस यह दो शब्द लिखे और एक राहत भरी चैन की सांस ली । अरे मेसेज तो देखा ही नहीं, हो सकता है सुबह देख लें । अगर नहीं देखा फिर ? अब जो भी होगा देख लेंगे, क्या फालतू का स्ट्रेस लेना ।

रात भर ख्वाब आकर नींद को खुशनुमा करते रहे । सुबह आँख खुली तो मन खुशबू से महकता हुआ लगा । मानों हर तरफ फूल खिल रहे हो । वो भी मुस्कुरा दी न जाने क्या सोच कर ?

“मम्मी चाय बना कर लाऊं ?” सुबह वो मम्मी के कमरे में गयी तो मुस्कुराते हुए बोली ।

“हाँ बना दे बेटा, बिना चाय पिये तो यह शरीर चलता ही नहीं । भैया उठ गया न?”

“हाँ मम्मी वो वॉक पर गए हैं !”

“अरे आज तू नहीं गयी ?”

“नहीं मम्मी आज मुझे एक कार्यक्रम में जाना है न तो इसलिए नहीं गयी ।”

“कब जाना है ?”

“10 बजे के करीब जाना है ।”

“भैया से पूछ लिया ?”

“इसमें भैया से क्या पूछना, आपको बता तो रही हूँ, एक घंटे में ही वापस आ जाऊँगी ।“

“भैया से बता देने से तुझे ही फायदा होता ।“

“मुझे ? वो कैसे ?” विशी ने जल्दी से पूछा ।

“वो ऐसे कि तुझे भैया छोड़ आते और फिर अकेले कैसे जायेगी ?”

“क्या मम्मी, आप भी न ? मैं अब इतनी बच्ची नहीं रही हूँ, जाकर आ जाऊँगी क्या भैया को इतनी सी बात के लिए परेशान करना । उनको अपने काम पर भी तो जाना होता है न ।”

“ठीक है अब तू ही देख ले फिर ।” यह कहकर मम्मी उठ कर वाशरूम में चली गयी !

मम्मी को चाय बनाकर दे दूँ फिर जल्दी से नहा लेती हूँ । भैया के लिए उनकी पसंद का नाश्ता भी बना दूँगी वे बड़े खुश हो जाएँगे । विशी ने मन में सोचा ।

उसने गैस पर पानी चढ़ाया और उसमें पास्ता उबलने को डाल दिया । चाय नाश्ता बनाकर वो नहाने चली गयी । नहा कर उसने नाश्ता मेज पर लगा दिया । आज भैया को घर आने में देरी कैसे हो गयी ? कहाँ चले गए कभी तो कहीं जाते नहीं हैं वॉक के बाद सीधे घर आते हैं । “मम्मी भैया नहीं आए अभी तक ?” आखिर उसने मम्मी को आवाज लगा कर पूछ लिया ।

“भैया आ तो गए हैं । वो उधर धूप में पेपर पढ़ रहे हैं ।”

“कब आए? मुझे लगा अभी तक आए ही नहीं हैं । चलो मम्मी अब भैया को आवाज लगा दीजिये कि नाश्ता कर लें ।”

“हम्म ठीक है बेटा ! अभी बुला रही हूँ ।”

“मम्मी आपका नाश्ता ?”

“तू मेरा इसमें ही रहने दे, मैं पूजा करके खा लूँगी ।”

 

क्रमशः