Prem Ratan Dhan Payo - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 1





जय श्री राम ...!

अयोध्या .....!


" क्या लिखू और क्या न लिखूं ? शब्द कम पड़ जाएंगे , लिखते लिखते उंगलियां थक जाएगी लेकिन इस स्थान का संपूर्ण विवरण नही कर पाऊगी । उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक अयोध्या नगरी जो की सरयू नदी के किनारे बसा है । इसे राम जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता हैं । वही स्थान जहां भगवान विष्णु को राम अवतार लेकर धरती पर अवतरित होना पडा था । हमारी इस कथा की शुरुआत भी यही से होती तो आईए इस कहानी का श्री गणेश करते हैं ......

मै नहीं जानती ,

कृष्ण कहानियों की रास लीलाओं को ,

मुझे तलाश उस राम की है,

जो सिर्फ सीता का था ....!


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सुबह का वक्त, रघुवंशी मेंशन




अयोध्या का नामचीन घराना जिसके बारे में किसी से भी पूछने पर जानकारी मिल जाती थी । यह हवेली बाहर से बेहद खूबसूरत थी । आगे का हिस्सा किसी खुले मैदान की भांति था । एक और गाड़ियों कतार में खडी थी , तो वही दूसरी ओर हवेली के आगे के हिस्से में बडा सा फाउंटेन था । फाउंटेन के दोनों ही तरफ़ खूबसूरत सी प्रतिमा थी । हवेली के पीछे वाले हिस्से में बडा सा गार्डन था । चारों तरफ़ गार्डस का सख्त पहरा था । हवेली के अंदर से अलग अलग प्रकार की आवाजें आ रही थी ‌‌। यहां अंदर का नज़ारा बाहर से भी ज्यादा खूबसूरत था । नीचे बड़ा सा हॉल था । सामने से होकर सीढ़ियां गुजरती थी । उपर की तरफ चारों ओर कमरे बने थे । हवेली में जगह जगह सुंदर चित्रकारी की हुई थी और ऊपर की तरफ बडा सा झूमर लगा था ।

नीचे हॉल में एक लडकी अपने दोनों हाथ कमर पर रख इधर उधर नजरे दौडा रही थी शायद किसी को ढूंढने की कोशिश कर रही थी । उसने पांच से छ नौकर घर की सभाई मैं लगे हुए थे । सब लोग मंद मंद मुस्कुरा रहे थे । उस लडकी ने व्हाइट शर्ट और घुटने तक उसने ब्लैक शार्ट पहना हुआ था और बालों की पोनी टेल बना रखी थी । उसने चारो ओर नजरें दौडाते हुए कहा " परी बेबी प्लीज कम आउट आपके नाश्ते का टाइम हो रहा है । आप नाश्ता नही करेंगी तो फिर मुझे डांट पडेगी । हम बाद में ये हाइड एंड सिक का गेम खेलेंगे । '

उस लडकी के ये कहने पर भी न तो कोई बाहर आया और न ही उसका कोई जवाव । वही हॉल में सोफे के पीछे एक पांच साल की छोटी सी लडकी बैठी हुई थी । उसके हाथ में बडी सी चॉकलेट थी , जिसे उसने दोनों हाथों से थामा हुआ था । लाइट ब्लू कलर के फ्रिल वाले फ्राक में वो बहुत प्यारी लग रही थी । उपर से बालों को समेटकर एक रबरबैंड से बांधा हुआ था जिसमें छोटा सा ब्लू कलर का बटरफ्लाई का क्लिप लगा था । वो सोफे के किनारे से झांककर उस लडकी को देख रही थी , लेकिन उसके देखने से पहले ही वो वापस से सोफे के पीछे छिप गयी ।

इसी बीच किचन से एक लडकी बाहर आई जिसने सिंपल सा सलवार सूट पहना था । बालों को समेटकर जूड़ा बना रखा था । वो अपने हाथ में आटे की गोलिया बनाते हुए बाहर आई और बोली " जैनी तुम्हें लगता हैं तुम परी से कहोगी बाहर आ जाओ और वो आ जाएगी । आज तक ऐसा हुआ हैं । '

" तुमने ठीक कहा संध्या अब मुझे ही उन्हें निकालना पडेगा । " जैनी ने कहा ।

संध्या ने आंखो के इशारे से सोफे की ओर जाने के लिए कहा । जैनी दबे पांव उस ओर बढ गयी । उसने पीछे से जाकर परी को पकड लिया ' आइस पाइस हमने ढूंढ लिया आपको । " जैनी ने परी को गोद में उठाया और बाहर ले आई । परी ने संध्या को देखा फिर जैनी को । उसके बाद थोडा गुस्से से बोली " नही आप दोनों ने चींटिंग की हैं । संध्या दीदी ने आपको बताया हैं । "

" नही ... नही . ‌‌... मैंने नही बताया । " संध्या तुरंत बोली ।

' नही आप ही ने बताया हैं । " परी जिद करते हुए बोली । उन तीनों की बहस जारी थी की तभी पीछे से किसी की आवाज आई ‌‌। " आप तीनों सुबह सुबह शुरू हो गये । " तीनों ने पीछे की ओर देखा । एक औरत हाथों में आरती की थाल लिए खडी थी । जिससे साफ जाहिर था की वो अभी अभी पूजा करके लौटी हैं । हल्के क्रीम कलर की बनारसी साडी और कंधे के एक ओर शॉल टिकाया हुआ था । बालों को समेटकर जूड़ा बनाया हुआ था । श्रृंगार के नाम पर कोई जेवर नही बस गले में पतली सी सोने की चेन थी । ( ये हैं करूणा सिंह रघुवंशी इस घर की मालकिन और राघव की भाभी मां । राघव के बडे भाई समर सिंह रघुवंशी का पांच वर्ष पूर्व ही दिहांत हो चुका है । )

" भाभी हमारी रोटी तवे पर सिककर कोयला बन गयी होगी । " ये बोल संध्या किचन के अंदर भाग गयी ।

एक नौकरानी करूणा के पास आई , तो वो उसकी और आरती कि थाल बढ़ाते हुए बोली " इसे पूजा घर में रख दीजिए । "

" जी मालकिन । " इतना कहकर वो नौकरानी वहां से चली गई ।

करूणा ने परी को अपनी गोद में लिया और जैनी से बोली " क्या बात हैं जैनी इसने अब तक नाश्ता नही किया ? "

" नही मैडम अभी तो इन्हें हाइड एंड सीक खेलना हैं । कब से इनके पीछे भाग रही हूं लेकिन ये हैं की सुनती ही नही । " जैनी परेशान होकर बोली ।

करूणा ने परी को ओर देखा जो बडी मासूम सी शक्ल बनाकर अपनी मां को देख रही थी । मानो सारी दुनिया में एकमात्र वही दुखियारी हो और सब उसे परेशान करने वाले । " ये हम क्या सुन रहे हैं ? आपने जैनी दी को परेशान क्यों किया ? "

परी अपनी नन्ही बाहें करूणा के गले में लपेटकर उसके कंधे पर अपना सिर रखकर बोली " हम किसी को परेशान नही करते । "

" हां सिर्फ अपने चाचु को छोड़कर । उनके दिए राजकुमारी हो लेकिन हम सबके लिए शैतान गुड़िया । .... जैनी जाइए आप इनका नाशता लेकर आइए । " इतना कहकर करूणा परी को लेकर डायनिंग टेबल की ओर बढ गई । जैनी उसका नाश्ता लेने के लिए किचन में चली गई ।

( जैनी परी की केयर टेकर हैं । सुबह उसके जागने से लेकर रात को उसके सोने तक वो उसके साथ ही रहती हैं । उसे फुल टाइम परी की केयर करनी पडती हैं । संध्या रघुवंशी मेंशन में एक सर्वेंट हैं जो किचन का काम संभालती हैं । )

जैनी परी का नाश्ता लेकर आ चुकी थी । परी खा कम रही थी और नखरे ज्यादा कर रही थी जो आमतौर पर बच्चों की आदत होती हैं । परी सिर्फ राघव के हाथों से खाती थी । बाकी कोई उसे खिलाए तो उसके सौ नखरे झेलने पडते थे । पहाड़ की चोटी पर चढने का कोई काम दे दिया गया हो ।

परी ने करूणा से पूछते हुए कहा " मम्मा चाचु कहां हैं ? "

" आपके चाचु बहुत जरूरी काम से गए हैं । बस यूं समझिए किसी को इंसाफ दिलाने गए हैं । "

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रामकोट, सुबह नौ बजे




रामकोट ऊचे स्थल पर स्थित है एंव कयी श्रृंखला में यहां मंदिर है । रामकोट के नजदीक ही बरगद के पेड के नीचे एक सभा आयोजित थी । पेड के चारों ओर चबूतरा बना हुआ था । सामने कयी सारे लोग मौजूद थे । एक ओर स्त्रियां बैठी हुई थी तो वही दूसरी तरफ पुरूष । बीच में एक सीधी रेखा थी जो रास्ते का कार्य करती । वहां से होकर चबूतरे तक पहुंचा जा सकता था । इस वक्त सब लोग जमीन पर बिछी दरी पर बैठे हुए थे । सबके अपने अपने तर्क थे और अपनी अपनी सोच के हिसाब से आपस में राय विमर्श कर रहे थे । अचानक ही सबके बीच शोर बढ गया , जब सबकी नज़र दूर से आती हुई गाडियों पर पडी । गाडियां तेज रफ्तार में धूल का गुब्बार उडाती हुई नजदीक आ रही थी ‌‌। तकरीबन चार से बाच गाडियां एक लाइन से आकर रूकी । दूसरे नंबर की कार को छोड़कर बाकी सभी गाड़ियों से हाथों में बंदूक लिए गार्डस निकलकर बाहर आए ‌‌। दूसरी नंबर की गाडी से ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठा एक आदमी बाहर आया और पीछे का दरवाजा खोलकर खडा हो गया । अंदर से बैठें शख्श ने अपना एक हाथ दरवाजा के बाहरी हिस्से पर रखा । हाथो में छोटे रूद्राक्ष की माला लिपटी हुई थी और दो उंगलियो में अंगूठी थी । बीच वाली उंगली में जो अंगूठी थी उसपर सूर्य का चित्र अंकित था । धीरे धीरे उस शख्स ने अपना बाया पैर बाहर निकाला और फिर पूरी तरह कार से बाहर निकला । व्हाइट शर्ट जिसके ऊपरी दो बटन खुले हुए थे । साथ ही उसने ब्लैक जींस कैरी की हुई थी । हाथो की स्लीव्स हल्की फोल्ड की हुई थी । दूसरे हाथ में गोल्डन वॉच थी और आंखों पर ब्लैक गॉगल्स । क्लीन शेव्ड और चेहरे पर एक तेज था । उम्र तकरीबन तीस वर्ष के करीब थी । उसके बाए कान में एक छोटा सा स्टड था , जो उसकी शख्शियत पर जंच रहा था । ( यही हैं राघव सिंह रघुवंशी और उनके लिए जिस इंसान ने दरवाजा खोला था उनका नाम हैं कैलाश उपाध्याय जो की राघव के अकाउंटेंट है या फिर इन्हें मुंशी कहेंगे तो गलत नही होगा । उम्र तकरीबन पचपन वर्ष के आस पास होगी । ) राघव को देख सभी लोग हाथ जोड उठ खडे हुए ।

राघव तेज कदमों के साथ लोगों के भीड के बीच बने रास्ते से होकर उस चबूतरे तक पहुंचा । राघव के साथ केवल कैलाश जी ही आगे गए । उनके सभी गार्डस बस वही आस पास पहरा देने के लिए फैल गए । राघव के पहुंचने से पहले ही एक आदमी भागकर चेयर ले आया । राघव अपना चश्मा उतारते हुए चेयर पर बैठा और उसे शर्ट के आगे के हिस्से में सीने के समीप टिकाया । उसने अपना एक हाथ चेयर के हाथ पर रख दिया और दूसरा हाथ ऊपर की ओर बढाया । सब लोग उसका इशारा समझकर अपनी अपनी जगह पर बैठ गए । दूसरा आदमी राघव के ऊपर छाता तानकर साइड में खडा हो गया । राघव ने कैलाश जी की ओर देखा , तो वो समझ गए की उन्हें आगे क्या करना हैं ? उन्होंने सामने की ओर देखकर कहा " सरकार आ चुके हैं आप लोगों की जो समस्याएं हैं एक एक करके बताइए । "

कैलाश जी ने जैसे ही अपनी बात खत्म की, वैसे ही एक बूढा आदमी खडा हुआ जो दिखने में काफी दुबला पतला था । उसने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा " सरकार हम बहुत उम्मीद लगाकर आए हैं आपके पास । अब आप ही हमारी समस्या का समाधान कीजिए । " ..... उस आदमी के साथ एक लडकी भी थी , जिसने अपना चेहरा घूंघट बे ढक रखा था । उसकी गोद में एक छोटा सा बच्चा था । उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो जन्म लिए उसे महीना भर भी नही बीता हो । वो वृद्ध आदमी अपनी बेटी की ओर इशारा कर राघव से बोला " सरकार ई हमारी बिटिया हैं । इसके ब्याह को चार बरस बीत चुका है ‌‌। चार बरस बाद राम जी कृपा हुई और हमरी बेटी की सूनी गोद भरी हैं । इसकी कोख से बेटी ने जन्म लिया ऐही से इसके ससुराल वाले इसको अपनाने से इंकार कर रहे हैं । अब आप ही कुछ कीजिए सरकार । "

उस आदमी ने अपनी बात पूरी की तो राघव ने कैलाश जी की ओर देखा । कैलाश जी भी राघव की ओर देख रहे थे फिर आगे की ओर देखकर बोले " एक पक्ष अपनी बात कह चुका हैं । अब दूसरे पक्ष की बातें सुनना भी जरूरी हैं । इस लडकी के ससुराल वाले आगे आए और अपनी बात पूरी करे । " कैलाश जी के ये कहने पर तीन लोग सामने आए । जिसमें से एक आदमी उस उस लडकी का पती था और उसके साथ उसके माता पिता थे । उस लडके ने कहा " चाहे जो हो जाए मैं इस लडकी को नही अपनाऊगा । मैंने इससे कहा भी इस लड़की को छोड़कर आजा मैं और मेरे घरवाले इसे अपना लेंगे लेकिन ये नही मानी । जिद ठानकर बैठी हैं तो अब जिद के सहारे ही अपनी जिंदगी जिए । " उस लडके की मां आगे आकर बोली " हम तो पछता रहे हैं सरकार इस लडकी से अपने बेटे का ब्याह करा कर । चार साल में एक बच्चा नही दे पाई हमारे खानदान को , अब दी भी हैं तो बेटी । हम नही स्वीकारेंगे इस कलंक को । गरीब घर की बेटी होने के बाद भी इसको अपने घर की बहु बनाए और ये लडकी हमसे ही जुबान लडाने लगी । मैं तो कहती हु इस कलंकनी के साथ जाकर नदी में डूब मरे । कोई कमी नही है मेरे बेटे में , जाकर दूसरा ब्याह करा दूगी इसका । "

" चुप है जाओ । ' एक कडक आवाज ने सबको ख़ामोश कर दिया था । वै औरत तो डरते हुए अपने बेटे के पीछे चली गई । ये आवाज और किसी की नही बल्कि राघव की थी । राघव गुस्से भरी नजरों से उन तीनों को घूर रहा था । उसने उस औरत को देखते हुए कहा " कलंक वो नही कलंक आप हैं और आप जैसी सोच रखने वाले हजारों लाखों लोग कलंक हैं । एक स्त्री होकर स्त्री स्त्री का दर्द नही समझ सकती, धिक्कर हैं आप पर ।

बेटा होना या बेटी होना इंसान के हाथों में नही होता । ये सब ईश्वर कि देन हैं । खुद को खुशकिस्मत समझिए की आपके घर एक बेटी ने जन्म लिया है । जिनके आंगन में बेटियों की किलकारियां नही गूंजती उनसे पूछिए दिल में कैसी चुभन होती हैं । आखिर बुराई क्या है बेटी होने में ? आज के समय में बेटियां खुद को साबित कर रही हैं । पिता के कंधे से कंधा मिलाकर खडी रहती है । भाइयों के लिए एक सहायक की भांति तत्पर रहती हैं । पती की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाती हैं । ये सभी काम वो युगों से करती आ रही हैं , बस हम मर्दों ने उन्हें कम आका और उनके किए कामों को उचित सम्मान नही दिया लेकिन आज के समय में हम अपनी सोच बदल रहे हैं । बस कुछ आप जैसी सोच आज भी दुनिया को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं ।

आपको इस लडकी और इस बच्चों को अपनाना होगा । सिर्फ बेटा ही घर का वंश नही होता बेटी भी होती हैं ।‌‌ उसके बिना कोई वंश आगे नही बढता ‌। " राघव ने उस लडकी की ओर देखा जो अपनी गोद में अपने बच्चे को लिए खडी थी । राघव उसकी ओर देखकर बोला " डरने की कोई जरूरत नहीं है । तुम्हारा हक तुम्हें मिलेगा । तुम अभी अपने ससुराल वालों के साथ उनके घर जाओगी और अगर तुम्हारे पती या और किसी ने तुम्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो हम उसे छोड़ेंगे नही । " राघव का फैसला सुन वो बूढा आदमी हाथ जोड़कर उसका धन्यवाद करने लगा । उस लडकी के ससुराल वालों का मूंह लटक गया , लेकिन राघव के फैसले के खिलाफ जाने कि किसी मे हिम्मत नहीं थी ।

कैलाश जी ने आगे कहा " और कोई हैं जिसे सरकार को अपनी समस्या बतानी है । "

" जी मालिक हम हैं । " एक आदमी ये बोलते हुए उठ खडा हुआ । उसने धोती कुर्ता पहना हुआ था और गले में लाल रंग का गमछा लपेट रखा था । उसके औरतों को भीड में से एक औरत निकलकर बाहर आई जो की उसकी पत्नी थी । दोनों ने इस वक्त राघव के आगे अपने हाथ जोड रखे थे । वो आदमी बोला " सरकार हमारी सत्रह साल की बेटी हैं जो पास ही के सरकारी स्कूल में ग्यारहवीं में पढती हैं । उसके स्कूल के बाहर कुछ आदमी सुबह दोपहर खडे रहते हैं और आने जाने वाली लड़कियों को छेडते हैं । कभी गंदी गंदी बातें करते हैं और कभी ..... वै आदमी कहते कहते रो पडा था । तभी उसकी पत्नी बोली " सरकार इन सब से हमारी बेटी की पढाई पर असर पढ रहा हैं । वो कयी दिन से स्कूल भी नही जा पा रही हैं । अब आप ही कुछ कीजिए सरकार । "

" आप लोगों ने पुलिस कंप्लेंट क्यों नही की ?" कैलाश जी ने पूछा तो वो आदमी अपने आंसु पोछते हुए बोला " साहब बेटी का मामला हैं ऐही से चुप रहे , लेकिन फिर हिम्मत कर पुलिस के पास गए ऊं उलटा हम ही लोगों को धमकाकर भगा दिया । बोला की जवान लडके हैं लड़कियो को देखकर जी तो मचलेगा ही । ज्यादा परेशानी हो रही हैं तो घर में बंद करके रखो । हमारा समय बर्बाद मत करो । "

उस आदमी की बातें सुनकर राघव के हाथों की मुट्ठियां कस गयी ।

वो आदमी रोते हुए आगे बोला " ऊं बडे घर के लडके हैं सरकार । उनके खिलाफ जाने की कोनों में हिम्मत नही । "

" कौन हैं वो लोग ? " राघव ने पूछा ।

वो आदमी कहने की कोशिश कर रहा था ,लेकिन कहते वक्त उसकी जुबान लडखडा रही थी । उसने हिम्मत कर कहा " नारायण ठाकुर का छोटा बेटा कुन्दन ठाकुर और उसके दोस्त । "

राघव के चेहरे के एक्स्प्रेसन काफी कठोर हो चुके थे । उसने खुद को शांत किया और बोला " अपनी बेटी से कहिए वो निडर होकर स्कूल जाए । कल से कोई उसे परेशान नही करेगा । "

" बहुत बहुत धन्यवाद सरकार । हम यही बिनती करेंगे राम जी से की ऊं आपको सारी खुशियां दे । " उस आदमी ने राघव का धन्यवाद किया । कैलाश जी ने सभा आगे बढाई और लोगों ने आकर अपनी समस्याएं बताई । कुछ देर बाद जब उन्होंने सबकी समस्याएं सुन ली तो राघव उठ खडा हुआ ।

" रघुवंशी कभी अपने वचन से पीछे नही हटते । आप सबकी समस्याएं हमने सुनी अब उन्हें खत्म करना हमारा काम हैं आप सब निश्चिंत हो जाए । " इतना कहकर राघव ने आंखों पर चश्मा चढाया और अपनी गाडी की ओर बढ गया । पीछे से लोग खुशी से उसके नाम का जय जयकार कर रहे थे ।

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अभी तो आप इस कहानी के नायक से मिले हैं नायिका से भेंट बाकी है । वैसे राघव अब कौन सा कदम उठाएगा ? जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़ें

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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