Prem Ratan Dhan Payo - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 2






" रघुवंशी कभी अपने वचन से पीछे नही हटते । आप सबकी समस्याएं हमने सुनी अब उन्हें खत्म करना हमारा काम हैं आप सब निश्चिंत हो जाए । " इतना कहकर राघव ने आंखों पर चश्मा चढाया और अपनी गाडी की ओर बढ गया । पीछे से लोग खुशी से उसके नाम का जय जयकार कर रहे थे ।

ड्राइवर गाडी के पीछे का डोर खोले खडा था । राघव अंदर आकर बैठा । कैलाश जी ड्राइवर के बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया ।

" सरकार कहा चलना हैं अब ? " कैलाश जी ने पूछा तो राघव आंखों का चश्मा ठीक करते हुए बोला " शर्मा जी कानून का मतलब भूल गए हैं , तो सबसे पहले चलकर उन्हें कानून का पाठ पढ़ाते हैं । "

राघव की बात सुनकर कैलाश जी मुस्कुरा दिए । उन्होंने मन ही मन कहा " शर्मा जी को बातों से समझाया नही माने , लेकिन आज का सबक उन्हें जीवन भर याद रहेगा । "

‌‌राघव की बात सुनकर ड्राइवर ने गाडी स्टार्ट कर आगे बढा दी । राघव किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था ।

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पुलिस स्टेशन




बाहर कांस्टेबल पहरा दे रहे थे । कुछ लोग अंदर अपनी कंप्लेंट दर्ज करा रहे थे । सब इंस्पेक्टर कर्मवीर शर्मा चेयर पर बैठे हुए थे । उनका पांव टेबल पर आराम फर्मा रहा था । दो तीन कांस्टेबल उनके आस पास ही खडे थे । वो उन्हें बीते रात के किस्से सुना रहे थे और सब मज़े लेकर सुन रहे थे । सिर्फ कांस्टेबल ही नही जेल में बंद अपराधी भी सलाखों से टिककर खडे थे और उनकी बातों पर वाह वाही कर रहे थे ।

" अरे तुम लोगों कों हम का बताए और का न बताए । ऊं छोकरियां हमरी बातें ऐसे मान रही थी जैसे हमने उसको बस में कर लिया हो । हम बोले पानी लाओ तो पानी ले आई । हम बोले पांव दवा दो तो बैठ गयी पांव दबाने । "

" शर्मा जी आगे क्या हुआ ? " सामने खडे कांस्टेबल ने उतावले पन से पूछा तो शर्मा जी बोले ' साला तुम बहुत चालाक हो । हमसे ज्यादा जल्दी तुमको हैं । "

" अरे साहब छोड़िए न , ई बताइए बती बुझाने तक बात बनी की नही । " दूसरा कांस्टेबल बोला ।

शर्मा जी हंसते हुए बोला " बेटा तुम खाली बत्ती बुझाने की बात कर रहे हो , अरे बत्ती तो तब बुझेगी न जब ऊहा लाइट होगी । " शर्मा जी की बातें सुनकर वो सब हंसने लगे । इधर इन सबकी बाते जारी थी । बाहर राघव की गाड़ियां आकर रूकी । एक आदमी भागता हुआ अंदर आया और उसने कहा " सरकार पुलिस स्टेशन आए हैं ? "

बस सरकार शब्द ही काफी था राघव को डिस्क्राइब करने के लिए । शर्मा जी उठ खडे हुए और अपने शर्ट के ऊपरी बटन बंद करने लगे । राघव का खौफ ही कुछ ऐसा था ।

राघव कैलाश जी के साथ पुलिस स्टेशन में एंटर हुआ । शर्मा जी अपनी टोपी संभालने में लगे हुए थे ।

' प्रणाम सरकार " शर्मा जी ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा । साथ ही उनकी टोपी भी गिरने लगी । उन्होंने तुरंत उसे संभाल ली ।

राघव बिना कोई जवाब दिए इंस्पेक्टर के सामने रखी चेयर पर बैठ गया । वकील साहब अंदर आए और उन्होंने कुछ पेपर्स कैलाश जी की और बढ़ा दिया । कैलाश जी ने उन पेपर्स को इंस्पेक्टर की ओर बढ़ा दिया । शर्मा जी ने जब उन पेपर्स को पढ़ा तो उनके होश उड़ गए ।

उनके चेहरे की उड़ी हवाइयां सबको नजर आ रही थी । राघव ने उनके चेहरे को देखते हुए कहा " हमें लगता है अब हमें कोई लेक्चर देने की जरूरत नहीं पड़ेगी । इन कागजात ने तुम्हें पूरी बात समझा दी होगी । मिस्टर शर्मा मेरी सलाह यह है कानून की किताब के हर लफ्ज़ को तुम भूल चुके हो । तुम्हें वापस ट्रेनिंग पर जाना चाहिए । खैर तुमने कानून के किताब पढी ही कब थी । पहली बार भी रिश्वत देकर इस पद पर पहुंचे थे , दूसरी बार भी वैसे ही कुछ कर सकते हो । "

" सरकार आपने ई सब काहे किया , आखिर हमारी गलती का है ? " शर्मा जी ने कहा ।

कैलाश जी फीकी मुस्कुराहट के साथ बोले " तुम्हें यहां पर लोगों की समस्याएं सुनने के लिए रखा गया है ना कि उन्हें दर्द देने के लिए । लोगों की कंप्लेंट दर्ज करने की बजाय उन्हें फालतू की नसीहत देने के लिए ये वर्दी नहीं मिली है । शुक्र मनाओ सरकार ने सिर्फ तुम्हारा डिमोशन करवाया है , वरना इस नौकरी से भी हाथ धो बैठते । "

राघव उठते हुए बोला " सब इंस्पेक्टर की पोस्ट तुम्हें रास नहीं आ रही थी , इसलिए डिमोशन करवाया है । दोबारा अगर तुम्हारे खिलाफ कोई कंप्लेन आई तो शहर से बाहर फिकवा दूंगा । " इतना कहकर राघव वहां से चला गया और उसके साथ ही उसके आदमी भी । शर्मा जी तो धराशाही होकर चेयर पर गिर पड़े ।

एक कॉन्स्टेबल उन्हें संभालते हुए बोला " साहब ठीक तो है ना ..... अरे कोई पानी लाओ साहब के लिए । "

दूसरा कांस्टेबल भागकर गिलास में पानी भर ले आया । शर्मा जी की सांसें चढ गई थी ।

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राजकीय बालिका इंटर कालेज ( फैजाबाद )




दोपहर करीब एक बजे का समय हो रहा था । स्कूल के बाहर कयी सारे दुकाने थी , जहा रोजमर्रा की जरूरतों का सामान मिलता था । विशेषकर खाने पीने वाली चीजे जैसे चाट पापड़ी , गोलगप्पे और भी तरह तरह की चीजे । बच्चे सबसे पहले इनकी ओर लपकते थे ।

थोडी ही दूरी पर एक चाय का ठेला था । चाय वाला चाय बनाने में लगा था और कुछ लोग वही बैठे आपस में बाते कर रहे थें । तभी जीप में शोर शराबा करते हुए पांच से छः लोगों का गैंग वहां आकर रूका । आदमियों के हाथों में बंदूके थी । सबके सब आकर चाय के ठेले के पास लगे बेंच पर आकर बैठ गए । ये पूरा गैंग था कुंदन ठाकुर का । कुंदन इस वक्त जीप में ही बैठा हुआ था । सिर पीछे की सीट से टिकाए , आंखों पर चश्मा लगाए बैठा था । सिर्फ आंखे बंद थी ,वो सो नही रहा था ।

उसके आदमी हुडदंग मचाते हुए वहां खडे लोगों को परेशान करने लगे । एक आदमी अखबार पढ रहा था । अचानक ही उसका अखबार छीन लिया गया । उसने हैरान नजरों से देखा , तो पाया सामने कुंदन का खास आदमी नरेश खडा था ।

" का भैया हम लोग ईहा खडे हैं और साला तुम बैठ के मालिक की तरह अखबार पढ रहे हो । चलो उठो .... उठो हिया से .... नरेश अपनी गन घुमाते हुए बोला , तो डर के मारे वो आदमी उठ खडा हुआ और वहां से साइड हट गया । नरेश ने उस अखबार को बैंच पर बिछाया और पैर पर पैर चढ़ाकर बैठ गया ।

" का रे घनश्याम आज कल लडकी लोग का छुट्टी इतना लेट से काहे होता है । " नरेश ने पूछा ।

चाय वाला बिस्किट का डिब्बा बंद करते हुए बोला " ऊं का हैं न साहब ने मुख्य परीक्षा से पहले कौन सा परिक्षा होता हैं ..... हमको तो मालूम ही नही । बस ऊहे सब में बडा क्लास की लड़कियों का छुट्टी देर से होता है । "

घनश्याम सबकी चाय ले आया । उसने नरेश से पूछा " छोटे मालिक चाय नही पिएंगे । "

" अरे तुमहरी चाय में ऊं मिठास कहा , उनको तो रसमलाई खानी हैं । " नरेश ये सब कहते हुए सिर्फ स्कूल के दरवाजे की ओर नजरें गड़ाए बैठा था । स्कूल की घंटी बजी और धीरे धीरे कर लड़कियां बाहर आने लगी । नरेश तिरछा मुसकुराया और चाय का गिलास वही टेबल पर रख कुन्दन के पास चला आया । " छोटे मालिक उठिए , लगता हैं आज फिर आपकी रसमलाई नही आई । खाली ऊ की सहेलियां आ रही हैं । " कुंदन उठा और अपने आंखों पर से चश्मा हटाया । वो सामने की ओर देखकर बोला " तनिक लेकर आओ उन सबको ईहा । "

नरेश अपने आदमियों को आवाज देते हुए बोला " साला तुम लोगों को लडकी ताड़ने खातिर नही लेकर आए हैं । तनिक ऊं चंपा , लक्ष्मी , बबीता को ईहा लेकर आओ । " नरेश के दो आदमी आगे बढे और उन तीनों लड़कियों का रास्ता रोककर खडे हो गए । तीनो पहले से ही डरी सहमी थी । अब उनके सामने आने पर एक दूसरे से लग गई । वो लोग उन तीनों को कुंदन के पास ले आए ।

कुंदन उन तीनों को घूरते हुए बोला " कहां हैं चंदा तीन दिन से दिखाई नही दे रही । "

कुंदन के पूछने पर तीन एक दूसरे का चेहरा देखने लगी । नरेश फटकारते हुए बोला " गूंगी बहरी हो , सुनाई नही दिया तुम लोगों को ..... छोटे मालिक कुछ पूछ रहे हैं जवाब दो । "

एक लडकी ने डरते हुए कहा " वो ... वो अब से स्कूल नही आएगी । आप सबकी बदमाशियों की वजह से उसने पढाई छोडने का फैसला ले लिया । "

कुंदन ने अपनी जेब से एक लेटर निकाला और उनके सामने बढाते हुए बोला " ऊं पढे चाहे न पढे हमक़ो इससे कोनो फर्क नही पडता । ई खत उस तक पहुंचा देना और बोलना कल तक हमको जवाब दे दे , नही तो ऊं के घर का पता हमको मालूम है । चलो अब जाओ ईहा से । " वो तीनो लड़कियां एक दूसरे का हाथ पकड़ तेजी में वहां से जाने लगी , तभी उनमे से एक लडकी का दुपट्टा उसके गले में अटक गया और उसके कदम रूक गए । नरेश पीछे से उसका दुपट्टा पकड़े खडा था ।

" अरी ओ लक्ष्मी सहेली का जवाब तो लेती आना लेकिन हमारा जवाव तो देती जा । हम तो नही है पढे लिखे जो तुमको प्रेम पत्र लिखेंगे । "

वो लडकी आंखें बंद कर रोने लगी थी । उसकी दोस्त ने कहा " उसकी तबियत खराब है छोड दीजिए उसको । "

नरेश उसका दुपट्टा छोड़कर बोला " अच्छा तबियत खराब है अरे हम बैठे हैं न ईलाज खातिर । बोलो कहा तकलीफ है । " ये बोल नरेश और उसके आदमी हंसने लगे । आस पास खडे लोग तमाशबीन की तरह चुपचाप खडे तमाशा देख रहे थे । उनके लिए तो ये जो का एंटरटेनमेंट था । बस मन ही उन आदमियों को गालियां दे सकते थे ,लेकिन सामने जाकर रोक नही सकते थे ।

वो लडकी रोते हुए वहां से भाग गयी । उसकी सहेलियां भी उसके पीछे भागी तभी अचानक से वो सामने खडे आदमी से टकराते टकराते बची । तीनों ठहर गई । सामने राघव खडा था और उसके ठीक पीछे उसके आदमी ।

नरेश ने राघव को देखा तो कुंदन को पीछे की ओर देखने का इशारा किया ‌‌। " साला हम तुमहरी लुगाई नहीं हैं , जो तुम्हरे इशारें समझेंगे । मूंह खोलकर बोलो का हुआ ? " कुंदन ने इतना ही कहां था की तभी दाई ओर से एक दमदार मुक्का उसके चेहरे पर लगा और वो जीप से जाकर सीधा ज़मीन पर गिरा । कुंदन के आदमियों ने आगे बढ़कर उसे उठाया । जीप के एक तरफ कुन्दन को पकडे उसके आदमी लोग खडे थे , तो वही जीप के दूसरी ओर राघव खडा था ।

कुंदन गुस्से से बोला " भूल गए राघव किस पर हाथ उठाया है , हमरे बाबुजी तुमको छोड़ेंगे नही । "

" मैं तो भूल ही गया था । तुम तो दूध पीते बच्चे हो जो अभी भी बाप की उंगलियां पकड़कर चलते हो । बच्चे जब बिगड़ जाए तो उन्हें सजा दी जाती हैं । " ये बोल राघव उसपर टूट पडा । बीच बचाव में कुंदन के आदमी आए तो राघव ने उन्हें भी खूब धोया । राघव ने अपने आदमियों को बीच में आने से मना कर दिया था । वो तब तक कुन्दन को मारता रहा जब तक उसकी हालत बेहोशी की अवस्था में नही पहुंच गयी । राघव ने उसके चेहरे पर कयी जगह ज़ख्म दे दिए थे । राघव उसका कॉलर पकड अपने नजदीक लाकर बोला " दोबारा तुम या तुम्हारे आदमी मुझे स्कूल कॉलेज के आस पास नजर आए तो मैं तुम लोगो को जिंदा नही छोडूगा । " इतना कहकर राघव ने उसे झटके से छोड़ दिया ।

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राघव ने दोनों ही मुद्दों को एक ही दिन में शोर्ट आउट कर दिया । उसका मानना हैं इंसान जितनी जल्दी हो उतना अच्छा होता है । कुंदन क्या बच पाएगा ? या फिर यहां से एक ने जंग की शुरुआत होगी ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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