Prem Ratan Dhan Payo - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 6







जानकी और मैथिली कावेरी को नीचे ले आए और उन्हें पूनम जी के बगल में सोफे पर बिठा दिया । वही मैथिली और जानकी उन दोनों के ठीक पीछे जाकर खडी हो गयी ।

कावेरी के पिता सतीश जी ने कहा " मिलिए हमारी बडी बेटी कावेरी से और ये हमारी छोटी बेटी मैथिली हैं । " मैथिली और कावेरी दोनों ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते कहा । सतीश जी जानकी की ओर देखकर बोले " ये हमारी बेटियों की सहेली हैं जानकी , हमारी बेटी की तरह ही हैं । " जानकी ने भी सबको नमस्ते कहा ।

लडके की मां कृपा जी कुणाल की ओर झुककर बोली " जी भरकर देख लो लडकी को । तस्वीर से भी ज्यादा सुंदर लगती हैं ।‌" कुणाल कुछ नही बोला । हां मगर नजरें कावेरी से हट नही रही थी ।

मैथिली जानकी की ओर झुककर फुसफुसाते हुए बोली " लडके की मुस्कुराहट देखी , लगता हैं जीजी को अभी शादी करके ले जाएगा । "

" तुम थोडी देर शांत रहोगी । " जानकी ने कहा तो मैथिली ने मूंह बना लिया ।

लडके के पिता हरीश जी बोले " भाई साहब जिंदगी तो बच्चों को बितानी है । अगर आपको ठीक लगे तो क्या बच्चे अकेले में बात कर सकते हैं । "

सतीश जी और पूनम जी एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । समाज धीरे धीरे खुले विचारों में परिवर्तित हो रहा हैं किंतु हर जगह इतना खुलापन नही आया । सतीश जी ने हरीश जी की बातों पर हामी भर दी । पूनम जी जानकी से बोली " जानकी बेटा अहा आर मैथिली दूनू कावेरी के संगे जाऊ । " उन दोनों ने कावेरी का हाथ थामा और उसे लेकर आगे बढ गयी । जानकी ने मैथिली को कुछ इशारा किया तो वो समझ गयी । वो लडके के पास चली आई । " आप बैठे क्यों हैं आइए । "

" जाओ बेटा जो पूछना हो पूछ लेना । " कृपा जी ने धीरे से कहा । कुणाल अपनी आंखें छोटी कर उठ खडा हुआ जैसे कहना चाह रहा हो ' मां अब बस भी कीजिए । "

जानकी कावेरी को लेकर आगे आगे चल रही थी । उसके पीछे कुछ ही दूरी पर मैथिली कुणाल के साथ चल रही थी । जानकी धीरे से बोली " जीजी आपने नज़र उठाकर उन्हें देखा तक नही हैं । आपकी पूरी जिंदगी का सवाल है चुप मत रहिएगा । मन में जो सवाल हैं पूछ लीजिएगा और किसी से घबराइएगा मत । " जानवी कावेरी को उसके कमरे में ले आई । कुणाल और मैथिली भी आ चुके थे । जानकी लडके से बोली " कुणाल जी आप लोगों को जो बाते करनी हैं इतमिनान से कर सकते हैं । " ये बोल जानकी ने मैथिली का हाथ पकडा और उसे बाहर लेकर चली आई और बाहर जाते जाते दरवाजा बंद करके गयी । सिर्फ उसने बंद किया था लॉक नही ।

" तूं मुझे बाहर क्यों ले आई । मुझे भी लडके से कुछ बात करनी थी । " मैथिली ने कहा ।

जानकी उसका हाथ छोड़कर बोली " जब तुझे लडके वाले देखने आएंगे न तब जी भरकर सवाल कर लेना । अभी उन दोनों को हमे अकेला छोड देना चाहिए । " जानकी ये बोल जाने के लिए पलट गयी , वही मैथिली दबे कदमों से दरवाजे के पास पहुंची और कान लगाकर बातें सुनने की कोशिश करने लगी ।

जानकी ने जब अपने साथ मैथिली को आते नही देख रही तो वो रूक गयी । वो जब पीछे की ओर पलटी तो उसकी आंखे बडी है गयी । वो मैथिली का ही पकड खींचते हुए उसे दूर ले आई । " बेशर्म लडकी जरा सी भी शर्म हया नही हैं तुझसे । कोई ऐसे छुपकर दूसरों की बाते सुनता है । "

" दूसरों की नही जीजी की बाते सुन रही थी । कही वो अब भी शर्म के मारे नजरें झुकाए तो नही बैठी । " मैथिली ने कहा ।

" तू कभी नही सुधरने वाली । " जानकी ने परेशान होकर कहा ।

" छोड न मैं सुधर गयी तो जमाना बुरा मान जाएगा । " ये बोल मैथिली ने अपने दांत दिखा दिए । करीब दस मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला । मैथिली और जानकी की नजर उस ओर गयी । कुणाल बाहर आया , इस वक्त उसके चेहरे पर बडी स्माइल थी । वो मुस्कुराते हुए नीचे चला गया ।

जानकी और मैथिली काव्या के कमरे में चले आए । " जीजी ऐसी कौन सी जन्म घुट्टी पिला दी लडके को । स्माइल तो होंठों से जुदा होने का नाम ही नही ले रही थी । "

कावेरी इस वक्त उन दोनों की ओर पीठ किए खिडकी के पास खडी थी । जानकी कावेरी के पास चली आई । जानकी ने जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा , तो कावेरी पलटकर उसके गले लग गयी । " मैंने उन्हें हां कह दिया जानू । " कावेरी के ये कहते ही जानकी और मैथिली दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई । मैथिली भी उन दोनों के पास आकर उनके गले लग गई ।

कुछ पल बाद तीनो एक दूसरे से अलग हुए । " मैं अभी मां पापा को बोलकर आती हूं । " मैथिली ये बोल बाहर की ओर भागी । उसने कॉरिडोर से झांककर देखा तो सब हंसते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे । शायद कुणाल ने सबको बता दिया था की वो दोनों इस रिश्ते से खुश हैं । मैथिली ने उपर से ही इशारा किया । पूनम जी की नजर उस पर पड़ी , तो मैथिली में हमें अपना सिर हिला दिया । पूनम जी समझ गई उनकी बेटी को ये रिश्ता मंजूर है । मैथिली भागकर कमरे में वापस चली आई ।

" अरे भाई राज की बात जरा हमें भी बताइए । ऐसा क्या हुआ बंद कमरे में जो फोरन रजामंदी मिल गई । " मैथिली ने अंदर आते हुए कहा ।

कावेरी जानकी से बोली " देखा जानु मैंने कहा था ना इसके दिमाग जरूर कोई उल्टी-सीधी खिचडी पक रही होगी । बात की हम दोनों ने , हमें वो पसंद आए तो हमने हां कह दी । वैसे भी उन्होंने हमारी तस्वीर देखकर ही हमें पसंद कर लिया था ।" कावेरी ये बोल शर्माने लगी ।

मैथिली बिस्तर पर आलथी पालथी मारकर बैठते हुए बोली " मैं भी तो वही पूछ रही हूं ऐसी क्या बात हुई बंद कमरे में । उल्टा सीधा थोड़ी ना सोच रही हूं जो आप लोग मुझको झूठा इल्जाम लगा रहे हो । "

" हां जीजी बताइए न क्या पूछा लड़की ने आपसे ? " जानकी ने कहा । दोनों को जिद करते देख जानकी बोली " घर का काम आता है या नहीं , कितनी पढ़ी लिखी हो , ऐसा उन्होंने कुछ नही पूछा । यह सब तो पीसा उन्हें पहले ही बता चुकी थे । बस मेरी पसंद नापसंद जानी । "

" और आपने क्या पूछा ? " मैथिली बीच में बोली ।

" तुझे बड़ी जल्दी है जाने की । "

" अरे जीजी बताओ ना प्लीज क्या पूछा आपने ? " मैथिली जिद करते हुए बोली ।

कावेरी ने एक गहरी सांस ली और कहा " मैंने भी उनकी पसंद ना पसंद पूछी और यह भी पूछा कि और किसी को पसंद तो नहीं करते या फिर उनके माता-पिता जबरदस्ती तो नहीं करवा रहे हैं । "

" तो फिर क्या कहा उन्होंने ? " जानकी ने पूछा ।

" उन्होंने कहा ऐसी कोई बात नहीं है अगर ऐसा तो मैं यहां आता ही नहीं । ना हीं अपना और ना ही आपका सर बात करता हूं । मैं रिश्ते को लेकर सीरियस हूं इसलिए यहां अपने माता-पिता के साथ आया वरना तस्वीर देखने के बाद भी मैं इनकार कर सकता था और मुझ पर कोई दबाव नहीं है । " कावेरी ने कहा ।

" जीजी आप खुश हैं से बड़ी बात और क्या हो सकती हैं ? ..... हैं न मैथिली । " ये बोल जानकी ने उसकी ओर देखा तो मैथिली ने हां में अपना सिर हिला दिया । नीचे लडके वाले जा चुके थे । कुछ देर वहां रूककर जानकी भी अपने घर लौट आई ।

शाम का वक्त हो रहा था उसने हाथ पांव धो कर मंदिर में दिया जलाया और फिर तुलसी के पौधे के पास । जानकी ऊपर अपने कमरे में चली आई । उसने कपड़े चेंज किए और फिर खाना बनाने के लिए किचन में चली आई । खाना बनाते बनाते आधा घंटा बीत चुका था । जानकी का फ़ोन बाहर हॉल में रखा था और कूकर की सीटी की वजह से उसे रिंग टोन सुनाई नही दी । फ़ोन दो बार बजकर कट चुका था । जनकी को लगा जैसे बाहर उसका फ़ोन बज रहा हैं । उसने किचन से झांककर देखा , तो उसके फोन की फलैश लाइट ऑन थी । जानकी ने गैस बंद किया और बाहर चली उसने । उसने फ़ोन में नंबर देखा और मुस्कुराते हुएं फोन रिसीव कर लिया । फोन के दूसरी तरफ से एक प्यारी सी आवाज आई " प्रणाम जीजी मां । "

" खुश रहिए मीठी । "

" जीजी मां कहां थी आप , हम कब से आपको फ़ोन कर रहे हैं लेकिन आप रिसीव ही नही कर रही । "

" सॉरी मीठी वो हम किचन में थे इसलिए पता नही चला । अच्छा ये बताईए आज आपका टेस्ट था न । अच्छे से हो गया । "

" जीजी मां पहले हमारा हाल चाल पूछिए लेकिन आप ये सब छोड़कर पहले हमारे टेस्ट के बारे में पूछ रही है । " मीठि की ये कहने पर जानकी मस्कुराते हुए बोली " हमारी शैतान गुड़िया आप की शैतानियां हम अच्छे से समझते हैं । "

" जीजी मां टेस्ट बहुत अच्छा गया , लेकिन अभी हम आपको न बहुत मिस कर रहे हैं । हमारा मन कर रहा है अभी उड़कर आपके पास चले आए । " मीठी के ये कहने पर जानकी बोली " याद तो आपकी भी हमे बहुत आती हैं । "

" तो फिर क्यों हमे अपने आपसे दूर कर रखा हैं ? " फ़ोन के दूसरी तरफ से मीठी ने भारी गले से कहा ।

" मीठी प्लीज आप आंसू नही बहाएगी । आप अच्छे से जानती है हमने आपको दूर क्यों रखा हैं ? आप पढाई पूरी कर हमारा सपना पूरा कर बस हम राम जी से यही विनती करती हू । "

मीठी अपने आंसू पोंछते हुए बोली " ठीक हैं जीजी मां हम नही रोएंगे लेकिन इगजेम खत्म होते ही छुट्टी मिलेगी , तो हम भागकर आपके पास चले आएंगे और फिर आपकी एक नही सुनेंगे । " जानकी के होंठों पर मुस्कुराहट भी थी और आंखों में नमी भी । कुछ देर मीठी से बात करने के बाद जानकी ने फोन काट दिया । वो खुद के आंसुओं को संभाले बैठी थी , लेकिन मीठी का फोन कटते ही वो आसूं भी बह निकले । जानकी वही चेयर पर बैठ गई । आंखें बंद कर कुछ देर यूं ही आंसू बहाती रही ।

जानकी ने महसूस किया जैसे कोई उसके सिर पर हाथ फेर रहा हो । उसने झट से अपनी आंखें खोल ली । उसने आस पास नजरें दौडाई तो वहां कोई नही थी । जानकी की नज़र अपने मां पापा की तस्वीर पर गयी । जानकी आंसू पोंछते हुए मन में बोली" अब इन आंसुओं को पोंछने के लिए भी अपने हाथों का इस्तेमाल करना पडता हैं । आप दोनों के रहते कभी ये आंसू आंखों में नही आए । आप दोनों के जानें के बाद देखिए न ये आंसू हमसे दूर ही नही जाते । छोड़कर चले गए आप दोनों हमे । कर दिया अनाथ । आप थे तो सब अपने थे । हर कोई रिश्ता निभाता था । आप दोनों के जाने के बाद तो सबने मूंह मोड लिया । अपनो को पराया बनने में पल भर का समय नही लगा । आप गए तो सबने मूंह मोड लिया । " जानकी काफी देर तक यूं ही चेयर पर बैठी अपने माता पिता की तस्वीर को निहारती रही । नींद कब आई, पता ही नही चला ।

जो लोग आपके पद, प्रतिष्ठा और पैसे से जुड़े हैं,

वो लोग केवल "सुख" में आपके "साथ" खड़े रहेंगे ।

और जो लोग आपकी वाणी, विचार और व्यवहार से जुड़े हैं,

वो लोग "संकट" में भी आपके "लिये " खड़े रहेंगे ।


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जानकी किन अपनों की बात कर रही थी । किन लोगों ने परायों की तरह व्यवहार किया ?

मैं इस कहानी में कयी स्थान पर मैथिली भाषा का प्रयोग करने वाली हु । वैसे ये भाषा इतनी मुश्किल नही की उसे समझा न जा सके । फिर भी आपको समझनें में परेशानी हो तो आप मुझे बता सकते हैं ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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