Prem Ratan Dhan Payo - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 8







करूणा की बातों से जैनी भावुक हो चुकी थी । वो उसके पैरों के पास गिरकर बोली " मैडम आज के टाइम में कोई अपनों को अपना नही कहता और आप गैरों को भी अपना कहती हैं । आज के समय में नौकरों को कौन अपना परिवार बताता है । आपने तो हमे घर का सदस्य ही कह डाला । "

" क्यो न कहे आप सबको अपना परिवार । आप सब हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं । यहां काम करने वाला हर एक व्यक्ति हमारे परिवार का हिस्सा है । दिन रात आप लोग हमारे साथ रहते हैं । मन लगाकर काम करते हैं तो क्या आप सब हमारा परिवार नही हैं । अब आप जरा मत सोचिए और शादी की तैयारियां कीजिए । " जैनी ने हां में सिर हिलाया और वहां से चली गई ।

इधर गार्डन में परी संध्या के साथ पकडम पकडाई खेल रही थी । तभी एक लडके ने आकर पीछे से उसे धपपा कहा । परी डरकर कुछ कदम आगे हो गयी और जब पीछे की ओर पलटी तो सामने खडे लडके को देखकर उसने गुस्से से अपने दोनों गाल फुला लिए । सामने खडा लडका पेट पकड़कर जोर जोर से हंस रहा था ।

संध्या परी के पास आकर बोली " क्यों राज आपने फिर से हमारी परी को डरा दिया ? "

" अब मैं क्या करूं संध्या जी आपकी परी हैं ही इतनी डरपोक । " राज के ये कहने पर परी गुस्से से बोली " हम डरपोक नही हैं , आप गंदे है । हम चाचु से आपकी कंप्लेंट कर देंगे । "

राज उसकी नकल उतारते हुए बोला " ओह तो आप मेरी कंप्लेंट करेंगी , अपने खडूस चाचू से । "

" हां अपने खडूस चाचू से ही कंप्लेंट करेगी । ' पीछे से किसी की सख्त आवाज आई तो राज के चेहरे की रंगत ही उड़ गई ।

परी मुस्कुराते हुए बोली ' चाचु ' ..... वो भागकर राघव के पास पहुंची और उसके पैरों से लिपट गयी । राघव ने उसे गोद में उठा लिया । राज अपनी आंखें बंद कर मन में बोला " मुझे भी क्या जरूरत थी खड़ूस बोलने की । क्या पता था अभी इन्हें याद करूंगा और ये आ जाएंगे । " राज ने खुद को नोर्मल किया और चेहरे पर जबरदस्ती की स्माइल लाकर बोली " राघव भैया आप आज जल्दी घर आ गए । "

राघव बिना कुछ बोले परी को लेकर जाने के लिए मुड गया । संध्या राज के पास आकर बोली " क्या सोच रहे हैं ये शांती तूफान आने से पहले की हैं । जब तूफान आने वाला हो तो घर का आसरा ले लेना चाहिए । मतलब समझ रहे हैं न आप । "

" सब समझ गया , जा रहा हूं भाभी का आसरा लेने । " राज ये बोल घर के अंदर भागा । ( राज सिंह राठौर ...... ये अमित सिंह राठौर के छोटे और इकलौते भाई हैं । उनके परिवार में सिवाय उन दो भाइयों के और कोई नही । राघव का परिवार उसे अपने छोटे भाई की तरह मानता हैं । )

राघव परी को लेकर हॉल में चला आया । करूणा सीढ़ियों से नीचे आ रही थी । राज अंदर आया और उसके पांव छूकर बोला " प्रणाम भाभी मां"

" खुश रहिए ..... वैसे कहा गायब रहते हैं आज कल आप । चार दिन बाद अपना चेहरा दिखा रहे हैं । आफिस जाने से तो आप वैसे ही कतराते रहते हैं फिर कहां बिजी हैं । " करूणा के ये कहने पर राज झेंपते हुए बोला " वो भाभी हम चार दिन के लिए दोस्तों के साथ घूमने चले गए थे । "

करूणा हॉल की तरफ बढते हुए बोली " अमित ने हमे बता दिया था । आदते सुधार लीजिए अपनी । बिना बताए यूं दोस्तों के साथ छुटी पर चले जाना कोई अच्छी बात नहीं । "

राघव और परी इस वक्त खेल रहे थे । करूणा वही पास में रखे सोफे पर बैठते हुए बोली " देवर जी हमे आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी । "

" हां कहिए न भाभी । "

" दर असल बात ये हैं की हमे परी के लिए नयी केअर टेकर ढूंढनी पडेगी । " करूणा के ये कहने पर राघव बोला " क्यों जैनी हैं न परी को संभालने के लिए । "

" उसने काम छोड दिया हैं क्योंकि उसकी शादी होने वाली है । "

राघव को अब सारी बातें समझ आई । उसने करूणा की ओर देखकर कहा " ठीक है भाभी मां , हम कल ही कैलाश जी से कहकर नयी केअर टेकर का इंतजाम करते हैं । "

" यही तो सबसे मुश्किल काम हैं देवर जी । कितनी लड़कियों को छाटने के बाद हमे जैनी मिली थी । वैसे भी परी को संभालना कोई आसान काम नहीं । जिसे भी रखा वो दिन भर भी नही टिक पाई । " करूणा ये कह ही रही थी की तभी राज बोला " भाभी मां आप टेंशन क्यों ले रही है ? हम इंटरव्यू लेंगे । जो हमारी परी के लिए बेस्ट होगी उसे सिलेक्ट कर लेंगे । "

करूणा हंसते हुए बोली " राज आप ऐसे बात कर रहे हैं जैसे मैं कंपनी की वेकेंसी फिल करने के लिए कैंडिडेट ढूंढ रही हूं । "

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शाम का वक्त , अहुजा क्लिनिक




जानकी ने वक्त देखा शाम के सात बज रहे थे । उसने अपना बैग और फ़ोन उठाया और अहूजा जी के कैबिन में चली आई । " क्या हुआ सर आज आपकों घर नही जाना ? "

" जाना हैं जानकी बेटा , थेडा काम हैं इसलिए हम देर से जाएंगे । " अहुजा जी ने कहा ।

" क्या काम हैं सर हमे बताइए हम कर देंगे । " जानकी कह ही रही थी की तभी अहुजा जी बोले " नही बेटा हम कर लेंगे । तुम घर जाओ । " जानकी हां में सिर हिलाकर जाने के लिए मुडी लेकिन फिर रूककर आहुजा जी की ओर पलटकर बोली " सर कोई प्रोब्लम है क्या ? काफी दिनो से आप कुछ परेशान से नज़र आ रहे हैं । "

आहुजा जी चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट लाकर बोले " नही बेटा ऐसी कोई बात नहीं है । "

" सर डाक्टर से झूठ नही कहां करते । " जानकी के ये कहते ही आहुजा जी को हंसी आ गई ।

" बस सर इसी की कमी थी । अब इसे चेहरे से अलग मत कीजिएगा । " जानकी ये बोल वहां से चली गई । आहुजा जी खुद से बोले " बडी प्यारी बच्ची हैं । समझ नही आ रहा जानकी आपको ये बात कैसे बताए , लेकिन आज नही तो कल हमे आपकों ये बात बतानी ही होगी । हम कल ही आपको सब बता देंगे । "

जानकी क्लिनिक से बाहर निकलकर रिक्शे का वेट करने लगी । वो बार बार अपनी घडी की ओर ही देख रही थी । तभी एक बाइक सवार उसके सामने आकर रूका । उसने हेलमेट हटाया तब जाकर जानकी को उसका चेहरा दिखा । जानकी आंखें छोटी करके बोली " मोहन तुम कभी सुधारोगे नही , डरा दिया न हमे । '

" ओ एम जी मेरी शेरनी को भी डर लगता हैं चलो यहां आकर बात पता तो चली । " मोहन ने उसे चिढ़ाते हुए कहा ।

जानकी उसे अपने बेग से मारते हुए बोली " बकवास बंद करो नही तो अभी तुम मेरे हाथ से पिटोगे । "

" वो तो तुम बिना बोले भी पीट देती हो । चलो आओ बैठे मैं घर तक छोड़ दूगी । " जानकी ने कोई इंकार नहीं किया और उसके पीछे बाइक पर आकर बैठ गई । मोहन ने बाइक स्टार्ट की और आगे बढा दी । कुछ दूर चलकर जब उसने अपनी बाइक रोकी तो जानकी पूछ्ते हुए बोली " यहां क्यों रोकी ? "

उसके इस सवाल का जवाब मोहन ने इशारे में दिया । उसने जानकी को पीछे की ओर देखने के लिए कहा । जानकी ने पलटकर देखा तो सडक किनारे गोलगप्पे वाला खड़ा था । जानकी के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । उसने मोहन से कहा " वो तो मेरी पसंद है और तुमसे तीखा खाया नही जाता , फिर बाइक क्यों रोकी ? "

" तीखा न सही मीठा तो खा ही सकता हू , चलो । " ये बोल मोहन आगे बढ गया । जानकी भी संभलकर सडक क्रास करने लगी । मोहन नो गोलगप्पे वाले से दो प्लेट ली । " भैया इसके लिए तीखा बनाना और ..... और इसके लिए मीठा " जानकी मोहन की बात पूरी करते हुए बोली ।

दोनों ही गोलगप्पे खा रहे थे । जहां मोहन ने सिर्फ दो खाया था वही जानकी चार खा चुकी थी वो भी तीखे वाले । खा वो रही थी और मिर्च मोहन को लग रही थी । जनकी ने उसे घूरते देखा तो रूकते हुए बोली " क्यों जी भर गया । "

" तुम्हें तीखा बिल्कुल भी नही लग रहा । तुम्हें देखकर रोना मुझे आ रहा हैं । " उसके ये कहते ही जानकी को हंसी आ गयी । दोनों ही कुछ देर बाद पुल के किनारे खडे हो गए । रात भी हो चली थी और आसमां चांद सितारों से भर चुका था । जानकी उन्हीं को देख रही थी और मोहन उसे । मोहन मन में बोला " जानू तुम उस चांद से भी ज्यादा खूबसूरत हो ये बात तुमसे कहने को दिल कर रहा हैं लेकिन हिम्मत नहीं हो रही । बचपन से दबा हैं इस दिल में प्यार लेकिन जाहिर करने की हिम्मत ही नही हुई । तुम समझदार हो अपने आप ही समझ जाओ । मुझे लगता हैं तुम्हें समझाने के लिए ये जिंदगी भी कम पड जाएगी । "

" मोहन ... मोहन ....

मोहन चौंकते हुए बोला " हां .... क्या हुआं .... क्या हुआ जानकी ? "

" कहा खोए हो कब से आवाजें दे रही हो । रात हो चुकी है घर छोड दो मुझे । "

" हां " मोहन बाइक का पास चला आया ‌‌। जानकी भी उसके पास चली आई । दोनों वहां से निकल गए ।

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रात का वक्त , राघव का कमरा




राघव इस वक्त बेड पर सो रहा था । कमरे में अंधेरा था सिर्फ हल्की नीली रोशनी थी ,जो उसके चेहरे को पारदर्शी बनाने का प्रयास कर रही थी । वो बार बार अपना सिर इधर से उधर कर रहा था और कुछ बोल भी रहा था । शायद वो कोई बुरा ख्वाब देख रहा था ‌‌।

" छोड दो उन्हें ..... वापस आ जाओ .... नईईईईई .... राघव चीखते हुए उठ बैठा । उठने के साथ ही उसने टेबल लाइट ऑन कर दिया था । पूरा चेहरा इस वक्त पसीने से तर बतर था । वो तेज तेज सांसें ले रहा था । राघव ने अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया । नींद उस बुरे सपने ने खराब कर दी थी । राघव ने बालकनी का दरवाजा खोला और खुली हवा में सांस लेने के लिए चला आया । फरवरी माह में भी ठंड का प्रकोप कम नही था , लेकिन राघव को इस वक्त उस ठंड से फर्क नहीं पड रहा था ‌‌। वो यूं ही बालकनी में टहलता रहा ।

वही करूणा अपने कमरे में बिस्तर से टिककर बैठी थी । रात के एक बज रहे थे लेकिन उसकी आंखों में नींद का एक कतरा भी नही था । करूणा के हाथों में इस वक्त उसके पती समर की तस्वीर थी । करूणा उसे छूते हुए बोली " परी के लिए हम दोनों ने मिलकर कितने सपने देखे थे लेकिन आप तो उन सपनों को पूरा करने के लिए ठहरे ही नही । सारी जिम्मेदारी मुझ अकेले पर छोड़कर चले गए । " करूणा की आंखें भर आई थी । उसने तस्वीर को सीने से लगा लिया और रोते हुए बोली " जब निभाना ही नहीं था तो मुझसे वादे ही क्यों किए ? कहा साथ जन्मों तक साथ निभाउगा और आप एक जन्म भी साथ नही निभा पाए । मुझे भी साथ लेकर चलते । "

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सुबह का वक्त , रघुवंशी मेंशन




हर रोज की तरह आज की सूबह भी नोर्मल थी । आज से जैनी नही आने वाली थी । परी को उठाने के लिए करूणा उसके कमरे में आई । " परी ..... उठो बेटा आपको स्कूल भी जाना हैं । "

परी कहां इन आवाजों को सुनने वाली थी । बेड के एक तरफ डोरेमोन , दूसरी तरफ बार्बी् और पैरों के पास मंकी पडा था । वो तो टैडीस से घिरी हुई थी ‌‌।

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क्या करूणा को परी के लिए नयी केअर टेकर मिल पाएगी ? मिस्टर जुनेजा क्या छुपा रहे हैं जानकी से ? हर तरफ कशमकश हैं । कयी गहरे राज है । कब खुलेगा ये राज जानने के लिए थोडा इंतजार कीजिए ।

मोहन अपने दिल की बात जानकु से कभी कह पाएगा ? या फिर जानकी उसके दिल की बात समझ पाएगी । य जानने के लिए कहानी के साथ बने रहिए

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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