Prem Ratan Dhan Payo - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 7

सुबह का वक्त , अयोध्या , रघुवंशी मेंशन

राघव इस वक्त अपने कमरे में तैयार हो रहा था । उसने कॉलर कफ ठीक किया और कोट पहना । राघव अपने हाथों में खडी बांधते हुए रूम से बाहर निकल आया । सुरेश वही से गुजर रहा था । राघव ने कहा " सुरेश बेड पर मेरी फाइल और लैपटॉप बैग हैं उसे मेरी गाडी में रखवा दो । "

" जी भैया " ये बोल सुरेश उसके कमरे की ओर बढ गया और राघव नीचे चला आया । परी इस वक्त डायनिंग टेबल के पास चेयर पर बैठी थी । इस वक्त उसने स्कूल ड्रेस कैरी किया था और बालों की दो चोटी बनाई थी । जिसमें वो बेहद प्यारी लग रही थी । राघव को देखकर उसने बडी सी स्माइल पास की । " गुड मॉर्निंग चाचू '

राघव उसके गालों पर किस कर अपनी चेयर पर बैठते हुए बोला " गुड मार्निंग , आप अभी तक स्कूल नही गए । "

" आप ही का इंतजार कर रही थी । कराईए अपनी लाडली को नाश्ता । " करूणा ने उसके आगे नाश्ते की प्लेट रखकर कहां ।

" अरे भाई जरा हमे भी कोई पूछ लीजिए । हम भी बिना नाशता किए आए हैं । " पीछे से किसी की आवाज आई तो सबने उस ओर देखा लेकिन राघव ने नही देखा । उसके लिए ये आवाज़ कोई नयी नही थी । वो बस परी को खाना खिलाने में लगा रहा ।

करूणा मुस्कुराते हुए बोली " आइए अमित , वहां क्यों खडे हैं ... अंदर आईए । " दरवाज़े पर एक आदमी खडा था । उम्र तकरीबन राघव के ही बराबर थी । अच्छी कद काठी और सुडैल शरीर था । ( ये हैं अमित सिंह राठौर राघव के बचपन के दोस्त । राघव का बिजनेस अयोध्या में काफी फैला हुआ हैं । अमित की भी अयोध्या में दो कंपनी हैं और कितने ही प्रोजेक्ट वो राघव के साथ मिलकर कर रहा हैं । इनका पारिवारिक संबंध वर्षों से घनिष्ठता से जुडा हुआ है । )

अमित अंदर आया और चेयर खिसकाकर बैठते हुए बोला " अच्छा जी जनाब तो इतना इंम्पोरटेंट काम कर रहे हैं , तभी मैं कहूं कोई जवाब क्यों नही आया ? "

" संध्या अमित के लिए भी नाश्ते की प्लेट तैयार कर देना । " करूणा ने आवाज लगाते हुए कहा ।

राघव परी को खाना खिलाते हुए बोला " तूं महीने भर का राशन मेरे ही घर पर क्यों नहीं भरवा देता । महिने के तीसो दिन तुझे यही खाना होता हैं । "

अमित दांत दिखाते हुए बोला " बडा घटिया जोक था बिल्कुल मजा नही आया । क्यों परी बेटा मैंने ठीक कहां न । " अमित के ये कहने पर परी उसे आंखें दिखाने लगी । उसके मूंह पर कोई उसके चाचू को बुरा कहे और वो चुपचाप सुन ले ऐसा हो सकता हैं भला । अमित उसका चेहरा देख मन ही मन बोला " बिल्कुल अपने चाचू पर गयी हैं । उसकी तरह आंखों से डराना भी सीख गयी । "

संध्या अमित के लिए नाश्ते की प्लेट बाहर ले आई । परी का नाशता होने के बाद जैनी उसे अपने साथ बाहर ले गयी । एक नौकर उसका स्कूल बैग लेकर उनके पीछे चला गया ।

अमित राघव से बोला " राघव आज मिस्टर शुक्ला के साथ हमारी मीटिंग हैं तुम्हें याद हैं न । "

" अच्छे से याद हैं । पहले अपने आफिस जाऊगा क्योकी उनसे मीटिंग दस बजे हैं । उससे पहले भी मुझे कुछ जरूरी काम निपटाने है । " राघव ने कहा । यूं ही बाते करते करते दोनों ने अपना नाश्ता खत्म किया और ऑफिस के लिए निकल गए । करूणा भी अपने कमरे की ओर बढ गयी ।

करीब एक घंटे बाद जैनी परी को स्कूल ड्रोप कर हवेली वापस चली आई । वो करूणा के कमरे में आई और दरवाजा नोंक करते हुए बोली " मैडम क्या मैं अंदर आ सकती हू । करूणा ने पानी का गिलास टेबल पर रखा और बिना दरवाजे की ओर देखे बोली " अंदर आ जाइए जैनी ।

जैनी अंदर चली आई । " मैडम मुझे आपसे कुछ बात करनी थी । "

" हां कहिए "

" मैडम मैं कल से काम पर नही आऊगी । " जैनी के ये कहने पर करूणा हैरान होकर बोली " लेकिन क्यों , कोई प्रोब्लम हैं य फिर सैलरी से रिलेटिड दिक्कत है ? "

" नही नही ... मैडम ऐसी कोई बात नही है । मेरे काम के हिसाब से तो मुझे दुगनी सेलरी दी जाती हैं । आपसे बस एक बार कहने पर मुझे एडवांस भी मिल जाता हैं ।‌"

" तो फिर प्रोब्लम क्या हैं जैनी ? "

" मैडम वो मेरी मैरिज फिक्स हो गयी हैं । परसों चर्च में मेरी शादी है । एक्चुअली मेरा पियोनसे नही चाहता की मैं शादी के बाद यहां काम करू , क्योंकि हम दोनों गोवा सैटल होने वाले हैं । इसलिए मैं ये जॉब छोड रही हैं । आप प्लीज परी बेबी के लिए दूसरी केअर टेकर रख लीजिए । मैं कल से नही आ पाऊगी । "

करूणा कुछ सोचते हुए बोली " ठीक हैं आज शाम को जाते वक्त आप अपनी बाकी की पेमेंट्स मुझसे ले लीजिएगा । "

" ओके मैडम " इतना बोल जैनी वहां से चली गई ।‌

करूणा परेशान होकर खुद से बोली " परी को संभालना ही तो सबसे मुश्किल काम है । अब इतनी जल्दी नयी केअर टेकर कहा से लाए । "

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सुबह का वक्त , रघुवंशी कंस्ट्रक्शन




यू तो इस शहर में कितनी ही चीजे रघुवंशियों की देन थी । स्कूल , कॉलेज , हॉस्पिटल , मॉल और भी बहुत कुछ । इन सबमें रघुवंशी कंस्ट्रक्शन राघव के पिता मिस्टर हरिवंश सिंह रघुवंशी की देन थी । जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से ऊंचाईयों के शिखर तक पहुंचाया था । राघव की मां अर्चना सिंह रघुवंशी के नाम पर शहर में बडा हॉस्पिटल भी बनाया गया जहां गरीबों का मुफ्त इलाज होता हैं ।

राघव कंपनी पहुंच चुका था । इस वक्त वो अपने कैबिन में रोलिंग चेयर पर बैठा एक हाथ होंठों के करीब रख और दूसरा हाथ चेयर पर टिकाकर सामने बैठे शख्श की बाते सुन रहा था । कुछ देर बाद राघव ने कहा " मिस्टर सिंह आप मुझे सिर्फ एसकयूसिस दे रहे हैं । काम इतना टफ नही हैं जिसे पूरा करने में दो महीने का वक्त लग गया ‌‌। माना ये प्रोजेक्ट ज्यादा बडा नही था लेकिन इसकी कीमत इतनी थी की इसके डिले के चलते आप लोगों के हाथों से एक बडा प्रोजेक्ट निकल गया । "

सामने बेठा आदमी अपने रूमाल से माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोला " सॉरी सर " ।

" क्या आपकी सॉरी मुझे दोबारा वो प्रोजेक्ट दिला सकती हैं या फिर ये आश्वासन दे सकती हैं की आगे से ऐसा कुछ नही होगा । " राघव ने नोर्मली पूछा । लहज़े में कोई तीखापन नही था किंतु कटाक्ष जरूर था ।

मिस्टर सिंह झुकी नज़रों के साथ बोले " सर आगे से आपको दोबारा शिकायत का मौका नही मिलेगा । "

" शिकायत का मौका तो मुझे तब मिलेगा न मिस्टर सिंह जब मैं आपको दोबारा गलती करने का मौका दूगा । " ये बोल राघव ने सामने रखा लैंडलाइन का रिसीवर उठाया और एक नंबर डायल किया । सामने वाले के फोन रिसीव करते ही राघव बोला " Deepak come to my cabin right now. " इतना कहकर राघव ने रिसीवर नीचे रख दिए । उसे रिसीवर नीचे रखे बस पांच सेकेंड ही बीते थे , की तभी एक लडका भागता हुआ कैबिन में आया । " येस सर आपने बुलाया । "

राघव अपनी रोलिंग चेयर पर पीछे की ओर पीठ टिकाकर घूमते हुए बोला " दीपक मिस्टर सिंह के ट्रांसफर पेपर रेडी करो । अगले छः महिने के लिए वो हमारे उड़ीसा वाले फैक्ट्री में काम करेंगे । "

" नही सर वो तो ..... मिस्टर सिंह ने इतना ही कहा था की तभी राघव उनकी बात बीच में काटते हुए बोला " तो क्या आप साल भर रूकना चाहतें हैं । "

" नो सर " मिस्टर सिंह ने बुझे हुए स्वर में कहा ।

राघव अपनी चेयर रोल कर उनकी ओर पीठ करके बोला " You may go now Mr. Singh. " मिस्टर सिंह को अब अपनी किस्मत पर रोन आ रहा था , लेकिन वहां रूककर नौकरी गंवाना नही चाहते थे । वो मायूस होकर कैबिन से बाहर चले गए । दीपक अपने मन में बोला " कमाल हैं ओडिसा की फैक्ट्री न हुई तिहाड़ जेल हो गया । सर का पनिशमेंट देने का तरीका भी काफी यूनीक हैं । "

राघव अपनी चेयर से उठते हुए बोला " अमित हमे अभी मिस्टर शुक्ला के साथ मीटिंग के लिए जाना हैं । जिन फाइलों को मैंने तुम्हें रखने के लिए दिया था उन्हें ले आओ । "

" फाइल्स सारी रेडी हैं सर , आप चलिए मैं बस एक मिनट में लेकर आया । " ये बोल दीपक वहां से चला गया ।

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सुबह का वक्त , जानकी का घर




सुबह पंछियों के चहचहाने की आवाज जब जानकी के कानों में पडी तब कही जाकर उसकी नींद टूटी । वो रात को रोते वही वही चेयर पर बैठकर सो गयी थी । जानकी ने उठकर देखा तो एक लडकी आंगन में झाडु लगा रही थी । जानती उठकर दरवाजे के पास चली आई । " चंचल तुम आ गयी थी तो हमे जगाया क्यों नही ? "

" आप गहरी नींद में थी दीदी । दो बार आवाजें दी फिर भी आप नही उठी तो हम लग गए अपने काम पर । " चंचल ने कहा ।

जानकी बालों का जूडा बनाते हुए अपने कमरे में चली गयी । कुछ देर बाद वो नहाकर बाहर आई । इधर चंचल भी घर की साफ सफाई में लगी हुई थी । जानकी ने अपने हाथों से मंदिर की सफाई की और पूजा शुरू की । रामायण की चौपाइयां वो हर रोज पढती । उसकी आवाज में जादू था । चंचल काम छोड बस उसके आवाज के जादू में खो गयी । .......

चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।

नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं॥

कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।

मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गति बर बाजहीं॥

जानकी ने पूजा पूरी की और कलश में फूल डाल उस जल के छीटे पूरे घर में डाले । जैसे ही छींटे चंचल के चेहरे पर पडा । वो होश में आई । " दीदी आप चार बार हमको दिन में नहलाती हो । " जानकी मुस्कुराते हुए आंगन में चली गई । सूर्य देवता को जल चढाने के बाद उसने तुलसी में जल चढाया ।

जानकी चंचल को आवाज देते हुए बोली " चंचल हम मंदिर जा रहे हैं । "

" ठीक हैं दीदी तब तक हमारा काम भी खत्म हो जाएगा । " चंचल ने कहा । जानकी मंदिर के लिए निकल गयी । ( जानकी ने चंचल को अपनी मदद के लिए रखा था । वो घर की साफ सफाई का पूरा जिम्मा संभालती थी । जानकी के पास जब भी वक्त होता वो उसके साथ मिलकर हाथ बटा देती । )

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शाम का वक्त , रघुवंशी मेंशन




करूणा इस वक्त कबर्ड के पास खडी कुछ निकाल रही थी । वही थोडी ही दूरी पर जैनी खडी थी । करूणा ने एक लिफाफा निकालकर जैनी को दे दिया । जैनी उस लिफ़ाफ़े को देखते हुए बोली " मैडम ये क्या हैं ? " ये बोलते हुए उसने लिफाफा खोला , तो उसमें रूपयों की दो गड्डी थी । वो हैरान नजरों से करूणा को देखते हुए बोली " मैडम इतने रूपए किसलिए । ये तो मेरी तीन महीने की सैलरी हैं । आप तो पहले ही मुझे पूरा पेमेंट दे चुकी हैं । "

" हमे तुमने शादी की खबर देर से दी इसलिए तुम्हारी शादी के लिए कोई तोहफा नही ले पाए । तुम्हारा जो दिल करे ले लेना । आखिर तुम भी तो इस घर की सदस्य जैसी हो । " करूणा की बातों से जैनी भावुक है चुकी थी । वो उसके पैरों के पास गिरकर बोली " मैडम आज के टाइम में कोई अपनों को अपना नही कहता और आप गैरों को भी अपना कहती हैं । आज के समय में नौकरों को कौन अपना परिवार बताता है । आपने तो हमे घर का सदस्य ही कह डाला । "

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जानकी अपने जीवन में दो अहम इंसानों को खो चुकी हैं और वो हैं उसके माता पिता । माना की किसी के जाने से दुनिया रूक नही जाती , लेकिन आपकी जिंदगी सै ऐसे महत्वपूर्ण इंसान दूर हो जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है ।

जैनी के जाने के बाद परी की जिम्मेदारी कौन संभालेगा ? क्या करूणा को नयी केअर टेकर मिल पाएगी ? जानने के लिए अगला भाग जरूर पढ़ें ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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