Tu Manzil Main Musafir books and stories free download online pdf in Hindi

तू मंज़िल मैं मुसाफिर

एक रोज़ मंज़िल अपने राही से खुद मिलने जा पहुँची

भटके हुए राही से नाराज़, मंज़िल ने कहा....

 


मैं मंज़िल तू मुसाफिर

क्यूँ हो गया है काफ़िर

जवाब दे मेरे सवालों का

हिसाब दे बीते सालों का

 


तू भीड़ में खोया हुआ

तू ख्वाब में सोया हुआ

तू रोज़ में जकड़ा हुआ

तू मुक्त पर सिकुड़ा हुआ

 


तेरी काठ क्यूँ झुकी सी है

आवाज़ भी बुझी सी है

आँखो का सूरज ढल गया

कदमों का जैसे बल गया

 


जो रोटी झट से पचती थी

अब निवालों में ही फँसती हैं

जो ज्वार सी निर्बाध थी

वो हँसी 'स्मित' से कसती है

 


तेरी तरह तेरी जेबों के काग़ज़ भी बदल गये

कविताओं से सने नोटबुक के फटे पन्ने

राशन की पक्की रसीदों से दहल गये

सिलवटों मे भी कुछ तब्दीली सी है आई

रातों को चादरों मे जो पड़ती थी

अब सटी सी माथे पे समाई

 


वो धूप से नींद का खुलना याद है ?

वो यारों से मिलना जुलना याद है ?

वो स्याही से लिपटी कमीज़ पर माँ की चिड़चिड़ाहट याद है ?

वो निबंध स्पर्धा मे तालियों की गड़गड़ाहट याद है ?

 


राही रुका, मुस्कुराया, लंबी साँस ली और जवाब दिया

 


लोग सही कहते है

मंज़िल भी प्रेमिका की तरह होती है

भूत के भूत पे सवार

हज़ारों सवालों से सरोबार

नीयत को मुरेडती हुई

ज़ख़्मों को कुरेदती हुई

 


बचपन की तो आदत ही है सपने देखना

अभिलाषाओं की आँच पर हाथ सेंकना

हमारा देश प्रगतिशील है, प्रगत नहीं

यहाँ सपनों की इजाज़त तो है, जुगत नहीं

 


बहुत आसान है कला का कार होना

बाबा की लूना पर पीछे सवार होना

मुश्किल है, उनके झड़ते बालों पर ध्यान होना

माँ के अचानक उठते कमर दर्द का ज्ञान होना

उजाले की आस में सिर्फ़ मैं नहीं ये घर भी है

ज़िम्मेदारिओं का बोझ उनका नहीं, मुझ पर भी है

 


तू उदास ना हो ऐ मंज़िल

अरमानों को बस गिरवी रखा है, अभी बेचा नहीं है

हुनर का तालाब भरा पड़ा है, बस सींचा नहीं है

तेरी नज़र भी मेरी माँ की तरह कमज़ोर हो चली है

मैं रास्ता भटका नहीं, ये वक़्त भी एक गली है

 


तूने मेरी जेब की पक्की रसीदों को तो देखा

बस एक बार पन्ना भी पलट लेती

नोटबुक के फटे काग़ज़ों की तरह

रसीदों के पीछे लिखी कविताएँ भी परख लेती

 


महँगाई के इस जमाने में

हालात के क़र्ज़ चुकाने में कुछ देर लग रही है

पर रात जा चुकी है और भोर गा चुकी है

ये लाल सी रोशनी सवेरा लग रही है

 


मुझे रास्ता चलना नहीं, पिरोना था

थोड़ी तो देरी लाज़मी है, होनी थी

तू मंज़िल, मैं मुसाफिर

बस, हो रहा हूँ हाज़िर ।।

 

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