Brahmkamal - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ब्रह्मकमल : उत्तराखंड की लोक-कथा - 1

(ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है ।)

हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में ब्रह्मकमल को एक अत्यन्त पवित्र फूल माना जाता है। यहाँ के लोगों का विश्वास है कि ब्रह्मकमल के दर्शन मात्र से ही जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस फूल के सम्बन्ध में अनेक रोचक किंवदन्तियाँ और मिथ कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें कहीं इसे देवलोक का फूल बताया गया है तो कहीं इसे एक अभिशप्त साधु कहा गया है। एक प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार ब्रह्मकमल परी लोक की एक अभिशप्त परी है।

बहुत समय पहले की बात है। कहते हैं कि उस समय परी लोक की परियाँ धरती पर आती थीं। यहाँ दिनभर विचरण करती थीं और रात का अँधेरा होने के पहले वापस चली जाती थीं। परियों को धरती की स्वच्छ-साफ पानी की नदियाँ, झरने, बड़े-बड़े तालाब और ऊँचे-ऊँचे पर्वत बहुत अच्छे लगते थे। परियाँ हमेशा जंगलों में ऐसे स्थान पर आती थीं जहाँ दूर-दूर तक कोई आदमी न हो। परियाँ आदमी से बहुत डरती थीं और यदि उन्हें कोई आदमी दिखाई पड़ जाता था तो वे उसके पास आने के पहले उड़ जाती थीं और वह स्थान छोड़ देती थीं। इसके बाद वह किसी नए स्थान की खोज करती थीं और फिर वहाँ आना आरम्भ कर देती थीं। परियों को धरती पर अनेक बार कई मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्हें धरती इतनी अच्छी लगती थी कि वे धरती पर आने का मोह छोड़ नहीं पाती थीं और जब भी उन्हें अवसर मिलता, वे धरती पर अवश्य आ जाती थीं।

परी लोक की परियाँ तो धरती पर प्रायः आती रहती थीं, किन्तु परियों की रानी धरती पर कभी नहीं आई। उसने अपनी बेटी को भी धरती पर कभी नहीं आने दिया। रानी परी ने अपनी माँ से सुन रखा था कि धरती बहुत सुन्दर है किन्तु धरती पर खतरे भी कम नहीं हैं। अतः उसने यह निश्चय कर लिया था कि वह धरती पर कभी नहीं जाएगी।

परियों की राजकुमारी अर्थात्‌ रानी परी की बेटी छोटी थी। वह अपने साथ की बड़ी परियों से हमेशा धरती की सुन्दरता और धरती के लोगों के किस्से-कहानियाँ सुना करती थी। उसे उसके साथ की परियाँ प्रायः बताती रहती थीं कि वे धरती की नदियों, झीलों, तालाबों में खूब नहातीं और तरह-तरह की जल-क्रीड़ाएँ करती हैं। धरती पर बड़े-बड़े सुन्दर वृक्ष हैं, जिन पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं और मीठे-मीठे फल लगते हैं। परियाँ बताती थीं कि वे फूल तोड़कर उनकी मालाएँ बनाती हैं और फल खाती हैं। एक बार उन्होंने फूलों की मालाएँ बनाकर अपनी राजकुमारी को भी दीं।

परियों की राजकुमारी जैसे-जैसे बड़ी होती गई, उसकी, धरती पर जाने की इच्छा बढ़ती गई । वह धरती पर आकर यहाँ के पहाड़, नदियाँ, झीलें, तालाब, झरने, पेड़-पौधे, फल-फूल, जंगली जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आदि देखना चाहती थी और अन्य परियों के समान इनका आनन्द लेना चाहती थी।

धीरे-धीरे काफी समय बीत गया। परियों की राजकुमारी अब अपनी माँ रानी परी जैसी दिखाई देने लगी थी। वह बहुत सुन्दर थी। उसका गोरा रंग और सुनहरे बाल साफ बताते थे कि वह परियों की राजकुमारी है।

परियों की राजकुमारी कुछ समय तक तो रानी परी की कैद में अकेली रही, लेकिन जब उससे यह सहन नहीं हुआ तो उसने चुपचाप महल के बाहर निकलना और धरती पर जानेवाली परियों से मिलना आरम्भ कर दिया। परियों की राजकुमारी अन्य परियों से इस तरह मिलती थी कि रानी परी को पता नहीं चलता था।