Gagan - 2 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 2

Featured Books
  • विंचू तात्या

    विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी...

  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

  • Avengers end game in India

    जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल...

Categories
Share

गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 2

उस टिकट पर हिंदी और अंग्रेजी
में जो वाक्य लिखे थे,वो ऊपर बता चुका हूँ।
क्या ऐसा ही होगा?यह प्रश्न तो मन मे आना लाजमी था।
बापू की म्रत्यु के बाद मेरी अनुकम्पा पर रेलवे में नौकरी लग गयी और ट्रेनिग के बाद पहली पोस्टिंग पर मै आगरा आ गया।
हमारे यहाँ आज भी लड़का लड़की की शादी करना माँ बाप की जिम्मेदारी माना जाता है।मेरी माँ तो थी पर पितां नही।परिवार पितां की मृत्यु के बाद गांव आ गया था और मै आगरा आ गया।
मेरे तीन ताऊजी थे।बीच वाले अनपढ़ होने के साथ कुंवारे भी थे।और बड़े ताऊजी इन सब से दूर।तीसरे ताऊजी जो हेड मास्टर थे।परिवार के इन कामो में वो ही रुचि लेते थे।इसलिए मेरी शादी की पहल करना उनकी जिम्मेदारी थी।वैसे भी वह रिश्ते कराने के सामाजिक कार्य मे काफी आगे रहते थे।
लोगो को पता चल चुका था,गणेश प्रशाद के छोटे भाई के बेटे की नौकरी लग गयी है इसलिए उनके पास लोग मेरे रिश्ते के लिए आने लगे।
एक बात और।ताऊजी ने ही अपने बच्चों के और बड़े ताऊजी के बच्चों के रिश्ते तय किये थे।उन दिनों लड़का लड़की एक दूसरे को देखे या दूसरे शब्दों में लड़का लड़की को देखने के लिए जाए यह रिवाज लगभग ना के बराबर था।लड़के को रोकने के लिए लड़की के पितां व अन्य लोग जाते थे।लड़की को रोकने के लिए लड़के के माता पिता,बहन आदि लोग जाते थे।
मेरे बापू की मृत्यु हुये ज्यादा समय नही हुआ था।इसलिए मेरा इतनी जल्दी शादी का मन नही था।लेकिन मेरी माँ इसके लिए उत्सुक थी।मेरे ताऊजी को शायद पता था कि मैं ऐसे ही रिश्ता मंजूर नही करूंगा।इसलिए ताऊजी के पास जो भी मेरे रिश्ते के लिए आता।उससे ताऊजी लड़की की फोटो मंगवा लेते।मैं साप्ताहिक अवकाश में गांव जाता था।तब ताऊजी किसी ने किसी लड़की की फोटो देखने के लिए कहते और मै फोटो देखे बिना ही रिश्ता करने से मना कर देता।
हमारे खेत के पास में एक खेत है।अब तो वह बिक गया।उनकी लड़की का रिश्ता भी आया था।एक दिन में अपने कजन रमेश के साथ खेत पर जा रहा था।तब वह लड़की रास्ते मे मिली।रमेश मुझ से बोला,"देख यह लड़की है।"
मैने न रमेश की बात पर ध्यान दिया न ही उस लड़की की तरफ देखा।
रमेश के साले प्रिंसिपल थे।उनकी लड़की दसवीं कर चुकी थी।उसकी फोटो मुझे दिखाई पर मुझे वह पसन्द नही आई।
ताऊजी जिस भी लड़की का जिक्र करते।मैं मना कर देता।नतीजा यह निकला कि,"न जाने यह कैसी लड़की चाहता है"
यह बात गांव में सारे परिचित और रिश्तेदारों में फेल गयी।न जाने यह कैसी लड़की चाहता है।
मेरे ताऊजी ने सारे ही रिश्ते अब तक किये थे।लेकिन अब तक जितने भी चचेरे भाई के रिश्ते हुए।मेरी नजर में जोड़ी मिलाने से ज्यादा ध्यान अन्य बातों पर दिया गया था।
टिकट पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखे वाक्य मेरे मन मे घूमते रहते और में एक चित्र भावी जीवन साथी का दिल मे जरूर बनाता।मैं चाहता था।मेरा साथी सुंदर और शिक्षित होने के साथ मेरे जैसे ही कद और शरीर का भी हो।शायद ऐसा सपना सब ही देखते है और मैं भी देख रहा था।ड्यूटी के बाद कमरे में अकेला