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हेलो, मैं रावण बोल रहा हूं।

नमस्ते भारत,
और भारत के तथाकथित सामाजिक विद्वत जनों।
आज न जानें क्यों मेरे मन बड़े प्रश्न और उनके उत्तर खोजने की लालसा से और उससे उत्पन्न दुख ने मुझे आप सबसे बात करने पर विवश कर दिया।
मेरे सभी प्रश्नों में से एक प्रश्न यह है की मैं कितना गलत हूं ?
क्युकी जब मैं धरतीवासी लोगो को देखता हूं। की किस प्रकार से वह मेरे पुतलो को जलाकर उल्लासित और हर्षित होते हैं।
किस प्रकार से मेरे परिहास होने पर बहुत प्रसन्न होते हैं।
मैं सोचता हूं और विकल होता हूं की क्या मैं सच में इतना बुरा था।
की आज का समाज मुझमें बुराई दिखाकर मेरे पुतले जलाकर उसको अच्छाई का प्रतीक बताता है।
जिसने मनुष्य ने मनुष्यता को ही धरती से गायब कर दिया वो आज रावण का सहारा लेकर अपनी स्वयं की बुराई को छुपाकर अच्छा बनने का प्रयास करता है। मैं तो एक परम विद्वान था ऋषि का पुत्र था। और यह सब जो हुआ वह भी नारद के श्राप से हुआ था। इसमें न मेरा कोई दोष है। और मां सीता का अपहरण लंका दहन ये सब नारायण का रचित प्रक्रम था। उसमे मेरा तो कोई दोष नही। फिर मुझे क्यूं जलाते हो? आज तुम सब कितनी नारियों का अपहरण करते हो बलात्कार रेप मर्डर खून कत्ल तमाम तरह के घिनौने कृत्य करते हो। तब तुमको खुदमे रावण नजर नहीं आता है क्या ? फिर स्वयं को भी क्यूं नही जलाते हो ? आज समाज मुझे जला कर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक बताता है। जो लोग मुझे जलाते है उनमें कितने राम बैठे हैं। जरा स्वयं का विश्लेषण करो तो। मैं तो सब जानता था। तब यह हुआ। परंतु धरती वासियों तुम्हारी अज्ञानता और मूर्खता पर मुझे आनंद और रूदन दोनो का अहसास हो रहा हैं।
आज तुमने अपने लिए एक ऐसा समाज बनाया है जो न जीने लायक है न मरने लायक है। क्लाइमेट चेंज, भू ताप, वर्षा, जल प्रपात, भूकंप, गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, अश्लीलता, स्त्री गमन, धन गबन, कर चोरी, भ्रष्टाचार, अन्याय, कितने गिनाऊ इनका अंत ही नही है। हे मानव तुमने संसाधन के नाम पर शमशान बनाए और दोष मेरे माथे मढ कर एक दिन बुराई पर अच्छाई पाने का क्या उत्तम बहाना खोज निकाला ?
मेरा एक पुतला जलाकर तुम उसको त्योहार कहते हो, तुम दीपावली पर पटाखे जलाकर प्रदूषण करके उसको त्योहार कहते हो, तुम पानी फैलाकर होलिका मनाते हो , और उसे त्योहार कहते हो, दिखाओ किस शास्त्र में इस प्रकार की गतिविधियां लिखी है भारत वासियों ,
मैं भी पंडित हूं , सनातनी भी हूं। ब्राम्हण हूं। मुझे कही अधिक ज्ञान था। परंतु मेरा कोई ऐसा उद्देश्य न था।
तुम कहते हो की हमारे धर्म में तुम कौन हो रोकने वाले। मैं दूसरे धर्म को नही कहूंगा क्यों कहूं,
माता पिता बच्चे की उदंडता पर प्रायः अपने बालक को ही मारते हैं। न की अन्य के।
आप समझो, सनातन की रक्षा करनी है। उसको तबाह नही करना।
और तुम्हारे सातों जन्म लगेंगे। तब भी तुम मुझे कभी सजा नही दे पाओगे ? क्युकी तुम्हारे खुद के कर्म इतने घैनोने हैं।
की तुम्हे देखकर मेरी आंखे झुक गई शर्म से।
एक बार दोनो कर जोर निवेदन है इस रावण का , की मुझे ही मोहरा बना लो बस अब खुस हो न तुम सब ,
लेकिन अपने अंदर के रावण को मार डालो न कि पुतलो में शामिल होकर तुम भी पुतले बनकर उसके ऊपर आग लगाओ।
मुझे क्षमा करना अगर मैं सच में बुरा हूं।
धन्यवाद आपका।