ऋग्वेद जारी है : ऋग वेद: हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं, वही कर्म करते हैं, जो कर्म करते हैं उसी का फल मिलता हैं. यही जीवन जीने का ढंग वेदों का सिद्धांत है, और वेद इन सिधान्तों का विस्तार है. ऋग वेद ज्ञान का, सुविचार का वेद है, जो ऋचाओं व् सूक्त पर आधारित है, सूक्त का अर्थ है सुविचार, और ऋचा का अर्थ है पध्य. यजुर्वेद में कर्म करने की विधी बताई गई हैं, व् सामवेद के अंदर देवताओं की उपासना व फल के बारे में बताया गया है. अर्थव वेद समता, स्थिरता, एकाग्रता का विषय योग है. ऋग,यजुर,सोम, तीनों वेद सभी तरह के लोगों के लिए हैं, परन्तु अथर्ववेद कुछ विशेष साधकों के लिए ही है.
ऋग वेद में अग्नि व् इंद्र की स्त्तुती की गई है, व् इंद्र के गुणों का वर्णन किया गया है. अग्नि ज्ञानी है, ज्ञान देने वाला है, इसलिए यज्ञ का संरक्षक भी है, और यह सभी अन्य देवताओं को बुलाकर लाता है, यज्ञ का संचालन करता है. अत हर यग में अग्नि पूजा की जाती है. हमारा शरीर, भूमि, आकाश, हवा, पानी और अग्नि, पांच पदार्थों से बना है, यह तो विज्ञान भी मानता है, अग्नि के बिना शरीर की कल्पना असंभव है. अग्नि शरीर में हर अंग को रस प्रदान करता है, अग्नि से शरीर सक्रिय रहता है.
वैदिक काल मे, इंद्र शक्तिशाली, ऐश्वर्यपूर्ण व् धन देने वाला, शत्रुओं का नाश करने वाला माना गया है, इसी लिए उसकी स्तुति की गई है. वैदिक काल में जब जनमानस स्तुति करते थे, तो वह कोई काल्पनिक भगवान की पूजा नहीं कर रहे होते थे, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि तब मानव, दानव व् देवता का बहुत नजदीक का रिश्ता था व् देवता तब आकाश में रहने वाले या कल्पित प्राणी नहीं थे, लोग उनसे सीधे बात करते थे, ऋग्वेद से यह तो पता चलता है, वैदिक काल में धन का वही महत्व था जो आज है, तब भी लोग इंद्र को इसलिए प्रसन्न करना चाहते थे, ताकि इंद्र स्वंय अपनी सेना के साथ आ कर उन्हें धन प्रदान करे, धन संरक्षण करने की शक्ति दे, और शत्रुओं का विनाश करें. स्तुति से प्रसन्न हो कर इंद्र स्वंय भेंट लेने, सोमरस पीने यज्ञ में आते भी थे.
आजकल हम पूजा करते हैं, इसको हम विश्वास या दूसरे लोग अंधविश्वास कह सकते हैं. ऐसा लगता है कि वैदिक काल में देवता और इंसान बहुत नजदीक थे, जैसे-जैसे इनमें दूरी बढ़ती गई वैसे-वैसे विश्वास अंधविश्वास में बदलता चला गया .
वर्तमान में भी जरूरतमंद, साधनहीन, गरीब देश शक्तिशाली देशों की स्तुति करते रहते हैं, ताकि वह उनकी वक्त आने पर मदद करें.
ऋग वेद में इंद्र की स्तुति करते हुए, बार बार सोम रस पीने का आह्वान किया गया है, लगभग हर श्लोक में सोमरस पीने का आमन्त्रण या प्रलोभन दिया गया है. इंद्र को स्तुति करते हुए कहा गया है, हे इंद्र, ये सोमरस तुरंत नशा देना वाला है, ये तुम्हारा मनपसंद पेय है, जिस प्रकार आप सोमरस पी कर प्रसन्न हो कर यजमानों की रक्षा करते हो, इच्छापूर्ति करती हो, हम पर भी प्रसन्न हो कर, आप यज्ञ में धन साथ ले कर आयें व् हमे प्रदान करें.
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है, हालंकि सोम रस को नशा देने वाला बताया गया है, परन्तु तब सोमरस बल, आयु बडाने वाला, इच्छापूर्ति करने वाला अमृत के समान पेय होता था.
शिष्य: सोमरस क्या है ?
आगे कल, भाग ……..7