Vedas- Puranas-Upanishads Chamatkaar ya Bhram - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 4

शिष्य : पध्य क्या है ?

 

गुरु : पद्य (verse) क्या है, थोड़ा सा इस बारे में भी : पद्य में लिखने का अर्थ है, ऐसी सीधी सादी बोली या भाषा में लिखना जिसमें किसी प्रकार की बनावट न हो, परन्तु अक्षर, मात्रा, वर्ण की संख्या के अनुसार, लय से संबंधित विशिष्ट नियमों, का पालन करके लिखी गई रचना से है.

 

अब आप यह कह सकते हैं, कि एक तरफ तो मै बता रहा हूँ, की ऋग वेद ऐसी सीधी सादी बोली या भाषा में लिखा गया है, जिसमें किसी प्रकार की बनावट नही है, व् दुसरी तरफ बताया जा रहा है, ये अक्षर, मात्रा, वर्ण की संख्या के विशिष्ट नियमों का पालन करके मन्त्र के रूप में रचित किया गया है. 

 

और मन्त्र हमें बड़े जटिल और मुश्किल लगते हैं, जो ना केवल पड़ने में कठिन हैं, बल्कि उच्चारण में भी बड़े कठिन हैं. और ये भी कहा जाता है की अगर मन्त्र का ठीक से उच्चारण ना किया गया तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है, ये विरोधाभासी लगता है.

 

ये बिल्कुल भी विरोधाभासी नहीं है, कैसे, वो इस तरह की वेद को बिलकुल सीधी सादी बोली या भाषा में ही रचा गया है, पहले वेदों को लिखा नहीं जाता था, क्योंकि तब तक कागज़ का आविष्कार नहीं हुआ था. (कागज़ का आविष्कार लगभग 100 BC यानी 2120 वर्ष पहले हुआ था) इनको गुरु अपने शिष्यों को सुनाकर याद करवा देते थे, और इसी तरह यह परम्परा आगे चलती रहती थी. इसलिए ये सुनिश्चित करने के लिए की ये आने वाली पीडीयों को मूल रूप में मिले, इनको संस्कृत में रचित किया गया.

 

थोड़ा सा संस्कृत भाषा के बारे में: संस्कृत लगभग 4000 से 6000 वर्ष पुरानी, विश्व की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, व् यह कोई प्राकृतिक भाषा नहीं है, बल्कि मानव रचित भाषा है. आज भी सुचना प्रौद्योगिकी (information technology), वाले संस्कृत को तकनीकी रूप से विश्व की सब से शुद्ध भाषा मानते हैं. 

 

संस्कृत से ही आगे चल कर हिन्दी, बँगला, मराठी, सिंधी, पूंजाबी, नेपाली आदि भाषाएँ  उत्पन्न हुई. भारत के सविधान रचियता भीम राव आंबेडकर का मानना था, की संस्कृत भाषा ही पुरे भारत को भाषाई एकता में बाँध सकती थी, और उन्होंने इसे देश की अधिकारिक भाषा बनाने का सुझाव भी दिया था, पर ये हो ना सका, पता नहीं क्यों ?

 

संस्कृत की खूबी है, की इसमें पुरे वाक्य को एक शब्द में इस प्रकार समायोजित किया जा सकता है, की इसका रति भर भी अर्थ ना बदले, (इसे शॉट हैण्ड तकनीक भी कह सकते है, जो स्टेनो लोग प्रयोग करते हैं).

 

तो वेद के सार को संस्कृत भाषा में मन्त्र रूप में बदल दिया जाता था और मन्त्र की ध्वनि यानी उच्चारण को इसलिए महत्व दिया गया की, अगर आप मूल मन्त्र में कोई बदलाव करते थे, या अपना कुछ जोड़ते थे, तो इसकी धवनी यानी उच्चारण बदल जाता था, और गुरु बता देते थे की आप गलत मन्त्र पड़ रहे हैं, यानी आप ने इससे छेड़-छाड़ की है. यह इसलिए किया गया की इतिहास मूल रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे जाता रहे.

 

यह सब कुछ बड़ा आसान था, परन्तु आगे चल कर संस्कृत भाषा लुप्त होती गई, और तकीनीकी रूप से शुद्धता जो इस भाषा की सबसे बड़ी खूबी थी, उसे ही इसकी सबसे बड़ी कमी बताया गया और कहा गया संस्कृत पढ़ने व् बोलने में बड़ी कठिन भाषा है. ये सब संस्कृत भाषा का ज्ञान ना होने का कारण हुआ.

 

हमको मन्त्र संस्कृत में होने के कारण  पढने व् उच्चारण में कठिन लगते है. अगर यही मन्त्र सरल हिन्दी भाषा में  लिखें हो तो, हम तो आसानी से समझ लेंगे, परंतु विदेशियों या गेर हिदी भाषियों को, हिन्दी का ज्ञान ना होने के कारण कठिन ही लगेंगे .

 

जहां तक कठिन होने का सवाल है, विश्व में सबसे कठिन भाषा चीनी को माना गया है, जो आज भी अपने मूल रूप में है. संस्कृत लुप्त होने के कारण क्या थे, में इसमें नहीं जाता, पर ये भी बताया जाता ही की वेदों का अधिक प्रसार न हो सके, और इसमें छिपा ज्ञान और रहस्य हर कोई अर्जित ना कर सके, इसलिए एक सुनियोजित षड्यंत्र से इसे क्रमबद्ध तरीके से लुप्त करवाया गया, ओर कब ये स्कूलों से गायब हो गई पता ही नही चला.

 

तो यह कहना बिलकुल गलत है की मन्त्र पढने व् उच्चारण में कठिन है.

 

प्रश्न : मंत्र क्या हैं ?

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