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महान सोच - भाग 3 (अंतिम संस्कार)

महान सोच-  भाग 3 (अंतिम संस्कार)

आर0  के0  लाल

 

भाईजी! राम राम, कहां घूम रहे हैं इतने दोपहर में? बड़ी तेज धूप है। आइए कुछ ठंडा पीते जाइए। बलवन्त ने दिनेश को देखते हुए पुकारा। दिनेश ने उत्तर दिया कि वे इस समय नहीं आ सकते क्योंकि वे बर्निंग घाट से आ रहे हैं और बर्निंग घाट से वापस लौटने पर किसी दूसरे के घर नहीं जाया जाता। उन्होंने बताया कि पार्क के सामने रहने वाले वाले उमेश दुबे का स्वर्गवास कल सुबह ही हो गया था। उमेश दुबे अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे। उनका एक ही बेटा है जो लंदन में रहता है । वैसे तो उनके बच्चों ने कह रखा था कि जब भी उन्हें उनकी जरूरत होगी तो वो तुरंत उनके पास आ जाएंगे लेकिन वह इतनी जल्दी तो आ नहीं सकता । काफी वृद्ध होने के नाते उनकी वाइफ निशा दुबे के लिए कुछ कर पाना संभव नहीं था, इसलिए कल उनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका।

बलवन्त के पूछने से पहले ही दिनेश ने स्पष्ट कर दिया कि वैसे तो उनके काफी रिश्तेदार इस शहर में रहते हैं। जब उन्हें पता चला तो उनमें से कई लोग आए भी, मगर अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक वस्तुओं को लाने और शमशान घाट तक बॉडी को ले जाने की व्यवस्था करने कोई आगे नहीं आया।  ज्यादातर लोग एक दूसरे से यह कह कर चले गए कि जब बॉडी को ले जाने लगे तो उन्हें भी फोन से सूचित कर दें ताकि वे भी फ्यूनरल में शामिल हो सकें। उनकी तरफ से कुछ नहीं होता देख आज सुबह हम तीन चार बंदे  मिलकर दुबे जी का अंतिम संस्कार करने का निश्चय किया। निशा दुबे ने अपने पास से ₹10000 कैश सुरेश भाई को दिया और हम सभी एंबुलेंस बुलाकर दुबे जी का दाह संस्कार करके अभी लौट रहे हैं।

बलवन्त बोले, “ ऐसे पुनीत सहयोग के लिए आप सभी को साधुवाद , वरना आज के युग में कौन किसकी मदद करता है। दोनों प्राणी बेचारे अकेले रहते थे उन्हें तो बहुत ही संघर्षपूर्ण जीवन बिताना पड़ा होगा। लोग नौकरी करने के लिए गांव से इस शहर में आ जाते हैं फिर यहां बड़ा सा मकान बनवा लेते हैं । बच्चे तो बाहर निकल जाते हैं मगर बुजुर्ग लोग मकान की रखवाली करते अकेले पड़े रहते हैं। उनके पास पैसे तो होते हैं लेकिन उनकी देखभाल करने और यहां तक कि उनकी मृत्यु हो जाने के बाद अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं मिलता। कितनी विडंबना है कि अंतिम समय में अपने अंतिम संस्कार की चिंता से आज लोग मानसिक तनाव में रहते हैं”। इस प्रकार उन्होंने इस बदलते हुए सामाजिक परिवेश के लिए लोगों को कोसा और कहने लगे कि कम से कम अंतिम समय के इस समस्या का कोई न कोई समाधान हम सभी को ढूंढना चाहिए। कोई तो ऐसा होना चाहिए जो अंतिम संस्कार कर सके। दिनेश बोले कि अभी तो हम चलते हैं, शाम को आपके घर चाय पीने आएंगे फिर इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

 शाम को पार्क में मोहल्ले के दोस्त एकत्रित हुए तो दिनेश ने बलवंत को बताया कि ऐसा नहीं है कि इस गंभीर समस्या पर लोग कुछ सोच नहीं रहे हैं । अब पूरे विश्व में इस तरह की समस्या हो गई है। लोगों को इस बात की चिंता सताने लगी है। अक्सर देखा गया है कि मां बाप अलग रहते हैं और बच्चे अलग । उनमें से किसी की मृत्यु  हो जाने पर भी कई बार दूर रहने वाले बच्चे  नहीं आ पाते हैं और मरने वाले का अंतिम संस्कार ढंग से नहीं हो पाता है ।इसलिये आज कुछ बुजुर्ग लोगों को विश्वास ही नहीं है कि उनका अंतिम संस्कार और पूजा पाठ, तेरहवी आदि सही विधि-विधान पूर्वक हो पाएगा या नहीं।  इस बात से कभी कभी वे अपने  अंत काल में भी चिंतित रहते हैं। इसका फायदा कुछ कारोबारियों ने उठाना शुरू कर दिया है । आज कुछ उद्ध्यमी बड़ी-बड़ी कंपनी बनाकर इस तरह की सर्विस प्रदान करते हैं और अच्छी खासी कमाई करते हैं।

उन्होंने आगे बताया कि साउथ कोरिया में लोग 'लिविंग फ्यूनरल' करवा रहे हैं। 'लिविंग फ्यूनरल'  अर्थात जीवित अंतिम संस्कार उस व्यक्ति के लिए एक उत्सव है जो जीवित है और इस कार्यक्रम में शामिल होने में सक्षम है। यह अंतिम अलविदा कहने के अवसर के साथ जीवन का उत्सव है, जो हर किसी को कुछ भी अनकहा छोड़ने और समापन की भावना खोजने का मौका देता है। यहां जीवित लोग मौत से पहले अपना क्रिया कर्म करवा रहे हैं। वहां की ह्योवोन हीलिंग नामक एक कंपनी ने जीते जी अंतिम संस्कार करवाने का ऑफर दिया है । कंपनी से आज तक हजारों लोग जीवित रहते अंतिम संस्कार करवा चुके हैं ।

दिनेश की बातों पर किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था । दिनेश ने अपनी बात जारी रखी, “ पता चला है कि मरने से पहले ही लोग अपने अंतिम संस्कार की सेवाओं को ऑनलाइन बुक करा सकते हैं । कहीं चर्चा हो रही थी कि बैंक से रिटायर्ड हो चुके एक भारतीय सज्जन और उनकी पत्नी ने पहले से ही अपनी अंतिम संस्कार की सेवाओं को ऑनलाइन बुक कर लिया है। क्योंकि इनके बच्चे विदेश में रहते हैं। ऐसे में उन्होंने इस काम के लिए खुद को तैयार कर लिया है। कई भारतीय वेंचर भी इसके लिये अब अपनी सेवाएं देने लगे हैं। खबर है कि मोक्षिल डॉट कॉम ,वाराणसी के काशीमोक्ष डॉट कॉम पर जाकर ऐसी बुकिंग कराई जा सकती है। यह संस्था अंतिम संस्कार की सभी क्रियाओं को पूरा करेगा। साथ ही मृत्यु प्रमाण पत्र भी उपलब्ध कराएगा। जो लोग अपने पितरों की अस्थियां गंगा में प्रवाहित नहीं कर सकते उनकी मदद के लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। कई जगह  स्काईप के जरिए अंतिम संस्कार की विधि को पूरा किया जाता है। बाद में इसकी सीडी बनाकर मृतकों के वारिसों को भेज दी जाती है। मुंबई में स्थित इंडियन फ्यूनरल सर्विस , गुजरात के राजकोट स्थित श्रद्धांजलि डॉट कॉम भी ऐसा कुछ करते हैं। आज बुजुर्गों के लिए यह एक जरूरी बात हो गई है कि अपनी अंतिम संस्कार की प्लानिंग एडवांस में कर लिया जाए।“

बलवंत तो मजाक में बोले, "  मैंने तो एक बार एक सपना देखा कि मेरे मरने के बाद घर वालों में कहा सुनी हो रही है। अंतिम संस्कार के लिए कोई कह रहा था कि यह तो मर गया लेकिन इसके अंतिम संस्कार में  ₹25000 का खर्च आएगा उसे कौन देगा। किसी ने कहा कि सब लोग चंदा कर लें लेकिन  देने से सब कन्नी काट रहे थे।" सब हंसने लगे।

अंत में दिनेश ने प्रस्ताव रखा, “भाई साहब1  हम लोगों के पास एक सीनियर सिटीजन क्लब है जिसमें पचास मेंबर से ज्यादा है, ज्यादातर धनाढ्य हैं। इसलिए उनकी एक मीटिंग बुलाई जाए आौर हम कुछ धन एकत्रित करके अंतिम संस्कार का सामाजिक कार्य करें, केवल इन बुजुर्गों के लिए जो बेसहारा हैं। अगर उनके पास तात्कालिक पैसे न हों  तो हम उन्हें सपोर्ट करें और बाद में उनके सगे से ले लें l हमें लगता है कि इससे उन्हें और उनके अपनों को काफी तसल्ली का एहसास होगा” ।

इस महान सोच का सभी ने समर्थन किया।
 

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