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महान सोच - भाग 5 (मायका)

महान सोच - भाग 5 (मायका)

आर० के० लाल

 

वैसे तो भाई बहन का रिश्ता अपने आप में बेहद अनूठा और अटूट होता है मगर बहन का रिश्ता तय होते ही भाई भी सोचने लगते हैं कि चलो एक लाइबिलिटी से मुक्ति मिलेगी और उसके बहन के हिस्से  वाली घरेलू सुविधाएं  भी उन्हें मिलने लगेगी।  आज बहन को लेकर पवन और विजय दोनों सुबह से लड़े जा रहे थे।  तर्क कुतर्क के बीच दोनों एक ही बात की रट लगाए थे कि दीदी के जाने के बाद उसका कमरा उन्हें मिलना चाहिए। पवन का तर्क था, “ चूंकि वह बड़ा है इसलिए दीदी का सामान लेने का पहला हक उसका है जबकि विनय कह रहा था कि वह दीदी उससे अपना सारा  काम करवाती थी इसलिए उसका हक है।

अभी दोनों एक ही कमरे में रहते थे। उनके चार कमरों वाले घर के एक कमरे में मम्मी- पापा, दूसरे में दादा-  दादी रहते थे। उनकी दीदी अनामिका को गेस्ट रूम नसीब हुआ था जिसमें रह कर उसने पी0  एच0 डी0  करके नौकरी पाई थी। कोई गेस्ट आता तो वह अपना कमरा शेयर करती थी। उसने स्वयं अपने कमरे को सबसे अच्छा डेकोरेट किया था। पूजा घर भी इसी कमरे की बालकनी में था इसलिए सभी उसके कमरे से होकर जाते थे। भाइयों को  वह  अपने कमरे में आने से मना तो नहीं कर पाती थी पर वह नहीं चाहती थी कि वे उसके कमरे की सजावट बिगाड़े। कमरे में करीने से पर्दे, दीवाल पर वाल पेपर, हैंगिंग शो पीस, म्यूजिक सिस्टम, रीडिंग टेबल, छोटी सी चारपाई पर सिलवट रहित बेड शीट देखकर लोग अनामिका की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते थे ।उसने इसी कमरे में लगभग 28 वर्ष गुजारे थे।

घर के हर एक कोने से अनामिका को गहरा प्यार हो गया था, जब कोई उससे कहता था कि वह पराए घर चली जाएगी तो वह उदास हो जाती थी मगर उसे समाज की रीति- रिवाज की समझ थी। अंदर से तो वह रो पड़ती थी मगर ऊपर से धैर्य बनाए रखती थी। अपने को समझाती थी कि सभी के साथ ऐसा ही होता है। उसका मन करता था कि शादी ही न करूं और सदैव मम्मी-पापा की छत्रछाया में रहूं, पर पापा तो उसकी शादी को लेकर काफी परेशान और बीमार थे।

एक महीने  पहले ही अनामिका की शादी तय हुई थी। उसके पापा तो दुगने उत्साह से तैयारी में जुट गए थे उनकी बीमारी न जाने कहां छूमंतर हो गई थी । अनामिका भी मानसिक रूप से उस घर को छोड़ने की तैयारी कर रही थी। उसने अपनी सहेलियों को भी देखा था कि शुरू शुरू में तो वे अपने मायके ज्यादा आती थीं लेकिन धीरे-धीरे उनका आना बहुत कम हो गया। बाद में  तो किसी शादी विवाह में या राखी के त्यौहार पर ही उनका आना होता था।उसने सोचा कि ऐसा ही मेरे साथ भी होगा इसलिए अब मुझे कमरे की क्या जरूरत है ? जब कभी आऊंगी तो मम्मी के साथ ही सो जाया करूंगी।

भाइयों को लड़ते देख अनामिका पापा से बोली, "अब उसे अलग कमरे की क्या जरूरत होगी। आप मेरा कमरा जिसे चाहो दे दीजिए। उसमें अटैच्ड लेट्रिन बाथरूम एवं बालकनी भी है। वैसे भी मेरा कमरा काफी अच्छा और सजा हुआ है इसलिए वे अपनी शादी के बाद उसमें रह सकते हैं। कुछ दिनों के बाद अनामिका की शादी हो गई। उसके ससुराल जाते ही छोटा भाई उसमें चला गया क्योंकि पापा ने कहा पवन, तुम बड़े हो, ज्यादा समझदार हो छोटे भाई का ख्याल रखो ।

कुछ दिनों तक तो अनामिका की किताबें,  कपड़े खिलौने उसके कमरे में रखे थे मगर धीरे-धीरे वो समान वहां से हटने लगे, यहां तक कि एक साल बाद जब घर आई तो उसने देखा कि उसके सारे सामान न जाने कहां चले गए थे केवल एक फोटो एल्बम ही मिली।  उसने महसूस किया कि अब  सब बेगाना हो गया था। उसे पता चला कि राशन कार्ड एवं वोटर लिस्ट से भी उसका नाम कट गया था। यह कैसी विडंबना है कि इस प्रकार लड़की को लीगली और वास्तविक रूप से अपने मायके से दूर किया जाता है केवल उसकी मार्कशीट और सर्टिफिकेट पर पापा का नाम बच पाता है। अगर जन्म प्रमाण पत्र बदलने का प्राविधान होता तो उसे भी बदल दिया जाता। सरनेम, पूजा-पाठ के तरीके और यहां तक कि लड़की के  आराध्य देवी- देवता तक बदल दिए जाते हैं। उसके पति कह रहे थे कि आधार एवं पासपोर्ट में भी पापा का नाम हटाकर मेरा लिखवा लो वरना विदेश का बीजा लेने में बड़ी दिक्कत आएगी । अनामिका को समझ नहीं आता कि जब सभी जगह से नाम कट गया है तो फिर क्यों कहा जाता है कि पापा की जायजाद में उसका भी हिस्सा होगा । अनामिका ने तो स्वेच्छा से ही एक हलफनामा तैयार करके रख दिया था कि वह पूरे होशो हवास में शपथ लेती है कि पापा के जायदाद में से वह कुछ नहीं लेगी ।

अनामिका की भी एक ननद रक्षा थी जिसे वह दोस्त तथा अपनी सगी छोटी बहन की तरह ही मानती थी। वह थी भी बड़ी प्यारी। अनामिका को वह हर तरह का सपोर्ट देती थी और  उसके सब तरह के काम भी कर देती थी। अनामिका भी उसका बहुत ख्याल रखती थी और उसका कमरा सजा कर रखती थी।

रक्षा की शादी के तुरंत बाद उसे विदेश जाना पड़ा जो एक साल बाद ही वापस आई। जब वह अपने मायके आई तो साथ में उसके पति एवं साथ ससुर भी थे। उसे लग रहा था कि घर का नक्शा बदला गया होगा। न जाने कौन उसके कमरे में रहता होगा । मगर ये क्या? उसने देखा कि उसका कमरा तो जस का तस ही था, सब कुछ वैसा ही। उसके गुड्डे गुड़िया भी रखे थे ।

पता चला कि उसके जाने पर जब उसकी मम्मी ने उसके सामान डिस्पोज करना चाहा तो अनामिका ने इसका प्रतिरोध किया था और अपने बेटे, जिसे पढ़ने के लिए अलग कमरे की जरूरत थी को उस कमरे से दूर ही रखा। अनामिका ने लगभग रोते हुए  अपनी सास से  कहा था कि रक्षा तो मेरी सगी बहन जैसी है,  हम इस घर से उसकी याद को मिटने नहीं देंगे। हम तकलीफ में रह लेंगे लेकिन उसका कमरा ऐसा बना रहेगा। जब भी वह आएगी तब उसे उसका मायका अपना घर लगेगा वरना हम सब लड़कियां अपने घर से दूर कर दी जाती हैं।  ससुराल के लोग भी यही तो कहते हैं कि वह अपने घर की लड़की न होकर पराए घर है । मैं भली- भांति समझ सकती हूं कि जब शादी के बाद लड़की अपने मायके जाती है और देखती है कि अब उसका सब कुछ घर में गायब हो चुका है कुछ नहीं बचा है तो वह टूट जाती है और  मां बाप के पास अक्सर उसका आना कम हो जाता है। कोई और खासतौर से ननद नहीं चाहती वह घर में कोई हस्तक्षेप करे । लड़की आंसुओं के घूंट पीकर रह जाती है और अपने सीने पर पत्थर रख लेती है ।

अनामिका ने रक्षा के  सास- ससुर की तरफ निहारते हुए कहा,  “मेरी ननद के दो दो घर हैं। दोनों में उसका सम्मान हो। मैं चाहती हूं कि उसे हमेशा यहां आने की इजाजत रहे। मेरी तरफ से उसे इस घर का आधा मालिकाना हक सदैव बना रहेगा” ।

ऐसा सुनते ही रक्षा अपनी भाभी से लिपट कर रोने लगी और उसके सास - ससुर की आँखों से भी खुशी के आंसू छलक उठे।  कहने लगे कि धन्य है ऐसी परिवार और भाभी जो ऐसा सोचते हैं ।

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