Meri Chuninda Laghukataye - 7 in Hindi Short Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 7

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 7


लघुकथा क्रमांक 18

कोरोना
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"अरे रमेश ! वो अपने कालू अंकल नहीं दिखे पिछले कई दिनों से ? तुझे कुछ पता है ?"

"कौन कालू अंकल ?"

" अरे वही ...जो हरदम शेखी बघारते रहते हैं। मास्क लगानेवालों पर अक्सर हँसा करते हैं। अभी उस दिन तेरे सामने ही तो बोल रहे थे 'कोरोना वोरोना कुछ नहीं ,सब ढकोसला है, झूठ है।"

" अच्छा.. वो ? ..वो तो परसों ही स्वर्ग सिधार गए !"

" हे भगवान ! भले चंगे तो थे। फिर अचानक क्या हो गया था उनको ?"

"कोरोना !"

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लघुकथा क्रमांक 19




बस ! अब और नहीं
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"तो क्या सोचा है तुमने गरिमा ?"
"सोचने की जरूरत मुझे नहीं, तुम्हें है अयान !"
"क्या चाहते हैं मेरे घरवाले ? यही न कि तुम निकाह से पहले इस्लाम कुबूल कर लो ! इसमें बुराई क्या है जो तुम मान नहीं रही हो ?"
"मैंने प्यार तुमसे किया है अयान , तुम्हारे धर्म से नहीं! फिर हमारे प्यार के बीच ये धर्म की दीवारें व शर्तें क्यों ?"
"कहते हैं प्यार के लिए तो प्रेमी दुनिया छोड़ने को भी तैयार हो जाते हैं और एक तुम हो कि अपना धर्म छोड़ने को भी तैयार नहीं ?"
"मैं तो तैयार हूँ, तुम्हारे लिए अपना घर द्वार, माँ बाप रिश्तेदार सब छोड़ने को लेकिन तुम तो अपने माँ बाप की उँगली तक छोड़ने को तैयार नहीं। ऐसा कैसे चलेगा अयान ? तुम्हें भी मेरी भावनाओं की कद्र तो करनी ही होगी न ?"
कहते हुए गरिमा ने रोषपूर्ण निगाहों से अयान को घूरकर देखा।
अपने कदम घर की तरफ बढ़ाते हुए वह बोली," प्यार के नाम पर कुर्बानी देने का ठेका हम बेटियों ने ही नहीं लिया है अयान! अब तुम जैसे लड़कों को यह भलीभाँति समझ लेना चाहिए !"

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लघुकथा क्रमांक 20


माँ की ममता
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‘भारत रिसर्च सेंटर‘ के मशहूर वैज्ञानिक डॉ. रस्तोगी आज बेहद प्रसन्न नजर आ रहे थे। उन्होंने यंत्रचालित मानव के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम में तरह तरह की भावनाएं डालने की तकनीक विकसित कर ली थी। दुनिया भर के वैज्ञानिक उनकी इस उपलब्धि का साक्षात्कार करने के लिए भारत रिसर्च सेंटर पर पधार चुके थे और अगले कुछ ही घंटों में उन्हें सबके सामने भावनाओं से युक्त उस मशीनी मानव का प्रदर्शन करना था।
सबके समक्ष प्रदर्शन से पहले उन्होंने एक मशीनी मानव को जिसे सिलिकॉन की मदद से एक महिला का रूप दिया गया था नजदीक ही रोते हुए एक छोटे बच्चे को चुप कराने का आदेश दिया और उसे समझाया,” यह तुम्हारा ही बच्चा है और तुम इसकी माँ हो!“
तत्काल ही वह मशीनी मानव आदेश का पालन करने में जुट गया। किसी महिला की भाँति बच्चे को गोद में उठाकर उसे चुप कराने का प्रयास करने लगा लेकिन बच्चा चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
लगभग पाँच मिनट बाद डॉक्टर रस्तोगी की झुंझलाहट भरी आवाज गूँजी,” क्या कर रही हो? नहीं चुप हो रहा तो उसको उठा कर पटक दो, उसकी आदत सुधर जाएगी !“
मुड़कर उस मशीनी मानव ने रस्तोगी की तरफ देखा, उठी और अचानक बिजली की सी तेजी से एक झन्नाटेदार थप्पड़ रस्तोगी की गाल पर रसीद करते हुए बोली,” क्या तुझे तेरी माँ ने इसी तरह चुप कराया था?“
थप्पड़ से लाल अपने गालों को सहलाते हुए रस्तोगी की आँखों में आँसू आ गए थे, खुशी के आँसू!