Musafir Jayega kaha? - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१९)

अब बेला का करारा जवाब पाकर लक्खा मन ही मन सुलग रहा था और उसकी इस उलझन को बंसी ने भाँप लिया और उससे पूछा....
"क्यों लक्खा? आजकल तू इतना बुझा बुझा सा क्यों रहता है"?
"अब मैं क्या बताऊँ कि मुझे कौन सा ग़म खाए जा रहा है"?,लक्खा बोला....
"ग़म...कौन सा ग़म"?,बंसी बोला...
"तू रहने दे,मैं तुझे कुछ नहीं बता सकता",लक्खा बोला...
"अरे! बोल ना कि क्या बात है",बंसी ने फिर पूछा...
"तू मेरा ग़म दूर नहीं कर सकता बंसी! लेकिन उस ग़म की दवा तो तेरे ही पास है",लक्खा बोला...
"ये क्या कह रहा है तू? मैं कुछ समझा नहीं",बंसी बोला...
तब लक्खा ने बेशर्म होकर वो बात बंसी से कह ही दी जो वो कहना चाहता था,उसने सोचा कि बंसी तो भोला है मेरी बातों में आ जाएगा और यही सोचकर वो बंसी से बोला...
"बंसी! मुझे भी किसी से इसक हो गया है",
"कौन है वो? अब हम दोनों एक साथ एक ही मण्डप में शादी करेगें" बंसी ने खुश होकर कहा...
"तू अगर उस लड़की का नाम जाएगा तो सदा के लिए मुझसे मुँह मोड़ लेगा",लक्खा बोला...
"अरे! तू कहकर तो देख,तेरे लिए जान भी हाजिर है,तू मेरा पक्का यार है,मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकता हूँ",बंसी बोला....
"तू नही कर पाएगा बंसी! कभी नहीं कर पाएगा",लक्खा बोला...
"एक बार कहकर तो देख लक्खा! इतना भी भरोसा नहीं है तुझे मुझ पर",बंसी बोला...
"तो तू सुनना ही चाहता है तो सुन,मुझे और किसी से नहीं बेला से इसक हो गया है,तू मुझे वो दे दे बंसी! मैं जिन्दगी भर तेरा एहसान मानूँगा,चाहे तो मैं तुझे उसके कितने भी दाम देने को तैयार हूँ,तू उन पैसों से अपने लिए कोई और लड़की देख ले ,लेकिन बेला मुझे दे दे",लक्खा बोला...
"ये क्या कह रहा है तू?, मेरी बेला के तू दाम लगा रहा है,अरे! मैं उससे प्यार करता हूँ और तू मुझे अपने प्यार को बेचने की बात कर रहा है,कुछ लाज शरम बची है तुझ में कि नहीं",बंसी बोला....
"मैंने कहा था कि तू नहीं कर पाएगा",लक्खा बोला....
"मेरे तेरे लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ लेकिन बेला को तुझे सौंप दूँ ये मैं नहीं कर सकता",बंसी बोला...
"बस! यही तेरा याराना था,जहाँ दोस्ती निभाने की बात आई तो दोस्त से मुँह मोड़ लिया तूने",लक्खा बोला...
"मैं दोस्ती से मुँह नहीं मोड़ रहा हूँ,तू मेरे साथ दगाबाज़ी कर रहा है,अपनी दोस्त की होने वाली पत्नी पर बुरी नज़र डालते तुझे शरम नहीं आई",बंसी बोला....
"बंसी! अब बहुत ज्यादा हो रहा है,मैं तेरी बातें अब बहुत बरदाश्त कर चुका,अब कभी भी मुझे अपना मुँह मत दिखाना, तू अब से मर गया मेरे लिए"लक्खा बोला....
"मुझे भी ऐसे दोस्त से दोस्ती रखने का कोई शौक नहीं है",बंसी बोला...
"तू अभी मुझे जानता नहीं है,जमींदार साहब का हाथ है मेरे ऊपर मैं कुछ भी कर सकता हूँ,तुझे मास्टर प्रभुचिन्तन और उसकी बेटी निर्मला तो याद ही होगें कि मैंने क्या किया था उनके साथ",लक्खा बोला....
"अरे! जा..जा धमकी किसे देता है,बहुत देखे हैं तेरे जैसे,मैं भी देखता हूँ कि तू मेरा क्या बिगाड़ पाता है?, बंसी बोला...
"तो फिर तू देख लेना कि मैं तेरा और तेरी बेला का क्या हाल करता हूँ"? लक्खा ने धमकी देते हुए कहा....
"हाँ...जो जी में आए सो कर लेना",
और ऐसा कहकर बंसी वहाँ से चला आया और उसने ये बात बेला को बताई तो बेला बोली...
"वो हमारे घर भी आया था और अपने पैसों की धौंस जमाकर बापू से मेरा हाथ माँगने की बात कह रहा था लेकिन मैंने भी उसे खूब खरीखोटी सुनाई,मैं तेरी जगह होती ना तो उसका मुँह नोच लेती,बड़ा आया मुझसे ब्याह करने वाला",
"बेला! मैं भी उसे खूब सुनाकर आया हूँ लेकिन अब इस बात का डर लग रहा है कि वो बहुत ही गिरा हुआ इन्सान है,उसने ना जाने कितनी लड़कियों की जिन्दगी बर्बाद कर दी है अगर उसने तेरे साथ भी कुछ ऐसा वैसा कर दिया तो",बंसी बोला....
"तू उससे इतना क्यों डर रहा है",बेला ने पूछा...
"क्योंकि उसके सिर पर जमींदार वीरभद्र सिंह का हाथ है और सभी जानते हैं कि वें कितने खतरनाक इन्सान हैं", बंसी बोला...
"तू! नाहक ही परेशान हो रहा है,वो हम दोनों का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा",बेला बोली...
"तू अभी उसे नहीं जानती बेला! मैं जानता हूँ उसे",बंसी बोला...
"तुझे इतना ही डर लग रहा है तो चल हम इस बारें में बापू से बात करते हैं शायद उनके पास कोई रास्ता हो इस समस्या का",बेला बोली....
"हाँ! यही सही रहेगा",बंसी बोला....
और फिर दोनों मनसुख के पास गए तो मनसुख ये सब सुनकर परेशान हो उठा और दोनों से बोला....
"उसके सिर पर ठाकुर साहब का हाथ,वो कुछ भी कर सकता है,ऐसा करो तुम दोनों यहाँ से भाग जाओ, दोनों भागकर फूलपुर वाले रामस्वरूप जी के पास चले जाओ,वो जमींदारन साहिबा से कहकर तुम दोनों के लिए जरूर कुछ ना कुछ करेगें"
और फिर दोनों रातोंरात फूलपुर गाँव भाग गए और वहाँ के मंदिर में दोनों ने शादी कर ली और इधर लक्खा ने अपने लठैतों को चारों ओर भेज दिया उन दोनों को ढूढ़ने के लिए लेकिन उन लठैतों को दोनों कहीं नहीं मिले,क्योंकि वें दोनों रामस्वरूप जी की शरण में थे और फिर रामस्वरूप जी ने जमींदारन साहिबा को सबकुछ बता दिया और फिर जमींदारन साहिबा ने खुद रामस्वरूप जी से ठाकुर साहब के पास खबर भिजवाई कि वें ही लक्खा के लठैतों से दोनों की जान बचा सकते हैं,कृपा करके उन दोनों के साथ बुरा मत होने दीजिए,तब जमींदारन साहिबा की खबर सुनकर जमींदार वीरभद्र सिंह ने लक्खा को अपने पास हवेली में बुलवाया और उससे कहा....
"तुम क्यों मनसुख की बेटी बेला के पीछे पड़े हो"?
"हुजूर! मैं उससे प्यार करता हूँ",लक्खा बोला...
"सुना है कि उसने तुम्हारे दोस्त बंसी के संग भागकर शादी कर ली है",जमींदार साहब ने पूछा...
"जी! हूजूर! वो गद्दार निकला,मैने तो उसे पैसे देने की बात भी कही थी लेकिन उसने बेला मुझे नहीं दी और उसे रातोंरात गाँव से भगाकर ले गया और उससे शादी कर ली",लक्खा बोला...
"अब बेला किसी की ब्याहता है इसलिए उस पर अब तुम्हारा कोई हक़ नहीं है",जमींदार साहब बोले...
"लेकिन हूजूर! मैं उसे चाहता हूँ",लक्खा बोला...
"फिर वही बात! जो हमने कहा उस पर गौर करो,आज के बाद तुम बेला की तरफ देखोगे भी नहीं और ना ही उसके पति बंसी को भी कोई नुकसान पहुँचाओगे और अगर हमारे सुनने में कुछ आ गया ना तो फिर तुम्हारी खैर नहीं",ठाकुर साहब बोले....
"जी! हुजूर",
और ऐसा कहकर लक्खा ठाकुर साहब की हवेली से वापस आ गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....