Musafir Jayega kaha? - 18 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१८)

Featured Books
Categories
Share

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१८)

जब बेला का बापू इस ब्याह के लिए नहीं माना तो बेला ने खाना पीना छोड़ दिया,क्योंकि उसका बापू ना तो उसे बाहर जाने देता था और ना ही बंसी से मिलने देता था और इसी तरह खाना ना खाने से बेला की तबियत एक दिन बहुत खराब हो गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया,बेला के बापू मनसुख ने गाँव के वैद्य को बुलाया लेकिन बेला ने तो जैसे मर जाने की जिद पकड़ ली थी इसलिए उसने ना तो वैद्य की दी हुई दवाई खाई और ना ही खाना,अब इसमें वैद्य भी क्या कर सकता था,जब कोई दवा ही नहीं खाएगा तो ठीक कैसें होगा?
फिर अपनी बेटी की हालत खराब होते देख मनसुख को बेला के सामने घुटने टेकनें ही पड़े लेकिन वो बेला के सामने एक शर्त रखते हुए बोला....
"बेला! मैं तेरा ब्याह बंसी से करने को तो राजी हूँ लेकिन मेरी भी एक शर्त होगी",
"क्या शर्त बापू?,मैं बंसी के लिए तेरी कोई भी शर्त मानने को राजी हूँ",बेला बोली....
तब मनसुख बोला....
"तो तू बंसी से जाकर कह कि जब तक वो दस हजार रूपऐ कमाकर मेरी मुट्ठी में नहीं रख देता तब तक मैं उससे तेरा ब्याह नहीं करूँगा,जब मुझे यकीन हो जाएगा कि वो मेहनत करके तुझे रोटी खिला सकता है,तुझे खुश रख सकता है,तभी मैं उसका ब्याह तेरे संग होने दूँगा,तू मेरी इकलौती सन्तान है,मैं तुझे ऐसे इन्सान के साथ कैसें ब्याह दूँ जिसका ना कोई घर है और ना ही जिसके पास कोई काम है,मैं तेरा बाप हूँ ,कोई दुश्मन नहीं,मैं कभी नहीं चाहूँगा कि ब्याह के बाद मेरी बेटी कष्ट झेले",
"बापू! मैं आज ही उससे जाकर तेरी बात कह दूँगी और कसम खाके कहती हूँ जब तक वो तेरे हाथ में दस हजार रूपये अपनी मेहनत की कमाई से नहीं रख देता तब तक मैं उससे नहीं मिलूँगी",बेला बोली....
"शाबास! मेरी बेटी,तो चल अब खाना खा ले नहीं तो देह में हिम्मत कैसें आएगी,तुझे बंसी से भी तो मिलने जाना है",
और ऐसा कहकर मनसुख ने अपनी बेटी बेला को अपने सीने से लगा लिया और फिर बेला ने पेटभर खाना खाया और वैद्य जी की दी हुई दवाई भी खाई,अब उसे अच्छा लग रहा था और फिर शाम को वो बंसी से मिली और उससे बोली....
"क्यों रे! उस रोज़ बापू ने तुझे लताड़ा और तू वहाँ से चला आया,यही है तेरा प्यार",
"तो और क्या करता? वो तेरा बापू है,बुजुर्ग है तो मैं उसे कोई जवाब कैसें दे सकता था",बंसी बोला....
तब बेला को बंसी की ये बात बहुत अच्छी लगी कि वो उसके बापू की इतनी इज्जत करता है और वो उससे बोली...
"एक खुशखबरी है",
"कैसीं खुशखबरी",?बंसी ने पूछा...
"तो सुन! बापू हम दोनों के ब्याह के लिए राजी है",बेला बोली...
"सच! कहती है तू!",बंसी ने पूछा...
"हाँ! एकदम सच! लेकिन उसकी एक शर्त है",बेला बोली...
"का शर्त है तेरे बापू की"?,बंसी ने पूछा....
"मेरा बापू चाहता है कि तू मुझसे ब्याह करने से पहले उसे खुद की मेहनत से दस हजार रूपये कमाकर उसके हाथ पर धर दे,तब उसे तुझ पर भरोसा होगा कि तू मुझे जिन्दगी भर खिला पाएगा,वो भी क्या करें बेचारा,बाप है और हर बाप के अरमान होते हैं कि उसकी बेटी सुख से रहे",बेला बोली...
"बस! इतनी सी शर्त,देखना मैं इसे पूरी करके दिखाऊँगा",बंसी बोला....
"एक शर्त और भी है",बेला बोली...
"अब और कौन सी शर्त पूरी करनी है",बंसी ने पूछा...
"वो शर्त तुझे नहीं मुझे पूरी करनी है",बेला बोली...
"शर्त क्या है कुछ मुझे भी बताएगी",बंसी ने पूछा.....
"कि जब तक तू बापू के हाथ में दस हजार रूपए कमाकर नहीं रख देता तब तक मैं तुझसे मिलने नहीं आऊँगी",बेला बोली...
"ये तो तू मुझ पर जुल्म ढ़ा रही है",बंसी बोला....
"शर्त मंजूर है तो बोल,वरना रहने दे",बेला बोली...
"मुझे तुझसे ब्याह करने के लिए सारी शर्तें मंजूर है,अब चाहे कुछ भी हो जाए,देखना दो माह के भीतर भीतर मैं दस हजार रूपए तेरे बापू के हाथ में रख दूँगा",बंसी बोला...
और फिर उस मुलाकात के बाद बेला बंसी से मिलने नहीं आई और इधर बंसी दस हजार रूपयों के लिए जी तोड़ मेहनत करने लगा,कभी किसी के खेत की कटाई करता तो कभी किसी के खेत की जुताई करता,तो कभी किसी के यहाँ लकड़ियाँ काटने जाता तो किसी के यहाँ अनाज की बोरियाँ ट्रैक्टर मेँ चढ़ाता,वो दिन दिनभर बस काम ही करता रहता और इस दौरान वो अपने सबसे अच्छे दोस्त लक्खा से मिलने भी नहीं जा पाया और ना ही उसके साथ बैठकर शराब पी ,तो लक्खा ने भी बंसी के पास खबर पहुँचाई कि वो अब उससे मिलने क्यों नहीं आता,ऐसी कौन सी नाराजगी पाल रखी है उसने,?
तब बंसी ने भी लक्खा के पास खबर पहुँचाई कि एक लड़की है बेला वो उसे चाहता है और उससे शादी करने के लिए उसके बापू मनसुख ने उसके सामने दस हजार रूपये कमाने की शर्त रखी है,इसलिए वो अब कमाई करने में लगा है,जिस दिन दस हजार रूपये पूरे हो जाऐगें,उस दिन वो उससे मिलने आएगा और फिर लक्खा ने जब ये बात सुनी तो मन में बोला...
"अच्छा! तो हमारे यार को मौहब्बत हो गई है,चलो कोई बात नहीं,तब तक हम भी उसके यहाँ आने का इन्तज़ार कर लेते हैं",
और फिर जब बंसी के पास दस हजार रूपए जमा हो गए तो वो उस रात लक्खा के पास मिलने आया,तब लक्खा उससे बोला....
"दस हजार रूपये चाहिए थे तो मुझसे ले लेता और फेंक आता अपने होने वाले ससुर के मुँह पर,इतने दिनों से छाती फाड़कर मेहनत कर रहा था,तो वो तो ना करनी पड़ती तुझे",
"भाई! उधार के नहीं,कमाई के रूपऐ चाहिए थे",बंसी बोला...
"ये किसी को पता थोड़े ही चलता कि रुपये कमाई के हैं या उधार के",लक्खा बोला....
"लेकिन मुझे तो पता चलता ना और मैं अपनी नजरों से गिरकर कहाँ जाता"?,बंसी बोला...
"भाई! तू तो पुन्यआत्मा है,तेरा कहाँ कोई जोड़ है",लक्खा बोला....
"अच्छा! तू चलेगा ना कल मेरे साथ बेला के घर,ये रूपऐ देने",बंसी ने पूछा...
"नेकी और पूछ पूछ....चलूँगा..जरूर चलूँगा",लक्खा बोला...
"मेरा तेरे सिवा इस दुनिया में है ही कौन",बंसी बोला....
"कैसीं बातें कर रहा है यार! तेरे जैसा दोस्त तो बड़ी मुश्किल से मिलता है",लक्खा बोला...
और फिर उस रात दोनों ने खूब बातें की,साथ में बैठकर शराब पी और खाना भी खाया और फिर उस रात लक्खा के घर में ही बंसी सो गया और दूसरे दिन दोनों तैयार होकर बेला के घर चल पड़े,बेला के बापू मनसुख के हाथ में बंसी ने दस हजार रूपऐ रखे और बोला....
"अब तो मैं बेला से ब्याह कर सकता हूँ ना!",
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,बेटी बेला! मेहमानों के लिए जलपान की व्यवस्था तो कर",मनसुख बोला....
और फिर जलपान लेकर ज्यों ही बेला बाहर आई तो बेला को देखकर लक्खा की नीयत डोल गई और उसके मन में बेला इस कदर समाई कि उसे भूल पाना उसके वश में रहा और फिर लक्खा दो चार दिनों बाद मनसुख के घर आया और बेला भी वहीं मौजूद थी और वो मनसुख से बोला.....
"मनसुख! मैं तुझे पचास हजार देने को तैयार हूँ,तू बेला का ब्याह बंसी से नहीं मुझसे कर दे"
और ये बात सुनकर वहीं मौजूद बेला आगबबूला होकर लक्खा से बोली....
"कैसा दोस्त है तू,जो उसकी पीठ पर छुरा भोंक रहा है, तुझे शरम नहीं आई ऐसी बात कहते हुए,माना कि तू जमींदार साहब के टुकड़ो पर पलता है और उनकी मेहरबानी से ही तूने इतनी दौलत इकट्ठी कर ली है,तो तू किसी को भी खरीद सकता है,चुपचाप निकल जा यहाँ से नहीं तो अगर कहीं मैनें अपनी जूती उतार ली ना तो मार मारकर तेरा मुँह लाल कर दूँगीं",
और फिर उस समय तो लक्खा वहाँ से चला आया लेकिन उसने अपने मन में ठान लिया कि वो अपनी इस बेइज्जती का बदला जरूर लेकर रहेगा....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....