Wo Maya he - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 25



(25)

दिशा को डॉक्टर ने आराम करने के लिए कहा था। वह सो रही थी‌। शांतनु मनीषा को पास के एक भोजनालय में खाना खिलाने ले गए थे। खाना खाते हुए शांतनु ने कहा,
"फोन किया था। पुष्कर की बॉडी कल सुबह उसके घरवालों को दी जाएगी। इसका मतलब है कि आज रात यहीं रहना होगा।"
मनीषा कुछ सोचकर बोलीं,
"मैं दिशा के कमरे में रात गुज़ार लूँगी। मेरी मानो तो तुम वापस चले जाओ। मैं संभाल लूँगी।"
शांतनु ने मनीषा की तरफ देखकर कहा,
"मालूम है तुम सब संभाल लोगी। पर मैं डिम्पी के लिए यहाँ हूँ। उसे मेरी ज़रूरत पड़ेगी।"
मानीषा को एहसास हुआ कि उनकी बात शांतनु को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहा,
"शांतनु.... मैं तुम्हारे बारे में सोचकर कह रही थी। मुझे फिक्र है तुम्हारी। कल भवानीगंज जाना होगा। मेरे लिए ही वहाँ जाना मुश्किल होगा। फिर तुम वहाँ और अजीब महसूस करोगे।"
"वहाँ हम किसी फंक्शन के लिए तो जा नहीं रहे हैं कि जान पहचान ज़रूरी है। दुख की घड़ी में जा रहे हैं। मैं मैनेज कर लूँगा।"
मनीषा को शांतनु की फिक्र थी। वह नहीं चाहती थीं कि उन्हें कोई तकलीफ हो। उन्होंने पूछा,
"ठीक है पर रात में कहाँ रहोगे ?"
"इस भोजनालय के ऊपरी हिस्से में कुछ कमरे हैं। मुसाफिरों को देते हैं। मैंने कमरा देखा है। अच्छा कमरा है। आसपास दो एक परिवार भी ठहरे हैं। तुम रात में यहीं आराम करना। मैं डिम्पी के पास रहूँगा।"
"अब यह क्या बात हुई ?"
"मैंने जो कहा है वही होगा। मैंने कमरा बुक करा दिया है। अभी अस्पताल चलना। रात में मैं तुम्हें यहाँ छोड़ जाऊँगा।"
मनीषा ने आगे कुछ नहीं कहा। वह खाना खाने लगीं। खाना खाने के बाद दोनों अस्पताल चले गए।

विशाल ने अपने उस दोस्त से बात की जिसने अपनी कार ड्राइवर के साथ भेजी थी। उसने अपनी पहचान से कुछ पैसे उधार दिला दिए। विशाल ने टेस्ट के लिए पैसे जमा करा दिए। अब उसकी समस्या थी कि बद्रीनाथ से बात करे। पर वह टेस्ट होने से पहले कोई बात नहीं करना चाहता था।
केदारनाथ अपने भाई के पास बैठे थे। विशाल कुछ देर के लिए अस्पताल के बाहर आ गया था। सुबह से ही रह रह कर उसे पुष्कर के बचपन की याद आ रही थी। वह उससे दस साल छोटा था। बचपन में उसके आगे पीछे घूमता था। अलग अलग तरीके से उसका ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश करता था। स्कूल जाना शुरू किया तो जब कभी कोई शैतानी करता और टीचर किसी को बुलाने को कहती थीं तो विशाल को ही लेकर जाता था। अपनी फरमाइशें उसके ज़रिए ही पापा तक पहुँचाता था। यह सब याद करके विशाल का दिल भर आया था।
पुष्कर को याद करते हुए उसे एकबार फिर दिशा की याद आई। उसने अपना फोन निकाल कर उसे कॉल लगाई‌।

शांतनु दिशा के साथ बात कर रहे थे। मनीषा भी वहीं थीं। उन्हें अपने हैंडबैग से आती फोन की घंटी सुनाई पड़ी। उन्होंने निकाल कर देखा। दिशा का फोन बज रहा था। जब वह अस्पताल आई थीं तो नर्स ने उन्हें दिया था। उन्होंने स्क्रीन पर देखा। विशाल भइया लिखा था। दिशा को भी अपने फोन की घंटी सुनाई पड़ी थी। उसने मनीषा से उस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा,
"तुम परेशान मत हो। मैं बात कर लेती हूँ।"
वह फोन लेकर बाहर चली गईं। कॉल रिसीव करके बोलीं,
"तुम पुष्कर के भाई हो...."
"हाँ आंटी जी....दिशा का हालचाल पूछना था।"
मनीषा को इस बात का बुरा लग रहा था कि पुष्कर के घर से किसी ने भी दिशा के बारे में पता नहीं किया। उन्होंने कुछ गुस्से से कहा,
"बड़ी जल्दी याद आ गई। तुम लोगों को पता है ना कि दिशा तुम्हारे घर की बहू है। उस पर इतना बड़ा दुख पड़ा है।"
विशाल की तरफ कुछ देर शांति रही। उसके बाद उसने कहा,
"आंटी हमें पता है कि दिशा मेरे छोटे भाई पुष्कर की पत्नी है। वह पुष्कर जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। हम अपने पापा और चाचा के साथ उसकी बॉडी लेने आए हैं। अपने बेटे को खो देने का दुख पापा से बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्हें हार्ट अटैक आ गया। उसी अस्पताल में भर्ती हैं जहाँ पुष्कर का पोस्टमार्टम हुआ है।"
विशाल अपनी बात कहकर चुप हो गया। मनीषा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने कहा,
"माफ करना.... ऐसा दुख पड़ा है कि ठीक से सोच भी नहीं पा रही हूँ।"
"समझ सकते हैं कि आप पर क्या बीत रही होगी। इस सबमें फंसे रहे इसलिए ना वहाँ आ पाए और ना हालचाल ले पाए।"
"अब बदरीनाथ जी कैसे हैं ?"
"खतरे से बाहर हैं पर पुष्कर की मौत का दुख तो है ही। आप बताइए दिशा कैसी है ?"
"उसका भी बुरा हाल है। बहुत समझाया है तब कुछ ठीक हुई है। अभी बद्रीनाथ जी को अस्पताल में रखना पड़ेगा।"
"हाँ आंटी..... डॉक्टर का कहना है कि अभी उन्हें अस्पताल में रहना पड़ेगा। कल पुष्कर की बॉडी लेकर भवानीगंज जाना है। क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा है। आप दिशा का खयाल रखिएगा। उसे कल भवानीगंज ले जाइएगा। पुष्कर को अंतिम विदाई दे दे। हम अभी जा रहे हैं। पापा को कुछ टेस्ट कराने के लिए ले जाना है।"
विशाल ने फोन काट दिया। मनीषा वापस जाने के लिए मुड़ीं तो शांतनु पीछे खड़े थे। शांतनु ने पूछा,
"किसका फोन था ?"
"पुष्कर के बड़े भाई विशाल का।"
"क्या कहा उसने ?"
मनीषा ने सारी बात बता दी। शांतनु ने कहा,
"वो लोग बहुत परेशानी में लग रहे हैं।"
"हाँ लेकिन क्या कर सकते हैं ?"
मनीषा की बात सुनकर शांतनु चुप हो गए। दोनों दिशा के पास गए। दिशा ने फोन के बारे में पूछा। मनीषा ने उसे सारी बात बता दी। सुनकर वह बहुत दुखी हुई।

आस पड़ोस के लोग जो सारा दिन मौजूद रहे थे अब अपने अपने घर चले गए थे। इस समय सुनंदा और उनकी दोनों बेटियों के अलावा मनोहर, नीलम और अनुपमा घर में थे। उमा सुबह से जहाँ थीं वहीं बुत बनी बैठी थीं। उन्होंने कुछ भी खाया पिया नहीं था। उनकी दशा देखकर मनोहर बहुत दुखी थे। उन्होंने नीलम से कहा,
"यह कैसी विपदा आ पड़ी इस घर पर। दीदी तो पत्थर बन गई हैं।"
नीलम ने कहा,
"बहू के कदम शुभ नहीं थे। आते ही इतना बवाल किया। अब देखो जिस लड़के के सर पर कुछ दिन पहले मौर सजा था आज उसकी लाश आने का इंतज़ार हो रहा है।"
अनुपमा पास ही थी। उसे नीलम की बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"मम्मी इसमें भाभी का क्या दोष है। उन पर भी तो कितना बड़ा दुख आ गया। भाभी बहुत अच्छी हैं।"
नीलम ने उसे डांट लगाई,
"बड़ों की बातों में ज्यादा ना बोला करो।"
मनोहर ने नीलम को डांटा,
"तुम भी तो समय नहीं देखती हो। यह समय है ऐसी बातें करने का।"
नीलम ने अनुपमा को घूरा। उसके बाद कहा,
"अच्छा बताओ संध्या दीदी और दीनदयाल जी क्यों नहीं आए ? रविप्रकाश से पुष्कर की जो कहा सुनी हुई थी उसकी वजह से नाराज़ हैं क्या ?"
मनोहर ने झुंझलाकर कहा,
"हम क्या जानें क्यों नहीं आए। हमने तो खबर मिलते ही उन्हें सूचना दे दी थी। तीन घंटे का ही तो रास्ता है। वैसे इतना बड़ा दुख दीदी पर पड़ा है। ऐसे में कोई भी नाराज़गी तो नहीं रखनी चाहिए मन में। पर दीनदयाल जीजा जी अपने दामाद के कहे पर चलते हैं। कोई बड़ी बात नहीं है अगर उन्होंने उस दिन के झगड़े को वजह बना लिया हो।"
सोनम कमरे में आई। उसने कहा,
"पड़ोस से खाना आया है। मम्मी कह रही हैं कि आप लोग खाना खा लीजिए।"
मनोहर ने कहा,
"जिज्जी ने कुछ खाया।"
"बुआ ने सिर्फ चाय पी थी। ताई ने तो कुछ भी नहीं खाया पिया।"
मनोहर ने उठते हुए कहा,
"चलकर उन्हें खिलाने की कोशिश करते हैं।"
बहुत कहने के बाद किशोरी ने थोड़ा सा खाना खाया। लेकिन उमा टस से मस नहीं हुईं। उन्होंने तो पानी की एक बूंद तक लेने से मना कर दिया। मनोहर ने समझाया,
"दीदी दुख तो अब जीवन भर का है। इसे सहना ही पड़ेगा। लेकिन बिना खाए पिए कैसे काम चलेगा। आप भी बीमार पड़ जाएंगी। विशाल को कौन संभालेगा।"
उमा ने रोते हुए कहा,
"हम अभी कौन सा संभाल रहे हैं उसे। बेचारा अपना दुख अकेले झेल रहा है। जब कुछ कर सकते थे तब तो कुछ कर नहीं पाए। अब अच्छा होगा कि हम भी बिना खाए पिए प्राण त्याग दें।"
किशोरी उठकर उमा के पास आई थीं। उनकी बात सुनकर बोलीं,
"उमा कैसी बात कर रही हो ? वैसे भी यह घर श्राप झेल रहा है। कोई खुशी टिककर नहीं रह पाती है। तुम ऐसा मत करो। कुछ खा पी लो। तुम माँ हो। तुम्हारा दुख सबसे बड़ा है। पर शरीर तो चलाना है।"
उन्होंने अनुपमा के हाथ से प्लेट ली। एक कौर उमा की तरफ बढ़ा दिया। उमा ने बेमन से दो एक कौर खाए उसके बाद मना कर दिया।
सबने थोड़ा बहुत जो खाना था खा लिया था। अब सोने की तैयारी हो रही थी। मनोहर उमा और किशोरी वाले कमरे में लेटे थे। नीलम और सुनंदा अपनी बेटियों के साथ एक कमरे में थीं।
तांत्रिक ने कहा था कि वह बाहर हैं और आने की कोशिश करेगा‌। पर आया नहीं था। शाम को विशाल का फोन आया था कि तांत्रिक दूर से ही अपनी साधना के ज़रिए सुरक्षा कवच बना देगा।
मीनू शाम से ही डर रही थी। उसने माया के श्राप वाली बात सुनी थी। उसे लग रहा था कि माया आसपास ही होगी। डरी सहमी सी वह सोनम और अनुपमा के बीच लेटी थी।