Wo Maya he - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 27



(27)

पुष्कर की लाश बाहर दालान में रखी थी। उसे शमशान ले जाने की तैयारी चल रही थी। बद्रीनाथ की तबीयत के बारे में सुनकर सभी और परेशान हो गए थे। बात कर रहे थे कि कितनी बड़ी विपदा आई है। बाप को बेटे की अंतिम यात्रा में शामिल होना भी नसीब नहीं हुआ। रविप्रकाश और दीनदयाल एक तरफ खड़े थे। रविप्रकाश ने कहा,
"बाबू जी बड़ी दुखद बात है। अरे अभी शादी को एक हफ्ता भी नहीं हुआ। पुष्कर दुनिया छोड़कर चला गया।"
दीनदयाल ने इधर उधर देखा। फिर धीरे से बोले,
"तुम्हें बताया था ना श्राप वाली बात। वही सच हो गई। विशाल की पत्नी और बच्चे की मौत पर बद्रीनाथ भइया ने बताया था कि उस लड़की ने श्राप दिया था। वही श्राप पुष्कर को ले गया है।"
"इन लोगों ने कोई उपाय नहीं किया था ?"
"किया तो था कुछ। पर कोई असर हुआ हो ऐसा तो नहीं लगता है।"
रविप्रकाश ने धीरे से कहा,
"पत्नी का भी पति के जीवन में महत्व होता है। जैसे किरण हमारे जीवन में आई तबसे हमने कितनी उन्नति की है।"
अपनी बेटी की तारीफ सुनकर दीनदयाल बहुत खुश हुए। रविप्रकाश ने कहा,
"दिशा के कदम शुभ नहीं रहे। अगर उसके कदम शुभ होते तो पुष्कर के साथ ऐसा ना होता।"
उसी समय केदारनाथ वहाँ आ गए। वह बोले,
"भइया के बारे में सोचकर दिल दुख रहा है। जब हम लोग उन्हें छोड़कर आ रहे थे तो चेहरे पर बहुत लाचारी थी। भगवान ऐसा दिन किसी को ना दिखाएं।"
रविप्रकाश ने पूछा,
"मौसा जी वहाँ अकेले हैं ?"
"नहीं..... शादी में बहू की तरफ एक थे ना जो उसके पिता की तरह काम कर रहे थे। क्या नाम है....हाँ शांतनु। वही भइया के साथ हैं।"
दीनदयाल ने कहा,
"विशाल अगर दाह संस्कार करेगा तो शुद्धि तक कहीं आ जा नहीं पाएगा। इतने दिनों तक तो शांतनु बाबू रुकेंगे नहीं।"
"दाह संस्कार हम करेंगे। स्कूल से छुट्टी लेकर शुद्धि तक बैठेंगे। विशाल भइया के पास चला जाएगा। शुद्धि तक तो भइया भी घर आ जाएंगे।"
विशाल ने आवाज़ देकर उन लोगों को बुलाया। सब उसकी मदद के लिए चले गए।

दिशा अपनी मम्मी के साथ आंगन में बैठी थी। वहीं पर उमा, किशोरी और बाकी की औरतें बैठी थीं। दिशा की आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे। मनीषा उसे सांत्वना दे रही थीं। दिशा ने आँख उठाकर छत की तरफ देखा। छत पर बने कमरे में ही उसने और पुष्कर ने वैवाहिक जीवन की पहली रात बिताई थी। उसे वह पल याद आ रहे थे। दिनभर दिशा पुष्कर का इंतज़ार करती रही थी। पुष्कर पूरे दिन में सिर्फ एकबार उसके पास आया था वह भी छुपकर। इसलिए वह कुछ नाराज़ थी।
जब देर रात पुष्कर उसके कमरे में आया तो उसने बड़ी आसानी से अपने प्यार से उसका दिल जीत लिया था। उसे यकीन दिलाया था कि वह हर हाल में उसके साथ है। तब दिशा को बहुत अच्छा लगा था। उसे लग रहा था कि पुष्कर के साथ उसका जीवन सुख से बीतेगा। उसके साथ वह हमेशा सुरक्षित रहेगी। आज वही पुष्कर उसे हमेशा के लिए छोड़कर चला गया था। उसकी अंतिम यात्रा की तैयारियां चल रही थीं। यह सब सोचते हुए दिशा अचानक ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। अनुपमा उसे रोते देखकर दुखी थी। वह पानी लेकर उसके पास गई। उससे बोली,
"भाभी पानी पी लीजिए।"
दिशा ने मना कर दिया। मनीषा ने अनुपमा के हाथ से गिलास ले लिया। उन्होंने कहा,
"पी लो बेटा। वहाँ से भी ठीक से खाकर नहीं चली थी। कम से कम पानी पी लो।"
दिशा ने एक दो घूंट पानी पिया। मनीषा ने गिलास अनुपमा को वापस कर दिया। दिशा की सिसकियां रह रह कर सुनाई पड़ रही थीं। मोहल्ले की एक औरत ने नीलम से कहा,
"बेचारी के भाग देखो। चार दिन में ही सुहाग उजड़ गया। अब जीवन भर का रोना है।"
नीलम ने कहा,
"बुरा तो हमें भी लग रहा है। पर सच तो यह है कि अपना किया सामने आता है। सबको पता है कि इनके घर को श्राप लगा है। इसके लिए जिज्जी ने ताबीज़ बनवाए थे। विदाई के दूसरे दिन पहनने को दिया था। खूब बवाल किया इसने। ताबीज़ पहनने से इंकार कर दिया। अब उसका ही परिणाम है।"
सुनंदा की नीलम से अच्छी पटरी बैठती थी। पर आज उसकी बात उन्हें अच्छी नहीं लगी। वह भी दिशा के लिए ऐसा ही सोचती थीं। पर घर की बात दूसरे के सामने करना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कहा,
"जो भी हो....यह तो सच है कि बेचारी पर जीवन भर का दुख आ पड़ा है। अब उसके ऐब क्या देखना।"
नीलम चुप हो गई। पर उसे सुनंदा की बात अच्छी नहीं लगी।

सारी तैयारी हो चुकी थी। अब पुष्कर को ले जाने का समय था। विशाल ने आंगन में आकर कहा,
"ले जा रहे हैं। चलकर....."
यह कहते हुए वह रोने लगा। आंगन में रोने का सम्मिलित स्वर उठा। उमा ज़ोर से चिल्लाईं,
"हाय....हमारा पुष्कर.....उसकी शकल भी नहीं देख पाए।"
विशाल उनके पास जाकर बोला,
"मम्मी.... पोस्टमार्टम के बाद जैसा भेजा था वैसे ही ले जा रहे हैं। बस दरवाज़े तक चलकर उसे विदा कर दो।"
उसने सहारा देकर उमा को उठाया और बाहर ले गया। सुनंदा और नीलम किशोरी को सहारा देकर ले जा रही थीं। बाकी सारी औरतें भी बाहर चली गईं। आंगन में दिशा और मनीषा अकेली रह गईं। मनीषा ने कहा,
"उठो दिशा.....चलकर पुष्कर को अंतिम विदाई दे दो।"
दिशा ने मनीषा की तरफ देखा। जिसका हाथ जीवन भर का साथ पाने के लिए थामा था उसे अंतिम विदाई देना उसके लिए बहुत कष्टप्रद था। पर सच तो यह था कि पुष्कर जा चुका था। अब तो बस उसके बचे हुए शरीर को अग्नि को समर्पित करने ले जा रहे थे। इसके बाद पुष्कर की सिर्फ यादें रहनी थीं। मनीषा ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। दिशा ने उसे थामा और उठकर खड़ी हो गई। मनीषा का हाथ थामे वह भी बाहर आ गई।
बाहर पुष्कर की सजी हुई अर्थी रखी थी। उमा उसके पास जमीन पर बैठी रो रही थीं। किशोरी को लोगों ने कुर्सी पर बैठा दिया था। वह अपनी छाती पीट पीट कर रो रही थीं। इस समय वहाँ मौजूद सभी की आँखें नम थीं। दिशा अपना हाथ छुड़ाकर पुष्कर की अर्थी के पास गई। कुछ देर सूनी आँखों से उसे निहारती रही। फिर खड़े खड़े ही बेहोश होकर गिर पड़ी। पास खड़े लोगों ने उसे सहारा दिया। मनीषा भागकर उसके पास चली गईं।
विशाल और केदारनाथ के साथ दीनदयाल और रविप्रकाश ने अर्थी को कंधा दिया। राम नाम सत्य है बोलते हुए उसे कुछ दूर खड़ी लाश गाड़ी तक ले गए। उमा और किशोरी रोती रोती पीछे लाश गाड़ी तक गईं।
मनीषा अंदर से पानी लेकर आईं। उन्होंने दिशा के चेहरे पर पानी छिड़का। उसे होश आया। उसने इधर उधर देखा। अर्थी ना देखकर वह चिल्लाई,
"पुष्कर......"
मनीषा ने उसे गले लगाकर कहा,
"उसे ले गए। अब बस वह यादों में ही मिलेगा।"
दिशा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।

जीने के पास वाले छोटे कमरे में एक तखत पर केदारनाथ बैठे थे। उनका सर घुटा हुआ था। बेटे समान भतीजे को अग्नि देने का दुख उनके चेहरे पर झलक रहा था। दस दिनों तक उन्हें इसी तरह इस कमरे में रहना था। किसी को भी उनसे बात करनी हो तो दरवाज़े से ही कर सकता था। दीनदयाल बाजार से कुछ खाना लाए थे। सोनम थाली लगाकर कमरे के दरवाज़े पर आई। उसने कहा,
"पापा खाना खा लीजिए।"
केदारनाथ ने कहा,
"ले जाओ बिटिया....मन नहीं है खाने का।"
सोनम के पीछे सुनंदा खड़ी थीं। उन्होंने कहा,
"हमें भी बहुत दुख है। पर खाना ना खाने से क्या होगा। आगे सारे काम आपको करने हैं। खा लीजिए।"
केदारनाथ उठकर दरवाज़े पर आए। थाली लेते हुए बोले,
"ठीक कह रही हो। भाभी और जिज्जी को खिलाया।"
"जा रहे हैं। अब उन्हें खिलाएंगे।"
"बहू और उसकी माँ का खयाल रखना। ऐसा ना हो दोनों अकेली पड़ जाएं।"
"हम सब देख लेंगे। आप जाकर खाइए।"
यह कहकर सुनंदा चली गईं।

मनीषा और दिशा दोनों छत वाले कमरे में थीं। सोनम उन लोगों की थाली दे गई थी। दिशा चुपचाप बैठी थी। मनीषा ने कहा,
"खाना खा लो दिशा।"
दिशा की आँखों से फिर आंसू निकलने लगे। मनीषा ने एक कौर तोड़कर उसे खिलाया। वह धीरे धीरे खाने लगी। मनीषा भी अपना खाना खाने लगीं। खाना खाते हुए उन्होंने कहा,
"शांतनु का फोन आया था। तुम्हारे बारे में पूछ रहा था।"
दिशा ने एक कौर तोड़ते हुए कहा,
"पापा ठीक हैं ?"
"शांतनु बता रहा था कि बद्रीनाथ जी हम लोगों के जाने के बाद खूब रोए। डॉक्टर ने दवा देकर सुलाया। अभी कुछ देर पहले उन्होंने विशाल से बात की थी।"
दिशा ने उसके बाद कुछ नहीं पूछा। मनीषा ने कहा,
"कल पुष्कर के फूल चुनकर विसर्जित करेंगे। उसके बाद विशाल बद्रीनाथ जी के पास जाएगा।"
दिशा बिना कुछ बोले सुन रही थी। मनीषा ने कहा,
"मैं भी उसके साथ चली जाऊँगी। पुष्कर की तेरहवीं के बाद आकर तुम्हें भी ले जाऊँगी।"
दिशा ने अभी भी कुछ नहीं कहा। बस मनीषा की तरफ देखने लगी। मनीषा उसकी तकलीफ समझ रही थीं। पर उनके लिए उसके पास ठहरना संभव नहीं था। पुष्कर की तेरहवीं से पहले वह उसे ले नहीं जा सकती थीं। दिशा जिस तरह से उन्हें देख रही थी मनीषा का कलेजा फटा जा रहा था। वह मन ही मन भगवान से शिकायत कर रही थीं कि उनकी बेटी को यह सज़ा क्यों दी ?
दिशा की तरफ से नज़रें हटाकर वह खाना खाने लगीं।