Musafir Jayega kaha? - 22 in Hindi Thriller by Saroj Verma books and stories PDF | मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२२)

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मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२२)

तब जागृति लक्खा की बात सुनकर बोली...
"बच्चे को अभी उसके पिता के पास ही रहने देते,अभी दोनों को एक दूसरे की ज्यादा जरूरत है",
"तू अपनी जुबान बंद रखा कर,बड़ी हिमायती बन रही है बाप बेटे की,बंसी ने खुद बच्चे को ले जाने को कहा था इसलिए ले आया उसे,मुझे कोई शौक नहीं चढ़ा था दूसरे की औलाद को अपने घर रखने का",लक्खा बोला....
"कह दिया होगा उसने परेशान होकर और तुम ले भी आए बच्चे को यहाँ,ये तुमने ठीक नहीं किया",जागृति बोली...
"मैंने कहा ना कि अपनी जुबान बंद रखा कर,खबरदार! जो आज के बाद मेरी बात काटने की कोशिश की, नहीं तो घर से निकाल दूँगा," लक्खा बोला...
फिर जागृति लक्खा से कुछ नहीं बोली और दोनों बच्चे साथ साथ लक्खा के घर में पलने लगे,दोनों साथ खेलते साथ पढ़ते और साथ साथ स्कूल जाते,इस बीच अगर कभी बंसी अपने बच्चे से मिलने लक्खा के घर आता तो लक्खा उसे दुत्कार कर और खरी खोटी सुनाकर वापस जाने को कहता और उससे ये भी कहता कि....
"वो तो मैं जो बच्चे को अपने पास उठा लाया नहीं तो तू तो इसे भूखा प्यासा ही मार डालता",
और बंसी लक्खा के घर से उदास होकर वापस चला जाता इस बात से जागृति को बहुत दुख होता कि लक्खा रमेश को अपने बाप से मिलने ही नहीं देता तो वो कैसें पहचानेगा कि उसका बाप कौन है और जब वो ये बात लक्खा से कहती तो वो उसे भी लताड़ देता और जब कभी रमेश लक्खा से अपने बाप के बारें में पूछता तो लक्खा उससे कहता कि....
"तेरा बाप तुझे ही तेरी माँ की मौत का जिम्मेदार समझता है,उसे लगता है कि तुझे बचाने के चक्कर में तेरी माँ को साँप ने डस लिया इसलिए वो तुझसे बिना मिले ही चला जाता है",
इसलिए फिर रमेश भी अपने बाप बंसी के बारें किसी से बात नहीं करता और अब दोनों बच्चे जवान हो रहे थे और इसी बीच जागृति बीमार पड़ी और उसका बुखार इतना बढ़ गया कि मस्तिष्क तक पहुँच गया,शान्तिनिकेतन में भी उसका इलाज चला लेकिन मौत के सामने जागृति हार गई,जागृति के स्वर्ग सिधार जाने के बाद दोनों बच्चे अकेले पड़ गए लेकिन धानी बड़ी होशियार थी उसने जल्द ही घर गृहस्थी सम्भाल ली और दोनों बच्चे अब जवान हो चले थे,इसलिए एक दिन धानी ने रमेश से कहा....
"हम ब्याह कब करेगें रमेश"?
"जब तेरे बाबा राजी हो जाऐगें तब ब्याह होगा हमारा",रमेश बोला...
"लेकिन मैं ऐसे लड़के से शादी नहीं करना चाहती जो मेरे बाप के घर में रहता हो और कुछ कमाता ना हो",धानी बोली....
",तू ऐसा क्यों कह रही है धानी"?,रमेश ने पूछा...
"इसलिए कह रही हूंँ कि मैं चाहती हूँ कि तू मेरे बाप के घर में ना रहे और उसके खेतों में काम ना करे,तू अपने घर लौट जा रमेश और कोई काम धन्धा ढूढ़कर फिर मुझसे शादी कर,तब मुझे अच्छा लगेगा",धानी बोली....
"मतलब तू चाहती है कि मैं तुझसे दूर चला जाऊँ",रमेश बोला...
"नहीं! मैं चाहती हूँ कि तू मुझे आत्मसम्मान के साथ ब्याहने आएं",धानी बोली...
"तू यही चाहती है तो अब मैं तुझे आत्मसम्मान के साथ ही ब्याहने आऊँगा",रमेश बोला....
और फिर रमेश अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर लक्खा के पास पहुँचा और उससे बोला....
"बाबा! मैं अपने घर जा रहा हूँ और तभी लौटूँगा जब मेरी हाथ में नौकरी होगी,"
"अब जब तूने यहाँ से जाने का फैसला कर ही लिया है तो मुझसे क्यों पूछ रहा है"?,लक्खा बोला....
"ठीक है तो अब मैं चलता हूँ",
और ऐसा कहकर रमेश उमरिया गाँव चला आया और जब वो बंसी के पास पहुँचा तो बंसी उसे पहचान ही नहीं पाया क्योंकि सालों से वो रमेश से नहीं मिला था,जवान बेटे को देख बंसी ने उसे अपने सीने से लगा लिया,दोनों बाप बेटे गले मिलकर अपना सब दुख दर्द भूल गए,फिर रमेश को फारेस्ट आँफिस में चपरासी की नौकरी मिल गई जो कि बंसी के सिफारिश करने से मिली थी,इसी तरह दो चार महीने बीत गए अब रमेश के पास घर भी था और नौकरी भी,इसलिए वो धानी से मिलने गया और उससे पूछा कि....
" कब बारात लेकर आऊँ"?
तो धानी बोली...
"बाबा से बात करो,मुझसे क्या पूछते हो"?
"ठीक ही तो मैं आज ही बाबा से हम दोनों की शादी के बारें में बात करता हूँ",रमेश बोला...
फिर रमेश लक्खा के पास शादी की बात करने पहुँचा तो लक्खा बोला....
"तो ठीक है कल अपने बाप बंसी को यहाँ ले आ तो सारे गाँव के सामने में शादी की बात तय हो जाएगी",
ये सुनकर रमेश बहुत खुश हुआ और दूसरे दिन बंसी के साथ शादी की बात करने गाँव पहुँचा,लेकिन लक्खा ने बंसी के सामने एक शर्त रखी,वो सबके सामने बोला....
"मैं धानी की शादी रमेश से तभी कर सकता हूँ जब बंसी ये लिखकर दे दे कि रमेश ताउम्र मेरे घर में घर जमाई बनकर रहेगा",
लक्खा की बातें सुनकर बंसी बोला....
"लक्खा!क्यों सालों पुरानी दुश्मनी बच्चों के ऊपर निकाल रहा है"
"बोल तुझे मंजूर है कि नहीं"लक्खा ने बंसी से पूछा...
तो रमेश बीच में बोल पड़ा....
"मुझे मंजूर नहीं है,मैं अपने बापू को अकेले नहीं छोड़ सकता",
और फिर रमेश अपने बाप बंसी के साथ वापस उमरिया गाँव लौट गया.....
ये कहते कहते साध्वी जी रुक गई तो कृष्णराय जी बोले....
"ये कैसा प्रेम था लक्खा का बेला के साथ,जो उसने उसे हमेशा के लिए दुश्मनी में बदल दिया",
"सही कहा आपने! किसी किसी का प्रेम ऐसा ही होता है",साध्वी जी बोलीं....
"मतलब! और किसी ने भी ऐसा कुछ किया था क्या"?,कृष्णरायजी ने पूछा...
"अच्छा! अब मैं चलती हूँ बहुत काम हैं मुझे और हाँ आपकी रिपोर्ट आ गई है,मैने कहा था ना कि आपको केवल मोच आई है",
और ऐसा कहकर साध्वीजी कृष्णराय जी के सवाल को टालकर चली गईं और अब कृष्णराय जी को शान्तिनिकेतन में रहते दो तीन दिन से ज्यादा हो चुके थे अब वें छड़ी के सहारे चल पा रहे थे,उनका पैर अब पहले से बेहतर था,वें बगीचे में टहल रहे थे तभी उन्हें रुकमनी बहनजी दिखाई दीं तो उन्होंने उनसे पूछा...
"रुकमनी बहनजी! दो तीन दिन हो गए साध्वी जी नहीं दिख रहीं हैं",
"हाँ! वें बाहर गई हैं",रुकमनी बहनजी बोलीं....
"लेकिन कहाँ गई हैं"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"वें किसी को कुछ बताकर नहीं जाती",रुकमनी बहनजी बोलीं...
तब कृष्णराय जी ने रुकमनी बहनजी से पूछा....
"अच्छा! ये बताइए! यहाँ कोई ऐसा है जो दस बीस बरस से शान्तिनिकेतन में रह रहा हो",
"जी! हैं ना! अपने डाक्टर बाबू,जिन्होंने आपके पैर का इलाज किया है,वें तो इसी गाँव के हैं,शहर में रहकर डाक्टरी की और फिर गाँववालों की सेवा के लिए शान्तिनिकेतन आ गए,अच्छा! अब मैं चलूँ बहुत काम है",
कृष्णराय जी ने उन्हें सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया और रुकमनी बहनजी वहाँ से चली गई और फिर कृष्णराय जी डाक्टर साहब के पास पहुँचे और उनसे बोलें....
"सुना है आप यही के रहने वाले हैं",
"जी! हाँ! और फिर डाक्टरी पढ़ने के बाद शहर के अस्पताल में मन नहीं लगा इसलिए वापस गाँव आ गया", डाक्टर साहब बोले....
"तो जब आप यहाँ इतने सालों से रहते हैं तो फिर जरूर मेरे दोस्त को जानते ही होगें,उसका नाम किशोर जोशी है",कृष्णराय जी बोले....
"देखिए! आप मुझसे उनके बारें में कुछ मत पूछिए",डाक्टर साहब बोलें....
"तो इसका मतलब है कि आप उसे जानते हैं लेकिन उसके बारें में कुछ कहना नहीं चाहते",कृष्णराय जी बोलें...
"यहाँ आपको उनके बारें में कोई कुछ नहीं बताएगा सिवाय साध्वी जी के",डाक्टर साहब बोलें...
"आखिर क्यों मेरी सारी खोज साध्वी जी के पास आकर ही क्यों अटक जाती है,इसमें इतना रहस्य क्यों हैं?,क्यों कुछ भी नहीं बताना चाहता किशोर के बारें में",कृष्णराय जी परेशान होकर बोले...
"ये आप साध्वी से ही जाकर पूछिए,वें कुछ देर में यहाँ पहुँचने वाली हैं उनका संदेशा आया था",डाक्टर साहब बोले...
"हाँ!आज मैं उनसे पूछकर ही रहूँगा "
और ऐसा कहकर कृष्णराय जी साध्वी जी के आने का इन्तजार करने लगे और जब साध्वी जी आई तो वें उनसे बोलें....
"अब मैं ठीक हूँ और यहाँ से जाना चाहता हूँ",
"ठीक है तो चले जाइए,आज ही अपना सामान बाँध लीजिए,मैं आपके जाने का बंदोबस्त करवाती हूँ, साध्वी जी बोलीं...
"ठीक है तो मैं अपने जाने की तैयारी करता हूँ",कृष्णराय जी बोले...
"लेकिन आप ये नहीं पूछेगें कि मैं कहाँ थी इतने दिनों से"?
"जी!नहीं! जो पूछना चाहता हूँ उसका जवाब तो आप देती नहीं हैं तो और सवाल पूछकर क्या करूँगा",कृष्णराय जी बोले...
"अरे! मैं धानी और रमेश की शादी की बात करने गई थी लक्खा से और वो मान गया है",साध्वी जी बोली...
"आप सबकी समस्या का समाधान करतीं हैं लेकिन आपने मेरी समस्या का समाधान नहीं किया",कृष्णराय जी बोलें....
"आइए...मेरे...साथ! मैं आपकी समस्या का भी समाधान करती हूँ",साध्वी जी बोलीं...
और फिर वें कृष्णराय जी को एक कमरें में ले गईं जहाँ किशोर जोशी की फोटो टँगी थी और उस पर फूलमाला चढ़ी थी,ये देखकर कृष्णराय जी के होश उड़ गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....