Musafir Jayega kaha? - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(२८)

"फिर उस रात जो हुआ मैं आपसे नहीं कह सकती कृष्ण बाबू",साध्वी जी बोलीं....
"क्या हुआ था उस रात,भगवान के लिए बताइएं,क्या तेजस्वी ने किशोर की हत्या कर दी",कृष्णराय जी ने परेशान होकर पूछा...
"उस रात वो हुआ जो नहीं होना चाहिए था,उस रात ओजस्वी की बसी बसाई दुनिया उजड़ गई,उसका भरोसा टूट गया",साध्वी बोली...
"मैं कुछ समझा नहीं साध्वी जी!,ऐसा क्या किया था तेजस्वी ने किशोर के साथ",कृष्णराय जी ने पूछा...
"उस रात तेजस्वी ने अपने खानदान की इज्जत को तार तार कर दिया ,वो अपना बदला लेने में ये भूल गई कि उसका अन्जाम क्या होगा",साध्वी जी बोलीं...
"जरा खुलकर बताऐगीं कि क्या हुआ था उस रात"?,कृष्णराय जी बोले...
"तो फिर सुनिए",ऐसा कहकर साध्वी जी ने कहानी आगें सुनानी शुरु की....
फिर उस रात तेजस्वी ने नौकरों और महाराज को हुक्म दिया कि.....
"आज ऐसा खाना बनाओ कि जैसे घर में दावत है,कई तरह की सब्जियाँ और मिठाईयाँ बनवाओ,आखिर पहली बार इस घर के दमाद हवेली में आएं हैं उनकी खातिर में किसी चींज की कमी नहीं होनी चाहिए"
और फिर नौकरों ने तेजस्वी के कहें अनुसार तरह तरह ब्यंजन बनाएँ और फिर रात को शाही तरीके से खाने की टेबल सजाकर किशोर के सामने खाना परोसा गया और खाना नौकरों ने नहीं खुद तेजस्वी ने किशोर की प्लेट में परोसा था,खाना वाकई बहुत लजीज था इसलिए किशोर ने खाया भी खूब और यहीं पर किशोर से गलती हो गई क्योकिं तेजस्वी ने किशोर के लिए जो खाना परोसा था उसमें अफीम की गोलियाँ थीं,जो कि ठाकुर साहब कभी कभी इस्तेमाल किया करते थे,अफीम की गोलियों को तेजस्वी ने पानी के जग में भी मिलाया था ताकि क्योंकि भी कसर रह जाएं....
और फिर खाना खाते खाते ही किशोर की आँखें झपने लगी उसे नशा सा चढ़ने लगा और वो तेजस्वी से बोला....
"तेजस्वी! ना जाने मुझे इतनी नींद क्यों आ रही है,अब मैं सोना चाहूँगा,मुझे किस कमरे में सोना है ये बता दो",
तब तेजस्वी बोली....
"जी! किशोर बाबू! लाइए मैं आपके हाथ धुलवा देती हूँ और आप मेरे ही कमरें में सो जाइए क्योंकि मेरा कमरा डाइनिंग हाँल के बिल्कुल नजदीक है और मेहमानों वाला कमरा डाइनिंग हाँल से काफी दूर है,वहाँ जाने के लिए आपको सीढ़ियों का इस्तेमाल करना पड़ेगा और नींद में कहीं आप लड़खड़ा गिर गए तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी,इसलिए आज रात आप मेरे कमरें में ही सो जाइए और मैं दीदी के कमरें में सोने के लिए चली जाऊँगीं",
और फिर तेजस्वी ने किशोर के हाथ धुलवाएँ और उसने नौकरों से टेबल पर से खाना उठाने और जूठी प्लाटें उठाने को कहा,फिर जब डाइनिंग हाँल में नौकर मौजूद थे तो वो जानबूझकर उन सभी के सामने किशोर को अपने कमरें में ले गई और भीतर से दरवाज़ा बंद कर लिया ,ये देखकर नौकर और नौकरानी स्तब्ध रह गए लेकिन बोलें कुछ नहीं....
फिर उन दोनों के कमरें में जाने के बाद वें सभी नौकर जब नीचे जाकर रसोई के पास खाना खाने बैठे तो आपस में सभी के बीच खुसर पुसर होने लगी,एक नौकरानी बोली....
"घोर कलजुग आ गया है,वहाँ बड़ी बिटिया अपनी बीमार माँ को ऋषिकेश देखने गईं हैं और यहाँ जीजा साली गुलछर्रे उड़ा रहे हैं",
"हाँ! सही कहती हो बहन! बड़ी बिटिया तो एकदम देवी है...देवी! और उनके पति तो ना जाने कहाँ के रसिया निकले,बीवी जरा दिनों के लिए दूर क्या गई खुद को सम्भाल ही ना पाए और फँस गए साली के प्रेमजाल में", दूसरी नौकरानी बोली...
"अरे! चुप रहो तुम दोनों,किसी ने जाकर वहाँ किसी से कह दिया तो तुम्हारे साथ साथ हम सब नौकरों की भी शामत आ जाएगी",पहला नौकर बोला...
"गलत थोड़े ही कह रहे हैं हम दोनों,आँखों देखी बता रहे हैं",पहली नौकरानी बोली....
"अरे! तुम दोनों खाना खाकर चुपचाप सोने चली जाओं,ये फालतू की बकवास बंद करो,नहीं तो कहीं ये बात लक्खा तक पहुँच गई तो वो छोटी बिटिया और दमाद जी दोनों की ही गरदन कुलहाड़ी से काट देगा,वो ठाकुर साहब का बहुत वफादार है",दूसरा नौकर बोला....
और फिर सभी नौकर ऐसी बातें करते हुए अपनी अपनी जगह जाकर सो गए और उधर किशोर भी गहरी नींद में सो गया फिर तेजस्वी भी उसी कमरें में मौजूद सोफे पर सो गई फिर जब भोर हुई तो नौकरों के जागने से पहले तेजस्वी सोफे से उठी और उसने किशोर के कपड़े उतारे और फिर कमरें का दरवाजा खोलकर किशोर के बिस्तर पर ही उसके बिलकुल नजदीक जा लेटी,जिससे कि कोई नौकर या नौकरानी उस कमरें में पहुँचे तो उन दोनों को इस हालत में देखकर नौकरों का शक़ यकीन में बदल जाए कि रात में जरूर उन दोनों के बीच कुछ हुआ है और फिर किशोर की बदनामी हो जाए....
और जो तेजस्वी चाहती थी हुआ भी वही,जब सुबह सुबह नौकरानी तेजस्वी के कमरें में चाय लेकर आई क्योंकि रोज वही चाय लेकर आया करती थीं,दरवाजा खुला था तो उसने तेजस्वी को पुकारने की भी जरूरत नहीं समझी और चाय की ट्रे लेकर सीधे तेजस्वी के कमरें में घुस गई और वहाँ का नजारा देखकर चुपचाप दबे पाँव वहाँ से चली आई और उसने बाकी नौकरों से भी वो सब बता दिया....
किशोर पर तो अफीम की गोलियों का असर था तो वो काफी देर बाद उठा और जब उसने खुद को तेजस्वी के बिस्तर में तेजस्वी के साथ निर्वस्त्र पाया तो शरम से पानी पानी हो उठा,तब तेजस्वी किशोर से बेफिक्र होकर बोली...
"घबराइए नहीं किशोर बाबू! हवेलियों में ये सब होना तो आम बात है,इन सबके लिए आप खुद को कुसूरवार मत ठहराइए,इसमें गलती मेरी भी है,मुझे आपके इतने करीब नहीं जाना चाहिए था,क्या करूँ मैं खुद को सम्भाल ही नहीं पाई,आपके बदन की खुशबू ने मुझे इतना बैचैन कर दिया कि मैं खुदबखुद आपके करीब चली गई",
"लेकिन ऐसा नहीं हो सकता,मैं भला ऐसा कैसा कर सकता हूँ,अगर हमारे बीच कुछ हुआ था,तो मुझे याद क्यों नहीं है,किशोर बोला...
"आप नींद में थे और मैं मदहोश थी,सो सबकुछ हो गया हमारे बीच,लेकिन जो होना था वो तो हो चुका ,अब आप अब सोचिए कि दीदी से क्या कहेगें,",तेजस्वी बोली...
"मैं अब ओजस्वी से कैसें नजरें मिला पाऊँगा,मैने उसे धोखा दिया है,मैं उसे जाकर सब बता दूँगा,वो मुझे जरूर माँफ कर देगी",किशोर बोला...
"किशोर बाबू! अब आप इस हवेली से कहीं नहीं जा पाऐगें,मैंने सभी जगह के दरवाजे बंद कर दिए हैं,अब आप केवल पछतावें की आग में जलेगें और आपको तिल तिल मरता देख मेरे कलेजे को ठण्डक मिलेगी", तेजस्वी बोली...
"तो तुमने ये सब मुझे फँसाने के लिए किया",किशोर ने पूछा...
"हाँ! मुझे आपसे और दीदी से अपने बाबूजी की मौत का बदला लेना था,अब जब दीदी को ये पता चलेगा कि आपने मेरी जिन्दगी तबाह कर दी है तो वो भी इस आग में जलेगी",तेजस्वी बोली...
"मुझे जाने दो तेजस्वी मैं खुद उसे बताऊँगा कि मुझसे क्या भूल हो गई है",किशोर बोला...
"यही तो मैं नहीं चाहती कि आप उन्हें कुछ बताएँ और मैं चाहती हूँ कि ये बात उन्हें दूसरे लोगों से पता चले और अब तो ये खबर सब जगह आग की तरह फैल भी गई होगी कि आपके और मेरे बीच कैसें सम्बन्ध हैं",तेजस्वी बोली....
"ये तुम क्या कह रही हो तेजस्वी ?,ऐसा मत करो",किशोर बोला...
"मैं ऐसा ही करूँगी और इस कमरें से मैं आपको और कहीं नहीं जाने दूँगी",
ये कहते कहते तेजस्वी ने किशोर को चाय का प्याला दिया और चाय का प्याला पीते ही किशोर फिर से सो गया क्योंकि उसमें में भी तेजस्वी ने अफीम की गोली डाली थी,ये बात किशोर को पता नहीं चली और अब जब भी वो कुछ भी खाता पीता तो तेजस्वी उसमें अफीम की गोलियाँ डाल देती और उसे अपने कमरें से कहीं भी ना जाने देती....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....