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वॉक्सएम्फेनजर - जनता का रिसीवर

वॉक्सएम्फेनजर,
जनता का रिसीवर.. ।।

रेडियो का अविष्कार तो 1874 में हो गया था, मारकोनी को 1909 में नोबेल प्राइज भी मिल गया।

मगर यह महंगी तकनीक थी, गुप्त थी। पहले विश्वयुद्ध तक रेडियो, फौजी संचार का माध्यम था। पर 1920 के बाद इसका उपयोग नागरिक सम्प्रेषण के लिए होने लगा।

तो रेडियो स्टेशन बनने लगे।

रेडियो अमीरों की शान हुआ। वैसे ही जैसे रामायण युग मे, हमारे मोहल्लों में टीवी वाले घर की शान, ऊंची होती।
★★
तो 1933 में हिटलर जी सत्ता में आ गए, औऱ इसी साल लांच हुआ वॉक्सएम्फेनजर।

हिटलर जी बड़े साइंटिफिक और इनोवेटिव जीव थे। ई मेल और पोलॉरॉयड कैमरे वाली गप तो नही मारी।

मगर किसी उद्योगपति के पर्सनल प्लेन से जर्मनी नापकर, एक ही दिन में चार-चार चुनावी रैली करने वाले, वे विश्व के प्रथम जन-नेता अवश्य थे।

हिटलर साहब की वाक कला अद्भुत थी। विकट सम्मोहक ..!! बस यूं समझिये की मोजार्ट की सिम्फनी।

हिटलर के भाषण धीमी, गम्भीर, सॉफ्ट आवाज के साथ शुरू होते। समां बंधता.. मुद्रा, भाव भंगिमा कठोर होती जाती, आवाज तीखी ऊंची, और ऊंची, और ऊंची होती जाती। कभी गिरती, नर्म होती, फिर उठती।

शब्द और भाव, गहरे, मजबूत...

भाषण आगे बढ़ता, और फिर चीखता हुआ, छाती पीटता, मुट्ठियाँ उछालता हिटलर, सुनने वालों के दिलो को अपनी आवाज के साथ गर्व, हर्ष, उम्मीद, जीत, श्रेष्ठता, ताकत और नफरत की ओर ले जाता।

और अंत.. धीमी, नरम, शांति की मांग करती एक धमकी के साथ खत्म करता। लोग मुंह बाए सुनते ...

खत्म हो गया भई।
बजाओ तालियां ..
★★★
नाजी आइडियोलॉजी, हिटलर के शब्द हर घर तक पहुंचने जरूरी थे।

बाइबिल की जगह, मीन केम्फ हर घर, लाइब्रेरी, पब्लिक प्लेस पर रखा जाना अनिवार्य था। मगर सबसे शानदार औजार तो वॉक्सएम्फेनजर था।

याने जनता का रेडियो,
जनता का रिसीवर ..

इस पर जनता नाजिस्म को रिसीव करती। सुबह, शाम, दिन रात। इसकी खासियत थी, कि सस्ता था, अफोर्डेबल था, गरीब, कामगार, मजदूर, किसान.. एक सस्ता रेडियो पाकर आल्हादित था।

ठीक वैसे, जैसे आप सस्ता मोबाइल और सस्ता डेटा पाकर पगला गए हैं।
★★★★
तो घर घर मे आया रेडियो, जो ज्यादातर वक्त चलता रहता।

काम करती गृहणी, खेत काटता मजदूर, कारखाने के फ्लोर पर, होटल के कमरे और रिसेप्शन पर। गाने आते, नाटक आते, खबरे आती, सेलेब्रिटीज से उद्घोषक की बाते होती। मनोरंजन और जानकारी का जबरजस्त खजाना.. ।

लेकिन कैसा मनोरंजन, कैसी जानकारी.. ??
वही जो गोयबल्स ने तय किया।

सूचना एवं प्रसारण मंत्री, जिसे प्रोपगेंडा मिनिस्ट्री कहा जाता, तय करती की जर्मन क्या सुनेंगे। जैसे-

● इतिहास के कार्यक्रम होते, बताया जाता कि किस तरह, ज्यूस ने हमारे महान जर्मन देश को धोखा दिया।

● विज्ञान के कार्य्रकम होते, बताते की कैसे की जर्मनी दुनिया में सबसे एडवांस हो गया है।

● धर्म के कार्यक्रम होते, बताया जाता कि किस तरह कम्युनिस्ट ( विपक्षी दल) धर्म के खिलाफ हैं।

● विदेशी मामलों पर जानकारी दी जाती। बताते कि किस तरह चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड और दूसरे इलाकों में जर्मन जाति पर भयंकर अत्याचार हो रहे हैं।

इसके अलावे हिटलर के भाषण, उसकी वीरता, सँघर्ष और महानता के किस्से तो हर जगह थे ही।
★★
रेडियो ने चार साल में जर्मन्स को एक ऐसी मनः स्थिति में ला दिया, जिसमे उन्हें लगने लगा कि वे विश्व मे श्रेष्ठतम जाति हैं, जो राज करने को बनी है।

मगर आज तक उस पर सारी दुनिया ने अत्याचार किया है। उसे देश के भीतर यहूदियों ने धोखा दिया है। बस जर्मन जाग जाए, तो सारी दुनिया से पर भारी पड़ सकते हैं।
★★★
युध्द के दौरान जर्मन जनता को अंत तक अपनी जीत का यकीन था। इसलिए, कि रेडियो बता रहा था।

राजधानी में, अचानक रूसी फौज का घुसना, बर्लिन वासियों के लिए शॉकिंग था। रेडियो तो बता रहा था कि हिटलर, अपने चमत्कार से बाजी पलट रहा है।
★★
अपनी श्रेष्ठता और हिटलर पर भरोसे की अफीम में, कभी हार और उसके परिणामों पर जर्मन्स ने विचार ही नही किया था। देश खत्म हो चुका है, उन्हें पता नही था।

तो जब सोवियत फौजें उसके बंकर से कुछ किलोमीटर दूर थी। हिटलर जी ने गोयबल्स को अपना वारिस घोषित किया। रेडियो राजा ने, रेडीयो मन्त्री को कुर्सी देकर, रेडियो पर अपनी आस्था जताई, और आत्महत्या कर ली।
★★
नए चांसलर, श्री गोयबल्स जी के रेडियो स्टेशन नष्ट हो चुके थे। जनता के रिसीवर पर, मन की बातें सुनने वाला देश, खंडहर हो चुका था।

हिटलर की कुर्सी पर बीस घण्टे बैठने के बाद, गोयबल्स ने अपने 6 छोटे बच्चो को जहर देकर मारा। फिर बीवी को शूट किया,

फिर खुद को।
★★
जनता का रिसीवर। मौत और बर्बादी का रिसीवर । चेक कीजिये, एक पीस आपके घर मे तो नही।

अरे हां। आजकल उसे टीवी कहते हैं।