Wo Maya he - 71 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 71



(71)

केदारनाथ अपने भाई के चेहरे को देख रहे थे। उन्हें लग रहा था कि इतने कम समय में ही जैसे उनके भाई की उम्र कई साल बढ़ गई है। कुछ देर पहले उन्होंने कहा भी था कि वह टूट गए हैं। अखबार में जो छपा था वह किसी बहुत ही गंभीर बात की तरफ इशारा कर रहा था। वह जानना चाहते थे पर बद्रीनाथ की हालत देखकर पूछ नहीं पा रहे थे। उन्हें लगा कि सही बात जाने बिना वह कोई मदद भी नहीं कर पाएंगे। उन्होंने हिम्मत करके कहा,
"भइया इसमें लिखा है कि विशाल का कौशल से संबंध था। सवाल उठाया गया है कि क्या कौशल ने ही पुष्कर की हत्या की थी ? साथ ही सवाल है कि क्या हत्या विशाल के...."
कहते हुए केदारनाथ रुक गए। बद्रीनाथ ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। केदारनाथ उन्हें चुप कराने लगे। बद्रीनाथ ने खुद को संभाल कर कहा,
"केदार इस खबर के बारे में घर में किसी को पता ना चले। अभी हम तुम्हें भी कुछ नहीं बता सकते हैं। इतना समझ लो कि हम बहुत मुसीबत में हैं।"
"भइया हम तो अपनी तरफ से किसी को कुछ नहीं बताएंगे। ना ही आपसे और कुछ पूछेंगे। पर बात अखबार तक पहुँच गई है। फिर यह बात तो सबको पता है कि पुलिस विशाल को लेकर गई है। अब लोगों के मन में दस तरह की बातें आएंगी। लोगों को कब तक चुप रख पाएंगे।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"सही कह रहे हो तुम केदार। सुबह वकील के पास जाने के लिए निकल रहे थे तो चौरासिया मिल गया। किया तो उसने सिर्फ नमस्ते ही था पर हमें उसकी नज़रों में कई सवाल दिखाई पड़ रहे थे। धीरे धीरे नाते रिश्तेदारों में भी यह बात पहुँच जाएगी।"
उन्होंने अखबार का टुकड़ा वापस करते हुए कहा,
"इतना समझ लो केदार कि विशाल से गलती हुई है, वह भी माफी के लायक नहीं। बाकी तुम समझदार हो। अपने भाई की स्थिति समझोगे।"
केदारनाथ ने अखबार का टुकड़ा मोड़कर वापस जेब में रख लिया। उन्होंने उठते हुए कहा,
"आप भी समझ लीजिए भइया कि हम हर हाल में आपके साथ हैं।"
यह कहकर उन्होंने बद्रीनाथ के पैर छुए और बाहर निकल गए। आंगन में आए तो किशोरी चारपाई पर बैठी चाय पी रही थीं। उमा और नीलम उनके पास बैठी थीं। वह उन लोगों के पास गए। किशोरी और उमा के पैर छूकर निकलने लगे तो किशोरी ने कहा,
"कुछ देर हमारे पास बैठो केदार।"
केदारनाथ रुक गए। नीलम ने उन्हें अपना मोढ़ा दे दिया। किशोरी ने उसे चाय का खाली गिलास पकड़ा दिया। वह वहाँ से चली गई। केदारनाथ मोढ़े पर बैठ गए तो उमा ने कहा,
"कल तुम और तुम्हारे भइया खाना लेकर विशाल के पास गए थे। तुम्हारे भइया से तो बात हो नहीं पाई। कैसा है विशाल ?"
केदारनाथ ने अपनी बहन और भाभी की तरफ देखा। उसके बाद बोले,
"ठीक है। खाना खा लिया था उसने।"
किशोरी ने कहा,
"केदार सही सही बताओ। कल दोपहर से ही बद्री बहुत परेशान लग रहा है। कोई खास बात है।"
केदारनाथ ने अपने भाई से कहा था कि वह किसी को कुछ नहीं बताएंगे। उन्होंने कहा,
"जिज्जी हम झूठ क्यों बोलेंगे। भइया परेशान होंगे ही। बेटा पुलिस थाने में जो है।"
उमा ने कहा,
"वही जानना चाहते हैं हम कि पुलिस उसे लेकर क्यों गई है ? ऐसा क्या किया है विशाल ने ?"
"भाभी पुलिस को कुछ पूछताछ करनी है।"
"ऐसी कौन सी पूछताछ है केदार। कल सुबह ले गए थे। अभी तक पूरी नहीं हो पाई। तुम्हारे भइया वकील के पास दौड़ रहे हैं। कुछ है तभी तो इतना सब हो रहा है। हम मानते हैं कि यह सब माया के श्राप के कारण है। पर पुलिस ने कोई इल्ज़ाम लगाकर ही विशाल को रोका होगा।"
केदारनाथ अपने आप को बड़ी मुश्किल में पा रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दें। तभी पीछे से बद्रीनाथ की आवाज़ सुनाई पड़ी,
"उसे क्यों परेशान कर रही हो ? घर में सुनंदा और बच्चियां अकेली हैं। उसे जाने दो। उसे भी अपनी गृहस्ती देखनी है।"
बद्रीनाथ की बात सुनकर किशोरी ने कहा,
"हम कब उसे बांध कर रख रहे हैं। कुछ सवाल पूछे हैं। जवाब दे दे और चला जाए।"
"जिज्जी जवाब हम दे देंगे। उसे जाने दो।"
उन्होंने केदारनाथ से कहा,
"तुम जाओ....अपना घर देखो।"
केदारनाथ उठकर चले गए। बद्रीनाथ मोढ़े पर बैठ गए। बैठक में जब उनकी केदारनाथ से बात हुई थी तब केदारनाथ ने कहा था कि विशाल की गिरफ्तारी के बारे में सब जानते हैं और बात अखबार तक भी पहुँच गई है। अब किसी से क्या छिपेगा। इस बात के बारे में सोचते हुए बद्रीनाथ को लगा कि उमा और किशोरी बाहर से कुछ जानें इससे अच्छा है कि वह खुद ही उन्हें बता दें। यही सोचकर वह यहाँ आए थे। उन्होंने उमा और किशोरी को केदारनाथ से इसी विषय में पूछताछ करते हुए पाया। केदारनाथ को परेशान देखकर वह सामने आए। उनके बैठने के बाद किशोरी ने कहा,
"चलो अब तुम ही बताओ कि बात क्या है ? आखिर पुलिस विशाल को क्यों ले गई है ? अगर सिर्फ पूछताछ करनी थी तो इतने समय तक उसे अपने पास क्यों रखा ?"
बद्रीनाथ कुछ बोलते उससे पहले उमा ने कहा,
"आप वकील के पास क्यों भाग रहे हैं ? विशाल ने कोई अपराध तो किया नहीं है कि वकील की ज़रूरत पड़े।"
बद्रीनाथ ने इधर उधर देखा। उन्हें नीलम रसोई के पास आड़ में खड़ी दिखाई पड़ी। वह यहाँ जो बातें हो रही थीं उन्हें सुन रही थी। बद्रीनाथ ने आवाज़ देकर उसे बुलाया। वह बोले,
"तुम भी यहाँ रहो। जो सच है जान लो।"
उन्होंने उमा और किशोरी की तरफ देखा उसके बाद बोले,
"पुलिस ने कौशल नाम के आदमी को गिरफ्तार किया है। वह पुष्कर की हत्या वाले दिन उसी ढाबे पर था। दिशा ने पुलिस को बताया था कि वह उसे और पुष्कर को घूर रहा था। कौशल के साथ विशाल की दोस्ती थी। विशाल ने उसे पैसे दिए थे।"
वहाँ मौजूद तीनों औरतें आश्चर्य से बद्रीनाथ को देख रही थीं। उमा ने पूछा,
"विशाल ने उसे पैसे क्यों दिए थे ?"
बद्रीनाथ कुछ पल चुप रहे फिर हिम्मत करके बोले,
"जो हम बताएंगे उसे दिल मजबूत करके सुनना।"
इस बात ने वातावरण में तनाव बढ़ा दिया। बद्रीनाथ ने कहा,
"विशाल ने कौशल को पुष्कर और दिशा के पीछे भेजा था। वह चाहता था कि कौशल मौका पाकर पुष्कर को....."
बद्रीनाथ अपनी बात पूरी नहीं कर पाए और फफक फफक कर रोने लगे। बात पूरी नहीं हुई थी पर सबको समझ आ गई थी। आंगन में सन्नाटा था। सिर्फ बद्रीनाथ के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। किशोरी और नीलम हैरान थीं। उमा उसी तरह पत्थर बनी हुई थीं जैसे पुष्कर की मौत की खबर सुनकर हो गई थीं। किशोरी ने रोते हुए कहा,
"ऐसा कैसे हो सकता है ? विशाल तो छुटपन से पुष्कर को कितना चाहता था। कोई गलतफहमी हो गई है बद्री। तुम विशाल से बात करो। वह सही बताएगा।"
बद्रीनाथ ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा,
"यह बात खुद विशाल ने कबूल की है। उसने कौशल को पुष्कर को मारने का काम दिया था। लेकिन कौशल कुछ करता उससे पहले ही किसी ने ढाबे पर पुष्कर को मार दिया। पर अब विशाल के ऊपर हत्या की साज़िश रचने का आरोप है। पुलिस उसके खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज़ करेगी। उसकी जमानत और मुकदमे के लिए वकील की ज़रूरत है।"
एकबार फिर आंगन में सन्नाटा छा गया। उमा अभी भी वैसे ही स्तब्ध बैठी थीं। बद्रीनाथ उन्हें इस तरह शांत देखकर डर रहे थे। उन्होंने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा,
"उमा......"
उमा ने उनकी तरफ देखा। उसके बाद किशोरी पर निगाह डाली। किशोरी भी उनकी यह हालत देखकर घबराई हुई थीं। उमा कुछ देर तक उन दोनों को बारी बारी से देखती रहीं।‌ उसके बाद बोलीं,
"यही आंगन था।‌ वहाँ उस जगह वह खड़ी थी।"
उन्होंने आंगन के एक हिस्से की तरफ इशारा करते हुए कहा,
"उसकी आँखों से चिंगारियां निकल रही थीं। उसने श्राप दिया था। आज देखो उसका क्या असर हुआ है। जो विशाल अपने छोटे भाई पर जान छिड़कता था उसने उसे मारने के लिए पैसे दिए। माया ने सिर्फ खुशियां ही नहीं छीनी। उसने तो भाई से भाई का प्यार भी छीन लिया। आप लोगों की ज़िद यहाँ ले आई। तब हमारी साधी गई चुप्पी आज बर्छी की तरह दिल के टुकड़े कर रही है। अब कोई उम्मीद नहीं है। सब नाश हो जाएगा।"
यह कहकर वह रोने लगीं। बद्रीनाथ और किशोरी अपना सर झुकाए थे। नीलम समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।

विशाल और कौशल की गिरफ्तारी की खबर महत्वपूर्ण थी। अदीबा ने जब यह खबर अखलाक को सुनाई थी तो वह खुशी से उछल पड़ा था।‌ उसे मालूम था कि यह खबर एकबार फिर पाठकों का रुझान अखबार की तरफ करने में मददगार साबित होगी। अखलाक चाहता था कि यह रुझान बना रहे। इसलिए उसने अदीबा से रिपोर्ट में यह जोड़ने को कहा था कि वह इस‌ केस से जुड़े कुछ नए पहलू लेकर जल्दी ही उनके सामने आएगी।
अखलाक ने जैसा सोचा था वही हुआ था। खबर छपने के बाद अखबार की बिक्री फिर बढ़ गई थी। अदीबा ने दिशा से बात की थी। दिशा उससे मिलने को तैयार हो गई थी।‌ उसने कहा था कि वह अपने घर में अदीबा से मिल सकती है। अदीबा ने दिल्ली जाने के लिए रिजर्वेशन करा लिया था।