Wo Maya he - 74 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 74



(74)

बिस्तर पर लेटी उमा छत को ताक रही थीं। उनकी दोनों आँखों के पोर पर आंसू टिके हुए थे। उनके मुंह से एक आह निकली। दोनों आंसू लुढ़क गए। इसबार दोनों तरफ से आंसुओं की धारा बहने लगी। ऊपर से शांत उमा के अंदर एक तूफान मचा था। यह तूफान एक पल के लिए भी उन्हें चैन नहीं लेने दे रहा था। हर समय उन्हें ऐसा लगता था जैसे कि कोई उनके दिल को मुठ्ठी में भींचकर निचोड़े दे रहा है।
वह जबरन अपना मन काम में लगाती थीं। पूरी कोशिश करती थीं कि कुछ पलों के लिए ही सही सबकुछ भूल जाएं। पर एक पल को भी दिमाग वह सब भूल नहीं पा रहा था। यह खयाल कि उनकी कोख से पैदा हुए एक बेटे ने उनके दूसरे बेटे की जान लेने की कोशिश की थी उनके दिमाग को मथानी की तरह मथ देता था। वह सोचती थीं कि उन्होंने तो अपनी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। हमेशा अपनी खुशी से ऊपर परिवार का सुख रखा। फिर विशाल ने अपने अंदर के गुस्से को शांत करने के लिए यह रास्ता क्यों चुना ? अगर उसे कोई शिकायत थी तो बात कर सकता था। लेकिन उसने तो अपने आप को सबसे दूर कर लिया था। किसी से कुछ नहीं कहता था। लेकिन अपने भीतर गुस्से का ऐसा लावा पाल कर रखा था जो वक्त के साथ अपने भाई के लिए नफरत में बदल गया था।
कल रात बद्रीनाथ उन्हें समझा रहे थे कि विशाल ने जो किया है वह माफ किए जाने लायक नहीं है। लेकिन जो हुआ उसके लिए सिर्फ उसे ही दोष नहीं दिया जा सकता है। विशाल के साथ साथ उनका और उमा का दोष भी है। उन लोगों को विशाल को उसके हाल पर नहीं छोड़ना चाहिए था। अगर समय समय पर वह लोग उससे बात करते रहते। उसके दिल का हाल जानने का प्रयास करते तो स्थिति इतनी भयानक ना होती। उमा को उनकी बात एक हद तक ठीक लगी थी। लेकिन उनका मानना था कि विशाल की इस मानसिक दशा का कारण सिर्फ इतना ही नहीं है कि उन लोगों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया। उसके मन का गुस्सा तभी से था जब माया और उसकी शादी नहीं हो पाई थी। शुरू में उन्होंने उसे महसूस भी किया था। कुसुम से जब विशाल की शादी हुई थी तब वह बहुत खुश नहीं था। उन्होंने महसूस किया था कि वह बस घरवालों का मन रखने के लिए शादी कर रहा है। लेकिन शादी के कुछ समय बाद वह खुश रहने लगा। काम में मन लगाने लगा। उन्होंने महसूस किया था कि वह कुसुम को प्यार करता है। मोहित के आने के बाद तो वह और अधिक खुश रहने लगा था। उन्हें तसल्ली हो गई थी कि अब सब ठीक है। पर उनकी खुशी अधिक नहीं टिक पाई। कुसुम और मोहित अचानक ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए। विशाल अपने दुख में डूब गया।
उमा सोचती थीं कि उनकी चुप्पी ही उनका सबसे बड़ा दोष थी। अगर उन्होंने माया के समय चुप्पी ना साधी होती तो इस घर को श्राप ना मिलता। उन्होंने विशाल का दुख समझते हुए भी कभी उससे बात नहीं की। यह चुप्पी विशाल के गुस्से का कारण बनी। पुष्कर ने जब दिशा से शादी की बात की तो सारी अपत्तियों के बाद भी सब तैयार हो गए। वह भी यह सोचकर तैयार हो गई थीं कि किसी तरह घर में खुशियां आएं। तब विशाल को देखकर उनके मन में आया था कि उसे सबका इस तरह मान जाना अच्छा नहीं लगा है।‌ उन्होंने सोचा था कि विशाल से बात करें। लेकिन फिर चुप्पी साध ली। विशाल का गुस्सा नफरत में बदल गया और उसने इतना भयानक कदम उठा लिया। उमा सोच रही थीं कि तब वह बोल सकती थीं पर हर मौके पर चुप रहीं। आज हालात यह हैं कि बोलने को कुछ रहा ही नहीं है।

पूजाघर में किशोरी चटाई बिछाकर लेटी थीं। आजकल वह अपने कमरे में कम और पूजाघर में अधिक रहती थीं। जो कुछ हो रहा था वह उनके लिए भी बहुत कष्टकारी था। उन्होंने अब तक का अपना जीवन बद्रीनाथ की ग्रहस्ती में ही बिताया था। पुष्कर और विशाल उनकी गोद में खेलकर बड़े हुए थे।‌ आज उसी घर में श्मशान जैसी शांती थी। यह शांती उनसे सही नहीं जाती थी।‌ वह भगवान से शिकायत करती थीं कि उनके नसीब में अपनी गृहस्ती का सुख तो लिखा नहीं था। अपने भाई के परिवार को फलता फूलता देखकर खुश होना चाहती थीं तो वह भी नहीं होने दिया।‌
विशाल ने जो कुछ किया था उसके बारे में जानकर उन्हें बहुत धक्का लगा था। वह सोचती थीं कि जो कुछ हो रहा है वह माया के श्राप के कारण हो रहा है। उमा ने दो बार उन्हें माया के श्राप का ज़िम्मेदार ठहराया था। उन्हें इस बात का दुख लगा था। मन ही मन वह खुद को माया के श्राप के लिए दोषी मानने लगी थीं। पर आज जब वही बात सुनंदा के मुंह से सुनी तो उन्हें बहुत बुरा लगा था। वह यह सोचकर गई थीं कि कुछ देर सुनंदा और नीलम के साथ बैठकर मन हल्का कर लेंगी। जब वह दरवाज़े पर पहुँचीं तो उन्हें सुनंदा की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह कह रही थी कि माया के श्राप की जड़ वह हैं। उन्होंने बद्रीनाथ को भड़काया। जिसके कारण माया और विशाल की शादी नहीं हो पाई। माया ने इस घर को श्राप दे दिया। कोई और समय होता तो वह यह बात कहने के लिए सुनंदा को बहुत खरी खोटी सुनातीं। पर आज चुपचाप वापस आकर चटाई पर लेट गई थीं।
चटाई पर लेटे हुए वह सोच रही थीं कि क्या माया और विशाल की शादी ना हो पाने की ज़िम्मेदारी सचमुच उन पर ही थी। सिर्फ उनके कहने पर ही बद्रीनाथ ने माया की शादी विशाल से नहीं होने दी। वह तो दिशा और पुष्कर की शादी भी नहीं होने देना चाहती थीं। माया से अधिक उन्हें दिशा के इस घर की बहू बनने से ऐतराज़ था। उन्होंने अपना ऐतराज़ दर्ज़ भी कराया था। पर उमा और बद्रीनाथ पुष्कर और दिशा की शादी करने के लिए पूरी तरह तैयार थे। हारकर उन्होंने कह दिया कि जैसा ठीक लगे कर लो। यह जानते हुए भी कि वह पूरी तरह से खुश नहीं हैं पुष्कर और दिशा की शादी हो गई।
माया और विशाल की शादी ना हो पाने का कारण सिर्फ उनका ऐतराज़ नहीं था। बल्की खुद बद्रीनाथ ऐसा नहीं चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि वह विशाल की शादी किसी बड़े घर में करेंगे। जब उन्हें माया और विशाल के प्रेम के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे सर्वेश कुमार और मनरमा की साज़िश करार दिया। उन पर इल्ज़ाम लगाया कि उन लोगों ने अपनी बेटी को विशाल के पीछे लगाया है। यही नहीं उन्होंने माया के चरित्र पर भी सवाल उठाए थे। माना कि तब उन्होंने बद्रीनाथ को रोका नहीं था। लेकिन उमा ने भी तो कुछ कहा नहीं था। अब सारा दोष उन पर आ रहा है।
किशोरी यह सब सोचकर दुखी हो रही थीं तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। वह समझ गईं कि बद्रीनाथ आए होंगे। उन्होंने सोचा कि नीलम और सुनंदा बातें कर रही हैं। उनमें से कोई दरवाज़ा खोल देगा। वह चुपचाप लेटी रहीं। एकबार फिर दरवाज़े पर दस्तक हुई। बद्रीनाथ ने पुकार कर कहा कि दरवाज़ा खोलो। किशोरी कान लगाए थीं कि कोई दरवाज़ा खोलेगा। लेकिन दरवाज़ा खोले जाने की आवाज़ नहीं आई। इस बार बद्रीनाथ ने ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाते हुए आवाज़ लगाई। किशोरी बड़बड़ाईं,
"हमारी बुराई कर रही होंगी। इतनी खो गई हैं कि दीन दुनिया की खबर नहीं है। उमा तो आजकल वैसे ही अपने में खोई रहती है।"
इस बार बद्रीनाथ ने और ज़ोर से आवाज़ लगाई,
"अरे कोई दरवाज़ा खोलो....."
किशोरी बड़बड़ाती हुई उठीं। जाकर दरवाज़ा खोला। किशोरी को देखकर बद्रीनाथ ने कहा,
"जिज्जी आपने दरवाज़ा खोला....."
"क्या करते.....नीलम और सुनंदा बातों में लगी हैं। उन्हें कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है। उमा का हाल तो तुम्हें पता है।"
बद्रीनाथ अंदर आ गए। किशोरी ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उन्होंने बद्रीनाथ से पूछा,
"वकील ने क्यों बुलाया था ?"
"आगे क्या करना है इस बारे में बातचीत करनी थी।"
"वकील तो अपना काम करेगा ही। अब तुम भी आगे सोचो क्या करना है। बाबा कालूराम ने कहा है ना कि वह माया और उसके श्राप से मुक्ति दिला सकते हैं।"
"हाँ जिज्जी उन्होंने कहा तो है। पर अब आगे जैसा वह आदेश देंगे वैसा ही करेंगे ना। अभी तक तो उन्होंने कुछ कहा नहीं है।"
"तो तुम बात कर लो। वह मामला सबसे ज़रूरी है। माया का विघ्न हट गया तो समझो सब ठीक हो जाएगा।"
बद्रीनाथ यह कहकर कमरे में चले गए कि बात करते हैं। किशोरी उस कमरे की तरफ बढ़ गईं जहाँ नीलम और सुनंदा बैठी थीं। वह सोचकर गई थीं कि दोनों को डांट लगाएंगी। जब वह कमरे में पहुँचीं तो नीलम के कानों में लीड लगी हुई थी। वह सो रही थी। सुनंदा थीं नहीं। उन्होंने नीलम को हिलाया तो वह हड़बड़ा कर उठ गई। कान से लीड निकाल कर बोली,
"गाने सुनते हुए जाने कैसे आँख लग गई। कोई काम था जिज्जी ?"
किशोरी ने पूछा,
"सुनंदा कहाँ है ?"
"सोनम का फोन आया था कि मीनू की तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए वह घर चली गई थीं।"
किशोरी ने कुछ नहीं कहा। सुनंदा ने एकबार फिर पूछा,
"कोई काम था जिज्जी ?"
"तुम सो गई थी। बद्री इतनी देर से दरवाज़ा खटखटा रहा था। फिर हमें उठकर खोलना पड़ा।"
यह कहकर वह कमरे से चली गईं। नीलम सोच रही थी कि इन्हें कोई काम तो था नहीं। दरवाज़ा खोल दिया था तो यहाँ आई क्यों थीं ? उसने एकबार फिर कान में लीड लगाई और गाना सुनने लगी।
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