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चिट्ठी आई है...

देखो सन्नो काकी! मधुआ तुम्हारी टोकरी से अमरूद चुराकर भाग रहा है, सात साल के वीरू ने सन्नो से कहा....
वीरू की बात सुनकर सन्नो बोली....
"क्यों रे! मधुआ चोरी क्यों करता है? तू जब भी अमरूद माँगता है तो मैं दे देती हूँ ना",
"हाँ! काकी!",मधुआ बोला....
तब सन्नो बोली....
"ले! दो की जगह चार लेजा,लेकिन चोरी मत किया कर,मैं तो इसलिए इन्हें बेचने बैठ जाती हूँ कि मेरे पास और कोई काम तो है नहीं,ना घर में कोई है जिसे पकाकर खिला सकूँ,इतना बड़ा दिन काटे नहीं कटता इसलिए टोकरी लेकर फल बेचने बैठ जाती हूँ,भला मुझ जैसी अकेली जान को चाहिए ही कितना,दो रोटी सुबह और दो रोटी शाम,बस इसी में गुजारा हो जाता मेरा",
तभी उधर से शशी अपने सिर पर बेरों का टोकरा लिए चली आ रही थी और सन्नो के पास आकर बोली....
"सन्नो!जरा हाथ तो लगा,ये बेरों का टोकरा उतरवाने में मेरी मदद कर",
सन्नो फौरन शशी के सिर से टोकरा उतरवाने में उसकी मदद करने लगी और मदद करते करते बोली....
"आज बड़ी देर लगा दी तूने",
"हाँ! आज जेठानी लड़ने बैठ गई थी,बोली खबरदार जो हाँडिया से और तरकारी निकाली,तेरे हिस्से की तेरा खसम और लौंडा खाकर चला गया है,आज तू रुखी रोटी ही खा",
"फिर क्या कहा तूने",सन्नो ने आँखें बड़ी करते हुए पूछा...
"फिर क्या,मैंने सारी तरकारी अपनी थाली में उड़ेल ली और ले गई अपनी कोठरी में,कुछ यहाँ लाने को अलग धर ली और कुछ वहीं खा ली",शशी बोली....
"तू भी बड़ी जबरदस्तन है,फिर तो तेरी जेठानी को दोबारा तरकारी बनानी पड़ी होगी",,सन्नो बोली...
"तो बनाती रहें,सुबह सुबह मैंने उठकर बनाई थी गोभी आलू की रसेदार तरकारी,सिलबट्टे में मसाला पीसा था,पका पकाया मिल जाता है तो खा लेती है,कभी कभार दो चार रोटियाँ पका लेती है तो सारे मुहल्ले को सुनाती रहती है कि आज मैने रसोई बनाई है,जेठानी है तो क्या हरदम धौंस जमाती रहेगी,मैं भी कमाती हूँ और मेरा खसम भी कमाता है तो मैं क्यों सहूँ उसकी धौंस", शशी बोली....
"कुछ भी हो,तू मुझसे तो भली है,कम से कम तेरे संग कोई खटपट करने वाला तो है,एक मुझे देख ले,सूना घर और सूना मन लिए बस जी रही हूँ",सन्नो बोली...
"तू क्यों अपना मन छोटा कर रही है,मैं हूँ तेरे लिए,तो तू काहे को घबराती है",शशी सन्नो को ढ़ाढ़स बँधाते हुए बोली....
और तभी दोनों को साइकिल की घण्टी सुनाई दी ,दोनों ने देखा तो डाकिया बाबू थे,डाकिया बाबू ने सन्नो के पास आकर अपनी साइकिल रोकी और बोलें....
"सन्नो भौजी! तुम्हारी चिट्ठी आई है",
"चिट्ठी और मेरी,भला मेरा कौन यहाँ जानने पहचानने वाला पैदा हो गया",सन्नो अचरज से बोली...
तब डाकिया बाबू बोलें....
"मैं तुम्हारे घर गया था तो दरवाजे पर ताला लगा था,फिर सोचा तुम चौराहे पर फल बेचने गई होगी,इसलिए यहाँ चला ,किसी गोपीनाथ की चिट्ठी है,दिल्ली से आई है",
गोपीनाथ नाम सुनकर सन्नो के चेहरे का रंग उड़ गया और वो धीरे से बोली....
"इतने साल बाद याद आई मेरी"
फिर डाकिया बाबू ने चिट्ठी सन्नो के हाथ में थमा दी और वहाँ से निकल गए,तब शशी ने पूछा....
"कौन है ये गोपीनाथ"?
"मैं तुझे कल बताऊँगी,अभी मैं यहाँ से जाती हूँ",
सन्नो ऐसा कहकर वहाँ से जाने लगी तो शशी ने कहा....
"और ये अमरूद का टोकरा",
"तू बेंच लेना और दाम भी अपने पास रख लेना,मैं कल आऊँगी"
और ऐसा कहकर सन्नो हड़बड़ी में वहाँ से निकल गई,उसे वो चिट्ठी पढ़ने की बहुत जल्दी थी,वो तेज कदमों से अपने घर की ओर बढ़ी चली जा रही थी,वो जल्द ही घर पहुँच गई ,उसने हड़बड़ी में ताला खोला और किवाड़ अटकाकर वो उनसे टेक लगाकर खड़ी हो गई,उस चिट्ठी को खोलते वक्त उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,उसने अपने काँपते हाथों से चिट्ठी खोली और उसे पढ़ने लगी,चिट्ठी में केवल इतना लिखा था....
"भौजी! मैं आ रहा है,दो चार दिनों में तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा",
बस इतना ही लिखा था चिट्ठी में,लेकिन इतने सालों बाद आखिर देवरजी को मेरी याद कैसें आ गई,वो तो यूँ नाता तोड़कर चले गए थे कि जैसे फिर कभी लौटेगें ही नहीं और फिर धीरे धीरे सन्नो के अतीत के झरोखे खुलने और वो उसमें समाने लगी.....
सालों पहले की बात है...
सन्नो की शादी तय हुई,सन्नो का बाप नहीं था इसलिए सन्नो की शादी उसकी सौतेली माँ और माँ के भाई ने मिलकर तय की थी,लड़का सन्नो को देखने आया,जो सन्नो को बहुत सुन्दर और सुशील दिखा,उसका एक अमरूद का और एक आम का बाग था,उन बगीचों में कुछ पेड़ नींबू और बेर के भी थे,लड़का अकेला था,सास,ननद ,देवर और ससुर का रोना धोना भी नहीं था,लड़का फल बेंचकर इतना कमा लेता था कि दोनों की गुजर आराम से हो सकती थी इसलिए सन्नो ने ब्याह के लिए हाँ कर दी,लेकिन जब वो फेरों के लिए मण्डप में पहुँची तो उसे पता चला कि उसका पति तो पोलियोग्रस्त है,उसका एक पैर लकड़ी के समान पतला था,वो वहाँ से उठने को हुई तो सौतेली माँ ने आँखें दिखाकर फिर से बैठा दिया ,उसके साथ धोखा हुआ था,उसे किसी और लड़के को दिखाया गया था और ब्याह किसी और के साथ हुआ फिर वो गोपीनाथ की जगह प्रताप की घरनी बनकर उसके घर आ गईं,जब तक शादी की रस्में चलती रहीं तो उसकी आँखों से टप टप आँसू ही बहते रहें,अब उसे वो किस्मत का खेल नहीं कह सकती थी क्योंकि वो तो एक सोची समझी साजिश थी,झूठ बोलकर उसका ब्याह प्रताप के संग करवाया गया था.....
विदा के बाद सँजी धँजी सन्नो घर के एक कोने में बैठी थी तो उसके पास गोपीनाथ आकर बोला....
"कुछ चाहिए भौजी!",
"और क्या दोगे देवर जी! जो देना था वो तो दे ही चुके हो,तुमने इतना बड़ा धोखा क्यों किया मेरे संग"?,
सन्नो गोपीनाथ पर गुस्से से बिफरकर बोली.....
सन्नो की बात सुनकर फिर गोपीनाथ कुछ नहीं बोला,सन्नो की गीली गीली बरौनियाँ और बड़ी बड़ी लाल आँखें साफ साफ बता रहीं थीं कि वो गोपीनाथ से कितनी खफ़ा है,इसलिए वो बिना कुछ बोले बाहर चला गया....
गोपीनाथ प्रताप का दूर का फुफेरा भाई था, उसका खेती किसानी में मन नहीं लगता था ,भाइयों में सबसे छोटा था इसलिए बड़े भाई उस पर हुकुम चलाते थे और भौजाइयाँ भरपेट खाना ना देतीं थीं,इसलिए काम से जी चुराकर और भरपेट खाना खाने के चक्कर में वो प्रताप के घर पर पड़ा रहता था,वैसे भी प्रताप अकेला ही रहता था तो उसे भी गोपीनाथ के रहने से अच्छा लगता था,जब प्रताप की शादी की बात चली तो उसे लगा की घर में घरनी आ जाएगी तो चूल्हे चौके से छुट्टी मिल जाएगी,इसलिए प्रताप की शादी कराने के लिए वो खुद प्रताप बनकर सन्नो को देखने चला गया,
और इधर सन्नो मन ही मन अपने सपनों में गोपीनाथ को लाने लगी थी और जब उसका सपना टूटा तो वो बिखर गई और गोपीनाथ भी सोचने लगा कि सन्नो जैसी खूबसूरत लड़की की उसने जिन्दगी बर्बाद कर दी और ना चाहते हुए भी वो बरबस सन्नो की ओर खिंचा चला जाता था लेकिन कह कुछ ना पाता था.....
दिन बीते और सन्नो ने अपनी जिन्दगी से समझौता करना सीख लिया था और इधर गोपीनाथ भी कोशिश करता कि उसे घर में ना रहना पड़े इसलिए वो बगीचे में उसकी रखवाली के बहाने वहीं पड़ा रहता और ऐसे ही एक दिन गोपीनाथ के सबर का बाँध टूट गया और वो सन्नो से पूछ बैठा....
"भौजी! कब तक ऐसे रिसाई रहोगी,माना कि गलती हो गई हमसे,तो क्या जिन्दगी भर हमसे रुठी रहोगी"
सन्नो भी भरी बैठी थी इसलिए वो बोली....
"अगर मेरे रिसाने की इतनी ही चिन्ता तो क्यों ना हाथ लिया मेरा,अब जब मैं उन बातों को भूलने की कोशिश कर लही हो तो क्यों मेरे जख्मों को कुरेदकर हरा कर रहे हो,उस वक्त नहीं सूझा जब तुम किसी और के बदले मुझे देखने आए थे और मुझे ऐसा सब्जबाग दिखाकर चले गए जो कभी था ही नहीं,हर जगह केवल बंजर जमीन थी,इतना बड़ा धोखा देने के बाद कहते हो कि मैं तुम्हें माँफ कर दूँ"
सन्नो के ऐसे कड़वे जहरीले बोल गोपीनाथ से सुने ना गए और वो उसी रात घर छोड़कर चला गया और फिर वो घर नहीं लौटा,ऐसे ही चार महीने बीत गए और गोपीनाथ ने सन्नो को अपनी शकल ना दिखाई,जेठ का महीना चल रहा था और बाग में इस बार आम की बहुत अच्छी फसल हुई थी,इसलिए प्रताप दिन रात बाग की निगरानी में वहीं पड़ा रहता और इस कारण उसे एक दिन लू लग गई,इतना तेज बुखार कि उतरने का नाम ही ना लेता था,सन्नो ने सभी घरेलू इलाज कर डाले,कच्चे आम का पना पिलाया,चने का सूखा साग पानी में भिगोकर हाथ की हथेलियों और पैर के तलवों पर मला लेकिन लू ने अपना असर ना छोड़ा तो फिर हारकर सन्नो ने गोपीनाथ के गाँव संदेशा भिजवाया कि भइया की तबियत खराब है,बिना कुछ विचारे सीधे चले आओ और हुआ भी यही गोपीनाथ आ पहुँचा और उसने जैसे ही घर की देहरी पर अपने पग धरे तो घर से रोने धोने की आवाज़ सुनाई दी,प्रताप को लू ने लील लिया था,गोपीनाथ प्रताप के दिन तेहरवीं तक वहीं रुका और जब वापस आने लगा तो सन्नो बोली....
"जा रहे हो देवर जी! मेरी बात का इतना बुरा मान गए कि बिलकुल से ही मुँह मोड़ लिया,कुछ दिन रुक जाते तो अच्छा रहता,तुम्हारे जाने के बाद तो ये वीरान घर मुझे खाने को दौड़ेगा"
फिर क्या था सन्नो की गुजारिश पर गोपीनाथ रुक गया और उसने फिर बगीचे का काम सम्भाल लिया और फिर एक रात सन्नो किसी के घर माता के जगराते में चली गई और भोर भए घर लौटी तो गोपीनाथ को ये बात पसंद नहीं आई और वो सन्नो से बोला.....
"भौजी! ये अच्छी नारी के लक्षन नहीं हैं,तुम रात की गई अब जाके घर लौटी हो"
ये बात सन्नो को काँटे की तरह चुभ गई और वो गोपीनाथ से बोली...
"देवर जी! मेरा खसम बनने की कोशिश ना करो,जब खसम बनकर हुक्म चलाने की बारी आई थी तो ये हक़ तुमने किसी और को दे दिया था,मैं तुम्हारी घरनी नहीं हूँ जो मुझ पर इतना रौब जमाते हो और ये तुम्हारा नहीं मेरा घर है,मेरे घर में रहकर तुम मुझ पर ही पाबन्दी लगाना चाहते हो,इतना ही शौक था ना मुझ पर हक जताने का तो करते मुझसे ब्याह,बनाते अपनी घरनी,लेकिन नहीं ये तो तुमसे ना हो पाया और चले हो मुझ पर पाबन्दियाँ लगाने,आइन्दा से ये सब बातें मुझसे मत कहना, नहीं तो मुझ सा बुरा कोई ना होगा"
और फिर उस दिन सन्नो ने गोपीनाथ को आखिरी बार देखा था और इतने सालों बाद उसकी चिट्ठी आई है, सन्नो बहुत खुश थी ,वो भी बेकरार थी उससे मिलने के लिए,कैसा हो गया होगा गोपीनाथ,बाल तो सफेद हो ही गए होगें,मूँछें भी रख ली होगीं और वो ये सब सोच सोचकर मुस्कुराने लगी,वो चार पाँच दिनों से फल बेंचने भी चौराहे पर ना गई थी,उसे लग रहा था ना जाने किस वक्त गोपीनाथ घर में पहुँच जाए और क्या पता उसे घर में ना देखकर लौट जाए तो,इसलिए वो घर से बाहर निकली ही नहीं.....
ऐसे ही एक हफ्ता बीत गया लेकिन गोपीनाथ घर ना आया,सन्नो ने तब भी इन्तज़ार करना ना छोड़ा और ऐसे ही एक महीना बीतने को आया लेकिन गोपीनाथ ना आया,फिर एक दिन यूँ ही सन्नो घर पर उदास बैठी थी और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई,सन्नो खुश होकर दरवाजा खोलने आगें बढ़ी,फिर उसने दरवाजा खोला तो सामने डाकिया बाबू खड़े थे और वें बोलें.....
"चिट्ठी आई है"
"किसकी है",सन्नो ने पूछा....
"किसी दिल्ली के अस्पताल की लग रही है ",डाकिया बाबू बोलें.....
और फिर सन्नो ने वो चिट्ठी ली और उसे खोलकर पढ़ने लगी,जिस पर लिखा था कि गोपीनाथ का तपैदिक से निधन हो गया है,हमारे पास उसका यही पता था,इसलिए हम आपको सूचित कर रहे हैं कि अब गोपीनाथ इस दुनिया में नहीं रहा....
चिट्ठी पढ़कर सन्नो की आँखों से झर झर आँसू बहने लगें,उसके लिए इतने दिनों बाद चिट्ठी आई थी और वो भी ऐसी,जिसे वो प्यार और नफरत दोनों करती थी,अब वो इन्सान इस दुनिया में नहीं रहा था.....

समाप्त.....
सरोज वर्मा....