Kurukshetra ki Pahli Subah - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 26

26.सौदा लाभ का

आत्म के उद्धार के लिए अर्थात भगवान की प्राप्ति के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता। 

अर्जुन ने फिर जिज्ञासा प्रकट की। 

अर्जुन: इसका यह अर्थ हुआ केशव कि योग मार्ग में आगे बढ़कर भ्रष्ट हो जाने वाले व्यक्ति की दुर्गति नहीं होती। क्या ऐसा व्यक्ति इस जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर ईश्वर की कृपा का अधिकारी बन जाता है?

श्री कृष्ण: ऐसे व्यक्ति अपने पूर्व संचित अच्छे कर्मों के साथ आगे तो बढ़ते हैं लेकिन ईश्वर प्राप्ति की पात्रता से दूर होने के कारण वे या तो कुछ समय स्वर्ग आदि लोकों में रहकर पृथ्वी पर श्रेष्ठ पुण्यात्मा और साधन संपन्न लोगों के यहां पुनः जन्म लेते हैं या फिर उनका जन्म बिना स्वर्ग आदि लोकों में गए धरती पर सात्विक आचरण वाले लोगों के यहां होता है। 

अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के इन वचनों का अर्थ समझने की कोशिश करने लगे। उन्होंने पूछा। 

अर्जुन: साधना पथ पर एक सीमा तक आगे बढ़ गए लोगों के लिए इस तरह के दो विकल्प क्यों हैं प्रभु? वे स्वर्ग जाकर धरती पर लौट सकते हैं। या सीधे योगियों के कुल में जन्म ले सकते हैं। 

श्री कृष्ण: स्वर्ग का सुख भोग कर अगर कोई व्यक्ति इस पृथ्वी लोक में साधन संपन्न परिवार में जन्म लेता है तो उसे आगे की साधना में आसानी होती है। स्वर्ग लोक के सुख भी उसे एक सीमा के भोग के बाद उसके वास्तविक कर्तव्य बोध का स्मरण कराने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने का अवसर प्रदान करते हैं। साधना के चरण में बहुत आगे बढ़ कर फिर विरक्त हो गए साधक को स्वर्ग लोक जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसका अगला जन्म श्रेष्ठ योगियों के परिवार में होता है ताकि वह सीधे अपनी आगे की योग यात्रा अनुकूल परिस्थितियों में शुरू कर सके और इसीलिए ऐसा जन्म दुर्लभ है। 

अर्जुन को इस बात पर गहरा संतोष हुआ कि ईश्वर से योग मार्ग पर आगे बढ़ने वाले साधक का अगला जन्म साधना की परिष्कृत अवस्था वाला अर्थात योग के अगले चरण की प्रबल संभावना लिए होता है। 

अर्जुन: हे श्रीकृष्ण! तो क्या इस तरह जन्म लेने वाले साधक के लिए यह ईश्वर प्राप्ति के पथ पर आगे बढ़ने का एक और अवसर है?

श्री कृष्ण: नि:संदेह अर्जुन!

अर्जुन सोचने लगे, अगर मनुष्य अपने वर्तमान जन्म में इधर-उधर की छूट लेकर साधना पथ से भटके नहीं तो इसी जन्म में कल्याण संभव है। 

ईश्वर के साधना पथ पर चलने से साधक की पिछली उपलब्धियां व्यर्थ नहीं जातीं। 

अर्जुन यह जानकर प्रसन्न हुए कि एक जन्म की साधना अगर अपनी पूर्णता को प्राप्त न हो सके तो जन्मांतर में भी जारी रहती है। वर्तमान देह के समापन के बाद आत्मा एक नई यात्रा शुरू करती है और केवल आत्मा ही नहीं सूक्ष्म शरीर भी अपने संचित संस्कारों के साथ आगे बढ़ता है और मोक्ष मिलने तक यह आत्मा इस सूक्ष्म शरीर के संस्कारों के साथ अनेक जन्म धारण करती है। लाक्षागृह अग्निकांड के बाद जब पांडव वन में यहां-वहां भटक रहे थे और उन्हें अपनी पहचान छिपाकर रहना पड़ रहा था तो जीवन में अनेक भीषण कष्टों का सामना होने के कारण पांडव कुमारो का धैर्य कभी-कभी जवाब दे देता था। दुर्योधन और महाराज धृतराष्ट्र के अन्य पुत्रों के प्रति भीमसेन क्रोध से भर उठते थे। ऐसे में माता कुंती उन्हें समझाया करती थी कि जीवन में पग -पग पर ली जा रही तुम्हारी परीक्षा वास्तव में तुम्हें एक श्रेष्ठ मानव के रूप में विकसित होने का दुर्लभ अवसर है। इस पर अर्जुन मां से पूछते थे। हमें इतने कष्ट मिल रहे हैं और ऐसे में इन श्रेष्ठ संस्कारों को लेकर हम क्या करेंगे?

इस पर माता कुंती ने समझाया था, अगर कड़ी परीक्षा से न गुजरना पड़े तो वह परीक्षा किस काम की अर्जुन? तुम राजकुमार हो लेकिन साधारण जनता अपने जीवन में किन कष्टों का सामना करती है, यह तुम्हें जानने का अवसर मिल रहा है। यह भविष्य में तुम्हारे लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। 

अर्जुन माता कुंती के वचनों और श्री कृष्ण के थोड़ी देर पहले गए  कथन में कोई साम्य ढूंढने का प्रयत्न करने लगे कि योग मार्ग पर चलने वाला साधक अगर उदासीन भी हो जाए तो उसकी अब तक की गई साधना व्यर्थ नहीं जाती है। 

अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के मन की बात जान लेते हैं। श्री कृष्ण पूर्व जन्म के संचित संस्कारों को वर्तमान जन्म में प्राप्त करने पर आगे प्रकाश डाल रहे हैं। 

श्री कृष्ण: अर्जुन!मैंने तुमसे सम बुद्धिरूप योग की चर्चा की। पूर्व जन्म की यह संतुलनावस्था संचित संस्कारों के साथ वर्तमान जन्म में अनायास प्राप्त हो जाती है। इससे योग के मार्ग पर चलते हुए परमात्मा को प्राप्त करने का भावी श्रेष्ठ प्रयत्न करना सरल हो जाता है। 

अर्जुन: तो इसका अर्थ यह है कि इस जन्म में साधक को अधिक प्रयत्न नहीं करने पड़ेंगे?

श्री कृष्ण: साधना के उच्च स्तर को तो बनाए रखना ही होगा अर्जुन। साथ ही अपने प्रयत्नों में और श्रेष्ठता तथा तीव्रता लानी होगी।