Wo Maya he - 88 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 88



(88)

नैंसी ने केक कटिंग के समय वीडियो कॉल करने को कहा था। साइमन ने केक काटने से पहले उसे वीडियो कॉल किया। मनोज फोन पकड़ कर उसे केक कटिंग दिखा रहा था। साइमन ने केक काटा। नैंसी और मनोज ने हैप्पी बर्थडे गाना गाया। केक काटने के बाद साइमन ने एक टुकड़ा फोन की तरफ करके कहा,
"यह तुम्हारे लिए है। मैं खा लेता हूँ।"
यह कहकर उसने वह टुकड़ा अपने मुंह में डाल लिया। नैंसी ने कहा,
"डैडी अब एक पीस मेरी तरफ से खाइए।"
साइमन ने उसकी बात मानते हुए एक और टुकड़ा अपने मुंह में डाला। नैंसी ने कहा,
"डैडी मैंने आपके लिए एक गिफ्ट लिया है। पर उसे लेने आपको मेरे पास आना होगा। जो भी केस आपके हाथ में है उसे पूरा करके आपको मेरे पास आना है। बहुत समय हो गया आपसे मिले हुए। मुझे आपकी बहुत याद आती है।"
यह कहते हुए नैंसी भावुक हो गई। साइमन ने कहा,
"आई मिस यू टू.....इस बार केस खत्म होते ही छुट्टी लेकर तुम्हारे पास आऊँगा। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। अब सो जाओ। तुम्हारी रूममेट डिस्टर्ब हो रही होगी।"
"नहीं पापा.....आज वह अपने किसी रिश्तेदार के घर गई हुई है। पर मुझे कल जल्दी उठना है। एक प्रोजेक्ट के लिए जाना है। गुडनाइट अब आप भी आराम करिए।"
नैंसी ने कॉल काटने से पहले मनोज को धन्यवाद दिया। कॉल कटने के बाद साइमन ने कहा,
"मनोज तुम भी केक खा लो। बाकी किचन में दे आना। कहना कि खा लें।"
मनोज को आदेश देने के बाद साइमन ने अपना फोन उठाया। वह अपने कमरे में जा रहा था तभी एक मैसेज आया। कुलभूषण का वॉइस मैसेज था। साइमन ने खोलकर सुना,
'सर मुझे एक ऑटो पर खोपड़ी वाला स्टिकर दिखाई दिया है। ऑटो शाहखुर्द से तीस किलोमीटर दूर हुसैनपुर में एक मकान के अंदर है। मकान गली के अंत में है। मैं पूरी बात पता करने अंदर जा रहा हूँ। अगर पैंतालीस मिनट में दोबारा मैसेज नहीं आता है तो मेरी भेजी गई लोकेशन पर मदद भेजिएगा। अपना फोन मैं टेंपो में छोड़कर जा रहा हूँ। टेंपो घर से कुछ पहले एक पेड़ के पास खड़ा है।'
वॉइस मैसेज के बाद कुलभूषण ने लोकेशन भेजी थी। मैसेज सुनने के बाद साइमन ने बिना देर किए कंट्रोल रूम को फोन किया। उनसे कहा कि एक लोकेशन भेज रहा है। उस लोकेशन के पास वाले थाने में अलर्ट भेजो कि अगला आदेश मिलने तक टीम तैयार करें। कंट्रोल रूम के बाद साइमन ने इंस्पेक्टर हरीश को और सब इंस्पेक्टर कमाल को सूचना दी।

वॉइस नोट भेजने के बाद कुलभूषण मकान के पास आया। उसने एकबार फिर इधर उधर का जायजा लिया। मकान के सामने वाले हिस्से में किसी बड़ी बिल्डिंग की चारदीवारी थी। शायद वह कोई फैक्ट्री या किसी अन्य भवन का पिछला हिस्सा था। कुलभूषण ने मकान के बगल वाले मकान की तरफ देखा। हलांकि बहुत रात हो गई थी। चारों तरफ अंधेरा था। पर उसे लगा कि उस मकान से बगल वाला मकान बहुत जर्जर हालत में था। ऐसा लग रहा था जैसे कि वहाँ कोई नहीं रहता था। उससे पहले भी एक खाली प्लॉट था। जिस मकान में उसे जाना था वह बहुत एकांत में था। कुलभूषण ने सोचा कि इस मकान में तंत्र मंत्र से संबंधित गतिविधियों को आसानी से अंजाम दिया जा सकता है।
कुछ देर आसपास देखने के बाद कुलभूषण मकान का गेट फांदकर अंदर चला गया। घर पर अंधेरा था। पर चांद की रौशनी में थोड़ा बहुत दिखाई पड़ रहा था। कुलभूषण ने देखा कि टेंपो के बगल से एक रास्ता है। रास्ता थोड़ा सकरा था। वह सावधानी से आगे बढ़ा। चलते हुए वह मकान के पिछले हिस्से में आ गया था। यहाँ भी अंधेरा था। उसे ऊपर जाती लोहे की सीढ़ियां दिखीं। सीढ़ियों के पास कमरे की खिड़की दिखाई पड़ी। खिड़की बंद थी। उसने खिड़की में कान लगाकर सुनने की कोशिश की कि अंदर कोई गतिविधि है या नहीं। उसे बड़ी अस्पष्ट सी आवाज़ सुनाई पड़ी। कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन सुनने में ऐसा लग रहा था कि कोई अंदर किसी मंत्र का जाप कर रहा है। कुलभूषण ने इधर उधर देखा शायद कोई और खिड़की या दरवाज़ा हो। पर उस खिड़की के अलावा कुछ नहीं था।
कुलभूषण सोचने लगा कि क्या करे ? अंदर जाने के लिए केवल सामने का एक दरवाज़ा था। वह बंद था। किसी तरह अंदर झांक कर देख पाता ऐसी भी कोई व्यवस्था नहीं थी। वह सोच रहा था कि खोपड़ी वाले स्टिकर और अंदर जपे जा रहे अस्पष्ट मंत्र से यह तो समझ आ रहा है कि अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है जो तंत्र मंत्र में विश्वास करता है। पहले उसने सोचा कि सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाए। फिर उसे लगा कि अच्छा होगा कि यदि वह बाहर जाकर सारी बात साइमन को बताए। फिर वह सही निर्णय ले पाएगा। वह बाहर आने लगा। अभी वह टेंपो के बगल से गेट की तरफ आ रहा था कि उसे गेट के बाहर किसी बाइक की आवाज़ आई। उसकी हेडलाइट की रौशनी दिखाई पड़ी। वह जल्दी से टेंपो के बगल में छिपकर बैठ गया। बाइक का इंजन स्टार्ट रखते हुए गेट का लॉक खुला। एक आदमी उस पर सवार अंदर आया। जब वह अंदर आ रहा था तब कुलभूषण को हेडलाइट पर वैसा ही खोपड़ी वाला स्टिकर दिखाई पड़ा।
कुलभूषण को यकीन हो गया था कि वह सही जगह पर आया है‌‌। अब बस बाहर जाकर साइमन को खबर करनी थी। उस आदमी ने बाइक स्टैंड पर खड़ी की। गेट को दोबारा लॉक कर दिया। कुलभूषण सोच रहा था कि वह मेनडोर खोलकर अंदर जाएगा। लेकिन वह टेंपो की तरफ बढ़ा। यह देखकर कुलभूषण घबरा गया। वहाँ इधर उधर होने की जगह नहीं थी। उसका पकड़ा जाना तय था। वह आदमी उसकी तरफ आते आते अचानक रुका। उसका फोन बज रहा था। उसने कॉल रिसीव की और दूसरी तरफ जाकर बात करने लगा।
कुलभूषण को लगा कि उसे एक मौका मिला है। हिम्मत करके वह गेट फांदकर भाग सकता है। नहीं तो उसका पकड़ा जाना तो तय है। वह धीरे धीरे पंजे के बल चलते हुए गेट की तरफ बढ़ने लगा। वह गेट पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था तभी उस आदमी ने पलट कर देखा। कुलभूषण पर नज़र पड़ते ही वह उसकी तरफ लपका। कुलभूषण ने गेट पर चढ़कर गेट फांदने की कोशिश की पर हड़बड़ाहट‌ में गिर पड़ा। उस आदमी ने उसे दबोच लिया।

मकान के पिछले हिस्से में बने कमरे में कुलभूषण बेहोश पड़ा था। उस कमरे में दो आदमी थे। एक ऑटो वाला और दूसरा वह जिसने कुलभूषण को दबोचा था। ऑटो वाले ने कहा,
"ललित यह आदमी बहुत भारी है। इसे लेकर अंदर आने में हम दोनों की सांस फूल गई।"
ललित ने कहा,
"पुनीत यह भारी ही नहीं बहुत तगड़ा भी है। मैंने यह सोचकर इसे दबोचा था कि आसानी से काबू पा लूँगा। लेकिन यह लड़ने लगा। एकबार तो मुझे धक्का मारकर गेट पर चढ़ ही गया था। मैंने फुर्ती दिखाकर इसे वापस खींचा। मुझे लगा कि फिर ना भागे इसलिए गर्दन पर वार करके बेहोश कर दिया।"
पुनीत ने कहा,
"ना जाने कौन है और यहाँ क्या करने आया था ?"
"पता नहीं मैं फोन पर बात करके जैसे ही ऊपर वाले कमरे में जाने के लिए मुड़ा तो इस पर नज़र पड़ी। यह गेट फांदकर भागने की कोशिश कर रहा था। पर हड़बड़ा कर गिर पड़ा। मैंने धर दबोचा लेकिन यह तो टक्कर देने लगा। इससे लगता है कि यह कोई मामूली चोर नहीं है। किसी खास मकसद से अंदर घुसा था।"
यह कहते हुए ललित रुका। उसके दिमाग में एक बात आई। उसने कहा,
"पुनीत कहीं यह आदमी पुलिस का तो नहीं है। शाहखुर्द में हुई दोनों हत्याओं के केस को सॉल्व करने के लिए पुलिस ज़ोर शोर से जुटी है।"
"पर हम तो बहुत समय से यहाँ छिपे हैं। पूरी सावधानी बरत रहे हैं।"
"कुछ गलती तो हुई है। इसलिए ही यह आदमी यहाँ तक आ गया। तुम कहीं बाहर गए थे ?"
ललित के सवाल पर पुनीत सोच में पड़ गया। उसने नज़रें झुकाकर कहा,
"मैं खाना खाने पास के भोजनालय गया था। तब ध्यान नहीं दिया था। पर मुझे लगता है कि लौटते समय यह आदमी अपने टेंपो से मेरा पीछा कर रहा था।"
ललित ने गुस्से से कहा,
"तुमने तब ध्यान क्यों नहीं दिया ? यह पुलिस का आदमी ही है। शुक्र है कि हमारे चंगुल से भाग नहीं पाया। नहीं तो पुलिस को हमारी खबर दे सकता था।"
पुनीत को भी अब एहसास हुआ कि उससे गलती हुई है। उसने सफाई दी,
"दरअसल मैंने टेंपो अपने पीछे देखा था तब लगा कि कहीं जा रहा होगा। मैं भूल गया था। अभी कुछ समय पहले ही ध्यान आया। पर अब यह छोड़ो। सोचो इसका करना क्या है ?"
ललित सोच में पड़ गया‌। उसने कहा,
"हमारा मकसद अभी पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में पुलिस के हाथ नहीं लग सकते हैं। जिंदा तो छोड़ नहीं सकते हैं। इसे मार देते हैं।"
पुनीत को उसकी बात ठीक लगी। उसने कहा,
"इसे मारकर ठिकाने लगा देते हैं। फिर यहाँ से निकल चलेंगे। अब हमारे अनुष्ठान का अंतिम दौर शुरू होने वाला है।"
ललित ने कहा,
"इस अंतिम दौर में हमारा काम सबसे कठिन है। इतनी दूर तक आने के बाद अब कोई गलती नहीं कर सकते हैं। बहुत सावधानी से काम करना होगा। उसके बाद फिर हम मनचाही ज़िंदगी जिएंगे।"
यह कहकर ललित के चेहरे पर एक चमक आ गई। पुनीत ने पास पड़े कुलभूषण की तरफ देखकर कहा,
"इस आदमी ने हमारी सारी मेहनत पर पानी फेरने की कोशिश की है। पर अब इसे अच्छा सबक सिखाएंगे।"
"नहीं पुनीत हमारे लिए अच्छा होगा कि इसे ठिकाने लगाकर यहाँ से निकल चलें।"
उसकी बात सुनकर पुनीत गंभीर हो गया।