Wo Billy - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

वो बिल्ली - 13

(भाग 13)

अब तक आपने पढ़ा कि रघुनाथ का सामना उस औरत से होता है। अगलें ही पल वह गायब हो जाती है। ग्रामोफोन पर वहीं गीत सुनाई देता ह जिसे वह डरावनी औरत गुनगुनाया करती थीं।

अब आगें...

गीत की आवाज़ बन्द होते ही कमरे में फिर से सन्नाटा पसरा गया। उस सन्नाटे को चीरती हुई रॉकिंग चेयर की आवाज़ एक बार फ़िर से कमरे में गूँज रहीं थीं।

..चर्र..चर्र..चर्र..चर्र..

"बन के रक़ीब बैठे हैं वो जो हबीब थे.."

ग्रामोफोन पर गीत की एक पंक्ति फ़िर बज उठी औऱ बन्द हो गई। गीत के साथ रॉकिंग चेयर की आवाज़ भी बन्द हो गई।

गीत की पंक्ति को इस बार एक भूतिया, बड़ी भयंकर आवाज़ ने गुनगुनाया.....

"बन के रक़ीब बैठे हैं वो जो हबीब थे"

आवाज़ इतनी भयानक थीं कि रघुनाथ औऱ शोभना का कलेजा कांप गया। वह बुत बने जस के तस खड़े रहें।

गीत की पंक्ति के बाद बड़ी भयंकर हँसी का ठहाका उस कमरे में गूँजकर रघुनाथ व शोभना के मन में पनपते भय को औऱ अधिक बढ़ा रहा था।

शोभना ने रघुनाथ की बाहों को कसकर पकड़ लिया। वह मन ही मन अपने इष्टदेव को याद करके मंत्र जप करने लगीं। अब ईश्वर ही एकमात्र सहारा थे।

मंत्र जप से उस औरत को तकलीफ़ होने लगीं। यह जानकर शोभना ने मंत्रों का तेज़ उच्चारण करना शुरू कर दिया। शोभना के साथ रघुनाथ भी मंत्र बोलने लगा।

मंत्र के प्रभाव से कमरे में रखा सामान थरथराने लगा। मंत्र जप को रोकने की भरसक कोशिश करते हुए उस आत्मा ने कमरे में रखा सामान इधर-उधर फेंकना शुरू कर दिया। जब इससे भी मंत्र जप नहीं रुका तो कमरे की खिड़कियों के सारे शीशें टूटने लगें।

शोभना और रघुनाथ ने मंत्र जप जारी रखा। अब आत्मा ने अंतिम दांव खेला। उसने बेहोश किटी को हवा में उठा लिया। किटी को होश आ गया और वह रोने लगी।

रोते-बिलखते वह कहने लगीं - " मम्मा मुझें बचा लो ! मुझें यहाँ से ले जाओ ! मुझें बहुत डर लग रहा है !"

रोती-बिलखती हुई किटी के प्राणों को संकट में देखकर शोभना सब कुछ भुलाकर अपनी बेटी की ओर भागी...

उसने मंत्र जपना छोड़ दिया। वह अपनी बेटी को दिलासा देने लगीं - " घबराओ नहीं किटी ! मम्मा यहीं पर हैं !"

हा!हा!हा!हा!......

तेज़ भयानक हँसी एक बार फ़िर से कमरे में गूंज उठी।

अब तक अदृश्य शक्ति के रूप में जिसने कमरे में भूचाल ला दिया था,वह शोभना के सामने खड़ी हो गई। उस औरत ने एक नज़र किटी की ओर देखा फिर अंगारे उगलती हुई आँखों से शोभना को घूरते हुए बोली -" भगवान का साथ छोड़ दिया..अपनी बेटी से नाता जोड़ लिया। बहुत गलत किया। यह रिश्ते नाते सब दिखावा है। झूठ हैं, धोखा है। आज तुम इसके लिए तड़प उठी। कल ये तुम्हें तड़पायेगी, तरसायेगी, रुलाएगी।"

शोभना को न जाने क्यों उस भयानक औरत की आवाज़ में दर्द महसूस हुआ। उसे उसके जीवन में मिले धोखे की झलक उसकी कही बातों में दिखी। गीत की पंक्तियां बरबस ही शोभना के कानों में गूँजने लगीं...

दुश्मन न करें दोस्त ने वो काम किया है...

कुछ-कुछ शोभना समझ चुकी थीं । मरना भी तय ही था। उसने फ़िर भी हिम्मत नहीं हारी औऱ आत्मविश्वासभरी आवाज़ में बोली - " दोस्त कभी दुश्मन नहीं होते। जिसने धोखा दिया वो कभी दोस्त था ही नहीं। वह तो आया ही धोखा देने था। स्वार्थ से जुड़े लोग अक्सर बहुत मीठी बातें किया करते हैं। आपसे वही कहेंगे जो आप सुनना पसंद करते हैं। आपके हित की बात कभी नहीं करेंगे। आपको आपकी गलतियों से कभी वाकिफ़ नहीं करवाएंगे। कभी किसी बात में रोक-टोक नहीं करेंगे। क्योंकि यह सब करके पहले तो वो आपका दिल, आपका भरोसा जीत लेंगे फ़िर जब उनको यह महसूस हो जाएगा कि अब आप उनके बुने जाल में फंस चुंके है, तब वह आपका फायदा उठा देने के बाद आपसे दूर हो जाएंगे..! क्या ऐसा व्यक्ति दोस्त हो सकता है ?"

शोभना की बात सुनकर उस औरत के चेहरे के भाव बदल गए।

शेष अगलें भाग में....

क्या अब भी वह औरत अपना बदला रघुनाथ के परिवार से लेंगी..?