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हॉरर मैराथन - 4

भाग 4

मधुमिता की बचपन से ही इतिहास और पुरातत्व विषय में रुचि रहीं। रुचि की वजह मधुमिता के दादाजी थे। मधुमिता के दादा विष्णुधर दुबे पुरातत्व विभाग में कार्यरत थे और हमेशा मधुमिता को ऐतिहासिक कहानियों, महलों या खुदाई से मिली चीजों के बारे में किस्से सुनाया करते। मधुमिता भी बहुत चाव से उनको सुनती।

दादा और पोती दोनों की ही पसन्द एक जैसी थी। जब तक दादा जी जीवित थे तब तक घर में यूनिक और एन्टीक चीजों का संग्रह हुआ करता था। बाद में यह कार्य मधुमिता करने लगीं। दोनों के इस शौक ने घर को किसी म्यूजियम की तरह बना दिया था।

ऐसे ही एक बार एक प्रदर्शनी विजिट के दौरान विष्णुधर की नजर एक शीशें पर पड़ी। शीशा विष्णुधर के कद के बराबर था। एक ही नजर में शीशा उनके मन को भा गया। फिर क्या था उन्होंने तुरंत वह शीशा खरीद लिया और उसे अपने घर की सीढ़ी पर ऐसे लगवाया की सीढ़ी चढ़ने वाले का पूरा अक्स उसमें समा जाए। घर की बनावट कुछ इस तरह थी, सबसे पहले लोहे का बना बड़ा सा गेट उसके बाद खाली जगह, जहाँ औषधीय पौधों के गमले रखे हुए हैं फिर घर की बिल्डिंग जिसमे नीचे पॉर्च हैं, जिससे सटी हुई सीढियां हैं जो ऊपर की ओर जाती हैं।

मधुमिता को भी वह शीशा बहुत पसंद आया, पर मधुमिता के पिता कृष्णकांत को शीशा बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। वजह थी कि सीढ़ी के ठीक सामने वाली पूरी जगह को शीशे ने घेर लिया और सीढ़ी चढ़ते समय अपने ही प्रतिबिंब को देखकर हर कोई भयभीत हो जाता। शीशे को इस जगह से हटाने की मांग वे कई बार कर चुके थे, उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगर यह शीशा सीढ़ी से हटाया नहीं गया तो वह उसे तोड़ देंगे। पर दादा-पोती के आगे उनकी एक न चली।

एक दिन कृष्णकांत अपने ऑफिस से जल्दी ही घर आ गए। उनका सर दर्द के मारे फट रहा था, आराम के उद्देश्य से घर आना ही उन्हें उचित लगा। घर आने पर मुख्यद्वार पर ताला मिला, डोरमैट के नीचे से चाबी ली और ताला खोलकर अंदर आ गए। कृष्णकांत ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा ही था कि वे पीछे की और हो गए उन्हें लगा जैसे किसी ने धक्का देकर पीछे धकेल दिया। कृष्णकांत ने अपने कंधे से फिसलते बैग व खुद को संभालते हुए फिर से सीढ़ी पर पैर रखा और जैसे ही सामने देखा तो उन्हें शीशे में एक आदमी दिखा।

यह तो रोज की ही बात थी जिससे कृष्णकांत चिढ़ते थे। कृष्णकांत ने रोज की तरह मुंह नीचे किया और सीढ़ी चढ़ने लगे। 3-4 सीढ़ी चढ़ लेने पर जैसे ही उन्होंने मुंह सामने की ओर किया तो वो धक से रह गए। इस बार भी उसी पोजीशन में खड़े हुए आदमी को देखा। वो वहीं ठहर गए। शीशे में भी कृष्णकांत ही थे पर उस तरफ कोई भी गतिविधि नहीं थीं। कृष्णकांत ने अपने हाथ को हिलाया, उधर अब भी दोनों हाथ नीचे किये हुए प्रतिबिंब था। माजरा क्या हैं जानने की उत्सुकता से कृष्णकांत ऊपर की ओर बढ़े। अब भी प्रतिबिंब वैसे ही बुत की तरह खड़ा रहा। कृष्णकांत सबसे अंतिम सीढ़ी पर पहुँच गए और चेहरे पर नए-नए हावभाव लाते हुए कभी जीभ बाहर निकालते तो कभी हाथ व पैर को चलाते। पर इन सब क्रियाओँ के दौरान प्रतिबिंब वैसा ही खड़ा रहा। कृष्णकांत अब समझ गए कि क्यों पिताजी इसे शैतानी शीशा कहते थे। पर ये क्या कृष्णकांत विचार कर ही रहे थे कि प्रतिबिंब ने उनका गला पकड़ लिया।

कृष्णकांत को ब्लडप्रेशर की बीमारी थीं उनका बीपी लो हो गया और वो बेसुध होकर गिर पड़े। शाम 6 बजे कृष्णकांत की धर्मपत्नी यशोधरा जब सत्संग से घर लौटी तो उनके होश उड़ गए। सीढ़ी पर अपने पति को ऐसे देखकर वो घबरा गई। उनके पास पूजन का जल से भरा कलश था, उन्होंने अपने पति के मुख पर जल के छीटें मारे जिससे कृष्णकांत की मूर्छा टूटी। यशोधरा उन्हें सहारा देकर अंदर ले आई। नाराज होते हुए कहने लगी इसीलिए कहती हुँ खानपान का ध्यान रखा करो।

पर मेरी तो इस घर में कोई सुनता ही नहीं हैं, सब अपनी मर्जी के मालिक हैं। यशोधरा बड़बड़ाती रहीं पर कृष्णकांत अब भी सदमे से उभर नहीं पाए। चुपचाप नीचे गर्दन किए सब कुछ सुनते रहें। वह समझ नहीं पा रहें थे कि क्या कहे। कौन उनकी बात मानेगा। उल्टा सब हँसी ही करेंगे और आधी उम्र होने आई और बच्चों की सी बात कर रहा हूं कहकर मेरा मखौल उड़ाएंगे।

मधुमिता को माँ से सूचना प्राप्त हो गई थीं । वह भी ऑफिस से भागी-भागी आई। आते ही पिताजी से मिली। बार-बार एक ही प्रश्न किए जा रहीं थीं आजतक तो आप कभी यूं चक्कर खाकर नहीं गिरे और फिर बीपी भी अभी नॉर्मल ही हैं। अचानक ऐसा क्या हुआ?

कृष्णकांत भी यहीं दोहराते- कह तो दिया स्वास्थ्य सही नहीं होने पर ही ऑफिस से छुट्टी लेकर आया था। शुक्र हैं घर आकर ही ये सब हुआ। बाहर कही गिरता तो तुम्हें पता भी नहीं चलता। पर बेटा मेरी एक बात मानोगी इस शीशे को यहाँ हटा दो। पिताजी ने तो मेरी एक न सुनी पर तु तो मेरी बात मान ले।

आज की घटना के कारण मधुमिता ने बिना किसी तर्क-वितर्क के पिताजी की बात मान ली और अगले ही दिन शीशा अपने रूम में लगवा लिया।

अब कृष्णकांत का शीशें से सामना नहीं होता पर शैतानी शीशे के अब भी घर में होने से मन में भय रहता कि यह मेरे परिवार का अनिष्ट न कर दे। उन्होंने तय कर लिया कि किसी भी तरह से शीशे से छुटकारा ले लूंगा।

एक रात जब मधुमिता सो रहीं थीं, तभी उसकी नींद किसी की बड़बड़ाहट से टूटी। उसे लगा जैसे कोई उसके रूम में ही किसी से बात कर रहा हो। 3 बज रहे थे वो उठी और उठकर बालकनी तक गई। बाहर सिवाय कुत्तों के कोई नहीं दिखा, चारों और सन्नाटा पसरा हुआ था, झींगुर की आवाज आ रही थीं। जैसे ही वह पलटी उसके सामने कोई आकृति उसे खड़ी दिखीं और पलक झपकते ही गायब हो गई। नाईट बल्ब की मद्धम रोशनी में कुछ भी साफ दिखाई न देने के कारण मधुमिता असमंजस की स्थिति में हो गई।

अब तो रोज रात को मधुमिता को अपने कमरे से अजीबोगरीब आवाज आती। जैसे ही वो उठकर बैठ जाती तो आवाजें भी बंद हो जाती। उसने अपनी माँ से इस बात का जिक्र किया। तो माँ ने यह कह कर ध्यान नहीं दिया कि इसीलिए कहती हूँ ये हेडफोन लगाकर मत घुमाकर। इस घर में मेरी कोई सुनता ही कहाँ हैं ? बहरी हो गई तो गूंगा पति ढूंढ़ लेना कहकर माँ सब्जियां काटने लगीं और चिढ़कर मधुमिता भी वहाँ से चली गई।

आज रविवार हैं कृष्णकांत जी आज किसी जरूरी काम से अपने पैतृक गाँव गए हैं। मधुमिता ने अपनी बेस्ट फ्रेंड रीमा को गपशप के लिए घर पर ही बुला लिया था। रीमा एक फैशनेबल लड़की हैं, उसे सजने-सँवरने का शौक हैं। आज जैसे ही वह मधुमिता के रूम में इंटर हुई ...

शीशे को देखकर चहकते हुए बोली- वाह मधु मेडम क्या बात हैं ? लगता हैं आपको भी कोई मिल ही गया हैं जिसके खातिर आप भी सजने लगी हैं।

शरारती लहजे में रीमा गुनगुनाने लगी- सजना हैं मुझे सजना के लिए।

मधुमिता- ओह शट योर माउथ, ऐसा कुछ नहीं हैं।

रीमा- भई जैसा भी हो, आज नहीं तो कल सच सामने आ ही जाएगा।

इतना कहते हुए अशोक रूक गया। बाकि सभी उसे लगातार देखे जा रहे थे।

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