Wo Maya he - 95 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 95



(95)

खबर रोज़ाना में छपी गिरफ्तारी की रिपोर्ट के बाद लोगों की उत्सुकता यह जानने में थी कि क्या पुलिस पुष्कर और चेतन की हत्या का केस सुलझाने के करीब है। शाहखुर्द पुलिस स्टेशन के बाहर कुछ स्थानीय अखबारों के रिपोर्टर जमा हुए थे। वह चाहते थे कि पुलिस इस विषय में उनके सवालों के जवाब दे। साइमन ने तय किया था कि वह खुद उन पत्रकारों से बात करेगा। उनके मन में उठ रहे सवालों को शांत करेगा। क्या कहना है इसकी रूपरेखा तैयार करने के बाद वह पत्रकारों से बातचीत करने पुलिस स्टेशन के बाहर आया। उसने कहा,
"आप लोगों को ललित और पुनीत नाम के दो लोगों की गिरफ्तारी की खबर मिली है। आप लोगों के मन में कई सारे सवाल होंगे। फिलहाल अभी आपके सवालों के जवाब नहीं दूँगा। पर इस बात की पुष्टि कर रहा हूँ कि ललित और पुनीत को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उन लोगों ने हमारे एक खबरी को कैद करके रखा था। उन दोनों का संबंध पुष्कर और चेतन की हत्या से है या नहीं इस पर कोई टिप्पणी नहीं दूँगा। आप लोगों को यकीन दिलाता हूँ कि जल्दी ही उन दोनों हत्याओं की गुत्थी सुलझा कर आप लोगों के सारे सवालों का जवाब दूँगा। आप लोगों से सहयोग की उम्मीद है। तब तक धैर्य रखें और कुछ ऐसा ना लिखें जो केस पर प्रतिकूल प्रभाव डाले।"
यह कहकर उसने बाहर जमा पत्रकारों को वापस भेज दिया। अंदर आकर उसने अपने साथियों से कहा,
"मीडिया वाले अधिक दोनों तक शांत नहीं रहेंगे। उनका धैर्य टूटने से पहले हमें अपना काम करना है। वैसे हमारे लिए भी यह ज़रूरी है कि केस अपने अंजाम पर पहुँचे। हमने मजिस्ट्रेट से उन दोनों की पंद्रह दिन की पुलिस कस्टडी ली है। उससे पहले ही हमें उन्हें सबूत के साथ घेरना है। इसलिए जैसा तय हुआ है इसी समय से उसके आधार पर आगे बढ़ो।"
इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल ने एकसाथ कहा,
"यस सर.....हम जल्दी ही इस केस को सॉल्व कर देंगे।"
साइमन के चेहरे पर भी पूरा आत्मविश्वास था।
साइमन ने लिस्ट में दी गई जगहों को तीन ज़ोन्स में बांट दिया था। एक एक ज़ोन की ज़िम्मेदारी इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल को दे दी। तीसरे ज़ोन की ज़िम्मेदारी खुद ले ली। इंस्पेक्टर हरीश और सब इंस्पेक्टर कमाल अपनी टीम के साथ अपने ज़ोन के लिए निकल गए थे। साइमन कुछ बंदोबस्त करने के बाद अपनी टीम के साथ निकल गया।

ललित और पुनीत अपनी सेल में चुपचाप बैठे थे। आज गिरफ्तारी का छठा दिन था। लेकिन साइमन और उसकी टीम ने उन दोनों से कोई पूछताछ नहीं की थी। इस बात से ललित और पुनीत दोनों के मन में ही अब इस बात का डर पैदा हो गया था कि कहीं पुलिस के हाथ सचमुच तो कुछ नहीं लग जाएगा। पहले तो ललित के मन में विश्वास था कि पुलिस सिर्फ धमकी दे रही है। कुछ कर नहीं पाएगी। पर अब धीरे धीरे उसका विश्वास कम हो रहा था। ललित ने पुलिस वालों के अंदर एक आत्मविश्वास देखा था। पुनीत के मन में तो पहले ही डर था। ललित का विश्वास देखकर उसने अपने आप को काबू में किया था। इधर उसे ललित की आँखों में भी डर दिखाई पड़ने लगा था। उसका डर एकबार फिर उस पर हावी हो रहा था। उसने ललित से कहा,
"तुम कह रहे थे कि पुलिस के पास हमारे खिलाफ कुछ नहीं है। पर अब मुझे ऐसा लगता है कि तुम खुद डरे हुए हो।"
ललित डरा हुआ था। पर पुनीत के सामने सच नहीं बोलना चाहता था। उसने कहा,
"मैं क्यों डरूँगा ? सच तो कहा था मैंने। अगर पुलिस के पास कुछ होता तो अब तक हमारे सामने लेकर आती। उनके पास कुछ नहीं है। बस कुछ दिनों बाद उन्हें हमें छोड़ना पड़ेगा।"
पुनीत ने उसके चेहरे की तरफ देखा। उसके चेहरे से स्पष्ट था कि जो वह कह रहा है उसके होने पर उसे भी संदेह है। पुनीत ने कहा,
"पुलिस को समय लग रहा है इससे मेरा डर और बढ़ गया है। मुझे तो लगता है कि वह हमारे खिलाफ कोई पुख्ता सबूत लेकर आने वाले हैं।"
यह डर ललित को भी था। पर वह नहीं चाहता था कि पुनीत डर कर जाए और कुछ गड़बड़ कर दे। डर के बावजूद भी उसके मन में एक उम्मीद थी। उसने कहा,
"मैं पहले भी कह चुका हूँ कि डरो मत। हिम्मत रखो। पुलिस हमारे खिलाफ कुछ साबित नहीं कर पाएगी। हमें छोड़ना पड़ेगा।"
"पुलिस ऐसे ही तो नहीं छोड़ देगी। कुछ नहीं तो अपने खबरी को जबरन बंदी बनाकर रखने का आरोप लगाकर सज़ा दिलाएगी। वह भी कम तो नहीं होगी।"
ललित खुद भी बहुत से सवालों से परेशान था। पुनीत की बातें उसे अच्छी नहीं लग रही थीं। उसने खीझकर कहा,
"जितनी भी होगी इस बात का चांस तो होगा कि सज़ा काटकर हम लोग बाहर आ जाएं। जिस केस में पुलिस हमें फंसाना चाहती है उसमें यह चांस भी नहीं है। इसलिए कह रहा हूँ कि चुप रहो। इस तरह परेशान होकर अपने ही हाथों अपने गले में फंदा डाल लोगे।"
उसके इस तरह खीझने पर पुनीत समझ गया कि वह भी डरा हुआ है। पर उसकी बात में दम भी था। वह भी नहीं चाहता था कि पुलिस को ऐसा मौका दे जिससे वह फंस जाए। वह उससे कुछ दूर खिसक कर बैठ गया। उसके भीतर भावनाओं का एक तूफान उमड़ रहा था। खुद को एक ताकतवर इंसान बनते हुए देखने का उसका सपना चूर चूर हो गया था। उसके पूरा होने की कोई उम्मीद नहीं बची थी। एकबार फिर वह गर्मी की दोपहर उसके दिमाग में ताज़ा हो गई।
उसकी उम्र बारह साल थी। गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं। उसके साथी कहीं ना कहीं गए हुए थे। कुछ पैसे वाले थे जो घूमने गए थे। बाकी भी ननिहाल या किसी रिश्तेदारी में गए थे। उसकी माली हालत कहीं घूमने जाने की थी नहीं। उसकी माँ के मरने के बाद उसका तो कोई ननिहाल नहीं बचा था। रिस्तेदारी भी ऐसी नहीं थी कि कुछ दिन वहाँ रहकर आ सके।‌ वह अकेला पड़ गया था। गर्मियों के लंबे दिन उसके लिए काटने मुश्किल हो रहे थे। दिनभर वह घर में अकेला रहता था। उसकी माँ थी नहीं। पापा उसे घर पर छोड़कर अपनी नौकरी पर चले जाते थे। वह सारा दिन अकेला रहता था।
इस बीच उसके पापा के गांव से उनके कोई रिश्तेदार आए। उन्हें कुछ काम था। उसके पापा उसे उनके पास छोड़कर चले जाते थे। वह सुबह कुछ देर काम के लिए जाते थे। उसके बाद दोपहर में लौट आते थे। उनके साथ पुनीत को अच्छा लगता था। उस दिन शाम को उन्हें वापस जाना था। वह दोपहर से कुछ पहले ही घर वापस आ गए थे। लौटते हुए खाने का सामान लेकर आए थे। पुनीत उस दिन बहुत खुश था। वह खाना खाने के बाद उनके साथ बात कर रहा था। बात करते हुए ही आलस भरी दोपहरी में उसे नींद आ गई।
अपने शरीर पर स्पर्श महसूस होने से उसकी आँख खुली। उसके रिश्तेदार का चेहरा उसकी आँखों के सामने था। वह उसके चेहरे को देखकर डर गया। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई शैतान हो। उसने शैतान वाली हरकत भी की। पुनीत गिड़गिड़ा रहा था। लेकिन उसकी गुहार रिश्तेदार के कानों में जैसे पड़ ही नहीं रही थी। वह कुछ नहीं कर पाया। उसके बाद रिश्तेदार ने धमकी भरे अंदाज़ में सलाह दी कि चुप रहे। उसने कुछ कहा तो उसकी ही बदनामी होगी। लोग कहेंगे कैसा लड़का है ? कमज़ोर है। सब उसकी हंसी उड़ाएंगे। पुनीत डरा हुआ था। उसने अपना मुंह बंद रखा। शाम को वह रिश्तेदार वापस चला गया।
उस दोपहर को जो हुआ था उसने पुनीत के दिल पर गहरा असर किया था। रात को सोते हुए उसे उस दोपहर का सपना आता था। वह देखता था कि उसका रिस्तेदार उस पर हंस रहा है। कह रहा है कि तुम कमज़ोर हो। उसे लगने लगा था कि वह कमज़ोर है। वह कुछ कर नहीं पाया। इस बात ने धीरे धीरे उसके आत्मविश्वास को खोखला करना शुरू कर दिया। वह ठीक से पढ़ भी नहीं पाया। अंततः ऑटो चलाने का काम करने लगा। अपने पापा के चले जाने के बाद वह एकदम अकेला रह गया था। कोई अपना नहीं। कोई दोस्त नहीं एकदम अकेला।
यह सब सोचते हुए वह एकबार फिर कांपने लगा। अपने खयालों में खोए हुए ललित का ध्यान उसकी तरफ गया। वह खिसक कर उसके पास आया। उसने कहा,
"समझाया है ना तुमको कि इस तरह कमज़ोर मत पड़ो। अपने पर काबू रखो।"
पुनीत रो रहा था। उसने रोते हुए कहा,
"कमज़ोर तो मैं हूँ। ना होता तो उस दिन खुद को बचा लेता। एक उम्मीद जागी थी अब तो वह भी खत्म हो गई है।"
"अभी उम्मीद मत खो। सब ठीक होगा।"
"कुछ ठीक नहीं होगा। हमारी किस्मत ही ऐसी है। तुम्हारी किस्मत में भी तो राजयोग था। यही राजयोग है।"
अपनी हताशा में पुनीत ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था। ललित उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया था। कांस्टेबल उनकी सेल में आया। पुनीत कांप रहा था। रोते हुए चिल्ला रहा था। वह फौरन थाने में उपस्थित इंस्पेक्टर को बुला लाया। पुनीत की हालत देखकर इंस्पेक्टर घबरा गया। उसने फौरन साइमन को सूचना दी। साइमन ने कहा कि उसे जो चिकित्सा ज़रूरी हो दिलवाई जाए।
पुनीत को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया था। पुनीत की हालत देखकर ललित अब और टूट गया था। उसे भी लग रहा था कि जैसे अब सबकुछ हाथ से निकल गया। अब तक वह किस्मत में लिखे जिस राजयोग को तलाश कर रहा था वह महज़ एक छलावा था। एक ऐसा छलावा जिसके कारण वह दलदल में धंस गया था। अब उस दलदल से बाहर निकल पाने की गुंजाइश ना के बराबर रह गई थी।